मेसी ने सिर्फ हताश होकर संन्यास नहीं लिया है। उनके इस फैसले में उनका दर्द झलकता है, उनकी वह बेचैनी झलकती है कि एक चैंपियन खिलाड़ी होने के बावजूद वह अपने देश की टीम को चैंपियन नहीं बना पाए। डिएगो माराडोना और पेले के मुकाबले उन्हें कमतर बताने वालों से पूछा जाना चाहिए कि इन दोनों को कब ऐसी टीम से खेलना पड़ा जैसी टीम के साथ लियोनेल मेसी खेल रहे हैं। हालांकि कुछेक मौकों पर डिएगो माराडोना अकेले अपने बूते टीम को आगे लेकर गए लेकिन ऐसा तो मेसी ने भी कर दिखाया है। लेकिन क्या विश्वकप नहीं जीत पाए तो उनका खेल, उनकी उपलब्धियां सभी बौनी हो गईं? क्य अपने बूते टीम को विश्वकप फाइनल तक ले जाना कम बड़ी बात है। अगर विश्व कप ही कसौटी है तो मार्क टेलर और सौरभ गांगुली, जिन्होंने अपनी-अपनी टीमों की दशा और दिशा बदल दी, ने तो क्रिकेट में कुछ किया ही नहीं।
वस्तुत: किसी भी खिलाड़ी का मूल्यांकन आंकड़ों या तुलना के आधार पर नहीं किया जा सकता। मेसी का मूल्यांकन भी इससे इतर करना होगा। अपने दौर के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी तो वह हैं ही, उनकी खेल शैली उन्हें महान खिलाड़ी भी बनाती है। संतुलन, ड्रिबलिंग स्किल, किसी भी एंगल से गोल करने की क्षमता, फ्री किक ये सारी खासियतें मेसी को इस पीढ़ी का सबसे दिग्गज खिलाड़ी बनाती हैं। मैदान में अलग-अलग जगह और एंगल से उन्होंने ऐसे गोल किए हैं जिनके बारे में इससे पहले किसी ने सोचा तक न था। बार्सिलोना की ओर से खेलते हुए उन्होंने बहुत से मैच जीते हैं। इनमें चार यूरोपियन चैंपियन लीग, आठ लीग टाइटल शामिल हैं। वर्ष 2008 में मेसी ने ओलंपिक में अर्जेंटीना को स्वर्ण पदक दिलवाया।
विशेषज्ञों की राय हैै कि देश के लिए खेलते हुए टीम के अन्य खिलाडिय़ों से उन्हें वह सहयोग नहीं मिला, जो क्लब में मिलता रहा है। कई मौकों पर देश के प्रशंसकों ने मेसी की आलोचना भी की। ओलंपिक टीम में मेेसी का नहीं चुना जाना हैरान करने वाला फैसला रहा। अर्जेंटीना के कोच गेर्राडो मार्टिनो ने भी 29 साल के मेेसी को ओलंंपिक टीम में नहीं लेने की वजह, पूछने पर भी नहीं बताई है। कुछ दिनों पहले ही वह अपना 55वां इंटरनेशनल गोल कर अर्जेंटीना के लिए सबसे ज्यादा गोल करने वाले प्लेयर बने थे।
मेसी बचपन से ही जुझारू रहे हैं। बचपन में बड़ी बीमारी के आगे भी हार नहीं मानी थी। अर्जेंटीना में पैदा हुए मेसी बचपन में वृद्धि (ग्रोथ) हार्मोन की कमी से पीडि़त थे, जिससे उनका शारीरिक विकास रुक गया था। चार साल की उम्र से ही फुटबॉल को पसंद करने वाले मेसी को 11 साल की उम्र में इस बीमारी का पता चला। उपचार के लिए उनके पास पैसे नहीं थे और अर्जेंटीना के जिस क्लब से वह खेलते थे, उससे भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली। यह बीमारी उनके बड़े फुटबॉलर बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा थी। इस बीमारी से उनके मां-बाप भी काफी परेशान थे। बाद में स्पेन में रहने वाले मेसी के रिश्तेदारों ने उन्हें बार्सिलोना फुटबॉल क्लब से जुडऩे को कहा। इस क्लब ने 13 साल के मेसी की मदद की और उनके इलाज की जिम्मेदारी भी ली और तीन साल में मेसी को बीमारी से निजात मिल गई। मेसी को 17 साल की उम्र में मुुख्य प्रतियोगी फुटबॉल खेलने का मौका मिला। मेसी को बार्सिलोना की टीम में नियमित स्थान 2005 में मिला, जब उन्होंने सीनियर टीम के प्लेयर के रूप में बार्सिलोना से पहला कॉन्ट्रेक्ट साइन किया जो पांच साल का था। क्लब के रूप में वह बार्सिलोना से खेलते रहे, लेकिन देश के प्रतिनिधित्व के लिए उन्होंने अपनेे देश अर्जेंटीना को ही चुना और वहां की राष्ट्रीय टीम में शामिल हुए। उन्होंने अर्जेंटीना के लिए पहला मैच 2005 में खेला था।
मेेसी ने 18 अप्रैल, 2007 को गेटेफ के खिलाफ कोपा डेल रे के सेमीफाइनल में दो गोल किए थे। इनमें से एक गोल मैक्सिको में खेले गए 1986 के फीफा वलर्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ माराडोना के प्रसिद्ध गोल से काफी मिलता था। तभी से मेेसी को नया माराडोना कहा जाने लगा। बार्सिलोना टीम से रोनाल्डिन्हो के जाने के बाद 10 नंबर जर्सी मेेसी को मिली। मेसी का जब निष्पक्ष विश्लेषण किया जाएगा तो उनमें मानसिक मजबूती की कमी के साथ एक यह सच भी सामने आएगा कि उन्हें उनकी टीम के साथियों से बहुत अधिक सहयोग नहीं मिला। मेसी के बिना अर्जेंटीना की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति मौरिसियो मैक्री और डिएगो माराडोना ने मेसी से लौट आने का आग्रह किया है। ब्राजील के महान फुटबॉलर रोनाल्डो वर्ष 1998 में अपनी टीम को जिता नहीं पाए थे लेकिन अगले ही विश्वकप में उन्होंने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को विजयी बनाया था। रोनाल्डो ने हालांकि संन्यास नहीं लिया था लेकिन उन्होंने जज्बा दिखाया और चार साल बाद अपनी ठोकरों से 'जर्मन दीवार को गिराकर ब्राजील को विश्व चैंपियन बनाया था। कुछ ऐसी ही अपेक्षा डिएगो माराडोना भी मेसी से कर रहे हैं। वह कहते हैं, मेसी को रुकना ही होगा। अर्जेंटीना को विश्व चैंपियन बनाने के लिए रूस (दो वर्ष बाद रूस में विश्वकप है) जाना ही होगा। उम्मीद है मेसी अपने संन्यास के फैसले पर पुनर्विचार करेंगे। अगर वह फैसला बदलते हैं तो रोनाल्डो की तरह फाइट बैक की उम्मीद तो की ही जा सकती है। वह योद्धा हैं। और योद्धा कभी हार नहीं मानते।