भारत में सिनेमा का इतिहास बहुत पुराना है। हिंदी में पहली बोलती फिल्म आलम आरा से लेकर आज तक सुनहरे परदे पर कई कहानियां कही गईं, कुछ कहानियों ने बॉक्स ऑफिस पर सिक्के खनकाए, तो कुछ अपने कहन के ढंग से आज तक दर्शकों के दिल में बसी हुई हैं, कुछेक चुनिंदा फिल्में जिन्होंने निर्देशन, अभिनय, गीत-संगीत या अपनी प्रयोगधर्मिता के लिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अमिट छाप छोड़ी
1947 जुगनू, दिलीप कुमार, नूरजहां
दो भाई, शहनाई, परवाना आईं। ध्यान जूगनू ने खींचा। कॉलेज परिसर में रोमांस, और नाच गाने के लिए आलोचना हुई। 28 मिनट की फिल्म सेंसर कर दी। निर्देशक और नायिका पाकिस्तानी थे। इस पर भी विवाद हुआ।
1948 शहीद, दिलीप कुमार, कामिनी कौशल
चंद्रलेखा, मेला और जिद्दी को पछाड़ा। युवा स्वतंत्रता सेनानी राम (कुमार) का बचपन के प्रेम के लिए पिता के साथ महत्वाकांक्षी पुलिस अधिकारी के विरोध का सामना। राज कपूर निर्देशित पहली फिल्म आग भी इसी साल आई।
1949 बरसात, नरगिस, राज कपूर
महबूब खान की अंदाज को पछाड़ा। सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म बनी। प्रचार के लिए डॉ. एस.एम. पंडित ने नायक की बांह पर झूलती नायिका को दिखाया, जो बाद में आरके स्टूडियो का प्रसिद्ध लोगो बन गया।
1950 समाधि, अशोक कुमार, नलिनी जयवंत
देशभक्ति से भरपूर जासूसी थ्रिलर। उस साल सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म बनी। सुरैया-राज कपूर की जोड़ी दास्तान और नरगिस-दिलीप कुमार जोगन भी ऐसा रंग नहीं जमा पाई थी।
1951 आवारा, राज कपूर, नरगिस
भगवान दादा की अलबेला पसंद की गई, देव आनंद, गीता बाली, कल्पना कार्तिक को बाजी में दर्शकों की सराहना मिली लेकिन बाजी जीती राज-नरगिस की जोड़ी ने।
1952 आन, दिलीप कुमार, नादिरा
बैजू बावरा के संगीत का जादू था। देव आनंद-गीता बाली का जाल भी दर्शकों को खींच रहा था लेकिन आन के सामने गीता बाली-प्रदीप कुमार की देशभक्ति वाली फिल्म आनंद मठ भी फीकी ही रही, हालांकि आनंद मठ में गीता बाली के अभिनय को खूब सरहना मिली।
1953 दो बीघा जमीन बलराज साहनी, निरूपा रॉय
राज-नरगिस की जोड़ी एक बार फिर आह में थी पर दर्शकों का प्यार दिलीप-मीना कुमारी की फुटपाथ, अशोक कुमार-मीना कुमारी की परिणीता के साथ था। बीना रॉय और प्रदीप कुमार की अनारकली भी चली लेकिन बलराज साहनी की दो बीघा जमीन कालजयी क्लासिक रही।
1954 नागिन, वैजयन्ती माला, प्रदीप कुमार
आर पार, मिर्जा गालिब, बूट पॉलिश, टैक्सी ड्राइवर के बीच नागिन की टीआरपी उस दौर में भी उच्चतम स्तर पर थी। जैसी आज है। वैजयन्ती माला पर फिल्माए गीत और इसकी कहानी में दर्शकों को लंबे समय बांधे रखा।
1955 श्री 420, राज कपूर, नरगिस
