सुरैया (1929–2004)
मशहूर अभिनेत्री और गायिका। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट शुरुआत। अनमोल घड़ी, दास्तान, दर्द, सनम, बड़ी बहन, जीत, दिल्लगी जैसी फिल्में देकर हिंदी सिनेमा की चोटी की अदाकारा बनीं। नौशाद ने मौका दिया था।
मीना कुमारी (1933–1972)
ट्रेजेडी क्वीन के नाम से मशहूर। तीन दशक में 90 फिल्मों में काम किया। बैजू बावरा, परिणीता ने स्थापित किया। साहिब, बीवी और गुलाम, पाकीजा, दिल अपना और प्रीत परायी, फूल और पत्थर यादगार फिल्में।
मधुबाला (1933–1969)
हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री। कम उम्र में फिल्मों में आना पड़ा। हावड़ा ब्रिज, महल, मुगल-ए- आजम, चलती का नाम गाड़ी, काला पानी, फागुन, हाफ टिकट से लोकप्रियता के शीर्ष पर पहुंच गईं।
वहीदा रहमान (1938-)
तेलुगु फिल्म से शुरुआत। प्यासा, साहिब, बीवी और गुलाम, चौदहवीं का चांद, कागज के फूल से पहचान बनी। गाइड और तीसरी कसम से अभिनय की विविधता प्रदर्शित की।
विद्या सिन्हा (1947– 2019)
कम लेकिन महत्वपूर्ण फिल्मों का हिस्सा रहीं। छोटी सी बात, रंजनीगंधा जैसी फिल्मों में बेजोड़ अभिनय से सिने प्रेमियों की स्मृतियों में दर्ज हो गईं। पति, पत्नी और वो, कर्म, इंकार, मुक्ति, तुम्हारे लिए, महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
आशा पारेख (1942-)
शम्मी कपूर के साथ दिल दे के देखो में काम किया और रातोरात स्टार बन गईं। कटी पतंग, आन मिलो सजना, तीसरी मंजिल, लव इन टोकियो, कालिया, समाधि करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मी दुनिया में कदम रखा था।
नूतन (1936–1991)
चार दशक में 70 फिल्में। सुजाता, बंदिनी, मिलन, अनाड़ी, कर्मा, छलिया, तेरे घर के सामने, सरस्वती चंद्र, नाम, मेरी जंग जैसी फिल्मों से नूतन ने सिने जगत में विशेष मुकाम हासिल किया।
नरगिस (1929–1981)
राज कपूर के साथ आवारा, बरसात, जागते रहो, श्री 420, अंदाज, चोरी चोरी में काम कर चोटी की अदाकारा बनीं। मदर इंडिया करियर में मील का पत्थर साबित हुई। हिंदी सिनेमा की सफल अभिनेत्री।
राखी (1947)
बंगाली फिल्मों से शुरूआत। जीवन मृत्यु से हिंदी सिनेमा में पदार्पण। शर्मीली, हीरा पन्ना, ब्लैकमेल, दाग, जोशीला के बाद कभी कभी, त्रिशूल, कसमें वादे, मुकद्दर का सिकंदर से जबरदस्त वापसी की।
नादिरा (1932–2006)
गहरी निगाहों वाली नादिरा को आन, जूली, पाकीजा, श्री 420 की यादगार भूमिका के लिए जाना जाता है। 50 और 60 के दशक में बहुत लोकप्रिय अभिनेत्री थीं।
हेमा मालिनी (1948)
‘ड्रीम गर्ल’ के नाम से मशहूर। सपनों का सौदागर से हिंदी सिनेमा का रुख किया। शोले, नसीब, सत्ते पे सत्ता, सीता और गीता, जॉनी मेरा नाम, अंदाज, कुदरत, महबूबा करियर की महत्वपूर्ण फिल्में।
श्रीदेवी (1963– 2018)
भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार। मिस्टर इंडिया, चालबाज, नगीना, लाडला, जुदाई, खुदा गवाह से सिल्वर स्क्रीन पर हंगामा बरपा दिया। सदमा, चांदनी, लम्हे, कर्मा, महत्वपूर्ण फिल्में।
डिंपल कपाड़िया (1957)
पहली फिल्म बॉबी से ही मिला स्टारडम। सागर, क्रांतिवीर, राम लखन जैसी व्यावसायिक फिल्मों के साथ रुदाली, लेकिन जैसी सार्थक फिल्मों से भी नाम कमाया।
वैजयन्ती माला (1936)
हिंदी सिनेमा की प्रभावशाली अभिनेत्रियों में अग्रणी स्थान। देवदास, संगम और मधुमती से हिंदी सिने जगत में पहचान बनाई। गंगा जमुना, नया दौर, नागिन, सूरज, ज्वेल थीफ जैसी फिल्में उनके खाते में।
