भारतीय क्रिकेट के सलामी बल्लेबाज और मौजूदा कप्तान रोहित शर्मा ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी है। इससे पहले वे 2024 में टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को भी अलविदा कह चुके हैं। टीम इंडिया को नौ महीनों के भीतर दो आइसीसी खिताब दिलाने वाले रोहित का सफेद जर्सी में पिछला दौर उतना सफल नहीं रहा। न्यूजीलैंड से घरेलू सीरीज हारने के बाद ऑस्ट्रेलियाई दौरे ने हालात और मुश्किल कर दिए। इस शृंखला के तीन मैचों में उन्होंने महज 31 रन बनाए, जो शायद इस संन्यास की घोषणा का सबसे बड़ा आधार बना। अंतिम टेस्ट में उन्होंने खराब फॉर्म के चलते खुद को अंतिम एकादश से बाहर रखा था, और जसप्रीत बुमराह ने टीम की कमान संभाली थी। हालांकि, रोहित टेस्ट क्रिकेट में 10 हजार रन नहीं बना सके, और न ही भारत को वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का खिताब दिला सके, लेकिन उन्होंने एक कठिन दौर में टीम की कमान संभाली। यही उनकी सबसे बड़ी विरासत रहेगी। शायद यह भी कि वे हमेशा ‘खिलाड़ियों के कप्तान’ के रूप में सराहे गए।
रोहित शर्मा 2008 की ऑस्ट्रेलिया में हुई सीबी सीरीज से सुर्खियों में आए। उनके प्रदर्शन से प्रभावित इयान चैपल ने उन्हें सचिन तेंडुलकर का उत्तराधिकारी तक बता दिया। उनकी तकनीक बेजोड़ थी, लेकिन टेस्ट फॉर्मेट ने उनका लंबे समय तक इम्तिहान लिया। उनका डेब्यू 2010 में होना था, लेकिन मैच से पहले वॉर्म-अप के दौरान चोटिल हो गए। चोट इतनी गंभीर थी कि उन्हें डेब्यू के लिए तीन साल इंतजार करना पड़ा। 2013 में जब सचिन तेंडुलकर अपना आखिरी टेस्ट खेलने जा रहे थे, उसी शृंखला में कोलकाता में वेस्ट इंडीज के खिलाफ रोहित ने डेब्यू किया और शतक जड़ा। शुरुआती दो टेस्ट में लगातार शतक लगाने के बावजूद वे टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर सके। टेस्ट करियर में चोट और अस्थिरता बनी रही, जबकि सीमित ओवरों में वह टीम के मजबूत स्तंभ बन चुके थे।
टेस्ट बल्लेबाज के तौर पर रोहित की असली शुरुआत 2019 में हुई, जब विराट कोहली ने उन्हें सलामी बल्लेबाज के रूप में आजमाने का निर्णय लिया। अक्टूबर 2019 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने बतौर ओपनर शतक लगाया और पूरी सीरीज में 529 रन बनाए, जिसमें दो शतक और एक दोहरा शतक शामिल था। इसके बाद उन्होंने टेस्ट टीम में ओपनर के तौर पर जगह पक्की की। इस भूमिका में उन्होंने 38 टेस्ट खेले और अपने कुल टेस्ट रनों के 60 प्रतिशत यानी 2697 रन बनाए।
टेस्ट में उनके 12 शतक सभी जीत दिलाने वाले मैचों में आए। यह भी एक अद्भुत रिकॉर्ड है। रोहित ने कुल 67 टेस्ट मैच खेले और 4301 रन बनाए। उनका औसत लगभग 40 का रहा, जो उनकी काबिलियत दर्शाता है। बतौर ओपनर उनके 9 शतक बने, जो अक्टूबर 2019 से अब तक किसी भी सलामी बल्लेबाज से अधिक हैं।
2021 के इंग्लैंड दौरे को उनका सर्वश्रेष्ठ टेस्ट प्रदर्शन माना गया। उन्होंने 866 गेंदों का सामना किया, जिनमें 182 गेंदें छोड़ीं और कई गेंदों पर रन बनाने के बजाय डिफेंस किया, जो उनके धैर्य और तकनीक का प्रमाण था। उस सीरीज में उन्होंने एक शतक और दो अर्धशतक सहित कुल 368 रन बनाए, और कठिन परिस्थितियों में भारतीय बल्लेबाजी को स्थिरता दी। उस दौरे जैसी सहनशक्ति फिर कभी नहीं दिखी, लेकिन उन्होंने गेंदबाजों पर दबदबा कायम रखा। यहां तक कि भारत की कठिन टर्निंग पिचों पर भी। उन्होंने वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के तीन चक्रों (2019–21, 2021–23, 2023–25) को मिलाकर भारत के लिए सबसे अधिक रन (2716) बनाए। उनके नौ शतक भी भारत की ओर से सर्वाधिक हैं।
