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विजय देव नारायण साही ने "उसने कहा था" नाटक में भूमिका अदा की थी-सुष्मिता साही

हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक और समाजवादी चिंतक विजय देव नारायण साही ने चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहांनी...
विजय देव नारायण साही ने

हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक और समाजवादी चिंतक विजय देव नारायण साही ने चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की अमर कहांनी "उसने कहा था "नाटक में भूमिका अदा की थी। श्री साही की पुत्री सुष्मिता साही ने आज यहां रज़ा फाउंडेशन द्वारा साही के जन्म शताब्दी पर आयोजित संगोष्ठी के अवसर पर एक बातचीत में यह जानकारी दी।

उन्होंने कहा कि साही जी की रंगकर्म में भी दिलचस्पी थी और वे रंगमचं से जुड़े थे। उन्होंने "उसने कहा था" नाटक में लहना सिंह की भूमिका निभाई थी। यह बहुत कम लोग जानते हैं।

उन्होंने कहा कि साही जी ने चाणक्य नाटक में भी चंद्रगुप्त की भूमिका निभाई थी।उन्होंने यह भी बताया कि धर्मवीर भारती ने अपने एक संस्मरण में भी यह सब लिखा है। उन्होंने बताया कि साही जी ने रंगमचं की समस्याओं पर उस जमाने मे एक लेख भी लिखा था। शायद पिता के इस रंगमचं प्रेम से मैं भी रंगमचं से जुड़ी।

हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने अपने आरंभिक वक्तव्य में कहा कि साही जी ने बुनकरों के आंदोलन में भाग लिया था और मामला जब अदालत में पहुंचा तो उन्होंने चार दिनों तक मजदूरों की तरफ से जिरह की। उनकी इस जिरह से जज इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने उनसे पूछा कि आप उच्च न्यायलय में वकालत करते हैं या किसी निचली अदालत में। जबकि सच्चाई यह थी उन्होंने कानून की पढ़ाई भी नहीं की थी।

उन्होंने बताया कि साही जी ने अपनी डायरी में 30 जनवरी 1948 के दिन गांधी जी की शहादत पर टिप्पणी करते हुए हिन्दू महासभा और संघ की आलोचना करते हुए देश में फासीवाद के प्रति लोगों को सचेत किया था।

उन्होंने कहा कि साही जी आज़ादी के बाद मुक्तिबोध की तरह बड़े आलोचक थे।उनक़ा नई कविता पर निबंध ' लघु मानव के बहाने हिंदी कविता पर बहस "रामचन्द्र शुक्ल के "कविता क्या है " के बाद हिंदी का सबसे महत्वपूर्ण आलोचनात्मक लेख है। जायसी पर लिखा उनकी आलोचना एक प्रतिमान है।

दिल्ली विश्विद्यालय में हिंदी के आलोचक विनोद तिवारी ने बताया कि साही जी साहित्य के दायित्व पर भी अपने लेख में विचार किया था और सामाजिक बदलाव के लिए उन्होंने ने उस जमाने में भदोही सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़े थे लेकिन वे हार गए थे। उन्होंने कहा कि साही जी की छवि मार्क्सवाद विरोधी बना दी गयी जबकि वे मार्क्सवाद के विरोधी नहीं थी।

बनारस हिन्दू विश्विद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर आशीष त्रिपाठी ने कहा कि साही जी का नेहरू युग से ही नहीं बल्कि दूसरी आज़ादी से भी मोहभंग हो गया था। प्रसिद्ध लेखिका अनामिका ने कहा कि साही जी के साहित्य के कई अन्तः पाठ हैं जिसमें सभ्यताओं की टकराहट भी है।

संगोष्ठी में मदन सोनी, अखिलेश, आशुतोष दुबे, पंकज चतुर्वेदी, अरविंद त्रिपाठी आदि ने भाग लिया और साही के साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया और एक ईमानदार बुद्धिजीवी बताया।

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