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स्वच्छता ही सेवा : प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन से प्रेरित डॉ. तेजस दोशी ने उठाया भावनगर को प्लास्टिक मुक्त बनाने का बीड़ा

गांधीनगर, 23 सितंबर: “पिछले दशक के दौरान जंगलों की स्थिति में बड़ा बदलाव आया है और सभी स्थानों पर...
स्वच्छता ही सेवा : प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन से प्रेरित डॉ. तेजस दोशी ने उठाया भावनगर को प्लास्टिक मुक्त बनाने का बीड़ा

गांधीनगर, 23 सितंबर: “पिछले दशक के दौरान जंगलों की स्थिति में बड़ा बदलाव आया है और सभी स्थानों पर प्लास्टिक की बोतल, थैलियां और कागज आदि नजर आ रहे हैं। किसी को तो इस कूड़े को साफ करने की शुरुआत करनी होगी! मैं स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन से काफी प्रभावित हूं और जब इस धरती ने मुझे बनाया है, तो मुझे भी इस धरती को कुछ लौटाना चाहिए, इस विचार के साथ प्लास्टिक मुक्त भावनगर बनाने की मेरी यात्रा की शुरुआत हुई।” यह कहना है भावनगर में पिछले 23 साल से जनरल फिजिशियन के रूप में सेवारत डॉ. तेजस दोशी का।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन यानी 17 सितंबर से देश भर में ‘स्वच्छता ही सेवा अभियान’ शुरू किया गया है। मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल ने भी राज्य के नागरिकों में ‘स्वभाव स्वच्छता-संस्कार स्वच्छता’ की भावना उजागर करने के उद्देश्य से गुजरात भर में इस अभियान का शुभारंभ किया है। उधर, डॉ. तेजस दोशी गत एक दशक से ‘स्वच्छता ही सेवा’ के मंत्र को आत्मसात कर भावनगर को प्लास्टिक मुक्त बनाने का यज्ञ चला रहे हैं।

डॉ. तेजस दोशी ने पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभिन्न प्रकार के रोचक प्रोजेक्ट चलाए हैं, जिनमें उन्हें शानदार सफलता मिली है। उनके स्वच्छता संबंधित प्रोजेक्ट को ध्यान में रखते हुए उन्हें वर्ष 2019 में भावनगर के लिए ‘स्वच्छ भारत मिशन-भारत सरकार’ का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है।

2014 में पहली बार ‘नो हॉन्किंग प्रोजेक्ट’

डॉ. तेजस दोशी ने वर्ष 2014 में ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम और युवाओं को बेवजह हॉर्न बजाने से रोकने के प्रयास के अंतर्गत ‘नो हॉन्किंग प्रोजेक्ट’ की पहल की। प्रारंभिक विचार यह था कि इस प्रोजेक्ट को 52 सप्ताह के लिए, 52 स्कूलों के 52 हजार बच्चों (हर स्कूल के 1000 बच्चे) को शामिल करते हुए शुरू किया जाए। बच्चे अपने स्कूल के निकट स्थित चौराहे पर गुजराती भाषा में ध्वनि प्रदूषण के बारे में जागरूकता से संबंधित बैनर लेकर एक घंटे तक खड़े रहते थे। किसी प्रकार की नारेबाजी नहीं, केवल हाथों में बैनर लिए मौन खड़े रहते थे।

इसके अलावा, ध्वनि प्रदूषण और हॉर्न नहीं बजाने से संबंधित पैम्फलेट भी छपवाए गए, और बच्चों को यह निर्देश दिया कि इस पैम्फलेट को मोड़कर चौराहे पर खड़े वाहन चालकों के हाथ में दें, ताकि लोग सहज कुतूहलवश उसे खोलकर पढ़ने के लिए प्रेरित हों।

इस प्रोजेक्ट को जबरदस्त सफलता मिली और केवल 52 सप्ताह के लिए शुरू किया गया यह प्रोजेक्ट 153 सप्ताह तक चला, जिसमें 153 स्कूलों के 1,53,000 बच्चे शामिल हुए। खास बात यह है कि इसी प्रोजेक्ट की तर्ज पर नडियाद, वडोदरा, सूरत, गांधीनगर, अहमदाबाद, गांधीधाम, राजकोट और मुंबई में भी हॉन्किंग प्रोजेक्ट चलाए गए।

