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बीसीसीआई के सामने विराट कोहली की नहीं चली, 49वें घंटे में छीन ली गई वनडे की कप्तानी

वर्ल्डकप में खराब प्रदर्शन के बाद ऐसा होना तय माना जा रहा था और बुधवार को बीसीसीआई ने विराट कोहली को...
बीसीसीआई के सामने विराट कोहली की नहीं चली, 49वें घंटे में छीन ली गई वनडे की कप्तानी

वर्ल्डकप में खराब प्रदर्शन के बाद ऐसा होना तय माना जा रहा था और बुधवार को बीसीसीआई ने विराट कोहली को भारत की एकदिवसीय टीम के कप्तान पद से हटाकर कमान रोहित शर्मा को सौंप दी।

कोहली पहले ही टी20 कप्तानी छोड़ चुके थे। पता चला है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने उन्हें स्वेच्छा से वनडे टीम की कप्तानी से हटने के लिए पिछले 48 घंटों का प्रतीक्षा किया मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। पर 49वें घंटे में रोहित शर्मा को यह पद गंवा बैठे जो होना ही था।

शायद किसी को यह बताने के लिए उसका वक्त हो चुका है, कोहली की बर्खास्तगी के बारे में बीसीसीआई के बयान में चर्चा भी नहीं किया गया जिसमें केवल कहा गया कि चयन समिति ने आगे बढ़ने के दौरान रोहित को एकदिवसीय और टी20 अंतरराष्ट्रीय टीमों का कप्तान बनाने का निर्णय लिया है।

यानी कोहली ने बस यूं ही अपनी कप्तानी गंवा दी। बीसीसीआई और राष्ट्रीय चयन समिति ने कोहली को कप्तानी से हटा दिया जिनकी महत्वाकांक्षा शायद 2023 वनडे विश्व कप में घरेलू सरजमीं पर भारतीय टीम की अगुआई करने की होगी।

जिस पल भारत टी20 विश्व कप के ग्रुप चरण से बाहर हुआ, कोहली को कप्तानी से हटाया जाना लगभग तय हो गया था मगर बीसीसीआई अधिकारी पिछले साढ़े चार सालों से टीम के कप्तान को सम्मानजनक रास्ता देना चाहते थे।

आखिर में ऐसा लगता है कि कोहली ने बीसीसीआई से कहा कि उन्हें बर्खास्त करके दिखाओ और खेल की शीर्ष संस्था ने आगे बढ़कर ऐसा ही किया और फिर उनके सामने इसे स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था।

हालांकि कोहली की कप्तानी का दौर स्वयं में एक शानदार दास्तां रहा है। 'कूल' महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी अगुवाई में कोहली को तैयार किया और फिर जब उन्हें लगा कि वक्त आ गया तो उन्होंने सफेद गेंद की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी।

अगले दो सालों में कोहली टीम के ताकतवर कप्तान बन गये जो अपने हिसाब से चीजें करता। फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गयी प्रशासकों की समिति थी जिन्होंने उनकी हर मांग (कुछ सही और कुछ गलत) को पूरा किया।

फिर पारंपरिक प्रशासकों की वापसी हुई जिसमें बहुत ताकतवर सचिव और अध्यक्ष थे जो स्वयं ही कामयाब कप्तानी के बारे में जानकारी रखते थे। आखिर में सफेद गेंद के दोनों प्रारूपों के लिए दो अलग-अलग कप्तानों का कोई स्थान नहीं रहा।



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