नौशाद (1919–2006)
हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय संगीत के इस्तेमाल का श्रेय। प्रेम नगर से शुरूआत। रतन से पहचान मिली। मुगल-ए-आजम से सितारे की तरह चमके। मदर इंडिया, कोहिनूर, गंगा जमुना, बैजू बावरा, अनमोल घड़ी, बाबुल महत्वपूर्ण फिल्में।
ओ पी नय्यर (1926–2007)
ऑर्केस्ट्रा संगीत शामिल किया। गीता दत्त और आशा भोंसले के साथ बेहतरीन गीत दिए। आर पार, नया दौर, सीआइडी, कश्मीर की कली, हावड़ा ब्रिज, तुम सा नहीं देखा उनके करियर की चर्चित फिल्में रहीं।
राहुल देव बर्मन (1939-1994)
पंचम नाम से लोकप्रिय। हिंदी फिल्म संगीत में पाश्चात्य शैली, लोकसंगीत और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का इस्तेमाल किया। उनके साउंड ट्रैक आज भी श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर देते हैं।
सलिल चौधरी (1925–1995)
हिंदी सिनेमा के अलावा बंगाली, मराठी, तेलुगु, तमिल, मलयालम, कन्नड़, ओड़िया, गुजराती में भी संगीत दिया। मधुमती, आनंद, परख, छोटी सी बात, दो बीघा जमीन, रजनीगंधा महत्वपूर्ण फिल्में।
सचिन देव बर्मन (1906–1975)
संगीत देने के साथ-साथ वे अच्छे गायक भी थे। आराधना, प्यासा, गाइड, प्रेम पुजारी, चलती का नाम गाड़ी में उनका ही संगीत है। बंदिनी का गीत मेरे साजन हैं उस पार सचिन दा का ही गाया हुआ है।
मदन मोहन (1924–1975)
मदन मोहन और लता की जुगलबंदी आज भी कालजयी है। लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो सबसे लोकप्रिय गीत रहा। बावर्ची, मेरा साया, हकीकत, मौसम, लैला मजनू चर्चित फिल्में रहीं।
शंकर (1922 – 1987) जयकिशन (1929–1971)
राज कपूर की अधिकतर फिल्मों की धुन बनाई। हसरत जयपुरी के साथ शानदार गीत दिए। ‘आवारा हूं’ विदेश में सुना जाने वाला पहला हिंदी फिल्मी गीत बना।
कल्याणजी (1928-2000) आनन्द जी (1933)
साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में कई हिंदी फिल्मों का संगीत उनकी धुनों से गुलजार हुआ। डॉन, कुर्बानी, त्रिदेव, मुकद्दर का सिकंदर, लावारिस, सफर, कोरा कागज।
खय्याम (1927–2019)
उर्दू शायरी को अपनी धुनों में पिरोने वाले खय्याम ने सीमित लेकिन बहुत ही विशिष्ट काम किया। उमराव जान, बाजार, कभी-कभी, नूरी करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। उमराव जान की गजलों की धुन कालजयी हो गई।
रोशन (1917–1967)
सरोद वादक अलाउद्दीन खां साहब से सरोद की तालीम ली। दिल ही तो है, ताजमहल, बरसात की रात, चित्रलेखा, आरती, ममता, अनोखी रात लोकप्रिय फिल्में रहीं। इंदीवर और आनंद बख्शी के साथ जोड़ी बना कर कमाल किया।
बप्पी लाहिड़ी (1952–2022)
डिस्को म्यूजिक से दशा और दिशा बदल दी। मात्र 19 साल की उम्र में पहली फिल्म में संगीत देने वाले बप्पी ने डिस्को डांसर, जख्मी, चलते चलते, शराबी, आज का अर्जुन, नमक हलाल में लोकप्रिय संगीत दिया।
जयदेव (1918–1987)
पारंपरिक और लोक संगीत के इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं। चुनिंदा संगीतकारों में शामिल, जिन्हें तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। हम दोनों, गमन, घरौंदा, रेशमा और शेरा, अनकही महत्वपूर्ण फिल्में।
लक्ष्मीकांत (1937-1998) प्यारेलाल (1940)
