कथक नृत्य में जयपुर घराने की सुपिरचित नृत्यांगना सुश्री समीक्षा के नृत्य और अभिनय में सुंदर तराश दिखती है। जयपुर नृत्य शैली के श्रेष्ठ नर्तक और गुरु राजेंद्र गंगानी की छत्रछाया में समीक्षा ने पारंपरिक नृत्य के चलन और उसकी बारीकियों को गहराई से सीखा है और अपने को सुयोग्य नृत्यांगना के रूप में स्थापित किया है।
हाल ही में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के देशमुख सभागार में समीक्षा ने अपने नृत्य की मनोरम प्रस्तुति दी। उनकी पहली प्रस्तुति असहाय या हारे का सहारा कहे जाने वाले श्री खाटू श्याम जी के जीवन चरित्र पर थी। प्रस्तुति में दर्शाया गया कि किस प्रकार श्याम बाबा के दरबार में दुनिया में हारे हुए जनों को सहारा मिलता है और क्यों उनको शीश का दानी कहा जाता है।
राग मिश्र मांड और ताल दीपचंदी में निबद्ध रचना ‘श्याम जी खाटू अरज सुनो जी, शीश के दानी दरस तो दो जी’ में शीश काटकर भगवान को दान देने की जो कथा है उसके रहस्यपूर्ण मर्म को नृत्य अभिनय के जरिए दर्शाने में समीक्षा ने सरहनीय चेष्टा की। अगली प्रस्तुति में नृत्यांगना ने कालिया दमन की कृष्ण लीला को विस्तार में प्रदर्शित किया। संत कवि सूरदास का पद ‘तांडव गति मुंडन पर नाचत गिरधारी’ की रोमांचकारी प्रस्तुति के उपरांत नृत्य के 52 चक्करों के साथ कालिया का बृज छोड़कर जाना और अंत में जैसे ही वह पीछे मुड़कर देखता है उसके पत्थर हो जाने के पीछे काल की गति का जो दर्शन है, उसे समीक्षा ने नृत्य-भाव के माध्यम से उजागर करने का अच्छा प्रयास किया।
इस प्रस्तुति के साथ संभ्रीऋषि के मछली प्रेम को दिखाया गया। एक नदी के किनारे ऋषि की कुटिया थी। नदी में तैरती मछलियों से उनको बहुत लगाव था। एक बार अचानक गरुण की निगाह उन मछलियों पर पड़ी तो वह तुरंत मछलियों को खाने के लिए टूट पड़ा। इससे विचलित होकर मछलियां अपनी रक्षा के लिए गुहार करने संभ्री ऋषि के पास गई। ऋषि ने गरुण को चेताया कि अगर तू दोबारा इस ओर आएगा तो तुम्हारे शरीर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। नृत्य- अभिनय में इस कथा की प्रस्तुति भी भावपूर्णा और संवेदनशील थी।
नृत्य नाटिका की तरह एकल नृत्य में इस कथानक को प्रदर्शित करना सरल नहीं था। लेकिन बड़ी हद तक समीक्षा ने एकल नृत्य में नाट्यधर्मी तत्वों को जोड़कर प्रभावी ढंग से पेश करने में अपने कौशल का भरपूर परिचय दिया। इस नृत्य प्रस्तुति को गरिमा प्रदान करने में तबला पर निशिथ गंगानी, गायन पर शोएब हसन, पखावज पर महवीर गंगानी और पढंत पर प्रवीण प्रसाद ने बेहतरीन संगत की।
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
			 
                     
                    