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मूलनिवासी दिवस 09 अगस्त और भारतीय विमर्श

1. मूल निवासियों का नरसंहार पश्चिम में इसे कॉलोनियल नरसंहार अथवा सेटलर्स नरसंहार के नाम से जाना जाता...
मूलनिवासी दिवस 09 अगस्त और भारतीय विमर्श

1. मूल निवासियों का नरसंहार

पश्चिम में इसे कॉलोनियल नरसंहार अथवा सेटलर्स नरसंहार के नाम से जाना जाता है, पश्चिमी यूरोपियन शक्तियों (ब्रिटिश व स्पेन) के विस्तारवाद ने यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका, ओशिनिका और एशिया में कोलोनियल नरसंहार (जिनोसाइड) को अंजाम दिया, जिसकी संख्या हिटलर के होलोकॉस्ट से भी बड़ी व नृशंस थीं। नरसंहार पर शोध करने वाले राफेल नेमकिन के अनुसार कोलोनियल नरसंहार के दो चरण थे, पहला मूलनिवासी संस्कृति और जीवन शैली को नष्ट करना व दूसरा कॉलोनाइजर की जीवन पद्धति, संस्कृति और रिलिजन को जबरन मूलनिवासियों को अपनाने पर हिंसात्मक रूप से बाध्य करना। इस नरसंहार को सांस्कृतिक नरसंहार और एथनिक नरसंहार का भी नाम दिया जाता है। इस नरसंहार की विभीषिका इतनी भयंकर थी कि मूलनिवासियों को मारने के लिए पशुवत् अत्याचारों के अतिरिक्त अमानवीय तरीके से जैविक बीमारियों (चेचक, हैज़ा) का उपयोग कर मूल निवासियों को ख़त्म किया गया। सरकारी अनुमानित आँकड़ों के अनुसार अकेले अमेरिका में मूलनिवासियों की जनसंख्या 15वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक 14.5 करोड़ से लेकर मात्र 70 लाख तक पहुँच गई थी। कॉलोनाइजर इतने में भी संतुष्ट नहीं हुए, और इन 70 लाख से अधिक मूलनिवासियों को "इंडियन रिमूवल एक्ट 1830" के द्वारा पूरे अमेरिका से खदेड़कर मिसिसिपी नदी के पश्चिम में बंजर इलाकों में धकेल दिया गया, इस दुर्दात घटना को अमेरिका के इतिहास में आंसुओं की नदी" के नाम से जाना जाता है। दुनिया के दूसरे हिस्से, जिसमें दक्षिण अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व अन्य द्वीपसमूह में भी इसी तरह नृशंस तरीके से वहाँ के मूलनिवासियों को खदेड़ कर नरसंहार किया गया।

2. कोलंबस डे (12 अक्टूबर 1492)

इस दिन को "डे ऑफ रेस" अर्थात् यूरोपियन रेस का दिन भी कहा जाता है, इस दिन अमेरिका सहित सभी कोलोनियल देशों के अधिकांश क्षेत्र में राष्ट्रीय अवकाश घोषित है, इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, कोलंबस एक इटेलियन नाविक मार्गदर्शक था, जिसने भारत के लिए समुद्रीमार्ग खोजने का आदेश स्पेन के राजा से प्राप्त किया था, लेकिन त्रुटिवश अमेरिकी द्वीप बहामा पहुँच गया। चूंकि भारत से लौटते हुए उसे मसालों की खेप लाने का जिम्मा दिया था, मसालों की प्राप्ति के अभाव में जिसके उलट उसने मूलनिवासी महिलाओं को अमानवीय रूप से बंदी बनाकर, वेनिस के बाज़ार में वैश्यावृत्ति के लिए बेच दिया, कुछ महिलाओं को दरबार के सम्मुख नग्न अवस्था में उपहार स्वरूप प्रस्तुत किया, अगले तीन सौ वर्षों तक मूलनिवासी महिलाओं के साथ यही दुर्व्यवहार निरंतर होता रहा। परंतु अमेरिका एवं अन्य कौलोनियल देश जहां आज भी मूलनिवासियों पर यूरोपीय रेस द्वारा राज व्यवस्था क़ायम है उनके लिए कोलंबस का मान राष्ट्र पिता तुल्य है, अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन ने अपने राष्ट्रपति आदेश में कोलंबस दिवस को बड़ी ही भव्यता से मनाने का आदेश दिया, और उसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया।