मि. ऐंड मिसेज 55 के साथ गुरु दत्त अलग दिखाई दिए, झनक-झनक पायल बाजे के संगीत का जादू सिर चढ़ कर बोला, लेकिन भीड़ चारसौबीसी वाली अदाकारी देखने उमड़ती ही रही। देवदास थोड़ी पिछड़ गई।
1956 सीआइडी, देव आनंद, शकीला, वहीदा रहमान
अशोक कुमार, मीना कुमारी और सुनील दत्त वाली एक ही रास्ता, के साथ ही राज-नरगिस की जोड़ी लेकर आई चोरी-चोरी। फिल्में तो बहुत आईं लेकिन बॉक्स ऑफिस पर साल सूखा सा ही रहा। देव आनंद की सीआइडी का ही राज रहा।
1957 मदर इंडिया, नरगिस, सुनील दत्त, राजकुमार, राजेन्द्र कुमार
नया दौर, प्यासा, दो आंखें बारह हाथ के बीच परदे पर अपने ही बेटे बिरजू को गोली मार कर नरगिस ने सारी महफिल लूट ली। स्त्री सशक्तिकरण के आगे सब नतमस्तक हो गए।
1958 मधुमति, दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला
चलती का नाम गाड़ी में किशोर कुमार ने मधुबाला ने साथ खूब हंसाया। काला पानी और हावड़ा ब्रिज जैसी फिल्में भी आईं लेकिन पुनर्जन्म की कथा में जैसे चुंबक था, हिट शब्द को आखिर अपनी ओर खींच ही लिया।
1959 अनाड़ी, राज कपूर, नूतन
महिपाल-संध्या की नवरंग, माला सिन्हा-राजेन्द्र कुमार की धूल का फूल, गूंज उठी शहनाई इसी साल आई। सुजाता और अनाड़ी के बीच मुकाबला रहा, फ्लॉप कोई भी नहीं थी, लेकिन राज-नूतन की जोड़ी खिलाड़ी साबित हुई।
1960 मुगल-ए-आजम, दिलीप कुमार, मधुबाला, पृथ्वीराज कपूर
प्रेम कहानियों का साल था। चौदहवीं का चांद, बरसात की रात, दिल अपना और प्रीत परायी, लव इन शिमला, जिस देश में गंगा बहती है। मुगलकालीन ‘कनीज’ के प्रेम के आगे सब हार गए।
1961 गंगा जमुना, दिलीप कुमार, वैजयन्ती माला
शम्मी कपूर की आइकोनिक आवाज याहू वाली जंगली, काबुलीवाला, माया के साथ हम दोनों को बस तारीफ मिली, बॉक्स ऑफिस तोड़ सफलता नहीं। बाजी जीती दो भाई- एक डाकू, एक पुलिसवाले की कहानी ने।
1962 बीस साल बाद, बिश्वजीत, वहीदा रहमान
एक मुसाफिर एक हसीना, हरियाली और रास्ता, अनपढ़, संगीत सम्राट तानसेन, असली-नकली। एक से बढ़कर एक जोरदार कर्णप्रिय गीत-संगीत, पर साल रहा रहस्य रोमांच से भरी कहानी और बिश्वजीत-वहीदा के नाम।
1963 मेरे महबूब, राजेन्द्र कुमार, साधना
बंदिनी कालजयी फिल्म बन कर उभरी, लेकिन आश्चर्य कि मेरे महबूब अव्वल रही। दिल एक मंदिर, ताजमहल, फिर वही दिल लाया हूं जैसी फिल्में पीछे रह गईं।
1964 संगम, वैजयन्ती माला, राज कपूर, राजेन्द्र कुमार
कश्मीर की कली की खूबसूरत वादियां, भारत-चीन युद्ध दिखाती हकीकत और थ्रिलर वो कौन थी से ऊपर एक के मन की गंगा और दूसरे के मन की जमुना का। संगम खूब पसंद आया।
1965 गाइड, देव आनंद, वहीदा रहमान
विजय आनंद निर्देशित गाइड हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्म में शुमार हो गई। इसी साल आई मल्टीस्टारर वक़्त आज भी लोगों के जेहन में बसी हुई है। मनोज कुमार वाली शहीद भी आई।
1966 तीसरी मंजिल, शम्मी कपूर, आशा पारेख