विशाल म्यूजिक अरेंजमेंट के लिए जाने जाते हैं। शोर, दोस्ती, प्रेम रोग, धरमवीर, प्यासा सावन, मिस्टर इंडिया, कर्ज, में हिट संगीत दिया। साठ, सत्तर और अस्सी के दशक में इस जोड़ी का बोलबाला था।
चित्रगुप्त (1917–1991)
हिंदी के साथ भोजपुरी फिल्मों में भी लोकप्रिय और कर्णप्रिय संगीत दिया। करियर की सबसे ज्यादा सफल फिल्में शायर मजरूह सुल्तानपुरी के साथ कीं। उनके साथ खूब जोड़ी जमी। मैं चुप रहूंगी, भाभी, पतंग, संसार उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
रवि (1926– 2012)
हिंदी के साथ-साथ मलयालम फिल्मों में भी संगीत दिया। उनको हिंदी सिनेमा में लाने का श्रेय संगीतकार हेमंत कुमार को जाता है। काजल, एक फूल दो माली, चौदहवीं का चांद संगीतगार रवि की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
जतिन–ललित
आधुनिक दौर के सफल संगीतकार। जो जीता वही सिकंदर, खिलाड़ी, कुछ कुछ होता है, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कभी खुशी कभी गम, मोहब्बतें जैसी नब्बे के दौर की फिल्मों के गीतों को संगीत से सजाकर पहचान बनाई।
नदीम (1954) श्रवण (1954–2021)
गायक कुमार सानू और गीतकार समीर के साथ हिट संगीत देकर इतिहास रचा। साजन, आशिकी, दामिनी, सिर्फ तुम, धड़कन, सड़क, दीवाना करियर की महत्वपूर्ण फिल्में साबित हुईं।
ए.आर. रहमान (1967)
हिंदी सिनेमा के आधुनिक दौर में उनके संगीत ने नई ऊंचाइयां हासिल कीं। रोजा ने हिंदी सिनेमा को विशेष पहचान दी। स्लमडॉग मिलेनियर के लिए अकेडमी अवॉर्ड से सम्मानित। छह बार राष्ट्रीय और दो बार ग्रैमी पुरस्कार।
अनु मलिक (1960)
नब्बे के दशक में खूब लोकप्रियता पाई। पिता सरदार मलिक हिंदी फिल्मों के शुरुआती दौर के महत्वपूर्ण संगीत निर्देशक थे। बॉर्डर, बाजीगर, जुड़वां, रिफ्यूजी, मैं हूं ना, इश्क उनकी सफल फिल्में रहीं।
रविन्द्र जैन (1944–2015)
सत्तर और अस्सी के दशक में कई हिट फिल्मों में संगीत दिया। धारावाहिक रामायण से विशेष पहचान मिली। चोर मचाए शोर, गीत गाता चल, सौदागर, चितचोर, अंखियों के झरोखों से सफल फिल्में रहीं।
उषा खन्ना (1941)
ओ.पी. नय्यर ने फिल्मिस्तान कंपनी के शशधर मुखर्जी से मिलवाया, जिससे संगीत की दुनिया का रास्ता खुला। पुरुषों से भरी म्यूजिक इंडस्ट्री में अपना अलग मुकाम बनाया। सौतन, हवस, दिल देके देखो, शबनम सफल फिल्में रहीं।
प्रीतम (1971)
तेरे लिए से बॉलीवुड करियर की शुरुआत की। धूम से जबरदस्त सफलता मिली। आने वाले वर्षों में श्रोताओं के बीच विशेष जगह बनाई। जन्नत, गैंगस्टर, सिंह इज किंग, जब वी मेट, बजरंगी भाईजान महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
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गीतकार
शैलेन्द्र (1923-1966)
कलम से इंसाफ और इंकलाब की आवाज बुलंद होती है। जिस दौर में फिल्मी गीतों में उर्दू भाषा का प्रभाव था, तब हिंदी के शब्दों के साथ जिंदगी का फलसफा रचा। शोषित, वंचित, मजदूर वर्ग की आवाज माने गए।
इंदीवर (1924–1997)
यथार्थपूर्ण गीतों के लिए जाना जाता है। विशेषकर हिंदी शब्दावली के लिए पसंद किया गया। नीले-नीले अंबर पर चांद जब आए, कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, होंठों से छू लो तुम जैसे गीत उनकी कला का नमूना हैं।
