अठारहवीं सदी के अंत में हुई फ्रांसीसी क्रांति के दौरान स्विस पत्रकार और चिंतक जॉक माले दु पान ने एक मशहूर पंक्ति अपने एक निबंध में लिखी थी, ‘क्रांति अपनी संतानों को शनि की तरह निगल जाती है।’ कालांतर में अलग-अलग किस्म की राजनीतिक क्रांतियों और उनकी विफलता के संदर्भ में इस उक्ति का प्रयोग कई तरह से हुआ, लेकिन आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के संदर्भ में यह वाक्य पूरी तरह सच साबित होता दिख रहा है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस वैसे तो पचास के दशक में ही आ गया था, लेकिन चौथी औद्योगिक क्रांति के रूप में इसे हाल में ही परिभाषित किया जाने लगा है। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने अक्टूबर 2016 में कहा था, ‘पिछले 10 वर्ष दुनिया को मोबाइल के हिसाब से ढालने में खर्च हुए। अगले 10 वर्ष में हम एआइ की दुनिया में जा चुके होंगे।’ इस कथन को भी अब छह साल बीत चुके हैं। विडंबना देखिए कि गूगल के लोकप्रिय ईमेल यानी जीमेल को बनाने वाले पॉल बचेट कह रहे हैं कि अधिकतम दो साल के भीतर एआइ गूगल को ही खत्म कर देगा।
पिछले दो-तीन महीने में इस किस्म की कई भयावह चेतावनियां दी जा चुकी हैं। इन चेतावनियों के केंद्र में है नवंबर 2022 में लॉन्च किया गया चैट जीपीटी (चैट जनरेटिव प्री-ट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर) नाम का एक एआइ चैटबॉट, जिसे ओपेन एआइ नाम की अलाभकारी संस्था ने बनाया है। सबके लिए सुलभ होने के दो महीने के भीतर ही चैट जीपीटी के माध्यम से आज कोई कविता लिख रहा है, कोई खबर, कोई परीक्षा में परचा भर रहा है, कोई पीएचडी की थीसिस लिख रहा है तो कोई कोड लिख रहा है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि इनसानी कामों का दायरा कम होता जा रहा है, लोग बेरोजगार हो रहे हैं और कंपनियां एआइ में निवेश कर के बची-खुची नौकरियों को भी खाने की तैयारी में जुट गई हैं।
माइक्रोसॉफ्ट ने 2023 की शुरुआत में जो बड़े पैमाने पर अपने यहां छंटनी की है, उसके साथ ही ओपेन एआइ में 10 अरब डॉलर का निवेश करने की भी घोषणा की है। 2015 में सैन फ्रांसिस्को में खुली ओपेन एआइ की लैब में माइक्रोसॉफ्ट पहले ही तीन अरब डॉलर की रकम लगा चुका है। चैट जीपीटी के बाजार में आते ही सुंदर पिचाई ने गूगल में ‘कोड रेड’ जारी किया यानी खतरे की घंटी बजा दी। उन्होंने चैट जीपीटी को टक्कर देने के लिए गूगल के भीतर कम से कम 20 एआइ प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया है। इसी साल होने वाली गूगल की डेवलपर कॉन्फ्रेंस में वे इसके विवरण जारी करने वाले हैं।
‘विंडोज ऑन द वर्कप्लेस’ में जोन ग्रीनबॉम ने लिखा था कि कंप्यूटर को अपनी तरह सक्षम बनाकर मनुष्य अपने लिए गड्ढा खोद रहा है
जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में चैट जीपीटी आठ लाख नौकरियां खा जाएगा। ये नौकरियां केवल विदेशी और बड़ी कंपनियों में नहीं जाएंगी बल्कि देश के भीतर भी कुछ कंपनियां चैट जीपीटी को लेकर अपनी योजनाएं बना रही हैं। जनवरी 2023 में ही यह खबर आई है कि भारत की सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस ने 2015 में ओपेन एआइ में निवेश कर दिया था। इस बारे में 2015 में ही एक ब्लॉगपोस्ट में कंपनी के एक अधिकारी ने लिखा भी था।
जिन क्षेत्रों में सबसे पहले नौकरियां जाएंगी, उनमें पत्रकारिता, मीडिया, कंटेंट राइटिंग, ग्राफिक और सॉफ्टवेयर डिजाइन, क्लासरूम शिक्षण, वित्तीय क्षेत्र और मेडिकल सेवाएं हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी रोपड़) में कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष सुदर्शन आयंगर लिखते हैं: ‘मेरे दस पीएचडी छात्रों को अपने पहले परचे के लिए कोड लिखने में वर्षों लगे। हूबहू वही कोड चैट जीपीटी दस सेकंड से कम वक्त में लिख दे रहा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि बड़े पैमाने पर छंटनी होने वाली है। मेरा खयाल है कि 99 प्रतिशत सॉफ्टवेयर नौकरियां जल्द ही लुप्त हो जाएंगी। मेरी राय में इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो को सबसे बड़ा झटका लगेगा।’
रोशेस्टर इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कंप्यूटिंग ऐंड इनफॉर्मेशन साइंस के अशोसिएट डीन पेंगचेंग शी के हवाले से न्यूयॉर्क पोस्ट की एक खबर कहती है, ‘एआइ सफेदपोश नौकरियों की जगह ले रहा है। इसे कोई भी रोक नहीं पाएगा। इसे भेडि़ये की हुआं हुआं मत समझिए, भेडि़या आपके दरवाजे पर खड़ा है।’