मर्डर मिस्ट्री ने दाम कमाया लेकिन हीरामन बने राज कपूर ने तीसरी कसम से नाम कमाया। यह फिल्म इतिहास में दर्ज हो गई। वहीदा रहमान ने हीराबाई तो कपूर ने हीरामन की भूमिका में जान डाली।
1967 ज्वेल थीफ, देव आनंद, वैजयन्ती माला, अशोक कुमार, तनुजा
स्पाइ थ्रिलर उस वक्त ज्वेल थीफ के लिए इस्तेमाल किया गया था। भारत कुमार यानी मनोज कुमार की उपकार के साथ दिलीप कुमार की राम और श्याम की टक्कर थी। डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर जैसी भारी भरकम शब्द पर फिल्म बनी थी रात और दिन। केंद्रीय भूमिका में थीं नरगिस।
1968 पड़ोसन, सुनील दत्त, सायरा बानो, किशोर कुमार, महमूद
इसे हिंदी फिल्म इतिहास में बनी सर्वश्रेष्ठ कॉमेडी फिल्मों में से एक माना जाता है। सुनील दत्त की भोली अदा ने दिल जीत लिया। माला सिन्हा, धर्मेंद्र की आंखें ने रिकॉर्ड कमाई की। पहली ऐसी हिंदी फिल्म जिसकी शूटिंग बेरूत में हुई थी।
1969 आराधना, शर्मिला टैगोर, राजेश खन्ना
कहानी, गाने हर लिहाज से फिल्म खूब पसंद की गई। इसी साल सत्यकाम भी आई और भुवन शोम भी। उसकी रोटी जैसी अलग ढंग की फिल्म भी। भुवन शोम को आधुनिक भारतीय सिनेमा में मील का पत्थर माना जाता है।
1970 जॉनी मेरा नाम, देव आनंद, हेमा मालिनी
कन्नड़, तेलुगु और तमिल में रीमेक बने। पूरब और पश्चिम, खिलौना ने दर्शकों को आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया। दस्तक नवविवाहित जोड़े की अनूठी कहानी थी। इसी साल एक खास फिल्म आई चेतना जो यौनकर्मियों के पुनर्वास पर आधारित थी।
1971 आनंद, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन
“बाबू मोशाय...जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं” वाला संवाद और राजेश खन्ना की अदाकारी के सामने खुद राजेश खन्ना ही हाथी मेरे साथी, कटी पतंग में फीके पड़ गए। हरे रामा हरे कृष्णा ने जीनत अमान से परिचय कराया, कारवां के गाने सुपर हिट रहे।
1972 पाकीजा, मीना कुमारी, राज कुमार, अशोक कुमार, नादिरा
दो फिल्मों में नहीं, दो संवादों में मुकाबला था। राजकुमार ने “आपके पैर बहुत खूबसूरत हैं। इन्हें ज़मीन पर मत रखिएगा, मैले हो जाएंगे” कहा तो राजेश खन्ना ने इसी साल अमर प्रेम में “पुष्पा, आइ हेट टियर्स” बोला।
1973 जंजीर, अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, प्राण
सदी के महानायक का उदय का साल। एंग्री यंग मैन के सामने टीनएज लव स्टोरी बॉबी ने डट कर मुकाबला किया। बच्चन एक फिल्म से कहां मानने वाले थे, अभिमान, नमक हराम के साथ फिर हाजिर। धर्मेंद्र-राखी की जोड़ी ब्लैकमेल में जम ही गई।
1974 अंकुर, शबाना आजमी, अनंत नाग, साधु मेहर
तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार के अलावा, विदेश में 43 दूसरे पुरस्कार जीते। अवतार कृष्ण कौल के निर्देशन में आई 27 डाउन राष्ट्रीय पुरस्कार में श्रेष्ठ हिंदी फिल्म रही। रजनीगंधा ने लोकप्रिय फिल्म और क्रिटिक्स अवॉर्ड नाम किया।
