"चित्रों में भी कविता होती है और कविता में भी चित्र होते हैं"
कविता और चित्रकला का बहुत पुराना सम्बंध है।बहुत सारे कवियों की कविताओं पर चित्रकारों ने चित्र बनाये हैं लेकिन सीरज सक्सेना ऐसे कलाकार है जिन्होंने चित्रकला की अनेक विधाओं में एक साथ प्रख्यात दिवंगत कवि कुंवरनारायण की कविताओं को रंगों में उतारा है। उनके प्रयोग अद्भुत और विलक्षण हैं।
दुनिया के कई देशों में अपनी एकल प्रदर्शनी कर चुके सीरज ने2002 में कुँवर नारायण के 75 वें जन्मदिन पर भी उनकी कविताओं की पंक्तियों पर एक चित्र प्रदर्शनी आयोजित की थी। इसके अलावा 2021 में भी उनकी जयंती पर एक प्रदर्शनी लगाई थी।
30 जनवरी 1974 को मध्यप्रदेश के मऊ में जन्मे सीरज ने कल इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में "शब्दों से नहीं " चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया जिसका उद्घटान प्रसिद्ध कवि एवम संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी अशोका विश्वद्यालय के पूर्व कुलपति एवम जाने माने बुद्धजीवी भानु प्रताप मेहता ,जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने किया।
इस अवसर पर प्रख्यात लेखिका ममता कालिया प्रसिद्ध इतिहासकार सुधीर चन्द्र गीतांजलि श्री , प्रसिद्ध कला समीक्षक कवि विनोद भारद्वाज कुँवर नारायण के बेटे अपूर्व नारायण शास्त्रीय गायिका विद्या शाह पार्थिव साह सविता सिंह प्रभात रंजन आदि उपस्थित थे।
समारोह में प्रदर्शनी का कैटलॉगभी जारी किया गया।
अशोक जी ने सीरज के चित्रों पर एक टीप लिखी है।
"शब्दों से नहीं"
"यो तो शब्दों से पार कई बार शब्दों से ही जाया जा सकता है।यह ऐसे अनुभव सचाई के ऐसे रंग-रूप सूक्षताएँ और जटिलताएं होती है जो शब्दों से नहीं व्यक्त और चरितार्थ की जा सकती हैं । इन्हें शब्द पकड़ ही नहीं पाते हैं। सीरज सक्सेना एक ऐसे कलाकार है जिन्होंने हमेशा कविता से प्रेरणा पायी है. इसे अपनी कला में उचित स्थान दिया है। नहीं पाते।ान दिया है। पर उनकी अपनी रंगभाषा की खोज निरंतर है और कला की कई विधाओं में है ,चित्रों में कोलाज में, सेरेमिक में। इनमें से हर विधा स्वायत्त है और ऐसा कुछ करती है जो वही कर सकती है।
अशोक जी ने लिखा है --
हमारे समय में सार्वजनिक व्यवहार और विमर्श में कलाओं पर अर्थ और आशय का बहुत बोझ डाला जाता है। सीरज की कला ने ऐसे बोझ को ढोने से अपने को अलग रखा है। एक शब्द प्रेमी कलाकार अपनी कला। में वागर्थ की अल्पता में विश्वास करता है। उनके यहाँ कला कहती नहीं करती है- उसे कुछ कहना नहीं, कुछ करना है। उनकी भाषां की खोज का इससे गहरा सम्बन्ध हैः सौन्दर्य, लालित्य, सूक्ष्मता, सौष्ठव आदि का उनके यहाँ बहुतायत नहीं बल्कि संयमित लगभग संकोच-भरी उपस्थिति है।
कुँवर नारायण ने अपने " मनुष्यतर" लौटने की आकांक्षा की थी। उनके रसिक सीरज सक्सेना अपनी कला के संयम और बारीकी से मनुष्यतर बनाने की चेष्टा में लगे हैं। यह चेष्टा ऐसी है कि इसकी सार्थकता सफल-विफल होने के युग्म से मुक्त रहती है।"
समारोह में श्री वाजपेयी का कहना था कि कविता और कला का सम्बंध विचित्र होता है।कविता थोड़ी अदृश्य भी होती है चित्र तो दृश्य होता।