रिसाइकिल, रिप्रोड्यूस और रीयूज के विचार के साथ ‘जॉय ऑफ गिविंग’

अपने क्लीनिक के दराज में करीब 38 बेकार पड़े प्लास्टिक के पेन को देखकर डॉ. दोशी के मन में यह विचार आया कि जब उनके पास ही इतने अधिक बेकार पेन रखे हुए हैं, तो दूसरे लोगों के पास ऐसे कितने पेन होंगे? और इसी विचार से ‘जॉय ऑफ गिविंग’ प्रोजेक्ट का जन्म हुआ, जो ‘3-आर’ यानी रिसाइकिल, रिप्रोड्यूस और रीयूज की अवधारणा के साथ क्रियान्वित किया गया। इस प्रोजेक्ट के तहत उन्होंने एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया। उन्होंने सोशल मीडिया पर यह मैसेज प्रसारित किया कि, ‘आपके पुराने, अतिरिक्त पेन मेरे क्लीनिक पर भेजिए। मैं उनमें नई रिफिल डालकर उन पेनों को जरूरतमंद लोगों को भेजूंगा।’

इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत डॉक्टर साहब ने 2019 से जून-2024 तक 11 लाख से अधिक पेन जरूरतमंद लोगों को वितरित किए हैं और 3,56,000 से अधिक विद्यार्थियों तक इन पेनों को पहुंचाया है। उन्होंने गुजरात में भावनगर के सभी सरकारी स्कूलों और डांग के आदिवासी स्कूलों के अलावा गुजरात के बाहर राजस्थान, महाराष्ट्र, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय और बैंगलुरु तक इन पेनों को पहुंचाया है।

यह प्रोजेक्ट इतना सफल हुआ कि वह भारत की सीमाओं को पार कर दूसरे देशों तक भी पहुंच गया है। आज उनके क्लीनिक में शिकागो, वर्जीनिया और मेलबर्न से भी खाली पेन आते हैं। इसके अलावा, रिफिल बनाने वाली एक कंपनी ने उन्हें मामूली कीमत पर 6 लाख मास्टर रिफिल भी उपलब्ध कराए हैं, जिसे किसी भी पेन में यूज किया जा सकता है।

प्रोजेक्ट 3 : ‘डोंट कट द कॉर्नर’

2019 में भावनगर में भारी बारिश के कारण शहर के बहुत से गटर जाम हो गए थे। डॉ. दोशी ने गटर के कचरे को जांच के लिए लेबोरेटरी भेजा, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार उस कचरे में सबसे अधिक मात्रा प्लास्टिक की थी। विशेषकर प्लास्टिक थैलियों के कोनों के कटे हुए छोटे टुकड़े। समस्या यह है कि महिलाएं जब दूध या छाछ की थैली खाली करती हैं, तब वह थैली के कोने पर दांतों या कैंची से कट करके एक टुकड़ा अलग कर देती हैं और फिर दूध या छाछ को बर्तन में उड़ेल देती हैं। बाद में, थैलियां तो रिसाइकिल के लिए चली जाती हैं, लेकिन थैली के कोने वाला वह टुकड़ा कचरे में चला जाता है और अंततः वह कचरा गटर में जमा होता जाता है।

इस समस्या के निराकरण के लिए डॉक्टर साहब ने भावनगर में ‘डोंट कट द कॉर्नर’ अभियान चलाया, जिसके अंतर्गत उन्होंने 250 स्कूलों और कॉलेजों में 2.50 लाख से अधिक विद्यार्थियों का लेक्चर लिया। साथ ही, 130 से अधिक सोसायटियों में जाकर महिलाओं को भी समझाया कि दूध-छाछ आदि के पैकेट में केवल एक कट या छेद करें। कभी भी थैली के कोने वाले टुकड़े को थैली से अलग कर कचरे में ना जाने दें।