रेखा (1954)
तीन फिल्म फेयर और एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार। सिलसिला, मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, सुहाग, इजाजत से पहचान बनाई। उमराव जान महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई।
मुमताज (1947)
राजेश खन्ना के साथ एक से बढ़कर एक सुपरहिट दीं। सच्चा झूठा, हरे राम हरे कृष्ण, रोटी, आपकी कसम, लोफर, खिलौना, चोर मचाए शोर, अपना देश सबसे ज्यादा सफल फिल्में रहीं।
शबाना आजमी (1950)
पांच बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित। अर्थ, मासूम, पार, अंकुर, निशांत, जुनून, शतरंज के खिलाड़ी, एक दिन अचानक, स्पर्श, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है से सशक्त पहचान।
स्मिता पाटिल (1955–1986)
मंथन, बाजार, अर्थ, मिर्च मसाला, अर्ध सत्य, आक्रोश, भूमिका में सार्थक किरदार निभाकर हिंदी सिनेमा को नई ऊंचाई दी। मुंबई दूरदर्शन पर खबरें पढ़ा करती थीं।
दीप्ति नवल (1952)
आर्ट सिनेमा की महत्वपूर्ण अभिनेत्री। एक बार फिर, कथा, साथ साथ, चश्मे बद्दूर, अंगूर, किसी से न कहना, मिर्च मसाला, रंग बिरंगी से दर्शक उनके अभिनय के कायल हुए। आज भी सक्रिय हैं।
पद्मिनी कोल्हापुरी (1965)
उनके अभिनय में सादगी, आत्मविश्वास झलकता था। सत्यम शिवम सुंदरम, प्रेम रोग, इंसाफ का तराजू, प्यार झुकता नहीं, वो सात दिन ब्लॉकबस्टर फिल्में रहीं।
अरुणा ईरानी (1946)
सत्तर के दशक में छोटे लेकिन महत्वपूर्ण किरदार निभाए। बॉबी, रॉकी, लव स्टोरी, उपकार, फकीरा कामयाब फिल्में रहीं। करियर की दूसरी पारी में मां के किरदार निभाए और सफल रहीं।
नीतू सिंह (1958)
हिंदी सिनेमा की चुलबुली, सफल और लोकप्रिय अभिनेत्री। खेल खेल में, कभी–कभी, अमर अकबर एंथनी, दीवार, यादों की बारात में अलग अंदाज दर्शकों को देखने को मिला।
निरूपा रॉय (1931–2004)
दो बीघा जमीन, राम और श्याम, एवं शहीद में अपनी मौजूदगी दर्ज की। बाद के सालों में संघर्षशील लेकिन ममतामयी मां के किरदार से दिलों पर राज किया
बिंदु (1941)
दो रास्ते और इत्तेफाक से दर्शकों के दिल में जगह बना ली। कटी पतंग मील का पत्थर साबित हुई। खलनायिका बनकर अलग मुकाम बनाया। जंजीर से लोकप्रियता की ऊंचाई छुई।
शर्मिला टैगोर (1944)
आराधना को जबरदस्त सफलता मिली। आ गले लग जा, सत्यकाम, कश्मीर की कली, दाग, सफर, अमर प्रेम, चुपके चुपके, नमकीन सफल फिल्में रहीं। संजीदा कलाकार की पहचान बनी।
लीला मिश्रा (1908–1988)
ऐसे समय सिनेमा में आईं जब महिलाएं परदे पर आने से कतराती थीं। लोकप्रिय चरित्र अभिनेता का रुतबा हासिल किया। शोले में मौसी का किरदार भुलाए नहीं भूलता।
नलिनी जयवंत (1926– 2010)
अशोक कुमार के साथ समाधि, संग्राम से पहचान मिली। शिकस्त, नास्तिक, मुनीमजी, काला पानी, नौजवान सफल फिल्में रहीं।
निम्मी (1933– 2020)
बरसात से पहचान मिली। इसकी कामयाबी से खूबसूरत मुस्कान वाली अदाकारा ने उड़न खटोला, दीदार, दाग, आन, अमर, कुंदन, बसंत बहार में काम कर फिल्मी दुनिया में नाम दर्ज कराया।
शशिकला (1932–2021)
बीते जमाने की मशहूर अभिनेत्री। सुजाता और आरती से पहचान मिली। अनुपमा, गुमराह, फूल और पत्थर, घर घर की कहानी सफल फिल्में रहीं।
सायरा बानो (1944)
जंगली से उन्होंने दर्शकों को अपनी अदाकारी का मुरीद बना लिया था। पड़ोसन, पूरब और पश्चिम, हेरा फेरी, आई मिलन की बेला के अलावा शागिर्द सफल फिल्म रही।
