जाति आधारित जनगणना के आंकड़े जारी नहीं करने को लेकर उत्पन्न विवाद के बीच केंद्र सरकार ने गुरुवार को नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढि़या की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया है। यह समूह जाति के आधार पर आंकड़ों का वर्गीकरण करने के लिए बनाया गया है।
इसी महीने जारी सामाजिक-आर्थिक-जाति जनगणना (एसईसीसी) के आंकड़े देखकर हम दिल्ली में समुंदर खोजने लग गए। इन आंकड़ों के नुसार दिल्ली में मछली पकड़ने की मशीनी नौकाएं 14,468 परिवारों के पास हैं-बड़े समुद्र तटीय क्षेत्र वाले तमिलनाडु के 13,760 परिवारों के पास ऐसी नौकाओं से कहीं ज्यादा। और तमिलनाडु के बड़े तटीय भूभाग को पखारता विशाल समुंदर और उसमें दूर-दूर तक डूबती-उतराती, मछली मारने के लिए जाल फैलाती अनगिनत मशीनी और मानव चालित नौकाएं हमने आंखों देखी हैं।
केंद्र सरकार ने लंबे इंतजार के बाद सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) 2011 के कुछ आंकड़े जारी किए हैं। हालांकि, जाति से जुड़े आंकड़ों का अभी भी खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन ग्रामीण भारत से जुड़े कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इनमें से कुछ आंकड़े काफी विवादस्पद नजर आते हैं। नतीजों को सार्वजनिक करने में देरी और आपत्तियों की सुनवाई को लेकर यह जनगणना पहले ही सवालों से घिरी है। जानिए देश के 640 जिलों में हुई सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना ग्रामीण भारत की कैसी तस्वीर पेश करती है-
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल ने केन्द्र और छत्तीसगढ़ सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि जंगलों पर आदिवासियों का अधिकार है और यह अधिकार नहीं छीना जा सकता। राहुल ने कोरबा के खदान क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्राी के विकास के माॅडल पर सवाल खड़ा किया और आरोप लगाया कि इससे आदिवासियों को कोई लाभ नहीं मिल रहा।
संजीव श्रीवास्तव पेशे से टीवी पत्रकार हैं। उनकी एक पुस्तक - समय, सिनेमा और इतिहास भारत सरकार के प्रकाशन विभाग से प्रकाशित है। संजीव की कविताओं में धर्म, राजनीति और इस सबके बीच पिसती मनुष्यता का ऐसा विवरण है जो किसी को भी सोचने पर मजबूर कर सकता है।
अब योग किसी एक संस्कृति या धर्म का नहीं रहा। यह क्रिसमस की तरह है, जो भी इसे मनाना चाहें उन सब का है। आधुनिक दौर में हमारे सुस्त और गतिहीन जीवन से उबरने का सबसे बेहतर तरीका।
एक नई स्वतंत्र रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका लिट्टे के पराजय के साथ देश में गृह युद्ध खत्म होने के छह साल बाद भी अपने धार्मिक और जातीय मूल के अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।
राजस्थान में पिछले डेढ़-दो साल में दलित और सामाजिक तौर पर उपेक्षित वर्गों के खिलाफ अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले छह माह में दलित अत्याचारों की लहर सी आ गई है।
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ सरकारी समर्थन से आदिवासियों का हथियारबंद संघर्ष ‘सलवा जूडूम’ भले ही सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद बंद हो गया हो मगर इस अभियान की परिकल्पना और शुरुआत करने वाले कांग्रेसी नेता दिवंगत महेंद्र कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा इस अभियान को फिर शुरू करने की तैयारी में हैं।