1975 शोले, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, जया भादुड़ी, संजीव कुमार, अमजद खान
असमंजस का साल था। “तेरा क्या होगा कालिया” और “मेरे पास मां है” जैसे संवाद। गॉडफादर का हिंदी वर्जन धर्मात्मा, बोल्ड जूली के साथ बॉक्स ऑफिस पर जय संतोषी मां ने सफलता के झंडे गाड़े।
1976, नागिन, रीना रॉय, सुनील दत्त, जितेन्द्र, फिरोज खान
मंथन और मृगया आज भी क्लासिक हैं। लैला मजनू, चरस, कालीचरण और कभी-कभी के गाने, पटकथा में व्यावसायिकता थी। अमोल पालेकर और जरीना वहाब की कहानी और गानों ने चितचोर को हिट बनाया।
1977 अमर अकबर एंथनी, अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, विनोद खन्ना, परवीन बाबी, नीतू सिंह, शबाना आजमी
स्मिता पाटिल की भूमिका ने दर्शकों का ध्यान खींचा। दुल्हन वही जो पिया मन भाए में नई आई रामेश्वरी कहीं से भी कमतर नहीं रहीं।
1978 डॉन, अमिताभ बच्चन, जीनत अमान, प्राण
मुकद्दर का सिकंदर, त्रिशूल कमा रही थीं। सत्यम शिवम सुंदरम में जीनत ने धारा को मोड़ दिया। मैं तुलसी तेरे आंगन की में सात्विकता थी। अरविंद देसाई की अजीब दास्तान ने ध्यान खींचा।
1979, गोलमाल, अमोल पालेकर, उत्पल दत्त, बिंदिया गोस्वामी
सुहाग, मि. नटवरलाल, काला पत्थर और द ग्रेट गैम्बलर एक ही साल में आई थीं लेकिन अमोल-उत्पल की जोड़ी ने सबको किनारे कर दिया था। नूरी भी आई।
1980, कुर्बानी, फिरोज खान, जीनत अमान
आक्रोश ने अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में गोल्डन पीकॉक जीता। स्पर्श और अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है की अनदेखी समीक्षक नहीं कर पाए। कर्ज, दोस्ताना, शान, बर्निंग ट्रेन और कलयुग।
1981 एक दूजे के लिए, कमल हासन, रति अग्निहोत्री
उत्तर की यात्रा में कमल हासन ने नाम कमाया। कुमार गौरव लव स्टोरी, संजय दत्त रॉकी से युवाओं को लुभा रहे थे। दीप्ति नवल की ताजगी चश्मे बद्दूर में भा गई। नसीब, लावारिस, कालिया, याराना के बीच 29वें फिल्म फेयर अवॉर्ड में चक्र के लिए श्रेष्ठ अभिनेत्री और अभिनेता का खिताब नसीर-स्मिता को मिला।
1982 अर्थ, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, कुलभूषण खरबंदा
शबाना आजमी ने श्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय और फिल्म फेयर दोनों अवॉर्ड जीते। डिस्को डांसर, बाजार, शक्ति, नमक हलाल, खुद्दार, सत्ते पे सत्ता के साथ प्रेम रोग विधवा विवाह जैसे, सामाजिक बदलाव की साक्षी बनी। निकाह ने हलाला मुद्दे को उठाया। अंगूर ने लाजवाब कर दिया।
1983 जाने भी दो यारो, नसीरुद्दीन शाह, रवि वासवानी, भक्ति बर्वे