3. एबोलिश कोलंबस डे कैंपेन

राष्ट्रपति क्लिंटन की घोषणा 6608 द्वारा 8 अक्टूबर 1993 को कोलंबस डे घोषणा के विरोध में पूरे अमेरिकी देश के मूल निवासियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और कोलंबस डे को मूल निवासी नरसंहार दिवस घोषित करने हेतु दबाव बनाना शुरू किया। चूंकि कोलंबस डे एक आधिकारिक घोषणा थी जिसे अन्य कोलोनियल राष्ट्रों द्वारा भी मनाया जा रहा था, अमेरिका के लिए इस विवाद को खत्म करना बहुत आवश्यक था। इसलिए मूल निवासियों के असंतोष को शांत करने के लिए एक अलग विश्व मूल निवासी दिवस घोषित किये जाने के विकल्प तलाशने शुरू हुए। एक विकल्प, यूएन वर्किंग ग्रुप ऑफ इंडीजिनस पीपल (WGIP) की पहली बैठक जो कि 9 अगस्त 1982 को हुई थी उसे प्रस्तावित किया गया। चूंकि कोलंबस डे एक वैश्विक आयोजन था जिसमें सभी कॉमनवेल्थ देश शामिल थे इसीलिए इस दिवस को किसी बड़े मंच से घोषित करना आवश्यक था। अतः यू एन जनरल असेंबली के रेजूलेशन 49/214 के द्वारा 9 अगस्त 1982 को आयोजित WGIP की पहली बैठक के दिवस को 17 फरवरी 1995 में विश्व मूल निवासी दिवस 9 अगस्त घोषित किया गया। साथ ही इंटरनेशनल डिकेट ऑफ द वर्ल्ड इंडीजिनस पीपल (अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी लोगों का दशक) के रूप में मनाने की शुरूआत की गई।

4. यूनाइटेड नेशन मूल निवासियों के अधिकारों का घोषणा पत्र (13 सितम्बर 2007) लगभग 12 वर्षों के विचार-विमर्श के बाद भी मूल निवासियों की परिभाषा पर कोई एक मत पर नहीं पहुंच पाया। यूनाइटेड नेशन के 46 उपबंधों के आखरी उपबंध में यह बात लिखनी पड़ी की यह घोषणा पत्र इसे स्वीकार करने वाले राष्ट्रों पर कोई बाध्यता लागू नहीं करेगा एवं यह घोषणा पत्र हर राष्ट्र के संविधान के दायरे में रहकर अधिकारों के लिए एक नीति दृष्टिपत्र की तरह कार्य करेगा। भारत सरकार ने अपने आधिकारिक मत में इस घोषणा के समर्थन में कहा कि "भारत ने मूल निवासी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा के पक्ष में इस शर्त पर मतदान किया की स्वतंत्रता के बाद सभी भारतीय भारत के मूल निवासी हैं।"

भारत के इस मत का आधार संविधान सभा की बहस के दौरान श्री के. एम. मुंशी, श्री विश्वनाथ दास, श्री बी. आर. अम्बेडकर, श्री जयपाल सिंह मुण्डा के बीच हुई सारगर्भित बहस को माना जा सकता है। शुरूआत में विरोध के बावजूद जयपाल सिंह मुण्डा ने भी संविधान को अपना पूरा समर्थन दिया। जिसमें भारत के समस्त निवासियों को भारत का मूल निवासी एवं अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग किया गया। ना कि आदिवासी अथवा मूल निवासी शब्द का। इसके पीछे संविधान सभा की बहस में भारत के संविधान में जनजातियों के लिए किये गये विशेष प्रावधानों का विशेष महत्व स्पष्ट होता है। भारत के मत से स्पष्ट होता है कि भारत के संविधान में यूनाइटेड नेशन के घोषणा पत्र से कहीं अधिक अधिकार भारत की जनजातियों को प्रदान किये गये हैं। व समय-समय पर भारत की संसद द्वारा जिसमें जनजातियों का संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व भी है। बनाये जाने वाले कई कानून भी अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं।

5. भारत के संदर्भ में यूनाइटेड नेशन के घोषणा पत्र से मतभिन्नता

भारत चूंकि एक संप्रभु प्रजातांत्रिक राष्ट्र है इसीलिए मूल निवासियों के घोषणा पत्र में लिखित कुछ बातें भारत के संविधान विरोधी हैं जिसमें स्वअधिकार, दूसरे राष्ट्र की नागरिकता, दूसरे राष्ट्र के धर्म को अपना धर्म, सेल्फ डिटरमिनेशन हेतु, अन्य राष्ट्रों से आर्थिक मदद जैसे कई उपबंध भारत के दृष्टिकोण से अलगाव बढ़ाने वाले व विशिष्ट पहचान के द्वारा भारत की संप्रभुता को कम करने वाले थे।

