दिलीप सी.मंडल- हमें अफसोस है रोहित वेमुला, कि अपनी बात बहरों को सुनाने के लिए आपको मरना पड़ा। आपकी मौत ने इस देश की अंतरात्मा को, जो किसी कोने में दुबकी पड़ी थी, झकझोरने का काम किया है। लोग धर्म, जाति, भाषा, प्रांत, लिंग जैसे तमाम बंधनों से ऊपर उठकर दुखी हैं, नाराज हैं। पूरे देश में सामूहिक शोक का माहौल है। यहां से कोई अच्छी बात की शुरुआत हो तो बात है। आदमी का इंसान बनना शुरू हो तो बात है। शिक्षा संस्थानों के कत्लगाह बंद हों, तो बात है, द्रोणचार्यों का अंत हो, तो बात है।
अमीक जामई- आत्महत्या सपनों के मर जाने से ही तो होती होंगी।
तारा शंकर- रोहित साइंस का लेखक बनना चाहता था। उसे प्यार था प्रकृति और तारों से। इतने जीवंत सपने संजोये कोई कैसे आत्महत्या कर सकता है भला। उसे मारा गया है। उसे इस व्यवस्था ने मारा है, इस समाज ने मारा है। सुसाइड नोट में रोहित ने समाज द्वारा उपेक्षित अपने बचपन और अकेलेपन के बारे में लिखा है। बस सोचकर देखिये कि एक गरीब दलित पीएचडी तक का सफर कितना कुछ सुनते-सहते-लड़ते तय किया होगा लेकिन विश्वविद्यालय जैसे स्पेस में भी इससे छुटकारा कहां था। ऐसे ही उपेक्षा व तिरस्कार से उत्पन्न अकेलेपन से इस समाज में कमोबेश हर दलित, हर लड़की जूझती है! इन सबसे लड़ते हुए रोहित यहां तक पहुंचा था। यहां उसने संघर्ष की राह पकड़ी थी। अपने स्कॉलरशिप से कुछ पैसे बचाकर घर भी भेजता था। रोहित ‘लड़ो पढ़ाई करने को, पढ़ो समाज बदलने को’ वाले नारे को असल में जी रहा था। लेकिन इस ब्राह्मणवादी समाज ने, उस विश्वविद्यालय ने, वाइस चांसलर ने, उस केंद्रीय मंत्री सबने मिलकर उसका कत्ल किया है। एक ऐसे संवेदनशील युवा की जिसे मरते समय भी परिवार की फिक्र और दोस्त का कर्ज याद था। रोहित,तुम्हारा ये चेहरा मेरे दिमाग में कल रात से घूम रहा है। तुम्हारे पीछे हजारों रोहित पैदा हो खड़े हो गए हैं दोस्त। बस तुम्हें जाना नहीं चाहिए था। सलाम रहेगा।
बंदा इस्लामुदीन- जब एक आदमी इनके सामने फांसी लगा रहा था तब अपनी बयानबाजी में लगे रहे खुद पर दो बूंद स्याही पडी तो मुंह बंद और जान के खतरे की गुहार लगाना शुरू। देश में लोग ज्यादा बेवकूफ हैं या नेता ज्यादा होशियार।
नूतन यादव- ब्राह्मणवाद का एक और पैतरा,मुद्दे को भटकाने में इन्हें विशेषज्ञता प्राप्त है, मैं आज सुबह ही से अकादमिक जगत के आलिम फाजिलों की इस आत्महत्या पर प्रतिक्रियाओं का इंतजार करती रही, कई बड़े नामों ने नाउम्मीद किया। अब इन साहब की पोस्ट बाबत बात की जाए, जैसा कि ब्राह्मणवादियों से उम्मीद थी कि वे मुद्दे को भटकाने या गलत दिशा में ले जाने की कोशिश करेंगे, इन साहब के अनुसार रोहित की आत्महत्या दलित होने के कारण नहीं प्रेम से पैदा हुए खालीपन, अपनेपन इत्यादि इत्यादि के कारण हुई थी,शर्म आती है ऐसों की समझ पर। बधाई हो साहब, आपने आत्महत्या में भी पॉलटिक्स खोज ली।