'दादा' के नाम से मशहूर टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली आज अपना 46वां जन्मदिन मना रहे हैं। गांगुली को टीम इंडिया के दिग्गज कप्तानों में से एक माना जाता है। यह सभी जानते हैं कि टीम को जीत तक ले जाने का जज्बा सौरव गांगुली से मिला और उन्होंने टीम के अंदर एग्रेशन भरा।
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई अपनी किताब 'डेमोक्रेसी XI' में लिखते हैं- वह बंगाल के सम्मान हैं। ये सच है कि गांगुली से बड़े इंडियन क्रिकेटर्स हुए हैं लेकिन उनमें से किसी ने भी अपनी टीम को इतनी मजबूती के साथ आशा और विश्वास से नहीं भरा। 'प्रिंस ऑफ कोलकाता' ने बंगालियों की भी क्रिकेट में वापसी करवाई।
लेफ्ट हैंड से खेलने की प्रेरणा परिवार से मिली
गांगुली को क्रिकेट खेलने की प्रेरणा अपने पिता चंडीदास से मिली जो आगे चलकर बंगाल क्रिकेट में पदाधिकारी बने। गांगुली कहते हैं, ‘मेरे पिता एक अच्छे क्लब क्रिकेटर थे और क्रिकेट को लेकर बहुत जुनूनी थे। इसलिए घर पर हमेशा क्रिकेट की बातें होती रहती थीं।‘ सौरव के पिता के तीन भाई थे इसलिए कभी भी टीम बनाकर घर के गार्डन में क्रिकेट खेलने में कोई दिक्कत ही नहीं हुई। गांगुली खुद दायें हाथ से सारे काम करते थे लेकिन अपने परिवार के क्रिकेटर्स को देखते हुए उनकी नकल करते हुए वो लेफ्ट हैंड से बैटिंग करने लगे।‘
जब तेंदुलकर 16 साल की उम्र में 1989 में अपना पहला टेस्ट मैच खेल रहे थे, गांगुली जूनियर लेवल में खुद को साबित करने की कोशिश में लगे हुए थे। 1990 में पाकिस्तान के खिलाफ अंडर-19 टीम के लिए गांगुली को चुना गया। उन्होंने मुंबई में चौथे टेस्ट में सेंचुरी मारी।
बंगाल के लिए पहला फर्स्ट क्लास मैच
कुछ ही हफ्तों में गांगुली बंगाल के लिए अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच खेल रहे थे। मैच दिल्ली के खिलाफ था। बंगाल फाइनल में पहुंच गया था और दूसरी बार रणजी ट्रॉफी जीतने के सपने देख रहा था। फाइनल मैच में सौरव ने दिल्ली की मजबूत बॉलिंग के खिलाफ 22 रन बनाए और बिना एक भी विकेट लिए 6 ओवर फेंके। बंगाल ने मैच और ट्रॉफी दोनों जीते लेकिन पहले फर्स्ट क्लास मैच के लिहाज से ये वो मैच नहीं था जिसके लिए बंगाल जश्न में डूब जाता। हालांकि सभी क्रिकेट विशेषज्ञ इस नए टैलेंट को लेकर काफी आशान्वित थे।
साल भर बाद ही फर्स्ट क्लास क्रिकेट में सौरव गांगुली ने अपनी पहली सेंचुरी मारी। वो ईस्ट जोन के लिए एक मजबूत वेस्ट जोन की टीम के खिलाफ खेल रहे थे। इसी मैच में सौरव ने अपनी मीडियम पेस से 4 विकेट भी लिए। अब उन्हें एक ऑल राउंडर बताया जा रहा था।
सौरव की वन-डे फॉर्म बहुत अच्छी चल रही थी। विल्स ट्रॉफी के एक वन-डे मैच में वेस्ट जोन के खिलाफ सौरव ने इंडिया टेस्ट प्लेयर रवि शास्त्री को ऐसा छक्का मारा कि गेंद मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में ऊंचाई पर लगी घड़ी पर जाकर लगी। शास्त्री उसकी बैटिंग से इतने प्रभावित हुए कि टाटा ग्रुप, जहां वो खुद काम करते थे, को जाकर उसके बारे में बताया। टाटा ग्रुप अपनी टीम मजबूत करने के लिए हमेशा नए लड़कों की तलाश में रहती थी।
पहला ऑस्ट्रेलिया दौरा- एक बुरा सपना
इस सब के बावजूद, जब गांगुली को 1991-92 में इंडिया के ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुना गया, काफी सवाल उठे। यह उनका पहला ऑस्ट्रेलिया दौरा था। क्या एक फर्स्ट क्लास सेंचुरी के दम पर एक 18 साल के लड़के को इतने मुश्किल टूर पर भेज दिया जाना उचित था? ऐसा भी कहा जाने लगा कि इंडियन टीम में अनकहा कोटा सिस्टम चल रहा है और गांगुली को ईस्ट जोन के कोटा की भरपाई करने के लिए टीम में रखा जा रहा था। चार महीने का वो टूर एक बुरा सपना था।
दौरे में गांगुली को बुलाया जाता था 'महाराज'