बौद्धिक विमर्श द्वारा भारत की विदेश नीति के जानकारों ने इस बात को प्रमुखता से कहा कि जिन राष्ट्रों पर उनके ही मूल निवासियों पर यूरोपियन देश द्वारा नृशंस नरसंहारों के आरोप आज भी कायम हैं। उन्हें भारत को मूल निवासियों के अधिकारों पर निर्देश देने का कोई नैतिक आधार नहीं है। आवश्यकता है कि यूरोपियन रेस द्वारा शासित देश जिनकी कालोनियों में आज भी वहां के मूल निवासी दोयम दर्जे के नागरिक निवासरत हैं। इन राष्ट्रों की संसद अथवा सरकार में मूल निवासियों को प्रतिनिधित्व न के बराबर है। ये कोलोनियल राष्ट्र भारत के संविधान एवं इसकी संसदीय व्यवस्था से सीख लेकर इन राष्ट्रों के मूल निवासियों को अधिकार संपन्न बना सकते हैं।

6. मूल निवासी विमर्श और भारत का दृष्टिकोण

वर्ष 2023 की UN WGIP द्वारा थीम Indigenous Youth as Agents of Change for Self-determination" अर्थात मूलनिवासी युवा स्व निर्धारण (स्वतंत्रता) के लिए परिवर्तनकारी एजेंट", क्या अलगाव और नक्सलवाद से जूझते भारत में उन लोगों को भारत से अलग देश बनाने के लिए युवाओं को अधिकार दिया जाये?

हर देश की अपनी राज व्यवस्था प्रणाली है, जहां यूरोपियन रेस अभी भी राज कर रहे हैं, मूलनिवासियों पर, यहाँ पर तो लागू हो सकती है, पर क्या शत्रु देशों से घिरे भारत में इसका दुरपयोग नहीं होगा? इसकी जिम्मेदारी किसकी है?

भारत का पिछले 800 वर्षों को इतिहास विदेशी आक्रेताओं से संघर्ष का रहा है। भारत के आंतरिक समस्याओं का एवं विविधता का लाभ उठाकर भारत के वृहद भू-भाग को विभाजित होने का खूनी इतिहास किसी से छुपा नहीं है। पश्चिम की सांस्कृतिक विविधता को देखने का नजरिया विभाजनकारी है, जबकि भारत ने सदियों से भाषायी, सांस्कृतिक, धार्मिक विविधता के साथ सभी समुदायों को शांति व सहअस्तित्व के साथ रहने का वातावरण प्रदान किया है। फिर भी भारत पर शत्रु देशों द्वारा पंजाब, जम्मू कश्मीर, पश्चिम बंगाल, नागालैण्ड, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम जैसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित राज्यों में नयी पहचान के संकट को खड़ा करने के लिए षडयंत्र निरंतर जारी है। इसे हम भारत विभाजन के थाउजेंड कट थ्योरी (हजार घाव सिद्धांत) पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय षडयंत्र का एक हिस्सा मान सकते हैं।

हाल ही में प्रतिबंधित PFI संगठन, ISIS संगठन, आतंकवादी, माओवादी संगठनों से प्राप्त प्रतिबंधित साहित्य का अवलोकन करने पर यह बात स्पष्ट हुई है कि अंतर्राष्ट्रीय मदद से इस संगठनों द्वारा क्षेत्रीय भाषायी, धार्मिक व सांस्कृतिक अथवा समुदाय आधारित विशिष्ट पहचान के जरिये अलगाव पैदा कर अंतर्विरोध को बढ़ाकर आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करना है। भारत की शक्ति भारत के सबसे कमजोर समाज की शक्ति के बराबर ही है। अतः भारत का संविधान अंतिम पंक्ति में खड़े हर समाज को अधिकार संपन्न बनाकर भारत के समृद्ध समाज के बराबर खड़ा होने के अवसर प्रदान करता है। जिसके बीज में समता, समरसता एवं बंधुत्व का भाव अंतर्निहित है। विदेशी शत्रु शक्त्तियों द्वारा किसी भी विशिष्ट पहचान के जरिये अलगाव उत्पन्न करने की संभावना को भारत दृढ़ता से खत्म करने के लिए सक्षम है।