जीनत अमान (1951)
हरे राम हरे कृष्ण से धमाकेदार एंट्री। यादों की बारात, सत्यम शिवम सुंदरम, दोस्ताना, लावारिस, कुर्बानी, धरमवीर, रोटी कपड़ा और मकान, वारंट से अभिनय का लोहा मनवाया।
रेहाना सुल्ताना (1950)
दस्तक की भूमिका सालों साल उनके अभिनय की वजह से दर्शकों के जेहन में रही। पहली ही फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। हार जीत, प्रेम परबत, चेतना महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
नाज़ (1944–1995)
सफल बाल कलाकार और अभिनेत्री। बूट पॉलिश और दिलीप कुमार की देवदास से विशेष पहचान मिली। दो फूल, लाजवंती, प्यार का बंधन, कागज के फूल में उनकी भूमिका को सराहा गया।
सुलोचना (1928)
सरल, सहज अभिनय और बोलती सी आंखों के लिए सराही गईं। मजबूर, रफूचक्कर, आए दिन बहार के, विश्वनाथ, दिल दे के देखो में उनकी महत्वपूर्ण और मजबूत भूमिका रही।
मनोरमा (1926–2008)
सीता और गीता करियर में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। खानदान, भाभी, बॉम्बे टु गोवा, एक फूल दो माली, हाफ टिकट की हास्य भूमिकाओं में रंग जमा दिया
ऐश्वर्या राय बच्चन (1973)
मिस वर्ल्ड का खिताब और आधुनिक दौर की सशक्त अभिनेत्री। हम दिल दे चुके सनम, मोहब्बतें, देवदास, गुरु, रेनकोट, जोधा अकबर चर्चित फिल्में रहीं हैं।
हेलेन (1938)
आवारा में ग्रुप डांसर से हुई शुरुआत दशकों तक डांसर के रूप में राज करने तक चली। लगभग सभी फिल्मों में एक डांस जरूर होता था। कई बार दर्शक केवल उनका डांस देखने ही जाते थे।
दुर्गा खोटे (1905–1991)
मुगल ए आजम, मिर्जा गालिब, बिदाई, परिवार, अभिमान, बॉबी, खिलौना से भारतीय सिनेमा में पहचान बनाने वाली अभिनेत्री ने लगभग 200 फिल्मों में काम किया है।
सुरेखा सीकरी (1945–2021)
बालिका वधु की दादी सा से पहले भी इस प्रतिभाशाली अभिनेत्री के नाम कई फिल्में और तीन राष्ट्रीय पुरस्कार हैं। हाल ही में बधाई हो में दिखाई दी थीं।
जोहरा सहगल (1912–2014)
अद्भुत ऊर्जा और सक्रियता के लिए याद किया जाता है। दादी-नानी के जीवंत किरदार निभाए। हम दिल दे चुके सनम, वीर जारा, कल हो न हो, चीनी कम यादगार फिल्में।
कामिनी कौशल (1927)
नीचा नगर से शुरुआत करने वाली कौशल के लिए लता मंगेशकर ने अपना पहला गीत गाया था। आरजू, शहीद, शबनम, जिद्दी, बिराज बहू, दो रास्ते, शोर, उपकार, पूरब और पश्चिम सफल फिल्में।
रीना रॉय (1957)
खूबसूरती और शानदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में जगह बनाई। नागिन, आशा, अर्पण, कालीचरण, नसीब, जरूरत रॉय के फिल्मी करियर में महत्वपूर्ण और सफल फिल्में साबित हुईं।
नीना गुप्ता (1959)
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पढ़ाई। करियर उतार-चढ़ाव से भरा रहा लेकिन साथ साथ, वो छोकरी, जाने भी दो यारों, बधाई हो, खलनायक ने उन्हें दर्शकों की स्मृति से ओझल नहीं होने दिया।
जरीना वहाब (1956)
शुरुआत से ही उनकी छवि गर्ल फ्रॉम नेक्स्ट डोर की थी। चितचोर से यह पहचान और पुख्ता हुई। सावन को आने दो, घरौंदा, सितारा, अग्निपथ, अनोखा, रूही में उनकी भूमिकाएं यादगार रहीं।
रानी मुखर्जी (1978)
गुलाम से लोकप्रियता मिली। कुछ कुछ होता है, कभी खुशी कभी गम, वीर जारा, हम तुम, साथिया, नायक, नो वन किल्ड जेसिका करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। सफलतम अभिनेत्रियों में से एक।
