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चार तजुर्बेकारों पर ही दारोमदार

विश्व कप के 15 खिलाडिय़ों में चयनकर्ताओं ने विश्व कप-2010 में खेलने वाले चार खिलाडिय़ों को ही रखा है। 11 नए खिलाडिय़ों में से कुछ चोटिल हैं जबकि तेज गेंदबाजी का खेमा सबसे कमजोर
चार तजुर्बेकारों पर ही दारोमदार

भारतीय क्रिकेट टीम के लिए जिन 15 खिलाडिय़ों के विश्व कप खेलने पर मुहर लगी है, उनमें से सिर्फ चार खिलाडिय़ों- महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, आर. अश्विन और सुरेश रैना- को ही इससे पहले विश्व कप खेलने का अनुभव रहा है। यानी विश्व कप-2015 के लिए चयनकर्ताओं ने भी 11 जमा 4 बराबर 15 के गणित पर ही भरोसा जताया है। लेकिन जानकारों के नजरिये से क्रिकेट का मैदानी गणित देखा जाए तो यह टीम किसी सूरत में संतुलित नहीं नजर नहीं आती। चयनकर्ताओं ने युवराज, गंभीर और सहवाग के अनुभव के बजाय नए चेहरों को तरजीह दी है। चार को छोडक़र जितने भी 11 युवा खिलाडिय़ों का चयन किया गया है, उनमें बल्लेबाजी तो थोड़ी दमदार नजर आती है लेकिन तेज गेंदबाजों में भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी, ईशांत शर्मा तथा उमेश यादव से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। फिरकी गेंदबाजों की जगह भरने के लिए रवींद्र जडेजा, आर. अश्विन, अक्षर पटेल और स्टुअर्ट बिन्नी जैसे युवाओं को बतौर ऑलराउंडर टीम में शामिल किया गया है। सबसे चौंकाने वाला चयन रवींद्र जडेजा और स्टुअर्ट बिन्नी का ही रहा। जडेजा लंबे समय से कंधे की चोट से जूझ रहे हैं जबकि चयनकर्ताओं में पिता रोजर बिन्नी के होने के कारण स्टुअर्ट बिन्नी का चयन माना जा रहा है।
ऑस्ट्रेलिया के उछाल वाले विकेट और न्यूजीलैंड में स्विंग और सीम के लिए मददगार  परिस्थितियों में तेज गेंदबाजों की अहमियत बढ़ जाती है। तो क्या महज 20 मिनट में 15 खिलाडिय़ों का चयन जायज कहलाएगा जिसमें किसी कारणवश रोजर बिन्नी तक शामिल नहीं हो पाए। हो सकता है कि बेटे की जगह पक्की करने के लिए यह किसी पिता की रणनीति का हिस्सा हो, लेकिन हरफनमौला कोटे के नाम पर पांच-पांच खिलाडिय़ों को रखने के बजाय क्या यह उचित नहीं होता कि बिन्नी और जडेजा की जगह दो अच्छे तेज गेंदबाजों को रखा जाता? क्रिकेट समीक्षकों का मानना है कि जडेजा को लेकर चयनकर्ताओं ने जोखिम उठाया है और विश्व कप में अगर वह चोटिल हो गए तो कोई दूसरा खिलाड़ी उनकी भरपाई नहीं कर पाएगा। लेकिन बीसीसीआई सचिव संजय पटेल कहते हैं कि बोर्ड के फिजियो ने उनके जल्द फिट हो जाने की उम्मीद जताई है। उनके मुताबिक, बिन्नी ऑस्ट्रेलिया जैसी पिचों पर अच्छी गेंदबाजी कर सकते हैं और निचले क्रम में बल्लेबाजी भी कर सकते हैं। लेकिन टीम को इतने स्पिन ऑलराउंडर की जरूरत नहीं थी क्योंकि इसके लिए जडेजा और अश्विन पहले से ही मौजूद हैं। बाएं हाथ के फिरकी गेंदबाज अक्षर पटेल भी हैं जिन्हें धोनी की पसंद माना जाता है जबकि बिन्नी प्रशिक्षक डंकन फ्लेचर की पसंद हैं। अपने जमाने के ताबड़तोड़ बल्लेबाज संदीप पाटिल की अध्यक्षता में चयनकर्ताओं ने खिलाडिय़ों के मौजूदा फॉर्म और फिटनेस को देखते हुए निर्णय किया है। शायद यही वजह होगी कि पिछले विश्व कप में बल्लेबाजी के अलावा अच्छी फिरकी गेंदबाजी करने वाले युवराज सिंह की फिटनेस पर उन्हें भरोसा नहीं रहा। इसी तरह पूर्व ऑलराउंडर मददलाल भी मानते हैं कि विदेशी पिचों पर शिखर धवन और रोहित शर्मा अधिक सफल नहीं रहे हैं इसलिए टीम में मुरली विजय को होना चाहिए था।
मुंबई के बीसीसीआई मुख्यालय में चयनकर्ताओं ने करीब डेढ़ घंटे बैठक की लेकिन टीम के एलान के लिए महज 20 मिनट की मंत्रणा की और ज्यादातर वक्त एक अन्य चयनकर्ता (रोजर बिन्नी) के इंतजार में ही बिता दिया जिनका विमान डेढ़ घंटे तक बंगलूरू हवाई अड्डïे पर ही फंसा रहा था। ईशांत शर्मा के बारे में सचिव का कहना है कि उनकी चोट तात्कालिक है और वह टूर्नामेंट के लिए फिट हैं। हालांकि बोर्ड अब तक उसी खिलाड़ी को चुनता आया है जो जो चयन के वक्त फिट रहे हैं। इस मामले में जडेजा और ईशांत अपवाद रहे हैं। पूर्व चयनकर्ता सैयद किरमानी का मानना है कि मेरी टीम में युवराज जरूर होते क्योंकि वल्र्ड कप में अनुभव महत्व रखता है। इस टीम में सात बल्लेबाज, सात गेंदबाज और एक ऑलराउंडर है लेकिन भारतीय टीम के दो पूर्व कप्तानों ने गेंदबाजों के चयन पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इनमें इतना दम नहीं कि हम विदेशी धरती पर कामयाबी का परचम फहरा सकें। राहुल द्रविड़ कहते हैं कि मौजूदा गेंदबाज विदेशी पिचों पर लगभग नाकाम ही रहे हैं। वहीं अनिल कुंबले ने कहा कि कुछ आलोचनाएं तो पूरी तरह सही हैं कि अच्छे गेंदबाज तो हमारे पास हैं लेकिन यह देखना भी जरूरी है कि कौन गेंदबाज किस फॉर्मेट के लिए कितना उपयुक्त है।  