7. भविष्य की योजना

भारत ने अपने आजादी के 75 वर्ष में भारत की स्वतंत्रता में भारत के जनजातीय समाज के योगदान को रेखांकित करने के लिए स्वाधीनता संग्राम के महानायक भगवान बिरसामुण्डा के जन्म दिवस 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया है। ये किसी अनजान सी बैठक की तारीख नहीं है, ये भारत के सबसे युवा महान क्रांतिकारी में से एक, भगवान बिरसा का जन्मदिन है, इस दिवस का महत्व भारत की जड़ों से जुड़ा है, आज प्रतिवर्ष इसके साथ ही 15 नवम्बर से शुरू होकर एक सप्ताह तक जनजातीय गौरव सप्ताह का आयोजन भारत सरकार व जनजातीय बहुल राज्यों द्वारा किया जाता है। जिसमें उनकी सांस्कृतिक, भाषायी, सामुदायिक, विशिष्ठिता को प्रदर्शित करने हेतु विभिन्न आयोजन किये जाते हैं। अस्तित्व, अस्मिता एवं विकास से संबंधित प्रत्येक पहलु पर गंभीरता से विचार किया जाता है। आज कितने देश हैं जिन्होंने अपने नायकों को उनके कोलोनियल आकारान्ताओं से अधिक महत्व दिया है, हम आक्रांताओं का नहीं अपना इतिहास पढ़ना चाहते हैं, 15 नवम्बर बिरसा मुंडा दिन अथवा विदेशी 09 अगस्त (कोलंबस दिन) हमारा है, ये निर्णय भी तो युवाओं को तय करना है।

भारत के संविधान ने हमको सत्ता का भागीदार बनाया है, आज भारत देश में 28 में से 7 राज्यों के मुख्यमंत्री जनजातीय समाज से आते हैं। देश के सर्वोच्च पद पर जनजातीय समाज की विदुषी महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मु आसीन हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मूल निवासी दिवस 9 अगस्त को 2007 से जनजातीय बहुल इलाकों में मनाने का प्रचलन बढ़ा है। इस दिन देश के जनजातीय समाज विश्व मूल निवासी दिवस के उपलक्ष्य में जगह-जगह पर सांस्कृतिक आयोजन करते हैं। जिसमें युवाओं की महती सहभागिता होती है। यह दिवस यूनाईटेड नेशन द्वारा घोषित अन्य दिवसों जैसे विश्व योग दिवस अथवा पर्यावरण दिवस के समकक्ष विश्व के मूल निवासियों के लोक कल्याण की अपेक्षा से मनाया जाए एवं इस दिवस पर यूरोपियन देश द्वारा करोड़ों मूल निवासियों के नर संहार पर शोक व्यक्त करने के उद्देश्य से मनाया जाना चाहिए।

लेकिन अनभिज्ञतावश जनजातीयों को धर्मांतरण एवं अलगाव के षड्यंत्र में फंसाने के उद्देश्य से शत्रु देशों की क्षद्य शक्तियां अपनी क्षद्य संस्थाओं द्वारा 9 अगस्त का उपयोग संघर्ष बढ़ाने के उद्देश्य से करने में पिछले 10 वर्षों में सफल रही हैं। सोशल मीडिया के गलत उपयोग से भारत विरोधी, संविधान विरोधी व बंधुत्य विरोधी कंटेंट सुदूर अंचलों तक पहुंचाया जा रहा है। कई उच्च पदों पर बैठे लोग विश्व मूल निवासी दिवस पर जनजातीय बहुल क्षेत्र में शुभकामनाएं भी देते हैं। तथा शत्रु देशों के अलगाव के षड्यंत्र के तहत संविधान को कमजोर करने के प्रयासों में शामिल हो जाते हैं।

आज आवश्यकता है कि समाज को यह बोध हो कि जनजातीय समाज के साथ-साथ भारत का प्रत्येक निवासी भारत का मूल निवासी है एवं भारत को स्वतंत्रता दिलाने में सभी समाजों के पूर्वजों ने अपना सम्मिलित योगदान दिया है। अतः विश्व मूल निवासी दिवस के षड्यंत्र के जवाब में हम सब भारतवासी मूल निवासी हैं। "तू, मैं एक रक्त" के ध्येय वाक्य पर चलते हुए 9 अगस्त के दिवस को वैश्विक मूल निवासी नरसंहार का स्मरण करते हुए भारत के द्वारा दिखाये गये मार्ग को सभी तक पहुंचाने का संकल्प ले सकते हैं। 

(ये लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)

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