कंगना रनौत (1987)
अभिनय के साथ मुखरता और बेबाकी के लिए जानी जाती हैं। कई किरदार उन्हें ध्यान में रख कर लिखे गए हैं। क्वीन, तनु वेड्स मनु, मणिकर्णिका, पंगा, वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई सफल फिल्में हैं।
जया बच्चन (1948)
गुड्डी, शोले, मिली, चुपके चुपके, सिलसिला, अभिमान, अनामिका, जंजीर, हजार चौरासी की मां...प्रतिभाशाली अभिनेत्री की फिल्मी सूची बहुत लंबी है।
लीला चिटणिस (1909–2003)
काला बाजार, गंगा जमुना, बंधन, साधना, शहीद, बरखा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद गाइड में देव आनंद की मां के रूप में तारीफ बटोरी।
मौसमी चटर्जी (1948)
अनुराग से शोहरत की बुलंदियों पर पहुंची मौसमी को मंजिल, रोटी कपड़ा और मकान, बेनाम, प्यासा सावन, घर एक मंदिर में अभिनय की जादूगरी दिखाई।
ललिता पवार (1916–1998)
नकारात्मक और सख्त किरदार से पहले मूक फिल्मों में भी अभिनय किया। अनाड़ी, श्री 420, सुजाता, आनंद, बॉम्बे टु गोवा, हम दोनों उल्लेखनीय फिल्में रहीं।
पद्मिनी (1932–2006)
हिंदी के साथ तमिल, तेलुगु, मलयाली फिल्मों में काम किया। अभिनय के साथ नृत्य में भी प्रवीण थीं। मेरा नाम जोकर, जिस देश में गंगा बहती है से हिंदी दर्शकों के बीच पहचान मिली।
सुहासिनी मुले (1950)
भुवन शोम से करियर की शुरुआत करने वाली मुले सिनेमा और टेलीविजन का लोकप्रिय नाम हैं। हिंदी, मराठी और असमिया फिल्मों में काम किया हु तू तू के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
कोंकणा सेन शर्मा (1979)
उत्कृष्ट अभिनय के लिए दो बार राष्ट्रीय और चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार। वेक अप सिड, ओमकारा, लक बाय चांस, लाइफ इन ए मेट्रो सफल फिल्में रहीं।
कुमकुम (1934–2020)
100 से अधिक हिंदी और भोजपुरी फिल्में। हिंदी फिल्मों में अवसर देने का श्रेय गुरु दत्त को जाता है। आर पार, आंखें, गीत, कोहिनूर, मदर इंडिया, गंगा की लहरें महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
रवीना टंडन (1972)
नब्बे के दशक कई हिट फिल्में दीं। मोहरा, दिलवाले, अंदाज अपना अपना, शूल, जिद्दी, खिलाड़ियों का खिलाड़ी, बड़े मियां छोटे मियां जैसी फिल्मों में उन्होंने गुदगुदाया भी और प्रशंसा भी पाई।
प्रियंका चोपड़ा (1982)
हिंदी के अलावा अंतरराष्ट्रीय जगत में अभिनय की धूम मचा रही हैं। दो राष्ट्रीय और पांच फिल्म फेयर पुरस्कार। दोस्ताना, बर्फी, डॉन, बाजीराव मस्तानी, ऐतराज, अग्निपथ, मैरी कॉम प्रशंसनीय फिल्में।
कुक्कू (1928–1981)
हेलेन के आने से भी बहुत पहले हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर की मशहूर डांसर। 40 और 50 के दशक में उन्हें डांसिंग क्वीन कहा जाता था। अंदाज, बरसात, यहूदी यादगार फिल्में रहीं।
साधना (1941–2015)
आज भी उनके नाम का एक हेयर स्टाइल है। वो कौन थी, मेरा साया, मेरे महबूब, आरजू, वक्त, एक फूल दो माली, असली नकली, राजकुमार से उन्होंने समकालीनों के बीच अलग पहचान बनाई।
नंदा (1939–2014)
तूफान और दीया से हिंदी फिल्मों को सादगी भरी नई तारिका मिली। जब जब फूल खिले, इत्तेफाक, गुमनाम, हम दोनों, तीन देवियां, प्रेम रोग से उनके फिल्मी करियर खूब गति मिली और प्रशंसा भी।
माला सिन्हा (1936)
गुरु दत्त की प्यासा महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई। गीत, आंखें, अनपढ़, हिमालय की गोद में, दो कलियां, धूल का फूल, मेरे हुजूर, गुमराह सफल फिल्में रहीं।
