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एक विद्रोही गीत की कहानी

देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसी घटनायें कम ही सुनने को मिलती हैं कि एक गीत किसी सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दे और सरकार को उस गीत और गीतकार के खिलाफ पूरी ताकत झोंकनी पड़ी हो। और आख़िरकार वह गीत ही सरकार का विदाई गीत बन गया हो।
एक विद्रोही गीत की कहानी

यह सुनना भी विस्मयकारी है लेकिन उत्तराखण्ड में ऐसा हुआ है। उत्तराखण्ड के चर्चित लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी का गढ़वाली गीत ‘नौछमी नारेणा’ एक ऐसा ही गीत है जिसकी वजह से एक समय उत्तराखण्ड की राजनीति में खासा तूफान खड़ा हुआ था।

इस अनूठी किस्म की राजनीतिक घटना पर अब एक किताब आई है-‘गाथा एक गीत की- द इनसाइड स्टोरी ऑफ नौछमी नारेणा।’ यह किताब दिल्ली में एक टीवी न्यूज़ चैनल के पत्रकार मनु पंवार ने लिखी है।

किसी गीत का गाथा बन जाना वैसे भी कोई मामूली घटना नहीं हो सकती। मनु पंवार ने ढाई सौ पेज की इस किताब के जरिये इसे विस्तार से बताने और समझाने की कोशिश की है।

यह किताब उत्तराखण्ड की संस्कृति, समाज, जीवन, संगीत से लेकर उसकी राजनीति तक को जानने-समझने का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

उत्तराखण्ड के जाने-माने लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के लिखे ‘नौछमी नारेणा’ गीत ने नारायण दत्त तिवारी की सरकार के समय उत्तराखण्ड में एक बड़ा राजनीतिक संकट पैदा कर दिया था। इस गीत से इतना भीषण सत्ता विरोधी माहौल बना था कि वर्ष 2007 के चुनाव में एनडी तिवारी की सरकार को भारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी।

दरअसल लालबत्तियों के अंधाधुंध आवंटन, विवेकाधीन कोष के दुरुपयोग, बेलगाम मंत्री और नौकरशाह जैसे तमाम ऐसे मुद्दे थे जिनका जवाब दे पाना तत्कालीन तिवारी सरकार को भारी पड़ रहा था। लोकगायक नेगी ने अपने गीत में इन तमाम मसलों पर तंज कसा था। 

नेगी के गीत में प्रतीकों में नारायण दत्त तिवारी को ‘नौछमी नारेणा’ (बहुरुपिया नारायण) बताया गया था। इससे ऐसी उथल-पुथल मची थी कि सरकार ने नरेंद्र सिंह नेगी के स्टेज कार्यक्रमों पर अघोषित पाबंदी लगा दी थी और गीत को वीडियो सीडी से जबरन हटा दिया गया था।

इसी गीत के बहाने पहली बार उत्तराखण्ड में सेंसरशिप लागू हुई थी। मनु पंवार ने अपनी इस किताब में ‘नौछमी नारेणा’ गीत के राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों की विस्तार से पड़ताल की है। इसके अलावा उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक प्रतिरोध की परंपरा में इस गीत का निर्धारण किया है।

पूरी किताब एक शोध ग्रन्थ की शक्ल में है और इसमें की गई मेहनत साफ दिखती भी है। इस किताब में उन वजहों की भी गंभीरता से खोजबीन की गई है जिनसे ‘नौछमी नारेणा’ गीत का जन्म हुआ। साथ ही गीत पर मचे घमासान का भी सिलसिलेवार और तथ्यात्मक ब्योरा देने की कोशिश की गई है। यह गीत कैसे उत्तराखण्ड की सरहदों को लांघते हुए अमेरिका और ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में पहुंचा, उसकी यात्रा का दिलचस्प उल्लेख भी है। 

‘गाथा एक गीत की’ उत्तराखण्ड में बदलते राजनीतिक चरित्र का एक दस्तावेज है, जिसमें मनु पंवार ने यह पड़ताल की है कि सत्ताधीशों ने कैसे इस छोटे से पहाड़ी राज्य की सत्ता का अपने दलीय राजनीतिक प्रबंधन के लिए दुरुपयोग किया। साथ ही उत्तराखण्ड में राजनीति, नौकरशाही, एनजीओ के गठजोड़ का भी खुलासा करने की कोशिश की गई है। किताब को श्रीगणेशा पब्लिकेशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है और इसका मूल्य 250 रुपये है।

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