भावनगर में बना भारत का पहला इको ब्रिक्स पार्क

कोरोना काल के बाद सड़कों पर बड़ी संख्या में प्लास्टिक की छोटी-छोटी थैलियां नजर आ रही थीं, जो जानवरों के पेट में भी जाने लगी थी। इस स्थिति को देख डॉ. दोशी ने इको ब्रिक्स यानी पर्यावरण अनुकूल ईंटें बनाने का अभियान शुरू किया। इसके अंतर्गत लोगों से एक लीटर वाली पानी की खाली बोतल में सिंगल यूज प्लास्टिक भरकर देने की अपील की गई।

जब तीन महीने में केवल 30 बोतलें ही जमा हो पाईं, तब डॉक्टर दोशी ने सोचा कि यदि लोगों को इसके बदले में कुछ रकम देने की घोषणा की जाए, तभी इस अभियान को लोगों का समर्थन मिल पाएगा। फिर उन्होंने प्लास्टिक से भरी हुई 3 बोतल जमा कराने पर 10 रुपए देने का अभियान चलाया। इस अभियान को भावनगर महानगर पालिका का भरपूर समर्थन मिला। सुबह सड़कों की सफाई करने वाले कर्मचारी प्लास्टिक की थैलियां एकत्र करते और दोपहर को उसे बोतल में भर इको ब्रिक्स बनाकर जमा करवा देते। इस काम के लिए भावनगर के 13 वॉर्ड में 13 कार्यालय बनाए गए, जहां इन बोतलों को जमा किया जाता था। देखते ही देखते 1 साल के भीतर 1 लाख 80 बोतलें जमा हो गईं।

इन बोतलों की मदद से भावनगर में भारत का पहला इको ब्रिक्स पार्क यानी बगीचा बनाया गया। भावनगर महानगर पालिका ने इसके लिए लगभग 500 वर्ग मीटर की जगह भी आवंटित कर दी। इसके अलावा, भारत सरकार के शहरी विकास और शहरी मामलों के मंत्रालय की कॉफी टेबल बुक में इस प्रोजेक्ट को बेस्ट मॉड्यूल प्रोजेक्ट के रूप में स्थान मिला।

50 प्लास्टिक की थैली के बदले में कपड़े की एक थैली ले जाएं

इको ब्रिक्स प्रोजेक्ट की सफलता के बाद भी प्लास्टिक की छोटी-छोटी थैलियां सड़कों से नदारद नहीं हुई थीं। इसलिए डॉ. तेजस दोशी ने ‘कॉटन बैग प्रोजेक्ट’ के रूप में फिर से एक नया प्रोजेक्ट शुरू किया। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत उन्होंने 50 प्लास्टिक की थैलियों के बदले में 1 कपड़े की थैली देने का अभियान शुरू किया। वर्ष 2022 में शुरू हुए इस अभियान के तहत उन्होंने अब तक 1.5 लाख कपड़े की थैलियों का वितरण किया है, बदले में उन्होंने समाज से 75 लाख प्लास्टिक की थैलियां कम की हैं। ये सभी थैलियां भावनगर महानगर पालिका में जमा कराई जाती हैं। वहां से इन थैलियों को रिसाइकिल प्लांट में भेजा जाता है, जिसका उपयोग सड़क और ब्लॉक आदि बनाने में किया जाता है। इस प्रोजेक्ट को महानगर पालिका का बहुत समर्थन मिल रहा है।

डॉ. तेजस दोशी बताते हैं कि वर्ष 2014 में केवल 14 लोगों की मदद से उन्होंने इस तरह के प्रोजेक्ट शुरू किए थे, और आज इन सभी अभियानों से लगभग 25 लाख लोग जुड़ चुके हैं। डॉक्टर दोशी के हर प्रोजेक्ट का उद्देश्य लोगों की आदत में सुधार लाना है, ताकि समाज पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली को अपनाए। यह उद्देश्य प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘मिशन लाइफ’ के अनुरूप ही है। वे कहते हैं, “प्रधानमंत्री का स्वच्छ भारत मिशन बहुत ही आवश्यक है। इसके परिणाम हमें कुछ ही वर्षों में देखने को मिलेंगे। मोदी साहब ने जो शुरुआत की है, कहीं न कहीं उसका प्रभाव तो पड़ना ही है। संतोष इस बात का है कि इसके माध्यम से हम नई पीढ़ी को नया भारत दे सकेंगे।”

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