बेबसी या सच्चाई से मुलाकात
सुशील दोषी

महेंद्र सिंह धोनी को करीब से जानने वाले अक्सर कहते हैं कि अपने सोच और अपने रहस्यों को वह किसी के साथ नहीं बांटते। वह केवल अपने दिल की आवाज सुनते हैं और उसी के आधार पर त्वरित फैसले करते हैं। अक्सर उनके फैसले सही बैठते हैं इसलिए वह भारतीय क्रिकेट इतिहास के सफलतम कप्तान कहे जाते हैं। पर जब उनके फैसले गलत पड़ जाते हैं तो 'समझदारÓ समालोचकों और चालाक भूतपूर्व क्रिकेट खिलाडिय़ों के तेवर आक्रामक हो जाते हैं। हाल के दिनों में धोनी को कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरना पड़ा और इसलिए उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने में ही भलाई समझी।
लंबे समय से मांग उठ रही थी कि धोनी को टेस्ट क्रिकेट की कप्तानी से हटाया जाना चाहिए। जब मशहूर ऑल राउंडर मोहिंदर अमरनाथ की अगुआई वाली बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड) की राष्ट्रीय चयन समिति ने धोनी को हटाने का फैसला किया था तब बीसीसीआई अध्यक्ष श्रीनिवासन ने 'वीटोÓ करते हुए फैसला बदल दिया और धोनी की कप्तानी कायम रही। स्वाभिमानी मोहिंदर अमरनाथ को तब इसका खमियाजा भी भुगतना पड़ा था और उन्हें चयन समिति में बाद में नहीं रखा गया। बाद की शृंखलाएं भारत में होनी थीं, तब धोनी ने स्पिन लेते धीमे विकेटों पर अपनी बादशाहत फिर कायम कर दी। वैसे भी जब आपके गेंदबाजों में 20 विकेट लेने की काबिलियत नहीं हो तो हार के लिए कप्तान को दोषी नहीं ठहरा सकते। यह नहीं भूलना चाहिए कि धोनी ही एकमात्र भारतीय क्रिकेट कप्तान हैं, जिनकी कप्तानी में एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप, टी-20 विश्व कप जीतने के साथ ही टेस्ट क्रिकेट में भी भारत चोटी पर पहुंचा। इसके बावजूद बोर्ड से जुड़े चयनकर्ताओं की एक लॉबी उन्हें टेस्ट क्रिकेट से दरकिनार करने में सफल रही।

