शेफील्ड से अभ्यास दौरे के बाद लौटे संधू ने कहा कि ओलंपिक जा रहे तीनों मुक्केबाजों शिवा थापा (56 किलो), मनोज कुमार (64 किलो) और विकास कृष्णन (75 किलो) को ऐसे दबाव को झेलना पड़ेगा जो उन्होंने खुद अपने दो दशक से लंबे कैरियर में अनुभव नहीं किया। उन्होंने कहा, मैने बदतर समय देखा है और बेहतरीन भी। लेकिन फिलहाल लंबे समय से कोई महासंघ नहीं है। हमारी देखभाल करने वाला कोई नहीं। दबाव बहुत ज्यादा है। उन्होंने कहा, शिवा और विकास विश्व चैम्पियनशिप पदक विजेता है जबकि मनोज राष्ट्रमंडल खेल चैम्पियन है। हमारे पास कोई तकनीकी अधिकारी नुमाइंदगी के लिये नहीं होगा। 2012 के बाद से हालात बहुत बिगड़ गए हैं लेकिन मैं सकारात्मक हूं। नुकसान हो चुका है और अब भविष्य में अच्छे की उम्मीद करनी चाहिये। भारत में 2012 के बाद से कोई मुक्केबाजी महासंघ नहीं है। चुनावों में अनियमितता के कारण भारतीय अमैच्योर मुक्केबाजी महासंघ को बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद बाक्सिंग इंडिया बनी जो एक साल भी नहीं चल सकी और प्रदेश ईकाइयों की बगावत के बाद इसे भी बर्खास्त करना पड़ा।
इसके बाद से अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ द्वारा नियुक्त तदर्थ समिति भारत में मुक्केबाजी का संचालन कर रही है। चुनाव सितंबर में होने हैं ताकि भारतीय मुक्केबाजी महासंघ बनाया जा सके। संधू ने कहा, निलंबन से बहुत कुछ खत्म हो गया। लगता है कि हमारी मुक्केबाजी को किसी की नजर लग गई। यह पूछने पर कि 2008 बीजिंग ओलंपिक में विजेंदर सिंह को मिले पदक के बाद भारत क्या उसे भुनाने में नाकाम रहा, संधू ने कहा कि खराब दौर 2012 के बाद आया। उन्होंने कहा, हम 2012 तक बीजिंग में मिली सफलता को भुनाने में कामयाब रहे। हम एशिया में नंबर वन बने, राष्ट्रमंडल में नंबर वन और लंदन ओलंपिक 2012 में हमारे आठ मुक्केबाज गए। इसके बाद महासंघ बर्खास्त हो गया और स्थिति खराब हो गई। संधू ने कहा, जब से कोई ढांचा नहीं, कोई घरेलू स्पर्धायें नहीं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिक्कतें हैं। तकनीकी संचालन में भारत का कोई प्रतिनिधि नहीं है और मुक्केबाजों को तकनीकी विभाग में अपना प्रतिनिधि नहीं दिखता तो उनका प्रदर्शन खराब होता है। उन्होंने कहा, मैं सकारात्मक सोच वाला इंसान हूं। इतने खराब हालात में भी मुक्केबाजों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। दबाव है लेकिन मुख्य कोच होने के नाते मुझे यकीन है कि प्रदर्शन अच्छा होगा।
एजेंसी