उन्होंने कुँवर नारायण की कविता पँक्तियों को उधृत करते हुए कहा कि उसमें ऐसी आ भा है दीप्ति है जिसका सिराज ने अपनी कला में विस्तार किया है। भानु प्रताप मेहता ने कहा कि कला को सत्या बोलना चाहिए पर सत्य का क्या है पता नहीं। पर कला पूर्वाग्रह से आपको बाहर करती है।
सीरज जी के शब्दों में -"कुँवर जी का जन्म १९. सितम्बर १९२७ को हुआ। वे आज हमारे बीच होते तो सात्तानवे वर्ष के हुए होते। जब वे पचहत्तर वर्ष के हुए थे तब मैंने पहली बार उनकी कुछ कविता पंक्तियों को अपने सिरेमिक शिल्पों और पात्रों पर उकेरा था। अब लगभग इक्कीस वर्ष बाद फिर उनकी कविता पंक्तियों को अपने सिरेमिक पात्रों पर उकेरा है, साथ ही कुछ चित्र कोलाज भी बनाए है। खुर्जा स्थित अपने सिरेमिक स्टूडियों में असहज गर्म मौसम में कुंवर जी की कविता पंक्तियों के साथ अपनी तरल मिट्टी को छूना एक आत्मीय अनुभव है। आँखों से होकर उँगलियों के स्पर्श से शिल्प के बाहरी सतह पर कवितांकन करना मेरे लिए कविता के साथ एक नवीन और संवेदनात्मक रिश्ता बनाने की तरह है। गोल, चौकोर या सपाट पात्रों की देह से कविता का यह मिलन शुभ है। कविता मिट्टी की सतह पर उच्च तापमान में पक कर जड़ नहीं होती बल्कि मिट्टी के संग इस समय अपनी संभावनाओं के साथ सुबह के पत्ते पर ओस की बूंद की तरह ठहर जाती है। चमकते ग्लेज की पारदर्शी सतह से झांकती कविता बूँद की तरह लगती है, उसे पहले भी पढ़े जाने का अनुभव उसकी स्मृति को कुछ रोशन और तरल करता है। कविता के साथ इस तरह होना रोमांचित करता है। कविता स्वयं अपने को तरह-तरह से प्रकट करती है और सिरेमिक स्टूडियो में वह एक प्रिय सखा सी देर तक साथ बनी रहती है। कुँवर जी की कविता पंक्तियों ,को जो मैंने अपने चीनी मिट्टी के इन पात्रों पर लिखी हैं,रह रह कर दोहराता हूँ। मैं दोहराता हूँ कुंवर जी की कविता पंक्तियों में छुपा उनका आत्मविश्यास, जिजीविषा, प्रेम, आशा, स्वप्न और मनुष्यता।
एक शून्य है
मेरे और तुम्हारे बीच
जो प्रेम से
भर जाता है।"
सीरज के शब्दों में "श्री कुँवर नारायण
विश्वविख्यात कवि पाब्लो नेरुदा व नाजिम हिकमत से मिले हैं। गांधी जी की सफलता और हिटलर के पतनको भी वे याद करते रहे थे। वे कई बार पोलैंड गए और यहां इस देश का नया और खिला हुआ चेहरा देखा। पोलैंड की राजधानी वारसा के जिस होटल ब्रिस्टल में वे अपनी कविता के साथ उपस्थित थे उसी जगह चार वर्ष पूर्व मेरे दो चित्रों को दिखाया व संग्रहित किया गया है। मैँ पोलैंड में उन जगहों, उन शहरों से गुजरा हूँ जहाँ कुँवर जी रहे हैं ।पोलैंड मेरे लिए चित्रकला, सिरेमिक कला, लोक कला, संगीत व कविता का तीर्थ है जहाँ की मिट्टी मुझे अपनी महसूस होती है।"
"इंडिया इन्टरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली का मैं आभारी हूँ जिन्होंने कुंवर जी की कविताओं के साथ किए गये मेरे प्रयोग को दिखाने का अवसर प्रदान किया है।"
समारोह में ओम थानवी और अपूर्व नारायण ने भी चित्र प्रदर्शनी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी की ।