कवि प्रदीप (1915–1998)
ए मेरे वतन के लोगों सबसे लोकप्रिय देशभक्ति गीत। दूर हटो एे दुनिया वालों, इंसाफ की डगर पे, हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के लोकप्रिय गीत रहे। देशभक्ति गीतों के लिए जाना जाता है।
शकील बदायूंनी (1916–1970)
नौशाद के साथ सुपरहिट अफसाना लिख रही हूं लिखा। मुगल-ए-आजम, बैजू बावरा, मेरे महबूब, दुलारी, मदर इंडिया, गंगा जमुना जैसी फिल्मों में गाने लिख कर लोगों का दिल जीत लिया।
गोपालदास नीरज (1925–2018)
लिखे जो खत तुझे, फूलों के रंग से दिल की कलम से, रंगीला रे तेरे रंग में, ए भाई जरा देख के चलो, खिलते हैं गुल यहां उनके सबसे ज्यादा कर्णप्रिय गीतों में से हैं। कवि सम्मेलनों में भी सक्रिय रहे।
हसरत जयपुरी (1922–1999)
रोमांटिक गीतों के लिए याद किया जाता है। बरसात, तीसरी कसम, संगम, राम तेरी गंगा मैली, अंदाज, गीत गाया पत्थरों ने महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। राज कपूर की फिल्मों से पहचान बनी।
साहिर लुधियानवी (1921–1980)
इकलौते गीतकार जिनके जीवन से प्रेरित प्यासा और कभी कभी फिल्में बनीं। प्यासा, ताजमहल, बाजी, हम दोनों, हमराज, नीलकमल हिट फिल्में।
मजरूह सुल्तानपुरी (1919– 2000)
समाजवादी दृष्टिकोण के कारण मजरूह को जेल भी जाना पड़ा। आर पार, सुजाता, यादों की बारात, तीसरी मंजिल, दोस्ती, पत्थर के सनम, कयामत से कयामत तक महत्वपूर्ण फिल्में।
गुलजार (1934)
भाषा और शब्द चित्र उनके गीतों की ताकत हैं। गीत लेखन के साथ निर्देशन में भी ऊंचा मुकाम हासिल। आंधी, मौसम, परिचय, सदमा, आनंद, गोलमाल, दिल से फिल्में। स्लमडॉग मिलेनियर के लिए अकेडमी अवॉर्ड।
आनंद बख्शी (1930–2002)
गायक बनना चाहते थे लेकिन बन गए गीतकार। हिमालय की गोद में और जब जब फूल खिले से पहचान मिली। बॉबी, शोले, अमर प्रेम, आराधना, सीता और गीता, धरमवीर, मोहरा, ताल, मोहब्बतें कामयाब फिल्में रहीं।
जावेद अख्तर (1945)
हिंदी सिनेमा की सबसे सफल फिल्मों की स्क्रिप्ट के अलावा गीत लेखन के लिए पांच बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार। सिलसिला से गीतकार के रूप में पहचान मिली। साथ साथ, तेजाब, 1942 ए लव स्टोरी, कल हो न हो उनकी सर्वाधिक चर्चित फिल्में रहीं।
राजेंद्र कृष्ण (1919–1987)
एक ही भाव के लिए उनके पास अलग अलग छवियां, उपमाएं हैं। यही उन्हें अप्रतिम गीतकार बनाती हैं। नागिन, ब्लफ मास्टर, पड़ोसन, ब्रह्मचारी, रेशमा और शेरा, बॉम्बे टु गोवा, तुमसे अच्छा कौन है उनके फिल्मी सफर की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
कैफी आजमी (1919-2002)
बुजदिल से गीत लिखने का सिलसिला शुरू किया। हीर-रांझा के संवाद शायरी में लिखे। कागज के फूल, बावर्ची, अर्थ, पाकीजा, रजिया सुल्तान चर्चित फिल्में रहीं।
राजा मेंहदी अली खान (1915–1966)
संगीतकार मदन मोहन के साथ बेहतरीन गीत लिखे। लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो अमर गीत है। वो कौन थी, मेरा साया, नीला आकाश, आप की परछाइयां, अनीता लोकप्रिय फिल्में रहीं।
गुलशन बावरा (1937– 2009)