बेताब, हीरो ने सफलता पाई। कुंदन शाह की जाने भी दो यारो 'कल्ट' फिल्म बन गई। महाभारत दृश्य, पूरी फिल्म में सतीश शाह का लाश बने रहना आज भी श्रेष्ठ कॉमेडी दृश्यों में गिना जाता है। मंडी और अर्धसत्य समाज की कड़वी सच्चाई से सामना करा रहे थे। सदमा ने लोहा मनवाया।
1984 पार, शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह
श्रेष्ठ अभिनेत्री और श्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार। 35 साल के अनुपम खेर ने पहली फिल्म सारांश में 75 साल के बूढ़े की भूमिका निभाई। श्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार। पार्टी सराही गई।
1985 राम तेरी गंगा मैली, राजीव कपूर, मंदाकिनी
राज कपूर के निर्देशन की आखिरी फिल्म। कहानी के बजाय बोल्ड सीन को लेकर ज्यादा चर्चा। प्यार झुकता नहीं, अर्जुन और मेरी जंग ने बॉक्स ऑफिस पर रौनक रखी। थ्रिलर खामोश और त्रिकाल को प्रशंसा मिली।
1986 न्यू दिल्ली टाइम्स, शशि कपूर, शर्मिला टैगोर
पॉलिटिकल थ्रिलर की चर्चा रही। नगीना की श्रीदेवी और आखिरी रास्ता के बीच कड़ी टक्कर थी। अंकुश और एक रुका हुआ फैसला ने आर्ट सिनेमा को ठोस आधार दिया। नाम का गाना रुला रहा था, चमेली की शादी हंसा रही थी।
1987 मिस्टर इंडिया, अनिल कपूर, श्रीदेवी
इजाजत, मिर्च मसाला, सुस्मन और खुदगर्ज न आई होती, तो साख बचनी मुश्किल थी। आग ही आग, डाकू हसीना, हवालात, हिरासत, इंसानियत के दुश्मन, कुदरत का कानून, वतन के रखवाले शीर्षकों ने लुटिया ही डुबो दी थी।
1988 तेजाब, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित, चंकी पांडे
माधुरी की किस्मत चमक गई। कयामत से कयामत तक से खान युग के एक सितारे का उदय हो गया। नाम भले ही शहंशाह रहा हो, बच्चन जी ढल गए। खून भरी मांग से रेखा का मेकओवर छा गया।
1989 मैंने प्यार किया, सलमान खान, भाग्यश्री
बच्चन के तूफान को थाम दिया। राम लखन, त्रिदेव ने अच्छी कमाई की। परिंदा को उम्दा फिल्म की सूची से कोई निकाल नहीं पाया। चालबाज सराही गई लेकिन ऐलान-ए-जंग ने ज्यादा कमाए! कमला की मौत ने ध्यान खींचा।
1990 आशिकी, राहुल राय, अनु अग्रवाल
दोनों कलाकार वन फिल्म वंडर रहे। सन्नी बाबा के ढाई किलो के हाथ पर दिल भारी पड़ी। बागी, अग्निपथ से ज्यादा फायदे में रही। एक डॉक्टर की मौत सिस्टम पर करारे तमाचे की तरह आज भी मौजूद है।
1991 सौदागर, दिलीप कुमार, राज कुमार, मनीषा कोईराला
32 साल बाद दिलीप-राज की जोड़ी साथ आई। साजन के साथ सनम बेवफा और सड़क को तारीफ मिली। दो खान हीरो के बीच साधारण अजय की फूल और कांटे ने खूब दर्शक बंटोरे।
1992 जो जीता वही सिकंदर, आमिर खान, आयशा जुल्का, पूजा बेदी
खेल पर बनी उम्दा फिल्म। दीवाना में शाहरुख ने दम दिखाया। बेटा, शोला और शबनम हिट रही। अमिताभ ने खुदा गवाह में पूरी ताकत लगा दी और पास हो गए।
1993 बाजीगर, शाहरुख खान, काजोल
