इसके बाद अब्दुल कलाम को किसी ने कुछ भी कहते हुए नहीं सुना। इन दो पंक्तियों में डॉक्टर कलाम ने न सिर्फ अपने जीवन के परम उद्देश्य के दर्शन कराए बल्कि काबिलियत के दम पर इस धरती को ठीक वैसा बनाने का अपना मकसद भी जाहिर कर दिया है। इस से यह भी साफ हो जाता है कि वे किस सूत्र वाक्य की खातिर अपना सारा जीवन लगाने को आमादा रहते थे।
डॉक्टर कलाम के आखिरी शब्दों को यूं तो कई जगह आदर्श वाक्य के तौर पर उद्घोषित किया जाता है लेकिन जिस एक जगह इस मंत्र को दस्तावेजी आकार देकर उसे सार्थक शक्ल प्रदान की है। उनकी लिखी आखिरी पुस्तक एडवांटेज इंडिया के 199 वें पन्ने पर उनके शिलांग के आईआईएम में दिए गए भाषण का यह हिस्सा दर्ज है।
इस पुस्तक में डॉक्टर कलाम ने अपनी उस दृष्टि से परिचय कराया है, जिसके बारे में सिवाय डॉक्टर कलाम और उनके आस पास रहने वाले चंद मुट्ठी भर लोगों के अलावा शायद ही किसी को इल्म हो सकता है कि डॉक्टर कलाम कैसे मामूली से मामूली दिखने वाले हालात में भी उम्मीद और जज्बे का किस्सा देखने और सुनने की क्षमता रखते हैं।
एडवांटेज इंडिया चुनौतियों से उपलब्धियों तक पुस्तक में डॉक्टर कलाम और उनके सहयोगी की दिल्ली से जौनपुर की यात्रा का जिक्र है। इस यात्रा में कच्चे पक्के रास्तों से गुजरते हुए डॉक्टर कलाम एक बार बादशाह नगर जैसे बेहद मामूली कस्बे पर रुकते हैं और वहां चाय पीने के लिए एक छोटी दुकान तक जाते हैं। लेकिन उस दुकान ने उनकी सोच और मानसिकता पर गहरा असर छोड़ा क्योंकि उस दुकानदार के तौर तरीके और उसके व्यापार की आर्थिक समझ ने उनके भीतर एक तरह की जिज्ञासा भर दी, उसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने उस इलाके के दुकानदारों में छुपी उद्यमिता को करीब से देखा और फिर वह फॉर्मूला बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों तक इस गरज से पहुंचाया ताकि मुल्क के दूसरे हिस्से के हुनरमंद कारोबारियों को भी इसका फायदा मिल सके।
पुस्तक – एडवांटेज इंडिया : चुनौतियों से उपलब्धियों तक
लेखक – डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
अनुवादक – सृजनपाल सिंह
प्रकाशक – राजपाल एंड संस