शुभमन गिल को बीसीसीआइ ने भारतीय टेस्ट टीम का नया कप्तान नियुक्त करके बड़ा कदम उठाया है। रोहित शर्मा और विराट कोहली के टेस्ट क्रिकेट से अचानक संन्यास लेने के बाद 25 वर्षीय गिल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। वे 37 वें टेस्ट कप्तान बने और मंसूर अली खान पटौदी, कपिल देव, सचिन तेंडुलकर और रवि शास्त्री जैसे नामों के बाद सबसे युवा टेस्ट कप्तानों में शामिल हो गए हैं। क्रिकेट जगत में इस निर्णय को लेकर दो राय हैं। एक वर्ग इसे भविष्य की दृष्टि से शानदार फैसला मान रहा है, तो दूसरा शुभमन की तैयारियों और अनुभव पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। जून में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज बड़ी चुनौती है। गिल को सिर्फ कप्तानी ही नहीं संभालनी है, बल्कि दो दिग्गज खिलाड़ियों की विरासत को भी संभालना है। एक तरफ रोहित शर्मा, जिनकी कप्तानी में संतुलन और ठहराव था, दूसरी ओर विराट कोहली, जिनकी बल्लेबाजी में विश्वास और निरंतरता थी। गिल की कप्तानी भारतीय क्रिकेट के लिए एक टर्निंग पॉइंट है। टीम अब युवा चेहरों से भरी है। न रोहित, न विराट और न ही अश्विन या मोहम्मद शमी। अनुभवहीन लेकिन प्रतिभावान दल को नई दिशा देना गिल की सबसे बड़ी परीक्षा होगी। जैसा गिल का करियर रहा है, उम्मीदें बीसीसीआइ के साथ साथ प्रशंसकों को भी हैं।
गौरतलब है कि शुभमन गिल ने बहुत कम उम्र में अपनी प्रतिभा से सबको चौंकाया। 2014 में पंजाब की अंतर-जिला अंडर-16 एमएल मार्कन ट्रॉफी में निर्मल सिंह के साथ 587 रन की रिकॉर्ड साझेदारी की, जिसमें गिल ने 351 रन बनाए। इस पारी ने उनके परिवार को अपने छोटे से गांव से मोहाली शिफ्ट होने के लिए प्रेरित किया। क्रिकेट को प्राथमिकता देने के लिए किया गया यह फैसला निर्णायक भी साबित हुआ। जल्द ही गिल ने अंडर-19 क्रिकेट में अपनी चमक दिखाई और 2018 अंडर-19 वर्ल्ड कप में उप-कप्तान रहते हुए टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज बने। पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में उनकी नाबाद 102 रन की पारी ने उन्हें देशभर में प्रसिद्ध कर दिया। हालांकि उस वक्त ज्यादा चर्चा पृथ्वी शॉ की हो रही थी, जो टीम के कप्तान थे। किस्मत ने करवट ली, शॉ की फॉर्म और फिटनेस ने उन्हें पीछे धकेला और गिल को मौका मिला। रणजी ट्रॉफी में गिल ने शतक और अर्धशतक से आगाज किया। युवराज सिंह से सीख लेते हुए उन्होंने तकनीक के साथ-साथ क्रिकेट की बारीकियां भी समझीं। 2020 में जब भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया, गिल को टीम में शामिल किया गया। मेलबर्न टेस्ट में डेब्यू कर उन्होंने अपनी तकनीकी सटीकता और संयमित खेल से सबका ध्यान खींचा। भारत ने ऐतिहासिक रूप से वह सीरीज 2-1 से जीती।
गिल को ‘प्रिंस’ का खिताब विराट कोहली के ‘किंग’ टैग के उत्तराधिकारी के रूप में मिला। उनसे उम्मीद की गई कि वे अगली पीढ़ी के अग्रणी बल्लेबाज बनेंगे। लेकिन टेस्ट क्रिकेट में उनका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। 32 मैचों में 1893 रन, कुछ यादगार पारियों के साथ, लेकिन विराट कोहली के स्तर तक पहुंचने के लिए यह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। विराट ने टेस्ट में 30 शतक और 9,000 से ज्यादा रन बनाते हुए विदेशों में भी जीत की नींव रखी। वहीं गिल को अब भी तेज गेंदबाजी और स्विंग के सामने खुद को साबित करना है। कोहली ने न केवल रन बनाए, बल्कि भारतीय क्रिकेट में फिटनेस, आक्रामकता और मानसिकता का स्तर भी ऊपर उठाया। गिल को भी केवल बल्लेबाज नहीं, बल्कि एक प्रेरक लीडर बनना होगा।
अब बात कप्तानी की। रोहित शर्मा के जाने के बाद गिल को यह जिम्मेदारी मिली है। रोहित ने टेस्ट क्रिकेट में एक शांत लेकिन सटीक नेतृत्व किया। गेंदबाजों का रोटेशन, फील्ड सेटिंग और खिलाड़ियों के साथ विश्वास का रिश्ता उनकी ताकत रही। गिल के लिए यह नई भूमिका है। उन्होंने आइपीएल में गुजरात टाइटंस की कप्तानी की है, लेकिन टेस्ट कप्तानी की गहराई उससे कहीं अधिक है- मानसिक थकान, पांच दिन की योजना और हर सेशन का प्रबंधन। जिस टीम को वे लीड करने जा रहे हैं, उसमें न केवल अनुभव की कमी है, बल्कि एक ट्रांजिशन के दौर से भी गुजर रही है। उन्हें ड्रेसिंग रूम की नब्ज समझनी होगी और एक नई टीम संस्कृति का निर्माण करना होगा। चयनकर्ताओं में मुख्य भूमिका निभाने वाले अजीत अगरकर और कोच गौतम गंभीर ने गिल में यह क्षमता देखी है।
इंग्लैंड में टेस्ट सीरीज गिल के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकती है। वहां की परिस्थितियों में स्विंग गेंदबाजी के खिलाफ उनका रिकॉर्ड अभी भी सवालों के घेरे में है। इंग्लैंड की आक्रामक ‘बैजबॉल’ शैली के सामने गिल को केवल कप्तानी ही नहीं, बल्कि बल्लेबाजी में भी दम दिखाना होगा। भारत ने 2007 के बाद से इंग्लैंड में कोई टेस्ट सीरीज नहीं जीती है। ऐसे में यह दौरा न सिर्फ भारत की नई टेस्ट यात्रा की शुरुआत है, बल्कि गिल की नेतृत्व क्षमता का पहला असली इम्तिहान भी है।
शुभमन गिल को जब कप्तानी सौंपी गई, तो उसे लेकर तमाम सवाल उठे- अनुभव, निरंतरता, दबाव झेलने की क्षमता। लेकिन यही वह मोड़ है, जहां एक खिलाड़ी अपने भाग्य का निर्माण करता है। विराट कोहली और रोहित शर्मा के युग के बाद, भारतीय क्रिकेट एक नई दिशा में बढ़ रहा है। गिल के पास अब सिर्फ बल्ले से जवाब देने का नहीं, बल्कि एक लीडर के तौर पर मिसाल पेश करने का भी मौका है। इतिहास उन्हें एक अस्थायी कप्तान के तौर पर याद रखेगा या एक युग निर्माता के रूप में, इसका फैसला इंग्लैंड दौरे की 22 गज की पट्टी पर लिखा जाएगा।