शाहरुख के खाते में पहली बड़ी हिट। डर से अभिनय का लोहा मनवाया। डेविड धवन ने आंखें से अच्छी खुराक परोसी। खलनायक का एक गाना आज तक चर्चा में रहता है। दामिनी बिना लटके-झटके ऐसी फिल्म बनी जिसे आज भी याद किया जाता है। मीनाक्षी की यादगार फिल्म।
1994 हम आपके हैं कौन, माधुरी दीक्षित, सलमान खान
नदिया के पार का चमक-दमक भरा रीमेक! मोहरा, राजा बाबू और तब्बू की पहली फिल्म चर्चित फिल्म विजयपथ। मम्मो को श्रेष्ठ हिंदी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार।
1995 दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे, शाहरुख खान, काजोल
करण अर्जुन और रंगीला आई। तकदीरवाला, टक्कर, पापी देवता, जल्लाद, गुंडा राज, आतंक ही आतंक से दर्शक क्या बॉलीवुड तक की रूह कांपी हुई थी।
1996 बैंडिट क्वीन, सीमा बिस्वास, मनोज बाजपेयी, निर्मल पांडे
यह आम दर्शकों के लिए नहीं थी। इसके बजाय राजा हिंदुस्तानी की चर्चा रही। फायर ने विवाद से ही प्रसिद्धि पा ली। अग्निसाक्षी में मनीषा कोईराला जम गईं, तो अक्षय कुमार खिलाड़ी बन कर उभरे। सरदारी बेगम कर्णप्रिय संगीत और हर दृश्य में विश्वसनीयता लिए थी।
1997 बॉर्डर, सनी देओल, सुनील शेट्टी, अक्षय कुमार
1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत दर्शकों को खूब भाई। दिल तो पागल है और परदेस के जरिये शाहरुख के खाते में हिट की संख्या में बढ़ोतरी होती रही। गुप्त में काजोल अलग अंदाज में आईं और छा गईं। आमिर ने इश्क के जरिये उपस्थिति बनाए रखी।
1998 सत्या, मनोज बाजपेयी, शेफाली शाह
करण जौहर कुछ-कुछ होता है लाए। शाहरुख, काजोल और रानी का परदे पर जादू चला भी मगर भीकू म्हात्रे आज तक दिमाग पर बना हुआ है। वह साल मनोज बाजपेयी ने अपने ही नाम रखा। लाख कोशिश के बाद भी म्हात्रे सा कोई नहीं।
1999 हम दिल दे चुके सनम, अजय देवगन, सलमान खान, ऐश्वर्या राय
ऐश्वर्या को ताल न चलने का गम न हुआ। हम दिल दे चुके सनम में नंदिनी की भूमिका भूलना आसान नहीं था। हम साथ-साथ हैं का जादू नहीं चला। सरफरोश में आमिर खान का जलवा कायम रहा।
2000 कहो ना प्यार है, ऋतिक रोशन, अमीषा पटेल
पापा रोशन का लॉन्चिंग पैड परफेक्ट साबित हुआ। हर युवा ने कॉलेज बंक किया। अरसे से चुप बैठे बच्चन बाबू ने मोहब्बतें में “परंपरा, प्रतिष्ठा, अनुशासन” बोल कर आजीवन मीम सामग्री मुहैया कराई। रिफ्यूजी भी आई।
2001 लगान, आमिर खान, ग्रेसी सिंह
गदर, लगान के बीच कांटे की टक्कर रही। ताजा हवा के झोंके की तरह दिल चाहता है ने फिल्म कहने के ढंग को बदल दिया। कभी खुशी कभी गम के साथ चांदनी बार और जुबैदा ने मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
2002 देवदास, शाहरुख खान, ऐश्वर्या राय, माधुरी दीक्षित
भंसाली ने फिर इस कहानी को कहा। सत्या के बाद कंपनी आई। कहने को तो मकड़ी बच्चों की फिल्म थी मगर बड़ों भी पसंद आई। संजीदा रेवती, संजीदा फिल्म मित्र माइ फ्रेंड लेकर आईं।