तनुजा (1943)
राजेश खन्ना, जीतेंद्र और धर्मेंद्र के साथ जोड़ी खूब जमी। हाथी मेरे साथी, मेरे जीवन साथी, अनुभव, ज्वेल थीफ, दो चोर उम्दा फिल्में रहीं जिनसे पहचान मिली और खूब सराही गईं।
गीता बाली (1930–1965)
राज कपूर के साथ बावरे नैन और पृथ्वीराज कपूर के साथ आनंद मठ खूब चली। अलबेला, बाजी, जाल, बड़ी बहन, मिलाप फिल्म करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
सुचित्रा सेन (1931– 2014)
हिंदी और बंगाली फिल्मों की महत्वपूर्ण अभिनेत्री। देवदास से हिंदी में कदम रखा। आंधी, ममता, बम्बई का बाबू हिंदी फिल्मी करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
तब्बू (1971)
उनकी प्रतिभा के सब कायल हैं। दमदार अभिनय की बदौलत यादगार और जटिल किरदार निभाए। विरासत, माचिस, मकबूल, हैदर, चांदनी बार फिल्मों को सिनेमा में विशेष स्थान हासिल है।
काजोल (1974)
अपने दम पर ब्लॉकबस्टर फिल्में झोली में हैं। बाजीगर, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कुछ कुछ होता है, फना, कभी खुशी कभी गम, करण अर्जुन, गुप्त, दुश्मन, से सिनेमा में विशेष पहचान बनाई।
टुनटुन (1923–2003)
गायिका बनना चाहती थीं लेकिन बन गईं हास्य कलाकार। सबसे सफल महिला कॉमेडियन मानी जाती हैं। उन्होंने कुछ अच्छे गाने गाए। नौशाद के कहने पर अभिनय की राह पकड़ी थी।
परवीन बाबी (1954–2005)
बोल्ड और ग्लैमरस हीरोइन की पहचान। अमर अकबर एंथनी, कालिया, शान, दीवार, कालिया, नमक हलाल, सुहाग जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों से शोहरत कमाई।
विद्या बालन (1979)
छह बार फिल्म फेयर अवार्ड। नायिका प्रधान फिल्मों की महारानी। केंद्रिय भूमिका में महिला किरदार का क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाली डर्टी पिक्चर, तुम्हारी सुलु से लोहा मनवा चुकीं।
दिव्या भारती (1974–1993)
छोटे फिल्मी करियर में इतना स्टारडम शायद ही किसी अन्य कलाकार के हिस्से आया हो। विश्वात्मा से शुरु करियर शोला और शबनम के बाद दीवाना तक चला।
माधुरी दीक्षित (1967)
तेजाब से ही करियर की गिनती शुरू हुई। छह फिल्म फेयर पुरस्कार। हम आपके हैं कौन, दिल, देवदास, खलनायक, दिल तो पागल है, साजन, बेटा और परिंदा से दिलों पर राज किया।
आलिया भट्ट (1993)
चुनौतीपूर्ण किरदार निभा कर जगह पक्की की। राजी, डियर जिंदगी, 2 स्टेट्स, गली बॉय, उड़ता पंजाब के अलावा गंगूबाई काठियावाड़ी के बाद उन्हें टक्कर देने वाला फिलहाल कोई नहीं।
दीपिका पादुकोण (1986)
ओम शांति ओम से सिनेमा में कदम रखा। पद्मावत, ये जवानी है दीवानी, छपाक, रामलीला, बाजीराव मस्तानी से शोहरत की बुलंदियों पर पहुंची।
फरीदा जलाल (1949)
200 से अधिक फिल्मों में काम किया। आराधना में राजेश खन्ना के साथ आईं। कुछ कुछ होता है, क्या कहना, मम्मो के अलावा डीडीएलजे में स्नेहमयी मां को कौन भूल सकता है।
जया प्रदा (1962)
सरगम से हिंदी सिनेमा में कदम रखा और बाद में तोहफा, शराबी, आखिरी रास्ता, घर घर की कहानी, आज का अर्जुन, गंगा जमुना सरस्वती, मकसद से नाम कमाया।
मीता वशिष्ठ (1967)
उनकी प्रतिभा का लेशमात्र भी दोहन फिल्म उद्योग नहीं कर पाया। रंगमंच कलाकार ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। ताल, तर्पण, कसाई, रुदाली, गुलाम की भूमिकाओं के लिए याद की जाती हैं।