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शतरंज: सचमुच प्रज्ञान 'आनंद'

शतरंज में विश्वनाथन आनंद के उत्तराधिकारी कहे जाने वाले प्रज्ञानानंद को लेकर खेल जगत में गजब का उत्साह...
शतरंज: सचमुच प्रज्ञान 'आनंद'

शतरंज में विश्वनाथन आनंद के उत्तराधिकारी कहे जाने वाले प्रज्ञानानंद को लेकर खेल जगत में गजब का उत्साह है। मात्र 18 वर्ष का यह खिलाड़ी, जिसे प्यार से लोग प्राग कहकर पुकारते हैं, हाल ही में विश्व के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन के साथ फिडे विश्व कप का फाइनल खेलकर आया है। प्राग ने इसी टूर्नामेंट में विश्व के नंबर 2 और नंबर 3 खिलाड़ी को भी हराया। छोटी उम्र, गंभीर भावभंगिमा, सामान्य हावभाव...जाहिर तौर पर प्राग को हल्के में लेकर ही प्रतिद्वंद्वी पहली और सबसे बड़ी गलती करते हैं। साढ़े चार साल की उम्र से शतरंज की चालें चल रहे प्राग की कहानी, इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि “पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं।” शतरंज के प्रति बचपन से रुझान रखने वाले प्राग के बारे में यह कहना निश्चित है कि सिर्फ प्रतिभा होने से ही लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। लक्ष्य पाना है, अपने संकल्प को साकार करना है, तो कड़ी मेहनत और समर्पण की दरकार होती है। और अपने कठिन लक्ष्य को पाने के लिए प्राग ने ऐसा ही किया। क्योंकि वह जानते थे कि मेहनत का कोई दूसरा कोई पर्याय नहीं होता है। लक्ष्य पर नजर, मेहनत और समर्पण यह तीनों ही गुण प्राग के सफर की महत्वपूर्ण कड़ी रहे हैं।

इस अभूतपूर्व कहानी और इस सफर की शुरुआत तब हुई, जब आर. प्रज्ञानानंद को टीवी से दूर रखने के लिए माता-पिता ने उनका परिचय शतरंज के साथ कराया। माता-पिता को उस वक्त खुद ही नहीं पता था कि वह ऐसा करके इतिहास की एक इबारत लिख रहे हैं। बस फिर क्या था धीरे-धीरे प्राग पर शतरंज का खुमार बढ़ता ही चला गया। उनके बढ़ते खुमार से असाधारण कौशल की तस्वीर भी साफ होती चली गई। प्राग कदम दर कदम आगे बढ़ते गए। भारतीय शतरंज के गढ़ चेन्नै के रहने वाले प्रज्ञानानंद ने राष्ट्रीय अंडर सात का खिताब जीता और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2016 में 10 साल 10 महीने और 19 दिन की उम्र में वह इंटरनेशनल मास्टर (आइएम) बन गए। ऐसा करने वाला वह सबसे कम उम्र का खिलाड़ी था। उसके दो साल बाद 12 साल की उम्र में वह ग्रैंडमास्टर (जीएम) था। हालांकि, प्राग का अब तक का सबसे कम उम्र का जीएम न बनना एक वरदान था, क्योंकि तेज विकास की तुलना में स्थिर प्रगति हमेशा लंबे समय तक चलने वाली होती है।

प्रज्ञानानंद ने वर्ष 2019 में 14 साल और तीन महीने की उम्र में अपनी ईएलओ रेटिंग 2600 पर पहुंचा दी थी। साल 2020 में कोविड महामारी ने प्रज्ञानानंद की इस यात्रा में थोड़े समय के लिए रोक लगा दी, क्योंकि पूरी दुनिया ही ठहर गई थी। हालांकि, ऑनलाइन प्रतियोगिताओं ने खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाया लेकिन इसकी कई सीमाएं थीं। उनके कोच आरबी रमेश कहते हैं, “हमने (महामारी के कारण) डेढ़ साल गंवा दिया। उस दौरान उन्हें दुनिया के सभी शीर्ष खिलाड़ियों के साथ खेलने का अनुभव मिला। उन्होंने कुल मिलाकर अपनी शतरंज की ताकत में सुधार किया।” बता दें कि रमेश भारत के 10वें जीएम थे और अपने शुरुआती दिनों से ही प्राग को प्रशिक्षण दे रहे हैं।

अच्छी बात यह रही कि कोविड-19 के दौर में प्राग ने ऑनलाइन टूर्नामेंट में अपना जलवा कायम किया। उन्होंने 2021 में मेल्टवॉटर चैंपियंस टूर में सर्गेई कारजाकिन, तैमूर राडजाबोव और जान क्रिजिस्टॉफ डूडा जैसे शीर्ष खिलाड़ियों को हराया जबकि कार्लसन को बराबरी पर रोका। प्रज्ञानानंद ने वर्ष 2022 में एयरथिंग मास्टर्स रैपिड टूर्नामेंट में विश्व के नंबर एक खिलाड़ी और पूर्व क्लासिकल चैंपियन कार्लसन को हराया था।

बहरहाल, आज प्राग 64 खानों के खेल के नए बादशाह बनने की राह पर अग्रसर हैं। बाकू में आयोजित फिडे विश्व कप में शानदार प्रदर्शन कर उन्होंने सभी की उम्मीदों को बढ़ा दिया है। प्राग इस प्रतियोगिता के अंतिम पड़ाव को भले ही पार न कर सके लेकिन, कैंडिडेट टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई कर उन्होंने शतरंज में भारतीयों को एक नई ऊर्जा का स्त्रोत जरूर दे दिया है। आनंद के बाद प्रज्ञानानंद दूसरे भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्होंने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में जगह बनाई है। इसी के साथ वह प्रतिष्ठित बॉबी फिशर और खुद कार्लसन के बाद कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने हैं। अब तक के करियर में वह कई उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं।

