बाबा रामदेव और उनके पतंजलि समूह के नाम जितनी सुर्खियां हैं, विवाद उससे कम नहीं। ताजा विवाद उनके कोरोनिल किट का है, जिसका धूमधड़ाके के साथ 23 जून को हरिद्वार में प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐलान के महज आठ दिनों बाद 30 जून को उसे कोरोना की दवा से कोरोना प्रबंधन किट बताना पड़ा। हालांकि बाबा रामदेव 30 जून को जब दूसरी बार मीडिया के सामने आए तो उनके चेहरे पर कुछ राहत के भाव थे। कोविड-19 के इलाज का दावा करने वाली पतंजलि की ‘कोरोनिल किट’ को लेकर विवादों की धुंध भले साफ नहीं हुई, लेकिन आयुष मंत्रालय ने उसकी बिक्री पर रोक नहीं लगाई थी। ‘कोरोनिल किट’ पर उठे विवाद को उन्होंने नया मोड़ देने की भी कोशिश की। उन्होंने कहा, “ड्रग माफिया और मल्टीनेशनल कंपनियों ने दवा का दुष्प्रचार किया। वे स्वार्थ के लिए योग, स्वदेशी और भारतीयता के खिलाफ माहौल बनाना चाहते हैं।”
पतंजलि को आयुर्वेद की नई पहचान दिलाने वाले रामदेव का दावा है कि उन्होंने आयुर्वेद के विकास और विस्तार को लेकर एक विशाल बुनियादी ढांचा खड़ा कर दिया है। आचार्य बालकृष्ण की अगुआई में 500 वैज्ञानिकों की टीम आयुर्वेद में लगातार शोध कर रही है। रामदेव कहते हैं, “हमने डेंगू से लेकर चिकनगुनिया और कई असाध्य रोगों के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल किया है। किसी भी दबाव में यह रुकने वाला नहीं।”
पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट की नई पेशकश ‘कोरोनिल किट’ को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब इसे लॉन्च करते हुए दावा किया गया कि इस किट में शामिल दवाएं श्वासरि वटी, कोरोनिल टैबलेट और अणु तेल कोरोना के प्रभाव से उबारने में सफल साबित हुई हैं। पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन की ओर से कहा गया कि करीब 100 लोगों पर क्लिनिकल ट्रायल में इसके प्रभाव का सफल परीक्षण किया गया है। लेकिन किट लॉन्च होने के कुछ घंटे बाद ही केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने इसके दावे पर सवाल उठाकर पूरी कहानी बदल दी। मंत्रालय की ओर से कहा गया कि पतंजलि के इस दावे के तथ्यों और वैज्ञानिक पहलुओं की जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने पतंजलि से इस दवा के बारे में जानकारी तलब की और जांच पूरी होने तक इसके प्रमोशन-विज्ञापन पर पाबंदी लगा दी। पतंजलि ने 2 जून और 6 जून 2020 को उत्तराखंड की लाइसेंसिंग अथॉरिटी के सामने अपनी दवाओं के ड्रग लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। दिव्य कोरोनिल टेबलेट प्रदेश सरकार की लाइसेंसिंग अथॉरिटी में श्वास संबंधी दिक्कतों और सभी तरह के बुखार में इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर रजिस्टर्ड है।
इसके हफ्ते भर बाद ही पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट ने दावा किया कि मंत्रालय ने दवा और उसके प्रभाव को कोविड 19 के प्रबंधन की दिशा में अच्छा कदम बताया है। रामदेव ने कहा, “क्लीनिकल ट्रायल के प्रोटोकॉल हमने नहीं बल्कि मेडिकल एक्सपर्ट ने बनाए हैं। उसी को ध्यान में रखते हुए हमने रिसर्च की।” बहरहाल, रिसर्च प्रोटोकाल और कोरोना मरीजों पर असर के विवादों को दरकिनार करते हुए यह दवा अब लोगों तक पहुंचने की तैयारी में है। कोरोना का इलाज करने वाली दवा के तौर पर नहीं, बल्कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा के रूप में।