गुलशन बावरा ने अपने चार दशक के फिल्मी करियर में शंकर जयकिशन, राहुल देव बर्मन और कल्याणजी आनंदजी जैसे संगीतकारों के साथ तकरीबन 240 गीत लिखे।
प्रेम धवन (1923–2001)
प्रेम धवन हिंदी फिल्मों के सुनहरे दौर के सफल गीतकार थे। प्रेम धवन को हिंदी फिल्मों में उनके लिखे देशभक्ति गीतों के लिए याद किया जाता है। प्रेम धवन को बड़ी पहचान मनोज कुमार की शहीद के गीतों से मिली।
शम्सुल हुदा बिहारी (1922–1987)
शम्सुल हुदा बिहारी ने संगीतकार ओ.पी. नय्यर के साथ अपने करियर के सबसे सफल गीत लिखे। ओ.पी. नय्यर ने शम्सुल हुदा बिहारी को “शायर-ए-आजम” का खिताब दिया।
गोपाल सिंह नेपाली (1911–1963)
गोपाल सिंह नेपाली हिंदी की छायावादी कविता परंपरा के बड़े कवि थे। दो दशक के फिल्मी करियर में बेगम, नाग पंचमी, माया बाजार, नई राहें, जय भवानी, तुलसीदास खास रहीं।
नक्श लायलपुरी (1928–2017)
लाहौर से बंबई आए नक्श लायलपुरी ने शुरुआती दिनों में संघर्ष किया लेकिन फिर मदन मोहन, खय्याम, जयदेव, नौशाद, रविन्द्र जैन जैसे संगीतकारों की कई फिल्मों में गीत लिखे।
अंजान (1930–1997)
अंजान हिंदी फिल्मों के ऐसे चुनिंदा गीतकारों में शामिल रहे जिन्होंने अपने सीमित करियर में क्षमता और योग्यता के दम पर विशेष पहचान बनाई। मुकद्दर का सिकंदर, डिस्को डांसर, डॉन, हेराफेरी उनकी कामयाब फिल्में रहीं।
योगेश (1943–2020)
योगेश को हिंदी सिनेमा के उन चुनिंदा गीतकारों के रूप में जाना जाता है जिनके गीतों ने सरल और सहज भाषा में जीवन के गंभीर अर्थ समझाए। उन्हें आनन्द के गीत कहीं दूर जब दिन ढल जाए से खास पहचान मिली।
समीर (1958)
समीर ने 5000 फिल्मी गीत लिखे। आशिकी समीर की सबसे सफल फिल्म रही। समीर ने साजन, साजन चले ससुराल, कुछ कुछ होता है, दूल्हे राजा, हंगामा, दामिनी, शूल, राजा हिन्दुस्तानी में गीत लिखे।
प्रसून जोशी (1971)
विज्ञापन के क्षेत्र के नामी गिरामी व्यक्तित्व प्रसून जोशी ने फिल्मों में मां पर शानदार और भावुक करने वाले गीत लिखे हैं। रंग दे बसंती, तारे जमीन पर, भाग मिल्खा भाग, फना, दिल्ली 6 प्रसून की प्रभावशाली फिल्में रहीं।
इरशाद कामिल (1971)
इरशाद कामिल को समकालीन हिंदी फिल्मों का सबसे सफल गीतकार माना जाता है। उन्होंने निर्देशक इम्तियाज अली की फिल्मों में अपने करियर के सबसे सफल गीत लिखे।
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गायक
किशोर कुमार (1929-1987)
किशोर कुमार ने बॉम्बे टॉकीज़ की फिल्मों में बतौर कोरस सिंगर शुरुआत की। खेमचंद प्रकाश ने किशोर कुमार की प्रतिभा को पहचाना और फिल्म ज़िद्दी में गाने का अवसर दिया।
मोहम्मद रफी (1924 –1980)
हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय गायन और लोकप्रिय गायन की जैसी मिसाल मोहम्मद रफी ने पेश की, वह और कहीं नजर नहीं आई। रफी को सबसे काबिल पार्श्व गायक माना जाता है।
मुकेश (1923–1976)
हिंदी फिल्मों में मुकेश अभिनेता राज कपूर और मनोज कुमार की आवाज थे। मुकेश की आवाज में मौजूद दर्द और ठहराव से लोग दीवाने हो जाते थे। कुंदन लाल सहगल से प्रेरणा लेकर वे फिल्म संगीत के प्रति आकर्षित हुए।
मन्ना डे (1919–2013)
मन्ना डे की शास्त्रीय गायक के रूप में पहचान थी। उपकार, आवारा, पड़ोसन, चोरी चोरी, सफर, सत्यम शिवम सुंदरम, एक फूल दो माली मन्ना डे की महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
