उन्होंने यह भी कहा कि पदक जीतने के बाद पुरस्कारों की बौछार करने की बजाय अगर खिलाडि़यों को पहले तमाम सुविधायें मिले तो भी उनका प्रदर्शन बेहतर होगा।
रियो ओलंपिक में ललिता एथलेटिक्स में फाइनल में जगह बनाने वाली अकेली भारतीय थी हालांकि वह 10वें स्थान पर रही। एथलेटिक्स में फर्राटा धाविका पी टी उषा ( लास एंजिलिस ओलंपिक 1984 ) और फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह (रोम ओलंपिक 1960 ) के अलावा कोई भारतीय ओलंपिक पदक के करीब नहीं पहुंच सका। ये दोनों धुरंधर चौथे स्थान पर रहे थे।
ललिता ने दिल्ली में राष्टपति प्रणब मुखर्जी से अर्जुन पुरस्कार लेने के बाद भाषा से बातचीत में कहा , भारत में एथलेटिक्स में प्रतिस्पर्धा का बहुत अभाव है। अगर मेरे वर्ग की ही बात करें तो इक्के-दुक्के ही खिलाड़ी है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन बेहतर नहीं हो सकता। उसने कहा, अगर हमें अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में बेहतर प्रदर्शन करना है तो पहले भारत में खिलाड़ियों का बड़ा पूल तैयार करना होगा ताकि उन्हें अच्छी तैयारी मिल सके। विदेश में काफी कठिन प्रतिस्पर्धा से निकलकर खिलाड़ी उच्च स्तर पर खेलने पहुंचते हैं जिससे उनका प्रदर्शन परिपक्व होता है। महाराष्ट्र के सतारा जिले की रहने वाली ललिता ने कहा कि स्कूली पाठ्यक्रम में खेलों को शामिल किये जाने की जरूरत है ताकि दूर दराज के इलाकों से प्रतिभायें निकल सके। उसने कहा , हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन उन्हें पहचानने और सही प्रशिक्षण देने की जरूरत है। स्कूली पाठ्यक्रम में अगर खेलों को शामिल किया जायेगा तो ग्रामीण इलाकों से भी कई प्रतिभायें सामने आयेंगी। उसने यह भी कहा कि पदक जीतने के बाद पुरस्कारों की बौछार करने की बजाय अगर खिलाडि़यों को पहले तमाम सुविधायें मिले तो भी उनका प्रदर्शन बेहतर होगा।
उसने कहा , अब तो काफी सुविधायें मिल रही हैं लेकिन मेरा मानना है कि पदक जीतने के बाद इतने इनामों की बरसात की जाती है, अगर पहले भी खिलाडि़यों को तमाम सुविधायें दी जाये तो उनका प्रदर्शन और निखरेगा।
भाषा