गुकेश डी और अर्जुन एरिगैसी के साथ आर प्रज्ञानानंदा को भारतीय शतरंज की शानदार युवा तिकड़ी में गिना जाता है। सभी किशोर हैं और उन्होंने बड़े पटल पर कई बड़ी जीत दर्ज की हैं। लेकिन इसमें कोई शंका नहीं कि अब प्राग इन सबमें बहुत आगे हैं। प्राग निरंतर, अनेकों टूर्नामेंट में अपनी छाप छोड़ते रहे हैं। विशेषकर विश्वकप में उन्होंने दिखाया कि वह कभी हार नहीं मानते। फिडे विश्व कप में प्राग द्वारा दुनिया के दूसरे नंबर के खिलाड़ी हिकारू नाकामुरा और सेमीफाइनल में विश्व के तीसरे नंबर के खिलाड़ी फैबियानो कारूआना को हराना, इस टूर्नामेंट की सबसे सुंदर झलकी रही।

उल्लेखनीय है कि जनवरी 2016 में, उन्हें एलो 2177 रेटिंग दी गई थी। ठीक एक साल बाद, उन्हें आइएम रेटिंग 2437 मिली। जनवरी 2021 में 2608 पर रहने के बाद, महामारी से प्रेरित ब्रेक ने उनकी गतिविधि को कम कर दिया। लेकिन उन्होंने अभी भी तीन साल से भी कम समय में 200 से अधिक गेम खेलकर 100 से अधिक अंक जोड़े हैं। फिलहाल उनकी फिडे रेटिंग 2707 है और वर्तमान में वह विश्व स्तर पर 29वें स्थान पर हैं।

कहा जाता है, जब तक आप प्राग को अच्छी तरह से नहीं जानते, आप उसकी भावनाओं/मनोदशा का आकलन नहीं कर सकते। और शतरंज के खिलाड़ी खेल की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिए बोर्ड पर मौजूद सुरागों/आपके हावभाव पर भरोसा करते हैं। उनके पास ‘आर्मचेयर विशेषज्ञों’ जैसे कंप्यूटर इंजनों की सहायता नहीं है। यह वो खेल है, जहां तकनीक धराशायी हो जाती हैं और मानसिक शक्ति ही हार या जीत का सबसे बड़ा कारण बनती है।

गंभीर चेहरा प्राग में स्वाभाविक रूप से आता है। ऐसा चेहरा बनाए रखने के लिए वह कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करते हैं। और यह इस खेल की एक बड़ी संपत्ति है, जो मनोविज्ञान पर चलता है। लेकिन ऐसे खेलों में मनोविज्ञान से पहले भावनात्मक मजबूती सबसे जरूरी होती है। ऐसे में प्रज्ञानानंदा की कामयाबी का बड़ा श्रेय उनके परिवार, खासतौर पर उनकी मां को जाता है। प्राग को आनंद की तरह शुरू से ही अपने परिवार विशेषकर अपनी मां का साथ मिला। उनकी मां नागालक्ष्मी प्रत्येक टूर्नामेंट के दौरान उनके साथ रहती हैं, जिसका इस युवा खिलाड़ी को भावनात्मक लाभ मिलता है।

प्राग के पिता रमेशबाबू एक बैंक कर्मचारी हैं, जिन्हें शतरंज के बारे में कभी भी बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी। उन्होंने ही फैसला किया था कि उनके बच्चों, बेटी वैशाली और बेटे को टेलीविजन देखना कम करना होगा। गौरतलब है कि उनके घर में अकेले प्राग ही शतरंज के चैंपियन नहीं हैं, बल्कि डब्ल्यूजीएम वैशाली भी अंतरराष्ट्रीय सर्किट में सबसे प्रतिष्ठित युवा खिलाड़ियों में से एक है।

नॉकआउट स्पर्धाओं में खिलाड़ियों को भारी उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है। एक भी गलत/अवांछित शब्द या करीबी लोगों की चुप्पी खिलाड़ियों को विचलित कर सकती है या उनका ध्यान भटका सकती है। ऐसे में इस खेल में परिवार और करीबियों का समर्थन बेहद जरूरी हो जाता है। इस मामले में प्राग बहुत भाग्यशाली हैं। उन्हें हमेशा परिवार का समर्थन मिलता रहा है। गौरतलब है कि कास्परोव और आनंद ने भी अपनी प्रगति में अपनी मां के योगदान के बारे में खुलकर बात की है।

‘प्रज्ञानानंद’ के नाम की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि से निकला है। यह नाम उनके माता-पिता, रमेशबाबू और नागालक्ष्मी की आस्था पर आधारित है। प्रज्ञानानंद की प्रज्ञा ने बता दिया कि माता-पिता का साथ हो और मेहनत की जाए, तो कोई भी मंजिल कठिन नहीं होती।

बहरहाल प्रज्ञानानंद ने अपने नाम के अनुरूप अपनी कल्पना, बुद्धिमत्ता से शतरंज के बड़े-बड़े धुरंधरों को परास्त कर दिया है। हर दिन उनकी कला निखर रही है और लाखों शतरंज प्रेमी उनकी अगली जीत का बेसब्री से इंतजार करते हैं। कम समय में प्राग ने लाखों लोगों को अपना प्रशंसक बना लिया है। इनमें भारतीय होने के साथ विदेशी भी शामिल हैं। भारतीयों की निगाहें अब कैंडिडेट्स टूर्नामेंट पर हैं। खेल प्रशंसकों को विश्वास है कि भारत को अगला विशी (विश्वनाथन आनंद) मिल गया है या कहें... पहला ‘प्राग’ मिल गया है।

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