गांगुली ने कहा, वह (तेंदुलकर) केवल बल्लेबाजी करता था या फिर खरीदारी। वह टेस्ट मैच में शतक बनाता और अगले दिन अरमानी या वरसाचे में खरीदारी करता। आप उन्हें अपने कपड़ों को आलमारी से हैंगर पर बेहद करीने से लटकाते हुए देख सकते थे। वह अपने कपड़ों को बहुत चाहते थे और उनकी आलमारी हमेशा भरी रहती थी।
वीवीएस लक्ष्मण के बारे में गांगुली ने कहा कि यह कलात्मक हैदराबादी बल्लेबाज हमेशा देर से पहुंचता था। कोलकाता में भारत के अपनी सरजमीं पर 250वां टेस्ट खेलने के अवसर पर आयोजित टाक शो में गांगुली ने कहा, अगर चौथे या पांचवें नंबर का बल्लेबाज भी क्रीज पर हो तब भी वह शावर ले रहा होता था। यहां तक कि टीम बस में सवार होने वाला वह आखिरी व्यक्ति होता था। इस कार्यक्रम में भारतीय कोच अनिल कुंबले, कपिल देव और वीरेंद्र सहवाग ने भी हिस्सा लिया।
भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदलने का श्रेय गांगुली को जाता है लेकिन इस पूर्व कप्तान ने अपने साथियों को हीरा करार दिया जिन्होंने उनकी टीम में अच्छा प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, शीर्ष क्रम में वीरू (सहवाग) अपने बल्लेबाजी से कमाल करता था और जब गेंदबाजी का वक्त आता था तो हमें पता था कि हमारे पास एक ऐसा गेंदबाज (कुंबले) है जो किसी भी तरह की पिच पर विकेट दिलाएगा। वह कहता था, आप लोग बड़ा स्कोर बनाओ और मैं आपके लिये टेस्ट मैच जीतूंगा। गांगुली ने कहा, यह मेरे लिये गौरव की बात है कि मैं आप दोनों तथा राहुल, सचिन, हरभजन...का कप्तान रहा। वह स्वर्णिम पीढ़ी थी। हमारे पास बेजोड़ प्रतिभा थी। उन्होंने भारतीय क्रिकेट को श्रेष्ठतर बनाया। सहवाग की तारीफ करते हुए गांगुली ने कहा, उसने दुनिया भर में लोगों की बल्लेबाजी के प्रति मानसिकता बदली। अगर आप आज के जमाने में देखोगे कि यदि खिलाड़ी तेजी से रन नहीं बनाता तो उसकी आलोचना होने लगती है। इसकी शुरूआत सहवाग, हेडन जैसे खिलाडि़यों के साथ हुई थी। आस्ट्रेलिया के खिलाफ कोलकाता में 2001 के ऐतिहासिक मैच को याद करते हुए उन्होंने कहा, मेरे पास कुंबले नहीं था और उस स्थिति में आस्ट्रेलियाई टीम को हराने के लिये हरभजन ने श्रृंखला में बेहतरीन प्रदर्शन किया।
भारत की पहली विश्व कप विजेता टीम के कप्तान कपिल देव ने कहा कि 70 अैर 80 के दशक की भारतीय टीम की मानसिकता सही नहीं थी। उन्होंने कहा, सुनील गावस्कर युग के बाद क्रिकेट में बदलाव शुरू हुआ। बोर्ड के पास भी संसाधन नहीं थे और यह मुश्किल दौर था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि हम इतनी जल्दी टेस्ट क्रिकेट के शिखर पर पहुंच जाएंगे। कपिल ने कहा, हम हमेशा से मानते थे कि आक्रामकता दिखाना तो उत्तर भारतीयों का काम है। हम बंगालियों को कलात्मक मानते हैं। अचानक हमने देखा कि सौरव को बेजोड़ आक्रामकता के साथ देखा। दक्षिण भारतीय शांत चित्त और नरम होते हैं लेकिन कुंबले ने अपने जुनून से इसे बदल दिया। सवालों के जवाब में कपिल देव ने पूर्व सलामी बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू और मध्यक्रम के बल्लेबाज अजय जडेजा की मैदान की बाहर की आदतों का जिक्र किया।
कपिल ने कहा, उन्हें गंदा कहना कड़ा होगा लेकिन मैदान की बाहर वे बेहद बेपरवाह रहते थे। वे आनन-फानन में अपने कपड़े पैक करते थे और उन्हें कई दिनों तक पहने रखते थे। सहवाग ने गांगुली और कुंबले को श्रेय दिया और साथ ही महेंद्र सिंह धोनी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि एक सफल खिलाड़ी के पीछे अच्छे कप्तान का हाथ होता है। इस धाकड़ बल्लेबाज ने कहा, दादा का एक ही उद्देश्य होता था और वह विदेशों में जीत दर्ज करना और नंबर एक बनना। उनकी कप्तानी में आक्रामकता थी और अपने साथियों का हर हाल में साथ देना उनका मजबूत पक्ष था। मुझे याद है कि एक दिन रात के भोजन के समय कुंबले ने मुझसे कहा कि तुम अगले चारों मैच खेलोगे, प्रदर्शन मायने नहीं रखता, मैदान पर उतरो और अपना शत-प्रतिशत दो। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 2008 में चेन्नई में खेली गयी 319 रन की अपनी पारी को याद करते हुए कहा, मैं बहुत संतुष्ट हुआ। मैंने अपना दूसरा तिहरा शतक कुंबले के कप्तान रहते हुए बनाया। दादा ने बीज बोये और कुंबले ने उसी क्रम को आगे बढ़ाया।
सहवाग ने कहा, क्रिकेट नहीं बदला लेकिन मानसिकता बदली। जब मेरे कप्तान ने मुझसे कहा कि जाओ और बेपरवाह होकर खेलो तो मैं कभी टीम में अपने स्थान को लेकर चिंतित नहीं रहा। मैं बेपरवाह क्रिकेट खेल पाया क्योंकि मुझे मेरे कप्तानों का समर्थन हासिल था। उन्होंने कहा, कप्तानों ने अहम भूमिका निभायी चाहे वह सौरव हो, कुंबले या महेंद्र सिंह धोनी।
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