गांगुली इस दौरे में एक रिजर्व बैट्समैन के तौर पर गए थे। लिहाजा उन्हें ज़्यादा क्रिकेट खेलने को ही नहीं मिला। उन्हें बस एक इंटरनेशनल मैच खेलने को मिला। इसके साथ ही ये भी अफवाह उड़ी कि वो बारहवें खिलाड़ी का काम जैसे ड्रिंक्स ले जाना वगैरह नहीं कर रहे थे उनका रवैया ठीक नहीं लग रहा था। ये भी एक चीज थी जो उनके पक्ष में नहीं जा रही थी। कहा जाने लगा कि वो सुस्त और अहंकारी खिलाड़ी हैं। वह टीममेट्स के लिए ड्रिंक्स लेकर नहीं जाते थे। सौरव को महाराज बुलाया जाता था। 1992 की वर्ल्ड कप की टीम से उन्हें ड्रॉप कर दिया गया। वो वापस बंगाल के लिए क्रिकेट खेलने आ गए।
सिद्धू-अजहर की लड़ाई और गांगुली को मौका
1991-92 के ऑस्ट्रेलिया टूर की तरह 1996 में भी इंग्लैंड टूर पर सौरव एक रिजर्व बल्लेबाज की तरह ही पहुंचे थे लेकिन इस बार किस्मत उनके साथ थी। संजय मांजरेकर को चोट लग गई और सीनियर बैट्समैन नवजोत सिंह सिद्धू कप्तान अजहरुद्दीन से लड़ाई कर सीरीज शुरू होने से ठीक पहले टीम से खुद ही निकल गए थे। इंडिया पहले टेस्ट में बुरी तरह से हार गई। अब टीम में नई पीढ़ी के बल्लेबाज लाए जा रहे थे। लॉर्ड्स टेस्ट में राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करने जा रहे थे। इनमें से दोनों आगे भारतीय टीम के कप्तान बने लेकिन जिसने कप्तानी में भारत को नये मुकाम पर पहुंचाया, वह थे सौरव गांगुली।
शुरू हुआ गांगुली की कप्तानी का दौर
कनाडा में 1996-98 के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच पांच-पांच वनडे मैचों का सहारा कप खेला गया था। सहारा कप के दूसरे संस्करण (1997) में गांगुली ने अपनी अगुवाई में भारत को 4-1 से जोरदार जीत दिलाई थी। इस सीरीज में पांच मैन ऑफ द मैच खिताब भारत को मिले। इनमें से चार कप्तान गांगुली के खाते में आए। सीरीज के दूसरे मैच में गांगुली ने अपने वनडे करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और 10 ओवर में 16 रन देकर चार विकेट झटके थे।
लॉर्ड्स, टी-शर्ट और एग्रेशन की अमर तस्वीर
अपनी आक्रामक कप्तानी का लोहा मनवा चुके सौरव गांगुली ने लॉर्ड्स में भी जमकर जलवा दिखाया। 2002 में टीम इंडिया इंग्लैंड के दौरे पर थी और लॉर्ड्स में नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल मैच खेला जा रहा था। 326 रनों के विशाल लक्ष्य का पीछा करने उतरे भारत के लिए युवराज सिंह और मुहम्मद कैफ ने यादगार प्रदर्शन करते हुए टीम को जीत दिलाई। उसी समय लॉर्ड्स की बॉलकनी में मैच देख रहे गांगुली ने जीत के बाद उत्साह में टी-शर्ट निकाल कर हवा में लहरा दिया। उन्होंने ऐसा एंड्रयू फ्लिंटॉफ को सबक सीखाने के लिए किया था। फ्लिंटॉफ ने भारत दौरे पर मैदान में टी-शर्ट निकाल कर हवा में लहराई थी। बाद में यह तस्वीर जनमानस के मन में हमेशा के लिए चस्पा हो गई। हालांकि बाद में गांगुली ने कई जगह कहा है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।
विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया का दबदबा और भारत की चुनौती
ऑस्ट्रेलियाई टीम 2000-2001 में टेस्ट क्रिकेट में लगातार 15 मैच जीतकर विजयी रथ पर सवार थी। कंगारू टीम का अगला दौरा भारत का था। तीन मैचों की सीरीज में स्टीव वॉ की अगुवाई में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने मुंबई में पहला टेस्ट आसानी से जीतकर सीरीज में बढ़त बना ली थी और ऐसा लग रहा था कि कोलकाता में ईडेन गार्डंस में भी आसानी से जीत हासिल कर लेंगे। लेकिन कोलकाता के ईडेन गार्डंस में राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण के रिकॉर्डतोड़ साझेदारी के दम पर पिछड़ने के बाद वापसी करते हुए भारत ने यह मैच जीत लिया। इसके बाद भारत ने चेन्नई टेस्ट भी जीतकर सीरीज 2-1 से अपने नाम कर लिया। कोलकाता टेस्ट जीतकर गांगुली की टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया के लगातार 16 जीत का रिकॉर्ड को तोड़ा।
इसके बाद गांगुली के साथ कई विवाद भी जुड़े। मसलन कोच ग्रेग चैपल के साथ उनकी अनबन। लेकिन वह एक अलग किस्सा है। फिलहाल, भारतीय टीम में जान फूंकने वाले एक सफल कप्तान, प्रिंस ऑफ कोलकाता और ‘दादा’ को जन्मदिन की शुभकामनाएं।
(आर्टिकल के कुछ हिस्से राजदीप सरदेसाई की किताब 'डेमोक्रेसी XI' से लिए गए हैं.)