महेन्द्र कपूर (1934–2008)
महेन्द्र कपूर मोहम्मद रफ़ी से बहुत प्रभावित थे और उन्हें अपना गुरु मानते थे। उन्होंने मनोज कुमार के साथ सबसे सफल गीत गाए। पूरब और पश्चिम, उपकार, हमराज, गुमराह, क्रांति महत्वपूर्ण फिल्में रहीं।
तलत महमूद (1924–1998)
तलत महमूद को मखमली आवाज के कारण याद किया जाता है। उन्होंने शुुरुआत गजल गायक के रूप में की। वे अभिनेता बनना चाहते थे मगर उनकी यह चाहत पूरी नहीं हुई। सुजाता, हकीकत, मदहोश, छाया, बाबुल विशेष फिल्में रहीं।
भूपिंदर सिंह (1940– 2022)
खास आवाज और विशिष्ट अंदाज के कारण भूपिंदर को हिंदी फिल्मों में काम मिला। मुंबई आने के बाद चेतन आनंद की फिल्म हकीकत में गाने का मौका मिला। वे गिटार बजाने में माहिर थे। उनकी इस कला का इस्तेमाल कई फिल्मों में हुआ।
जगजीत सिंह (1941–2011)
गजल की दुनिया के बादशाह जगजीत सिंह ने गायन के साथ हिंदी फिल्मों में संगीत निर्देशन का काम किया। हिंदी फिल्मों को खूबसूरत गजलों से संवारने का श्रेय जगजीत सिंह को जाता है।
हेमन्त कुमार (1920-1989)
बंगाली फिल्मों से शुरुआत। हिंदी में है अपना दिल तो आवारा और जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला लोकप्रिय गीत। प्यासा, साहिब बीवी और गुलाम, आनन्द मठ, बीस साल बाद, नागिन खास फिल्में।
शैलेन्द्र सिंह (1952)
शैलेंद्र सिंह ने अभिनय की पढ़ाई की लेकिन उनके नसीब में गायक बनना लिखा था। फिल्म बॉबी में ऋषि कपूर के लिए एक आवाज़ की तलाश उन पर आकर खत्म हुई। वे फिल्मों में ऋषि कपूर की आवाज बनकर उभरे।
सुरेश वाडेकर (1955)
सुरेश वाडेकर ने संगीतकार रविन्द्र जैन के मार्गदर्शन में हिंदी फिल्मों में अपनी शुरुआत की मगर उन्हें राज कपूर की फिल्मों से पहचान मिली। प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली के गीतों से सुरेश वाडेकर लोकप्रिय हुए।
एस पी बालसुब्रह्मण्यम (1946–2020)
एसपी बालसुब्रह्मण्यम को एक दूजे के लिए से हिंदी फिल्मों में पहचान मिली। उन्होंने सलमान खान के लिए कई सुपरहिट गीत गाए। बालसुब्रह्मण्यम मोहम्मद रफी के बड़े प्रशंसक थे।
मोहम्मद अजीज (1954–2018)
मोहम्मद अजीज मोहम्मद रफी के बड़े फैन थे। उनका गायन भी रफी से मिलता था। मनमोहन देसाई की फिल्म मर्द से उन्हें पहचान मिली। अस्सी के दशक में उनका जादू िसर चढ़कर बोला।
कुमार सानू (1957)
नब्बे के दशक में कुमार सानू ने संगीत जगत पर राज किया। वे किशोर कुमार से प्रेरणा लेकर फिल्मों में आए। आशिकी से सानू रातोरात स्टार बन गए। एक दिन में सबसे अधिक गाने रिकॉर्ड करने का िखताब।
उदित नारायण (1955)
संगीतकार राजेश रोशन ने हिंदी सिनेमा में पहला अवसर दिया। कयामत से कयामत तक ने पहचान दिलाई। दिल, जो जीता वही सिकंदर, कुछ कुछ होता है, डर, मोहब्बतें, तेरे नाम, राजा हिन्दुस्तानी, गदर उल्लेखनीय फिल्में रहीं।
सोनू निगम (1973)
सोनू निगम ने कम उम्र में ही स्टेज शो शुरू कर दिए थे। 1993 में आजा मेरी जान से शुरुआत। बेवफा सनम के गीत से कामयाबी मिली। रियलिटी शो सारेगामा को होस्ट कर अपनी विशेष पहचान बनाई।
अरिजीत सिंह (1987)
