सुनहरे परदे की परियां, जिन्होंने अपनी अदाकारी से सिने जगत को और सुनहरा, चकाचौंध भरा कर दिया
आजादी के बाद बीते साढ़े सात दशक के दौरान हिंदी सिनेमा देश के राजनीतिक-सामाजिक सफर का हमकदम रहा है, उसकी दास्तां में इस देश का अक्स दिखता है, इतिहास, उत्थान-पतन और तकनीक से हासिल सहूलियतों पर एक नजर
कुछेक चुनिंदा फिल्में जिन्होंने निर्देशन, अभिनय, गीत-संगीत या अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अमिट छाप छोड़ी
नायकों के बिना न समाज का गुजारा है, न फिल्मों का
कई निर्देशक हुए, जिन्होंने कलाकार को कालजयी अदाकार में तब्दील कर दिया
गीतकार, संगीतकार, गायक और गायिकाएं, जिन्होंने फिल्मों को सुरीला बनाया
इस अंक को तैयार करने में जो पहलू सबसे खास बनकर उभरा, वह है हिंदी सिनेमा में उन हजारों कलाकारों का योगदान जिनकी चर्चा शायद ही होती है। उनमें अधिकतर गुमनाम ही रह गए। हमारा यह अंक उन्हीं कलाकारों को समर्पित है
आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर देश जब अमृत महोत्सव मना रहा है, स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति बरबस हमारे दिलोदिमाग पर छाने लगती है
आज भी हर रोज हजारों लोग आखों में सुनहरे ख्वाब लिए यहां तशरीफ लाते हैं