कोरोनिल पर विवाद फिलहाल भले ही थमता दिख रहा है, लेकिन आयुष मंत्रालय ने पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन ट्रस्ट को अपनी इन दवाओं के प्रचार और विज्ञापन को लेकर सख्त हिदायतें दी हैं। मंत्रालय ने पतंजलि को अपने शोध को आगे बढ़ाने की अनुमति देते हुए साफ कर दिया है। उसे 21 अप्रैल 2020 को जारी आयुष गजट नोटिफिकेशन के प्रावधानों का पूरा ख्याल रखना होगा। इन दवाओं के पैकेज या लेवल पर कोविड-19 से बचाव का कोई दावा पेश नहीं किया जा सकता। इस विवाद के बाद पतंजलि का पूरा उत्साह आयुष मंत्रालय की उस चिट्ठी पर केंद्रित है, जो 30 जून को उसकी ओर से उत्तराखंड के आयुष और यूनानी सेवाओं की लाइंसेंस अथॉरिटी को भेजी गई है। इसमें मंत्रालय ने कहा है कि पतंजलि ने कोविड-19 के प्रबंधन की दिशा में जरूरी कदम उठाए हैं। बाबा रामदेव मंत्रालय की इसी चिट्ठी को क्लीन चिट के तौर पर पेश कर रहे हैं। उन्होंने बताया, “मंत्रालय ने कहा आप ‘क्योर’ शब्द का इस्तेमाल न करें। मैंने कहा ‘मैनेजमेंट’ कह लीजिए। उन्होंने कहा, शब्दों के जाल में मत पड़िए।”
बाबा का कारोबारी करिश्मा
बाबा रामदेव की चर्चा करते हुए यह याद रखना भी जरूरी है कि बीते दशक में उन्होंने भारत की सियासत के साथ कारोबार को भी काफी प्रभावित किया। 2006 में स्थापित पतंजलि आयुर्वेद एक ऐसे चमत्कारिक कारोबार के रूप में आगे बढ़ी कि इसने फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएससीजी) क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को तगड़ा झटका दिया। इसने आयुर्वेदिक दवाओं के साथ शुरुआत की और कारोबार को हर्बल टूथपेस्ट से लेकर कास्मेटिक उत्पादों और नूडल्स और जैम तक विस्तार दे दिया। दस सालों में कंपनी ने तकरीबन 10 हजार करोड़ का साम्राज्य खड़ा कर लिया। स्वदेशी के टैग ने पतंजलि के उत्पादों के लिए उर्वर जमीन बना दी। पतंजलि के कई उत्पाद आज बाजार में अपनी धाक जमा चुके हैं। टूथपेस्ट बाजार को पतंजलि ने ऐसा डगमगा दिया कि इस क्षेत्र की सभी कंपनियां हर्बल टूथपेस्ट का वर्जन लांच करने के लिए मजबूर हो गईं।
आयुर्वेद के लिए अवसर
ताजा विवाद के बीच आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा सिस्टम के बीच एक नई बहस शुरू हो गई है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय की कोशिशों को सराहा तो जा रहा है लेकिन इस क्षेत्र के जानकार खेल के नियम बदलने पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार के सहयोग के बिना आयुर्वेद की संपूर्ण संभावनाओं का उपयोग मुश्किल है। कोविड19 के दौर में सांस और खांसी की बीमारियों में इस्तेमाल की जाने वाली आयुर्वेदिक औषधियों का इस्तेमाल कर इसकी क्षमता का आकलन किया जा सकता है। प्रख्यात आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. सुनील कुमार जोशी कहते हैं, “आयुर्वेद सैकड़ों साल पुरानी चिकित्सा पद्धति है और इसने मानव जाति को न जाने कितनी बीमारियों से उबारा है। इसमें छिपी संभावना को लेकर संदेह नहीं है।” गुरुकुल कांगड़ी आयुर्वेदिक कॉलेज, हरिद्वार के विभागाध्यक्ष डॉ. जोशी का दावा है कि इस क्षेत्र में काफी गंभीर अध्ययन हो चुके हैं और इस विज्ञान पर भरोसा किया गया तो यह चिकित्सा के क्षेत्र में चमत्कारिक नतीजे दे सकता है। उनका मानना है कि यह समय आयुर्वेद की ताकत को नकारने नहीं स्वीकार करने का है। आयुष मंत्रालय बनने के बाद इस आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को महत्व तो मिला है लेकिन इसके शोध पर और अधिक जोर देने की जरूरत है। इससे हमारे प्राचीन विज्ञान की क्षमता के बारे में पूरी दुनिया को पता चलेगा।
