छात्रों द्वारा संचालित साप्ताहिक ई-पत्रिका पर प्रतिबंध के जरिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने के मामले में संस्थान के पूर्व छात्रों की नाराजगी झेल रहे सेंट स्टीफन्स कॉलेज के प्राचार्य वाल्सन थंपू ने इस कदम का बचाव करते हुए इसे संस्थान के अनुशासन के नियमों के अनुरूप बताया।
सेंट स्टीफंस और सोचने की स्वतंत्रता- काश मुझे यह नहीं लिखना पड़ता शीर्षक वाले एक खुले पत्र में थंपू ने कहा, ‘मैं बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं। मैं खुद पर किए जा रहे हमलों से आहत नहीं हूं बल्कि कुछ पूर्व छात्र सार्वजनिक रूप से जिस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं , उससे शर्मिंदा हूं।’
साप्ताहिक ई-पत्रिका को कॉलेज के चार छात्रों ने शुरू किया था। सात मार्च को यह पत्रिका इंटरनेट पर आई और थंपू के साक्षात्कार को 2000 से ज्यादा हिट मिले। इसके बाद थंपू ने इस मुद्दे पर उनसे मंजूरी न लिए जाने की बात कहते हुए पत्रिका के प्रकाशन पर रोक के आदेश दे दिए।
उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक सदस्यीय अनुशासन समिति भी नियुक्त कर दी। थंपू के इस कदम की आलोचना कॉलेज के प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों ने की, जिनमें पूर्व प्रमुख चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी और दिल्ली के पूर्व लोकायुक्त जस्टिस मनमोहन सरीन भी शामिल हैं। इन्होंने थंपू से अनुरोध किया कि वह अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करें क्योंकि उनके अनुसार यह फैसला अनुपयुक्त एवं सख्त है।
थंपू ने पत्र में कहा, ‘यह कॉलेज की परंपरा और अनुशासन है, मेरे दिमाग की उपज नहीं है। यह कोई दमनकारी कदम नहीं है, जो मुक्त चिंतन पर रोक लगाने के लिए उन्मुक्त ढंग से उठा लिया गया हो। कॉलेज के नाम पर एक ऑनलाइन प्रकाशन को सार्वजनिक करने से वर्तमन या बाद में व्यापक परिणाम सामने आ सकते हैं। संस्थान के हितों का ध्यान रखना मेरा कर्तव्य है।’
थंपू ने आगे लिखा कि इस साक्षात्कार की पांडुलिपि उन्हें मेल के जरिये भेजी गई थी लेकिन इसे उनकी मंजूरी का इंतजार किए बिना प्रकाशित कर देना, अन्य चीजों के अलावा, घोर विश्वासघात है। इसने कॉलेज के मूल अनुशासन एवं मूल परंपरा को भी तोड़ा है। उन्होंने कहा, ‘हम अलग-अलग सोसाइटियों के लिए अलग-अलग नियम नहीं रख सकते और कॉलेज के संपूर्ण जीवन के लिए स्वेच्छाचारी नहीं हो सकते। इसलिए इसे नामंजूर करने के अलावा प्राचार्य के समक्ष कोई विकल्प नहीं बचा था।’
ब्यौरे के अंत में सेंट स्टीफन्स की साप्ताहिक पत्रिका के शेष तीन संस्थापकों का नोट है, जिनमें दो द्वितीय वर्ष के छात्र हैं और एक प्रथम वर्ष का छात्र है। थंपू ने कहा कि इन्होंने थंपू को चेतावनी दी थी कि इनका सीनियर इस पत्रिका के बारे में मीडिया से बात कर रहा है, क्योंकि उनके साथ धोखा किया गया है।
अपने बचाव में पत्रिका के संपादक एवं संस्थापक सदस्य देवांश मेहता ने कहा, ‘हमने इस साप्ताहिक पत्रिका को शुरू करने से पहले प्रशासन से कोई अनुमति नहीं मांगी लेकिन हमने प्राचार्य को यह जानकारी दी थी कि हम एक ऐसी ई-पत्रिका शुरू कर रहे हैं। तब कोई भी आपत्ति इस पर नहीं उठाई गई थी। वह (प्राचार्य विल्सन थंपू) तो साक्षात्कार के लिए भी राजी हो गए थे और उन्होंने खुद ही अपने आप को इस साप्ताहिक पत्रिाका के लिए स्टॉफ एडवाइजर के रूप में नियुक्त कर लिया था। उनके निर्देशों के अनुसार, हमने उन्हें साक्षात्कार छापने से पहले उसकी पांडुलिपि भेजी थी लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब न आने पर हमने इसे छाप दिया। इसके बाद प्राचार्य ने इस पर कार्रवाई की है।
थंपू के खुले पत्र में हालांकि समूह के तीन अन्य सदस्यों द्वारा थंपू को कथित तौर पर भेजा गया कथन भी शामिल है, जिसमें कहा गया है, हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारे एक संस्थापक देवांश मेहता ने सेंट स्टीफन्स की साप्ताहिक पत्रिका पर रोक लगाए जाने के बारे में एक लेख छापने के लिए मीडिया से संपर्क किया है। हमने उसे समझाने की पूरी कोशिश की कि वह इसमें प्रेस को शामिल न करे लेकिन वह हमारी बात नहीं मान रहा। हम आपको बस यह बताना चाहते हैं कि हम उसके कदम का समर्थन नहीं करते और हमारी इसमें कोई भूमिका नहीं है।’