2003 मुन्ना भाई एमबीबीएस, संजय दत्त, ग्रेसी सिंह
आज भी नकल करने वाले 'मुन्ना भाई' कहलाते हैं। कल हो न हो और कोई मिल गया आईं। बुजुर्ग माता-पिता की कहानी बागबान के साथ अजय देवगन ने गंगाजल से साल को 'पवित्तर' कर दिया।
2004 मकबूल, इरफान, तब्बू, पंकज कपूर
शेक्सपियर के मैकबेथ का भारतीयकरण। फिल्म चली नहीं मगर चली तो चमेली और रेनकोट भी नहीं, लेकिन तीनों फिल्मों ने भारतीय फिल्म उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब समृद्ध किया। मैं हूं न और धूम ने भीड़ बंटोरी।
2005 नो एंट्री, सलमान खान, अनिल कपूर, बिपाशा बसु, ईशा देओल, लारा दत्ता
ब्लैक, इकबाल, हजारों ख्वाहिशें ऐसी, माय ब्रदर निखिल, मैंने गांधी को नहीं मारा जैसी फिल्में आईं। पहली और अपहरण फ्लॉप मगर चर्चा में रहीं।
2006 रंग दे बसंती, आमिर खान, कुणाल कपूर, सोहा अली खान
काजोल की कमबैक फना आई। डोर की मार्मिकता और खोसला का घोंसला की कहानी पसंद की गई। ओमकारा में सैफ को लंगड़ा त्यागी की अविस्मरणीय भूमिका भारद्वाज ने दी।
2007 वेलकम, अनिल कपूर, अक्षय कुमार, कैटरीना कैफ
ओम शांति ओम, चक दे इंडिया सफल रही। तारे जमीं पर ने मुरीद बना लिया। गुरु, भूल-भुलैया के साथ आई भेजा फ्राइ। जब वी मेट के चुलबुले गीतों और प्रयोगधर्मी फिल्म दस के साथ अधेड़ प्रेम की चीनी कम ने ध्यान खींचा।
2008 ए वेडनेसडे, नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, जिमी शेरगिल
कसी कहानी, उम्दा निर्देशन, मुंबई ब्लास्ट की पृष्ठभूमि। गजनी खूब चली। दस्विदानिया ने आंखें भर दीं। ओए लकी ओए से दिबाकर बनर्जी ने सिक्का जमाया।
2009 थ्री ईडियट्स, आमिर खान, माधवन, शर्मन जोशी, करीना कपूर
चेतन भगत का उपन्यास फिल्म में भी हिट रहा। भाई के दीवानों ने वॉन्टेड देखी। मार्डन देवदास की कहानी देव डी जिसने भी देखी, बस देखता ही रह गया।
2010 लव, सेक्स और धोखा, अंशुमान झा, नुसरत भरूचा, राजकुमार राव
कैमरे के मामले में कमाल के प्रयोग। भाई दबंग बने। किंग खान माइ नेम इज खान में दिखाई दिए। यूथेनेशिया पर गुजारिश ने ध्यान खींचा। रिश्तों की कहानी उड़ान की खूब चर्चा हुई।
2011 नो वन किल्ड जेसिका, विद्या बालन, रानी मुखर्जी, मायरा कर्ण
जेसिका लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म। जिंदगी न मिलेगी दोबारा आज भी युवाओं की सूची में सबसे ऊपर है। सिल्क स्मिता के जीवन को विद्या बालन ने डर्टी पिक्चर में खूबसूरती से उतारा। अंतरराष्ट्रीय समारोह में पहुंचने वाली द गर्ल इन येलो बूट्स भी इसी साल आई।
2012 गैंग्स ऑफ वासेपुर, मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, ऋचा चड्ढा
पुरस्कारों की बरसात के साथ ब्रिटिश न्यूजपेपर 'द गार्डियन' की 21वीं सदी में दुनिया भर की सौ बेहतरीन फिल्मों में शामिल भारत से एकमात्र एंट्री। एक था टाइगर, जब तक है जान के साथ पान सिंह तोमर आई। विकी डोनर नए सिनेमा की बेहतरीन उदाहरण बन कर उभरी।
