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आईपीएल की चमक भी फीकी पड़ी

विश्व कप सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों भारत के हारते ही क्रिकेट पंडित मान बैठे थे कि ऑस्ट्रेलिया ही जीतेगा। लगभग वही हश्र आईपीएल के आठवें संस्करण का होने जा रहा है।
आईपीएल की चमक भी फीकी पड़ी

राजेश रंजन

एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय विश्व कप में जब तक दक्षिण एशियाई देशों की दावेदारी बनी रही, तब तक आयोजकों को ताबड़तोड़ कमाई हो रही थी और क्रिकेट का रोमांच भी बना हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे एशियाई टीमें प्रतियोगिता से बाहर होती गईं, विश्व कप की चमक भी फीकी पड़ने लगी। आईपीएल मैचों में दर्शकों की घटती तादाद कुछ दुर्दशा का अंदाजा बयां कर रही है।

क्रिकेट भारतीयों की रगों और धर्म में रच-बस गया है और विश्व कप के बाद आईपीएल की जबर्दस्त विज्ञापन बुकिंग से आयोजकों का आत्मविश्वास फिर से जाग गया था। लेकिन अब तक हुए मैचों के नतीजों के बाद कंपनियां इनमें पैसा लगाने से पीछे हटने लगी हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कोई अप्रत्याशित नतीजा सामने नहीं आ रहा है। यानी जिन टीमों को लोग मजबूत दावेदार मान रहे हैं और जिसके जितने प्रशंसक हैं, वही टीमें जीत हासिल कर पा रही हैं। राजस्‍थान रॉयल्स और चेन्नई सुपरकिंग्स की दावेदारी पर किसी को संदेह नहीं रह गया है और ये टीमें उसी अनुरूप प्रदर्शन करती आ रही हैं। राजस्‍थान ने अब तक चार मैच खेले हैं और किसी में उसे हार नहीं मिली। वहीं चेन्नई सुपरकिंग्स अब तक दो मैच खेलकर ही दूसरे स्‍थान पर है। इन दोनों टीमों के अलावा बाकी सभी टीमों को एक या दो हार मिली है। मुंबई इंडियस की जीत का खाता भी नहीं खुला है और वह अब तक तीन मैच हार चुकी है। इस आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि चेन्नई और मुंबई के मुकाबले में चेन्नई ही जीतेगी।

ऐसे में कितने क्रिकेट प्रशंसक रतजगा करके मैच देखने बैठेंगे, इसका अंदाजा लगाना तो मुश्किल है लेकिन ज्यादातर लोगों की दिलचस्पी जरूर कम होगी। बाजार भी इसी मानसिकता को भांपकर आगे बढ़ता है। मीडिया एजेंसी ग्रुपएम की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल क्रिकेट के मुकाबले फुटबॉल, टेनिस, हॉकी और कबड्डी की लोकप्रियता बढ़ी है।

भारत में क्रिकेट की घटती लोकप्रियता का दूसरा कारण यहां अन्य खेलों की लीग प्रतियोगिता की शुरुआत भी रही है। अब लोगों के पास उतना वक्त नहीं रह गया है कि वे मनोरंजन के नाम पर अपना पूरा दिन या पांच दिन जाया करें। फटाफट क्रिकेट यानी ट्वेंटी-20 से यह वर्जना तोड़ने की कोशिश तो की गई लेकिन एक-आध सत्र के बाद कोई खास सफलता नहीं मिल पाई। क्रिकेट में सट्टेबाजी, मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग से भी गंदगी फैली है और लोगों का भरोसा टूटा है। ग्रुपएम की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में क्रिकेट के लिए मैदानी प्रायोजन मूल्य 2013 के 508.3 करोड़ रुपये से घटकर 464.7 करोड़ रुपये रह गया जबकि टीम प्रायोजन मूल्य 2013 में 389.2 करोड़ रुपये था और 2014 में यह भी घटकर 347.8 करोड़ रुपये रह गया।

खेल उद्योग में पिछले साल दस प्रतिशत वृद्धि हुई है तो इसका श्रेय कुछ नए टूर्नामेंटों को ही जाता है। मैदानी प्रायोजन के तहत टूर्नामेंट के आयोजकों को पैसे दिए जाते हैं। इस बार आईपीएल आयोजकों को भी कम पैसे ही मिल पाए हैं। वहीं टीम प्रायोजन के तहत प्रत्येक टीम अपने वस्‍त्रों और अन्य उपयोगी चीजों पर विज्ञापनों से पैसे कमाती है। साल 2014 में फुटबॉल, हॉकी और कबड्डी और टेनिस के लीग शुरू होने से खेल उद्योग की कमाई पिछले साल के मुकाबले 437 करोड़ रुपये बढ़कर 4,809 करोड़ रुपये हो गई।

इसके अलावा आईपीएल में फ्रेंचाइज शुल्क, समर्थकों और विज्ञापनदाताओं से मिलने वाले राजस्व में भी कमी आई है। भारतीय क्रिकेट टीम का प्रायोजन मूल्य पिछले साल घटकर दो करोड़ रुपये ही रह गया जबकि इससे पहले एयरटेल ही इसके लिए 3.33 करोड़ रुपये प्रति मैच का भुगतान कर रही थी। अन्य खेलों में पैसों की बारिश होते ही क्रिकेट का मैदान सूखा पड़ने लगा है। क्रिकेट में लोगों की दिलचस्पी इसलिए भी घट रही है कि क्रिकेट खिलाड़ियों पर भारी-भरकम खर्च किया जाता है जबकि अन्य खेलों के खिलाड़ी सस्ते में ही समर्पण भाव से खेलने को तैयार रहते हैं। फुटबॉल का इंडियन सुपर लीग शुरू हुआ तो पिछले साल ही इसकी टीम का प्रायोजन मूल्य 227 प्रतिशत बढ़कर 60.3 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। सन 2013 में यह मूल्य सिर्फ 26.5 करोड़ रुपये ही था जबकि क्रिकेट की कमाई उल्टी दिशा में जाने लगी है।

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