मध्यप्रदेश के आदिवासी जिले झाबुआ का यह मुर्गा कोई आम मुर्गा नहीं है। आप इसे देसी वियाग्रा भी कह सकते हैं। चटख काले रंग के इस मुर्गे की मांग पाकिस्तान तक बताई जाती है। विलुप्त हो रही इस दुलर्भ प्रजाति का मांस बहुत सी बीमारियों को जड़ से खत्म करता है। यहां बात हो रही है कड़कनाथ मुर्गे की।
मध्य प्रदेश के झाबुआ इलाके में तेजी से तस्वीर बदल रही है। राष्ट्रय स्वयंसेवक संघ का प्रचार-प्रसार जोरों पर है। इस आदिवासी बहुल इलाके का सांस्कृतिक परिदृश्य बदल रहा है। व्यापमं की मौत की छाया कड़कनाथ मुर्गे की कड़क तासीर पर भी भारी है। आदिवासी शिक्षित नौजवानों का हो रहा पयालयन।