2013 द लंच बॉक्स, इरफान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, निमरत कौर
पत्नी की मृत्यु के बाद एकाकी पुरुष, पति होते हुए भी एकाकी स्त्री और गफलत में पहुंचा स्वादिष्ट भोजन का डब्बा। इतनी सी कहानी, लेकिन दिल की गहराई तक उतरी। बी.ए. पास एक युवा के मजबूरी में सेक्स वर्कर बनने की कहानी थी। आंखों देखी में बाउजी यानी संजय मिश्रा की दुनिया ही अलग थी।
2014 क्वीन, कंगना रणौत, राजकुमार राव
बहुत समय पहले की बात है, एक एक्टिंग क्वीन थी, बाद में पंगा क्वीन में बदल गई। उन्होंने पहले ऐसी फिल्में दीं, जो लड़कियों के आत्मविश्वास सेंसेक्स में उछाल ले आईं। शेक्सपियर की रचना हैदर के लिए भी तालियां बजीं।
2015 बजरंगी भाईजान, सलमान खान, करीना कपूर
साल की सबसे बड़ी हिट के बाद भी पीकू और बाजीराव मस्तानी को खास नुकसान नहीं हुआ। दम लगा के हइशा ने हर बात को साधारण तरीके से कहा। मसान ने विकी कौशल के रूप में एक प्रतिभाशाली कलाकार दिया।
2016 दंगल, आमिर खान, फातिमा सना शेख
देश ही नहीं विदेश में भी नाम कमाया। सुल्तान का पहलवान जरा कमजोर रह गया। कैप्टन कूल धोनी की कहानी परदे पर दर्शकों ने चाव से देखी। कमाई भले कम रही हो लेकिन महिला सशक्तिकरण में आज भी पिंक का जिक्र होता है।
2017 हिंदी मीडियम, इरफान, सबा कमर
गुदगुदाने वाली फिल्म। साल के अंत तक टाइगर जिंदा हो कर लौट आया। सीक्रेट सुपरस्टार ने प्रशंसा बटोरी और टॉयलेटः एक प्रेम कथा ने शौचालय जैसे विषय को भी उठाया। लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का पर बवाल मचा।
2018 बधाई हो, आयुष्मान खुराना, नीना गुप्ता, गजराज सिंह
अधेड़ गर्भवती की कहानी में दर्शकों ने दिलचस्पी ली। पद्मावती पद्मावत नाम से परदे पर आई। अंधाधुन, पैड मैन, मंटो, तुंबाड़, स्त्री, अलग ढंग की फिल्में साबित हुईं। राजी में नई आलिया दिखाई दी।
2019 गली बॉय, रणवीर सिंह, आलिया भट्ट
कच्ची बस्ती से रैप स्टार बनने का ईमानदार सफर। कबीर सिंह चल निकले। उड़ीः द सर्जिकल स्ट्राइक का स्ट्राइक रेट अच्छा रहा। छिछोरे बस नाम के छिछोरे थे। गुड न्यूज में करीना से ज्यादा दिलजीत की बात हुई।
2020 तान्हाजी, अजय देवगन, काजोल
किसे पता था, महामारी दरवाजे पर दस्तक दे चुकी है। छपाक, बागी 3, शुभमंगल ज्यादा सावधान, थप्पड़ मल्टीप्लेक्स में आ पाईं। मार्च के बाद गुलाबो सिताबो और शकुंतला देवी को ओटीटी रिलीज से संतोष करना पड़ा।
2021 83, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण
भारत के पहले क्रिकेट विश्वकप की जीत और थिएटर में फिर से फिल्में रिलीज होने का जश्न एक साथ मना। सूर्यवंशी, चंडीगढ़ करे आशिकी, रूही, सरदार उधम सिंह और शेरशाह अच्छी फिल्में साबित हुईं।