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अंग्रेज़ों की ओर से खेलने वाले इस भारतीय क्रिकेटर ने 121 साल पहले रचा था इतिहास

रणजीत सिंह को इंग्लैंड की ओर से 15 टेस्ट खेलने का मौका मिला, जिसमें उन्‍होंने 44.95 के औसत से 989 टेस्‍ट रन बनाए। उनका सर्वश्रेष्ठ स्‍कोर 175 रहा। भारत के लिए वो कभी कोई मैच नहीं खेल पाए।
अंग्रेज़ों की ओर से खेलने वाले इस भारतीय क्रिकेटर ने 121 साल पहले रचा था इतिहास

भारत ने टेस्ट क्रिकेट में पहला क़दम सन् 1932 में रखा था। इस वर्ष इंग्लैंड के विरुद्ध लार्डस में भारत ने पहला टेस्ट खेला था। इस टेस्ट में भारतीय टीम के कप्तान सीके नायडु थे। वहीं भारत की ओर से पहला टेस्ट शतक लाला अमरनाथ ने 1933-34 की शृंखला में इंग्लैंड के विरुद्ध बम्बई में लगाया। लेकिन इस टेस्ट से कई साल पहले ही एक भारतीय ने इंग्लैंड में जाकर क्रिकेट के खेल में झंडे गाड़ दिए थे। इस खिलाड़ी का नाम था रणजीत सिंहजी।

रणजीत सिंहजी भारत के पहले क्रिकेटर थे, जिन्होंने इंग्लैंड की ओर से अपना क्रिकेट करिअर शुरू किया। उन्हें भारत का पहला क्रिकेटर भी कहा जा सकता हैं। देश का प्रतिष्ठित फर्स्‍ट क्‍लास क्रिकेट टूर्नामेंट 'रणजी ट्रॉफी' इन्‍हीं के नाम पर साल 1934-35 से हर साल आयोजित की जाती है।

डब्लू जी ग्रेस का तोड़ा रिकॉर्ड

10 सितंबर 1872 को गुजरात के काठियावाड में जन्में रणजीत सिंहजी ने 121 साल पहले आज ही के दिन इंग्लैंड की धरती पर इतिहास रचा था। रणजीत सिंहजी ने 22 अगस्त 1896 को प्रथम श्रेणी क्रिकेट में एक ही दिन दो शतक लगाने का करनामा किया था। उन्होंने इंग्लैंड के शहर होव में ससेक्स की ओर से खेलते हुए यॉर्कशायर के खिलाफ एक ही दिन में दो शतकीय (100 और नाबाद 125 रन) पारियां खेली थीं।

दिलचस्प बात ये है कि रणजीत सिंहजी ने एक महीने पहले ही इंग्लैंड की ओर से टेस्ट (जुलाई 1896) में पदार्पण किया था और अपने पहले ही टेस्ट में नाबाद 154 रन बनाकर डब्लू जी ग्रेस का रिकॉर्ड तोड़ा। वो डब्लू जी ग्रेस के बाद दूसरे ऐसे खिलाड़ी बन गए जिन्होंने इंग्लैंड के लिए खेलते हुए अपने डेब्यू मैच में शतक जमाया।

रणजीत शुरू में टेनिस खिलाड़ी बनना चाहते थे, लेकिन पढ़ाई करने के लिए जब वे इंग्लैंड गए तो क्रिकेट के प्रति उनका प्यार बढ़ता गया। ग्रेजुएशन के बाद रणजीत ने काउंटी क्लब ससेक्स के लिए खेलना शुरू किया।

पहले ही टेस्ट में जड़ा शतक

रणजीत सिंहजी के इंग्लैंड टीम में खेलने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। साल 1896 में इंग्लैंड के पास राष्ट्रीय चयनकर्ता नहीं थे। एमसीसी के अध्यक्ष लॉर्ड हैरिस के पास अधिकार था कि वो इंग्लैंड की टीम चुनते थे। लॉर्ड हैरिस रणजी को भारतीय होने के कारण टीम में जगह देने के पक्ष में नहीं थे। इसलिए उन्हें पहले टेस्ट में जगह नहीं दी गई। हालांकि हैरिस की ताकत सिर्फ लॉर्ड्स तक ही चली। इसके बाद रणजीत को ओल्ड ट्रेफॉर्ड टेस्ट के लिए शामिल किया गया और उन्होंने 62 और 154 रनों की पारी खेली। रणजीत को 15 टेस्ट खेलने का मौका मिला, जिसमें उन्‍होंने 44.95 के औसत से 989 टेस्‍ट रन बनाए। उनका सर्वश्रेष्ठ स्‍कोर 175 रहा।

ससेक्स के लिए डेब्यू करने के बाद रणजीत ने 10 सीजन में 1000 से ज्यादा रन बनाए। अपने फर्स्ट क्लास करियर में उन्होंने कुल 307 मैचों में 72 शतक और 109 अर्धशतक की मदद से 24692 रन बनाए,। 1896, 1899,1900 में वो काउंटी सीजन के टॉप स्कोरर रहे। भारत के लिए वो कभी कोई मैच नहीं खेल पाए। उत्तर अमेरिका के दौरे पर रणजीसिंहजी ने अपनी टीम रणजी इलेवन की कप्तानी भी की। उनकी कप्तीन में टीम ने दोनों मैचों में जीत हासिल की। रणजीत “लेट कट” में एक माहिर बल्लेबाज थे जिन्होंने “लेग ग्लांस” का भी अविष्कार किया था |

भतीजे को सौंपी विरासत

रणजीत 1907 में नवानगर के महाराजा जाम साहिब बने। वह इंडियन चैंबर ऑफ प्रिंसेज के चांसलर भी थे। साल 1915 में रणजीत एक हादसे में दाईं आंख की रोशनी खो बैठे। इस हादसे के बाद रणजी ने क्रिकेट से संन्यास ले लिया और भारत लौट आए। उन्होंने अपनी क्रिकेट विरासत अपनी भतीजे दलीप सिंहजी को सौंप दी। दलीप सिंहजी ने भी जल्द ही इंग्लैंड के लिए डेब्यू किया। अपने चाचा की तरह उन्होंने भी अपने पहले ही टेस्ट मैच में शतक लगाया। दलीप सिंहजी ने 12 टेस्ट में 3 शतक और 5 अर्धशतक की मदद से 995 रन बनाए। इन्हीं के नाम पर दलीप ट्रॉफी का आयोजन किया जाता है।

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