विवादों का सिलसिला
बाबा रामदेव की कामयाबी की कहानियों में विवादों का एक लंबा सिलसिला रहा है। सबसे बड़ा विवाद 2005 में सामने आया जब उनकी कंपनी दिव्य योग फार्मेसी पर दवाओं में मानव कंकाल के इस्तेमाल का आरोप लगा। कंपनी की ओर से सफाई दी गई कि दवाओं में सीप के चूर्ण और जड़ी बूटी का इस्तेमाल किया जाता है और हड्डियों के इस्तेमाल की बात गलत है। फरवरी 2006 में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदॉस ने लोकसभा में कहा था कि दवाओं में मानव डीएनए पाया गया है, लेकिन एक महीने बाद ही उत्तराखंड सरकार ने दिव्य फार्मेसी को क्लिनचिट दे दी थी। 2012 में विदेशों से काला धन लाने के मुद्दे पर दिल्ली के रामलीला मैदान में रामदेव अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए। इसी दौरान लोकपाल आंदोलन में शरीक हुए बाबा पुलिस से बचने के लिए महिलाओं के कपड़े पहन धरनास्थल से भाग खड़े हुए। इसके अलावा फर्जी पासपोर्ट और अनियमितताओं की वजह से बाबा रामदेव के अनन्य सहयोगी बालकृष्ण को जेल जाना पड़ा। उनकी ओर से ऐसे बयान भी आए जिसे उनकी निराशा से जोड़कर देखा गया। एक बयान में उन्होंने कहा कि आजादी के 70 साल में किसी संन्यासी को भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया।
विवादों की बहुत लंबी है फेहरिस्त
2006 पतंजलि की जब शुरुआत हुई थी, तो उस समय बाबा रामदेव ने यह बयान दिया था कि योग के जरिए एड्स का भी इलाज किया जा सकता है। हालांकि उनके इस बयान पर उस वक्त की सरकार ने सख्त आपत्ति जताई थी।
2015 पतंजलि ने दिव्य पुत्रजीवक बीज नाम से बांझपन को दूर करने वाला उत्पाद बाजार में लांच किया था। कुछ पतंजलि फार्मेसी स्टोर से ये उत्पाद यह कहकर बेचे गए कि इसके इस्तेमाल से लड़का पैदा होगा। हालांकि उस समय आयुष मंत्रालय ने यह कहकर उनका बचाव किया था कि उत्पाद का नाम एक जड़ी-बूटी के नाम पर रखा गया है।
2017 मैगी विवाद के बीच पतंजलि ने आटा नूडल्स लांच किया था। लेकिन इसके लांच होते ही विवाद खड़ा हो गया। असल में पतंजलि नूडल्स के पैकेट पर जो एफएसएएआई का लाइसेंस नंबर लिखा हुआ था, उससे खुद रेग्युलेटर एफएसएआई ने पल्ला झाड़ लिया। उस वक्त रेग्युलेटर की ओर से बयान आया था कि जिस उत्पाद की मंजूरी ही नहीं दी गई, उसे लाइसेंस कैसे दिया दिया जा सकता है। बाद में नियमों की अवलेहना करने पर पतंजलि को नोटिस दिया गया।
2017 सेना की कैंटीन में बिकने वाले आंवला जूस को प्रतिबंधित कर दिया गया था। सेना का मानना था कि पतंजलि के आंवला जूस इस्तेमाल के लिए अच्छे नहीं हैं। ऐसे में सभी स्टोर्स से उसकी बिक्री को रोक दिया गया ।
2018 पतंजलि के ऊपर यह आरोप लगा कि वह कुछ दवा उत्पादों पर आने वाले वर्षों की मैन्युफैक्चरिंग डेट डाल रही है। उसी साल उसे स्वदेशी ऐप की लॉन्चिंग की योजना को भी ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।