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हाकी के जादूगर ध्यान चंद का 114 वां जन्मदिन, अद्भुत उपलब्धियों के बावजूद भारत रत्न से दूर

हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का आज जन्मदिन है। 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश तके इलाहाबाद में...
हाकी के जादूगर ध्यान चंद का 114 वां जन्मदिन, अद्भुत उपलब्धियों के बावजूद भारत रत्न से दूर

हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का आज जन्मदिन है। 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश तके इलाहाबाद में जन्में ध्यानचंद के जन्मदिवस को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के पहले स्पोर्ट्स स्टार ध्यानचंद के जन्मदिन पर हर साल खेल प्रेमियों का एक वर्ग भारत रत्न दिए जाने की मांग करता रहा है लेकिन आज तक उनकी यह मांग पूरी नहीं हो सकी है। ध्यानचंद के पुत्र और भारत की 1975 विश्व कप जीत के हीरो रहे अशोक कुमार भी अपने पिता को भारत रत्न से नवाजे जाने की मांग का समर्थन करते रहे हैं। 

भारत के लिए 570 गोल किए

बिना किसी संशय के ध्यानचंद भारत के सबसे बड़े खिलाड़ी रहे हैं। उनसे ज्यादा और बड़ी उपलब्धि और कोई भारतीय खिलाड़ी हासिल नहीं कर सका। उन्होंने ये कारनामा तब किया जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। ध्यानचंद 1926  से 1949  तक करीब 23 साल तक भारत के लिए खेले। उन्होंने देश को आजादी से पहले एम्सर्टडम (1928),  लॉस एंजिलिस(1932) और बर्लिन (1936) में लगातार तीन ओलंपिक में पीले तमगे दिलाए। तीन ओलंपिक के 12 मैचों में ध्यानचंद ने 39  गोल दागे। उन्होंने भारत के लिए 195  मैच खेले और 570 गोल किए।  

कई पूर्व केंद्रीय खेल मंत्री भी कर चुके हैं सिफारिश

1979 में उनके देहांत के बाद उनके जन्मदिवस को भारतीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसी दिन खिलाड़ियों को भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न के अलावा अर्जुन, ध्यानचंद पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार आदि दिए जाते हैं। लेकिन खुद ध्यानचंद को अब तक भारत रत्न से नहीं नवाजा गया है। उनके पुत्र अशोक कुमार तो पिछले कई वर्षो से पुरजोर कोशिश कर रहे हैं कि उनके भारत के सबसे बड़े सम्मान से नवाजा जाए लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता। यहां तक के कई पूर्व केंद्रीय खेल मंत्री ध्यानचंद के नाम की सिफारिश भारत रत्न के लिए कर चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान नहीं मिल पाया है।

सचिन तेंडुलकर भारत रत्न पाने वाले पहले खिलाड़ी

अपको बता दें साल 2013 में 24 साल लंबे अंतरराष्ट्रीय करिअर को कई रिकॉर्ड्स और अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों के साथ अलविदा कहने वाले क्रिकेट के भगवान के रूप में विख्यात सचिन तेंडुलकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया था। वह इस पुरस्कार से नवाजे जाने वाले पहले खिलाड़ी बने। सचिन को भारत रत्न से नवाजने के लिए भारत सरकार ने भारत रत्न दिए जाने के प्रावधान में बदलाव करते हुए खिलाड़ियों के लिए राह बनाई। तब ऐसा माना जा रहा था कि सचिन तेंडुलकर से पहले ध्यानचंद को यह पुरस्कार दिया जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में इस बार पर एक बार फिर विमर्श्र करना जरूरी हो जाता है कि आखिर क्यों ध्यानचंद भारत रत्न नहीं बन सके।

विदेश में कोचिंग के कई प्रस्ताव ठुकराए

उनके पुत्र अशोक कुमार बताते हैं कि पिता और हॉकी खिलाड़ी के रूप में ध्यानचंद से सिर्फ देश के लिए खेलना सीखा। दद्दा हमेशा भारतीय हॉकी के लिए जिए। घर में भले ही हमने तंगी झेली पर उन्होंने विदेश में कोचिंग देने के बड़े से बड़े प्रस्ताव ठुकरा दिए। वह हमेशा यही कहते थे कि मैं किसी विदेशी टीम को प्रशिक्षण देकर देश के खिलाफ कभी खड़ा नहीं हो सकता। मैनें भी उनकी राह पर चलते हुए विदेशी टीम को कोचिंग देने के प्रस्ताव ठुकरा दिए। मुझे मालूम था कि मैं विदेशी टीम को प्रशिक्षण दूं इसके लिए दद्दा कभी राजी नहीं होंगे। उनका यही मंत्र था अपना सर्वश्रेष्ठ खेल खेलो। देश पहले बाकी सब बाद में।

एडोल्फ हिटलर की भी नहीं सुनी

उन्होंने गुलामी के दौर में भी एडोल्फ हिटलर के जर्मनी आकर बसने और जर्मनी के लिए हॉकी खेलने के प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया था कि वो अपने देश के लिए हॉकी खेलकर खुश हैं। उस दौर में भी उनके लिए देश की मिट्टी का सम्मान और गौरव अन्य किसी प्रस्ताव से बड़ा था। वो आने वाली कई पीढ़ियों के लिए अपने खेल और आदर्शों की वजह से प्रेरणा बने रहेंगे। भारत सरकार ने साल 2002 में दिल्ली स्थित नैशनल स्टेडियम का नाम भी दद्दा के सम्मान में ध्यानचंद नैशनल स्टेडियम कर दिया था।  

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