पुरस्कार कोई भी हो, लेकिन उसकी घोषणा के साथ ही विवाद भी सामने आ ही जाते हैं। यही हाल नेशनल खेल अवॉर्ड का भी है। इस बार यह विवाद द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए जसपाल राणा का नाम नहीं चुने जाने की वजह से सामने आया है। हालांकि, नेशनल खेल अवॉर्ड के 12 सदस्यीय पैनल के एक सदस्य का कहना है कि मनु भाकर और सौरभ चौधरी सहित किसी भी शूटर ने आधिकारिक रूप से जसपाल राणा का नाम बतौर कोच के रूप में नहीं लिया है। यही वजह है कि इस साल द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए उनके नाम को नजरअंदाज किया गया।
इस प्रतिष्ठित अवॉर्ड के लिए अनुभवी कोच राणा के नाम को नजरअंदाज करने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं, लेकिन सेलेक्सन पैनल के एक सदस्य के मुताबिक, टारगेट ओलिपिंक पोडियम स्कीम के तहत जरूरी एफिडेविट में राणा के किसी भी शिष्य ने उन्हें कोच घोषित नहीं किया है।
सौरभ ने आधिकारिक रिकॉर्ड में अमित शोरेन को अपना कोच बताया है, जबकि मनु और अनीश भानवाला ने सुरेश कुमार और हरप्रीत सिंह को अपना कोच घोषित किया हुआ है। नाम न जाहिर करने की शर्त पर सेलेक्शन पैनल के एक सदस्य ने बताया, “हमने खिलाड़ियों द्वारा घोषित आधिकारिक रिकॉर्ड के हिसाब से काम किया। जसपाल राणा के किसी भी शिषय ने टारगेट ओलिपिंक पोडियम स्कीम के तहत दिए जाने वाले एफिडेविट में उन्हें अपना कोच नहीं बताया है।”
उन्होंने कहा, “यह एक सही फैसला था। हम भला किसी ऐसे शख्स को अवॉर्ड कैसे दे सकते हैं, जिसका नाम उसके शिष्यों ने ही कोच के तौर पर नहीं लिया हो। यह चयन का प्रमुख हिस्सा था और यही उनके खिलाफ गया।”
स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के सूत्रों के मुताबिक, जसपाल राणा को इस साल मई में म्यूनिख विश्वकप के फाइनल में मनु भाकर के 25 मीटर पिस्टल प्रतियोगिता में मौजूद न होने की वजह से अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी कीमत चुकानी पड़ी। फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान बाईचुंग भूटिया भी इस सेलेक्शन पैनल के सदस्य थे। उन्होंने भी कहा कि यह सर्वसम्मति से फैसला लिया गया, क्योंकि द्रोणाचार्य अवॉर्ड के लिए तीन नामों को ही चुना जाना था।
राणा को अवॉर्ड विजेता की सूची में शामिल नहीं करने से विवाद उस समय बढ़ गया था, जब ओलंपिक में इंडिविजुअल कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी अभिनव बिंद्रा ने द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए राणा को नहीं चुनने के लिए सेलेक्शन पैनल की कड़ी आलोचना की थी।