लेकिन रोहित की कप्तानी का असर आंकड़ों से कहीं बड़ा था। विराट कोहली के कप्तानी छोड़ने के बाद 2022 में रोहित ने कमान संभाली। वह दौर भारतीय क्रिकेट के लिए अस्थिरता का था। कोहली के आक्रामक नेतृत्व के बाद रोहित की शांत और संतुलित नेतृत्व शैली एक नए युग की शुरुआत थी। उन्होंने 2022 से 2024 तक 24 टेस्ट में कप्तानी की। उनमें 12 भारत ने जीते, 9 में हार मिली और 3 ड्रॉ रहे। उनकी कप्तानी में भारत 2023 में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल तक पहुंचा। रोहित ने कई युवा चेहरों को मौका दिया, जैसे शुभमन गिल, यशस्वी जायसवाल, ध्रुव जुरेल और आकाश दीप हैं। उन्हें संवारने में रोहित ने बड़ी भूमिका निभाई। उनकी नेतृत्व शैली संवाद-प्रधान रही, जिससे खिलाड़ी सहज महसूस करते रहे।
हालांकि उनकी कप्तानी पर कुछ आलोचनाएं भी हुईं, विशेषकर 2023 की डब्ल्यूटीसी फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार के बाद चयन को लेकर। उन्होंने स्वीकार किया गया कि उन्हें एक अधूरी टीम मिली थी और उन्होंने परिस्थितियों में बेहतर काम किया। उन्हें ‘खिलाड़ियों का कप्तान’ कहा गया, क्योंकि वे संवाद में विश्वास रखते हैं और मैदान पर संयमित रहते हैं। युवा और सीनियर, दोनों खिलाड़ियों को उन्होंने स्पेस और भरोसा दिया।
35 वर्ष की उम्र पार कर चुके रोहित का यह फैसला अप्रत्याशित नहीं है। भारत के पास अब यशस्वी, गिल और ऋतुराज जैसे युवा विकल्प हैं। ऐसे में यह निर्णय समयानुकूल लगता है। टेस्ट क्रिकेट में रोहित की विरासत को लेकर राय भिन्न हो सकती है। एक तरफ वे बतौर ओपनर सफल रहे, तो दूसरी तरफ करियर की शुरुआत में जो उम्मीदें थीं, वह शायद पूरी नहीं हुईं। उनका टेस्ट करियर अपेक्षाकृत छोटा और उतार-चढ़ाव भरा रहा, लेकिन जब वह अपने सर्वश्रेष्ठ पर थे, तब तकनीक, आक्रामकता और संयम का दुर्लभ संतुलन पेश करते थे। उन्होंने मुश्किल परिस्थितियों में टीम को संभाला।
बतौर कप्तान उन्होंने तनावपूर्ण ड्रेसिंग रूम को सहज बनाया। लेकिन जैसे-जैसे उनका खुद का खेल कमजोर पड़ा, टीम का प्रदर्शन भी डगमगाने लगा। अपने अंतिम आठ टेस्ट में उनका औसत 11 से भी नीचे रहा। शायद ऑस्ट्रेलिया दौरे पर आखिरी टेस्ट से खुद को बाहर करना, पहला संकेत था कि उन्हें अहसास हो चुका था कि अब उनका सर्वश्रेष्ठ पीछे छूट चुका है। रोहित शर्मा की यह विदाई भारतीय टेस्ट क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत का संकेत है। उनका सफर भले लंबा न रहा हो, लेकिन जब वह चल रहे होते थे, तो दुनिया की किसी भी गेंदबाजी को ध्वस्त कर सकते थे। उन्होंने एक कठिन समय में टीम को दिशा दी, और खिलाड़ियों का विश्वास जीता। यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही, ‘प्लेयर्स का फेवरेट कैप्टन’ बनना। कोई खिलाड़ी चाहेगा कि इस खिताब को सहेज कर रखे। रोहित आने वाले समय में अपने साथियों को ऐसे ही याद रहेंगे।