लेकिन प्रदेश में अंडे तक का विरोध कर रही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के राज में कड़कनाथ का अपना स्वास्थ्य काफी खराब चल रहा है। यानी यह खत्म होने के कगार पर है और इसे बचाने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा।
झाबुआ और धार में
लजीज कड़कनाथ मध्यप्रदेश के झाबुआ और धार इलाके में पाया जाता है। हालांकि इसकी मांग अब देश के कोने-कोने से आ रही है। राजस्थान, कर्नाटक, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश के लोग कड़कनाथ के चूजे लेना चाहते हैं। हालात यह है कि झाबुआ के कृषि विज्ञान केंद्र स्थित हैचरी में कड़कनाथ के चूजे लेने के लिए आठ महीने बाद बारी आ रही है।
अहम बात यह है कि यह मुर्गे मध्य प्रदेश के उस इलाके में हैं जो आर्थिक तौर पर गरीब है। अगर सरकार इसकी मांग को देखते हुए इसमें जरा सी भी रूचि दिखाए तो कई गरीब और साधनहीन घरों को आर्थिक फायदा हो सकता है। सरकार भी मुनाफा कमा सकती है। कड़कनाथ के अंडो को हैचरी में 18 दिन तक सेटर मशीन में रखा जाता है। इसके बाद तीन दिन हैचर मशीन में रखते हैं। यहां अंडों से चूजे बाहर निकल आते हैं। इसके बाद उन्हें निर्धारित तापमान में रखकर मांग के अनुसार दे दिए जाते हैं।
सब कुछ काला
स्थानीय भाषा में कड़कनाथ को कालीमासी भी कहते हैं। क्योंकि इसका मांस, चोंच, जुबान, टांगे, चमड़ी आदि सब कुछ काला होता है। यह प्रोटीनयुक्त होता है और इसमें वसा नाममात्र रहता है। कहते हैं कि दिल और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ बेहतरीन दवा है। इसके अलावा कड़कनाथ को सेक्स वर्धक भी माना जाता है।
संपर्क समाज सेवी की कोशिश
हाल ही में झाबुआ की संपर्क समाज सेवी संस्था ने एक पहल की है। संस्था से जुड़े निलेश देसाई का कहना है कि उन्होंन पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर झाबुआ के पांच गांवों की महिलाओं को 50-50 रुपये में कड़कनाथ के चूजे दिए हैं। संस्था चाहती हैं कि मुर्गीपालन छोड़ रहे आदिवासी परिवार इसे दोबारा अपनाएं। देसाई के अनुसार बाजार में एक कड़कनाथ लगभग 1200 रूपये में बिकता है। यहां तक कि लोग झाबुआ विशेषतौर पर कड़कनाथ खाने के लिए आते हैं। इसके एक चूजे को पनपने में छह महीने का समय लगता है, जिसपर हर महीने 50 रुपये के दाना-पानी खर्च आता है। इस प्रकार यह महिलाएं काफी मुनाफा कमा सकती हैं। देसाई के अनुसार इनकी कोशिश यह भी है कि यह महिलाएं मुर्गों की गिनती बढ़ाएं। देसाई इस बात से काफी खफा हैं कि सरकार कड़कनाथ को बचाने के लिए कुछ भी नहीं कर रही। जबकि इसकी मांग दूर-दूर तक है।