कुछ जानकारों का मानना है कि इस मामले में बहुत घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि चैट जीपीटी को प्रशिक्षित होने में अभी वक्त लगेगा। उसके भीतर अभी बहुत सी गड़बडि़यां हैं। इसके अलावा आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के तीन चरणों में अभी हम पहले चरण में ही हैं।
ऐसी बातें तब भी कही जा रही थीं जब भारत में कंप्यूटरीकरण का दौर चल रहा था। जो लोग कंप्यूटरों का विरोध कर रहे थे उन्हें प्रगति-विरोधी कह कर खारिज किया गया था। हमें बताया गया था कि कंप्यूटर मनुष्य की जिंदगी को आसान बना देगा और सुविधाओं को सुलभ बना देगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि कंप्यूटर ने हमारी जिंदगी को आसान बनाया है लेकिन यह सवाल उन कंप्यूटर इंजीनियरों से जुड़ा है जिन्होंने ऐसा संभव किया।
‘विंडोज ऑन द वर्कप्लेस’ में जोन ग्रीनबॉम ने 2004 में ही विस्तार से समझाया था कि एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर जब कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर काम करता है तो उसे पता नहीं होता कि वाकई उसके श्रम का मूल्य क्या है, वह किसके लिए काम कर रहा है, क्या बना रहा है और वह उत्पाद किसके हित में काम आएगा। यहां पूरी तरह अपने श्रम के साथ उसका कटाव हो जाता है। कुल मिलाकर उसका बनाया उत्पाद बाइनरी अंकों में होता है जिसका कोई अर्थ नहीं होता। यही उत्पाद उसके खिलाफ काम करता है और अंत में उसे ही बेदखल कर देता है क्योंकि श्रम की प्रक्रिया में वह श्रमिक मशीन को अपनी जगह लेने के लायक बना रहा होता है। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के ताजा औजार चैट जीपीटी के मामले में बिलकुल यही घटा है। मनुष्य की बनाई चीज ने खुद मनुष्य को ही अप्रासंगिक बनाने की तैयारी कर ली है और दिलचस्प यह है कि न केवल मुनाफा कमाने वाले कारोबार बल्कि सामान्य उपभोक्ता भी इसे मजबूत किये जा रहे हैं क्योंकि यह हमसे ही सीखता है।
विडंबना यह है कि टेक जगत में आज जिन लोगों की छंटनी हो रही है, वे शायद इस विरोधाभास को नहीं समझ रहे हैं। वे उसे निजी करियर का संकट मान रहे हैं जबकि उनका बुनियादी प्रशिक्षण और उसमें सारा निवेश ही उनकी नौकरी को एक न एक दिन खत्म करने के लिए किया गया था।
फिलहाल एआइ और चैट जीपीटी को लेकर चिंता भले रोजगारों तक सीमित दिख रही हो, लेकिन मस्तिष्क नियंत्रण के संदर्भ में इसके निहितार्थ बहुत व्यापक और खतरनाक हैं। ओपेन एआइ को जिन लोगों ने शुरू किया था उनमें टेस्ला और ट्विटर के मालिक एलॉन मस्क भी एक थे, जो बाद में इस संस्था से अलग हो गए। उन्होंने न्यूरालिंक नाम की एक कंपनी शुरू की जिसमें मनुष्य के दिमाग और कंप्यूटर को आपस में जोड़ने पर काम चल रहा है। इसी तरह अमेरिका स्थित एमआइटी की मीडिया लैब में भी एक भारतीय छात्र ने केवल सोचने के आधार पर इंटरनेट चलाने की तकनीक विकसित की है जिसमें सवाल पूछने पर इंटरनेट सीधे दिमाग को जवाब देता है।
साठ के दशक में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए की एमके अल्ट्रा परियोजना में आदमी के दिमाग को नियंत्रित करने पर कुख्यात काम हुआ था। बाद में उसे रोक दिया गया। औद्योगिक क्रांति के मौजूदा एआइ दौर में यह पागलपन फिर से परवान चढ़ चुका है। अभी तो सिर्फ नौकरियां जा रही हैं। वह समय दूर नहीं जब स्वतंत्र और स्वायत्त ढंग से सोचने की मनुष्य की क्षमता को ही हर लिया जाएगा। तीन साल पहले शंघाई में वर्ल्ड आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस कॉन्फ्रेंस में इस तरह की बातें खुलकर हो चुकी हैं, जहां अलीबाबा के मालिक जैक मा और इलॉन मस्क के बीच हुई बहस काफी चर्चित हुई थी।
उसी कॉन्फ्रेंस के दौरान दिए एक इंटरव्यू में दार्शनिक स्लावोज जिजेक ने कहा था कि मनुष्य की चेतना को क्लाउड कंप्यूटिंग के साथ जोड़ने की एआइ प्रौद्योगिकी न केवल निरंकुश सत्ताओं और मस्तिष्क नियंत्रण का खतरा पैदा करेगी, बल्कि इनसानी रिश्तों के मूल सत्व को ही नष्ट कर देगी। वैसे भी, एलॉन मस्क मान चुके हैं कि कंप्यूटर इनसान से ज्यादा स्मार्ट हो चुके हैं। ऐसे में साफ मतलब निकल रहा है कि डिजिटल क्रांति आने वाले दिनों में अपनी ही संतानों को पूरी तरह निगल जाएगी- केवल उनके रोजगार और मस्तिष्क को नहीं, भावनाओं को भी।