पर जहां पैसा है, बड़े-बड़े अनुबंध हैं, वहीं ईष्र्या और प्रतिद्वंद्विता भी है। शीर्ष पर बैठा आदमी हमेशा अकेला होता है और उसके नीचे बहुत सारे लोग होते हैं जो आपको अपनी श्रेणी में लाना चाहते हैं। सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर भी अपने समय में विश्व में सर्वश्रेष्ठï थे। लेकिन जब रन जुटाने में असफल हुए तो टेस्ट क्रिकेट में कुल 500 रन भी न अर्जित करने वाले पुराने खिलाडिय़ों ने हमला बोल दिया था कि इन सितारों को ऑफ स्टंप की स्थिति का ध्यान ही नहीं हैं। पैसों की प्रतिद्वंद्विता और ईष्र्या कभी-कभी षडयंत्रों में भी बदल जाती है। कई भूतपूर्व भारतीय खिलाडिय़ों के अलावा भारतीय क्रिकेट में दिलचस्पी रखने वाले पूर्व आस्ट्रेलियाई और पाकिस्तानी खिलाड़ी भी धोनी को हटाने के पक्ष में बयान देकर हवा बना रहे थे।

भूतपूर्व भारतीय खिलाडिय़ों की भारतीय क्रिकेट के मामलों में दिलचस्पी तो समझ में आती है, पर चैपल बंधु या वसीम अकरम को क्या पड़ी है कि बीसीसीआई को बिन मांगी सलाह दें? आश्चर्य तो इस बात पर भी है कि वे अपने देश की क्रिकेट हालत के बारे में कोई सलाह या बयान तक नहीं देते। साफ है कि ये लोग भारतीय खिलाडिय़ों पर टिप्पणी करके बोर्ड के अहम किरदारों और सितारा खिलाडिय़ों को खुश करके अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं। क्रिकेट की दुनिया में उपजे कुल धन का 70 प्रतिशत योगदान भारत का रहता है इसलिए कई भूतपूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी यहां कोई लाभप्रद अनुबंध पाने की जुगाड़ में रहते हैं। आईपीएल की चमक-दमक ने तो कई खिलाडिय़ों के लिए विलासपूर्ण जीवन के दरवाजे खोल दिए हैं। विराट कोहली की आसमानी सफलताओं को देखते हुए पूर्व दिग्गज उनकी 'गुड बुक्सÓ में रहना चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह नाम लंबी दौड़ का घोड़ा है। लिहाजा, क्रिकेट जानकारों का एक वर्ग मानने लगा है कि धोनी किसी लंबी योजना और सािजश के शिकार हो गए हैं। 'हितों के टकरावÓ की व्याख्या के कारण अदालत ने पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष श्रीनिवासन पर जो टिप्पणियां की हैं, उसे देखकर धोनी का जाना भी तय लग रहा था। बोर्ड भी उन्हें बताने के मूड में नहीं दिख रहा था। धोनी और प्रशिक्षकफ्फ्लेचर के सिर पर रवि शास्त्री को निदेशक नियुक्त करके पहले ही यह आभास दे दिया गया था कि सत्ता परिवर्तन होने को है। यहीं पर धोनी के पर कतर दिए गए। ह धोनी एक काबिल क्रिकेटर तो हैं ही, एक स्वाभिमानी कप्तान भी हैं। बहती हवा का रुख पहचानने में माहिर हैं। उन्होंने आस्ट्रेलियाई शृंखला के बीच में ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा करके अपना आत्मसम्मान बचा लिया। जाहिर है कि चयनकर्ताओं की साजिश का शिकार होने से पहले वह फरवरी में हो रही एकदिवसीय विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता पर एकाग्रचित्त होना चाहते हैं और अपने  लक्ष्य की सफलता से विरोधियों को करारा जवाब देना चाहते हैं।

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