युवा पीढ़ी में सबसे लोकप्रिय गायक। आशिकी 2 के गीत तुम ही हो ने रातोरात स्टार बना दिया। हमारी अधूरी कहानी, कलंक, कबीर सिंह, तमाशा, केदारनाथ अरिजीत की लोकप्रिय फिल्में रहीं।
के.के. (1968–2022)
माचिस से हिंदी सिनेमा में शुरुआत करने वाले के.के. को हम दिल दे चुके सनम के गीत तड़प तड़प के इस दिल से लोकप्रियता हासिल हुई। गायन शैली से हिंदी सिनेमा के दर्शकों को अपना मुरीद बनाया।
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गायिका
शमशाद बेगम (1919–2013)
शमशाद बेगम ने अपनी आवाज और अदा से नई लकीर खींचने का काम किया। करियर में 6000 से ज्यादा गीत गाए। दीदार, मदर इंडिया, आरपार, अनमोल घड़ी, मुगल-ए-आजम कामयाब फिल्में रहीं।
गीता दत्त (1930–1972)
गुरुदत्त की पत्नी गीता दत्त ने अपने सीमित करियर में कुछ बेहद शानदार गीत गाकर अपनी पहचान बनाई। आरपार, सीआइडी, प्यासा, कागज के फूल, बाजी, साहिब, बीवी और गुलाम गीता दत्त की यादगार फिल्में रहीं।
लता मंगेशकर (1929–2022)
लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर ने गायन की पहली तालीम दी। पिता के निधन के बाद 13 साल की उम्र में लता ने अपने परिवार को संभाला और फिल्मों में काम करना शुरू किया।
आशा भोसले (1933)
महान गायिका लता मंगेशकर की छोटी बहन आशा भोसले को गायन विरासत में मिला था। संगीत निर्देशक ओ.पी. नय्यर ने सीआइडी से हिंदी फिल्मों में बड़ा अवसर दिया। आर.डी. बर्मन के साथ अपने करियर के श्रेष्ठ गीत गाए।
हेमलता (1954)
हेमलता बचपन से ही लता मंगेशकर की फैन थीं। मेहनत और रियाज का असर था कि हेमलता की आवाज लता मंगेशकर से मिलती थी। हेमलता ने कुछ बेहद खूबसूरत गाने गाकर अपनी पहचान बनाई।
सुमन कल्याणपुर (1937)
शंकर जयकिशन, नौशाद, एसडी बर्मन, रोशन, हेमन्त कुमार, चित्रगुप्त जैसे महान संगीतकारों के साथ काम किया। गीत, जब जब फूल खिले, सूरज, नसीब, अंदाज उनकी कामयाब फिल्में रहीं।
अलका याग्निक (1966)
नब्बे के दशक में अलका याग्निक ने सुपरहिट गीतों की झड़ी लगा दी। अलका को तेजाब के गीत एक दो तीन से जबरदस्त लोकप्रियता हासिल हुई। अलका अब तक कुल 25 भाषाओं में गीत गा चुकी हैं।
साधना सरगम (1969)
नब्बे के दशक में हिंदी फिल्मों में एक से बढ़कर गीत गाए। सुभाष घई की फिल्म विधाता से करियर की शुरुआत। हिंदी फिल्मों के साथ साथ तमिल और बंगाली फिल्मों में भी बेहद शानदार गीत गाए।
अनुराधा पौडवाल (1954)
लोकप्रिय भजन गायिका। टी सीरीज के अंतर्गत एक से बढ़कर एक फिल्मी गीत और भजन गाए। आशिकी अनुराधा पौडवाल के करियर की सबसे सफल फिल्म रही। दिल, सड़क, बेटा, साजन, राम लखन, उनकी हिट फिल्में रहीं।
श्रेया घोषाल (1984)
टीवी रियलिटी शो सारेगामा से लोकप्रिय होने वाली श्रेया को पहला अवसर संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्म देवदास में दिया। वे रातोरात स्टार बन गईं। बेमिसाल गायन के लिए चार बार राष्ट्रीय पुरस्कार और सात बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
सुनिधि चौहान (1983)
सुनिधि चौहान ने चार वर्ष की उम्र में संगीत प्रतियोगिताओं और लाइव शो में गाना शुरू किया था। अभिनेत्री तबस्सुम ने उनका परिचय संगीतकार कल्याणजी से करवाया, जिन्होंने सुनिधि चौहान की काफी मदद की।