विराट कोहली महान बल्लेबाज़ होने के बावजूद अपनी कप्तानी को लेकर काफी आलोचनाओं का शिकार रहे हैं। उनकी कप्तानी में भारत ने कोई आईसीसी ट्रॉफी नहीं जीती, न कभी आरसीबी ने आईपीएल ट्रॉफी अपने नाम की। लगभग एक दशक तक भारत और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु का नेतृत्व करने वाले विराट कोहली अब खुलासा किया है कि उन्होंने आखिर कप्तानी क्यों छोड़ी थी।
दरअसल, कोहली ने 2021 में विश्व कप के बाद टी20 कप्तान के पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद उन्होंने आरसीबी की नेतृत्व भूमिका भी छोड़ दी थी। एक साल बाद, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका से हार के बाद टेस्ट कप्तानी छोड़ दी। इस दौरान तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष सौरव गांगुली और उनके बीच मतभेदों की कई खबरें आईं। लेकिन, अब इस बारे में खुद विराट ने जानकारी साझा की है।
कोहली ने कहा कि वह अपने करियर में उस बिंदु पर पहुंच गए थे जहां लगातार ध्यान दिया जाना असहनीय हो गया था। उन्होंने कहा, "अंत में कप्तानी भारी पड़ने लगी थी, मैंने अपनी खुशी के लिए इसे छोड़ना ठीक समझा।"
कोहली ने 'आरसीबी बोल्ड डायरीज' पॉडकास्ट में कहा, "एक समय ऐसा आया जब मेरे लिए यह मुश्किल हो गया था क्योंकि मेरे करियर में बहुत कुछ हो रहा था। मैंने 7-8 साल तक भारत की कप्तानी की। मैंने नौ साल तक आरसीबी की कप्तानी की। हर मैच में बल्लेबाजी के नजरिए से मुझसे उम्मीदें थीं।"
उन्होंने कहा, "मुझे इस बात का अहसास ही नहीं था कि ध्यान मुझ पर नहीं है। अगर कप्तानी नहीं होती तो बल्लेबाजी पर होता। मैं 24x7 इससे जुड़ा रहता था। यह मेरे लिए बहुत मुश्किल था और अंत में यह बहुत ज़्यादा हो गया।"
कोहली, जिन्होंने 2022 में क्रिकेट से एक महीने का ब्रेक भी लिया और उस दौरान उन्होंने बल्ला भी नहीं छुआ, ने कहा कि उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें सुर्खियों में रहकर खुश रहना मुश्किल हो गया था। विराट ने कहा, "इसीलिए मैंने पद छोड़ दिया, क्योंकि मुझे लगा कि अगर मैंने तय कर लिया है कि मुझे इस स्थान पर रहना है, तो मुझे खुश रहना होगा।"
आईपीएल के पहले संस्करण से ही आरसीबी के साथ जुड़े कोहली ने कहा, "मुझे अपने जीवन में एक ऐसा स्थान चाहिए जहां मैं आकर अपना क्रिकेट खेल सकूं, बिना किसी के आकलन के, बिना यह देखे कि इस सत्र में आप क्या करने जा रहे हैं और अब क्या होने वाला है।"
भारत को अंडर-19 विश्व कप खिताब दिलाने से सीनियर टीम में जगह पक्की नहीं हो जाती और कोहली ने कहा कि यह उनका दृढ़ संकल्प और तत्कालीन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी तथा कोच गैरी कर्स्टन का समर्थन था जिससे उन्हें टीम में तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करने में मदद मिली।
उन्होंने कहा, "मैं अपनी क्षमताओं के बारे में बहुत यथार्थवादी था। क्योंकि मैंने बहुत से अन्य लोगों को खेलते देखा था। और मुझे ऐसा नहीं लगा कि मेरा खेल कहीं भी उनके खेल के करीब है। मेरे पास केवल दृढ़ संकल्प था। और अगर मैं अपनी टीम को जीत दिलाना चाहता था, तो मैं कुछ भी करने को तैयार था।"
कोहली ने कहा, "यही वजह थी कि मुझे शुरू में भारत के लिए खेलने के मौके मिले। और गैरी (कर्स्टन) और एमएस (धोनी) ने मुझे यह स्पष्ट कर दिया था कि हम तुम्हें नंबर तीन पर खेलने के लिए समर्थन दे रहे हैं।" कोहली ने कहा कि दोनों ने उन्हें अपना स्वाभाविक खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि उन्हें पता था कि वह मैदान पर हमेशा लड़ाकू रहेंगे।"
विराट ने कहा, "यही वह है जो आप टीम के लिए कर सकते हैं। आप मैदान पर जो प्रतिनिधित्व करते हैं, आपकी ऊर्जा, आपकी संलग्नता, हमारे लिए सबसे मूल्यवान है। हम चाहते हैं कि आप उसी तरह खेलें।"
उन्होंने कहा, "इसलिए, मुझे कभी भी मैच जीतने वाले खिलाड़ी के रूप में नहीं देखा गया जो कहीं से भी खेल को बदल सकता है। लेकिन मेरे पास यह बात थी कि मैं लड़ाई में बना रहूंगा। मैं हार नहीं मानूंगा। और यही बात उन्होंने अपनाई।"
कोहली का मानना है कि क्रिकेट में सफलता के लिए नर्वस एनर्जी बहुत जरूरी है और कोई चाहे कितने भी रन बनाए, यह ऐसी चीज है जो खिलाड़ी को प्रतिस्पर्धी मूड में रखती है। उन्होंने कहा, "जब आप युवा होते हैं तो ऐसा लगता है कि 'अगर मैंने इस उम्र तक इतने रन बना लिए हैं' तो चीजें आसान हो जाएंगी। ऐसा कभी नहीं होता।"
उन्होंने कहा, "और वास्तव में यही वह निशान है। जब आप घबराहट या यह आशंका करना बंद कर देते हैं कि चीजें कैसे सामने आएंगी, तब लोग कहते हैं कि आपका काम पूरा हो गया। तो यह आपसे कभी दूर नहीं जाता क्योंकि यही ऊर्जा आपको उस क्षण, उस वर्तमान क्षण में जो कुछ भी करने की आवश्यकता है, उसे करने के लिए व्यस्त रखती है।"