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बिहार: नंबर दो की लड़ाई

जद-यू में नीतीश के बाद दूसरे अहम नेता बनने की छिड़ी जंग
पटना में जदयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार के साथ ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता दल-यूनाइटेड के निर्विवाद नेता हैं। उनके नेतृत्व पर सवाल उठाने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं है, लेकिन उनकी पार्टी में नंबर दो कौन है, इस पर पार्टी में अंदरूनी जंग चल रही है। जहां नीतीश सहयोगी पार्टी भाजपा पर नियंत्रण बहाल करने के लिए नई रणनीतियां तैयार करने में लगे हुए हैं,  जद (यू) के वरिष्ठ नेताओं की एक तिकड़ी अपने-अपने तरीके से संगठन में खुद को सबसे शक्तिशाली साबित करने में लगी हुई है, जिसमें केंद्रीय इस्पात मंत्री आर.सी.पी. सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह शामिल हैं।

ये तीनों नेता एक-दूसरे को शह और मात देने में व्यस्त हैं। पूर्व आइएएस अधिकारी आरसीपी को दो दशकों से मुख्यमंत्री के प्रति सबसे वफादार माना जाता है। कुशवाहा और ललन की गणना भी उनके करीबी नेताओं में होती है, इसके बावजूद कि अतीत में दोनों के साथ मुख्यमंत्री के कटु मतभेद भी रहे हैं। फिलहाल, तीनों नेताओं ने 2020 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद जद-यू को बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनाने का संकल्प लिया है, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते उनके बीच खींचतान जारी है। लिहाजा, वे अलग-अलग बैठकों, रैलियों और यात्राओं के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं।

इसकी शुरुआत इस साल जुलाई में नरेंद्र मोदी सरकार में जद-यू के एकमात्र मंत्री के रूप में आरसीपी के शपथ लेने के बाद हुई। माना जा रहा था कि आरसीपी और ललन दोनों को केंद्रीय मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन आरसीपी को मौका मिला। जदयू से केवल एक मंत्री का बनाया जाना आश्चर्य से कम नहीं था क्योंकि नीतीश ने 2019 के आम चुनाव के बाद जदयू को एक मंत्री पद की पेशकश ठुकरा दी थी।

ललन ने आरसीपी पर परोक्ष रूप से दोष मढ़ने की कोशिश की, क्योंकि तब वे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। उन्होंने कहा, “यह पार्टी अध्यक्ष का विशेषाधिकार है। 2019 में केंद्रीय मंत्रालय में शामिल नहीं होने का निर्णय तब लिया गया था जब नीतीश अध्यक्ष थे।” इशारा यह था कि आरसीपी ने पार्टी की मर्जी के खिलाफ एक मंत्री पद स्वीकार किया।

आरसीपी ने कहा कि सब कुछ नीतीश की सहमति से हुआ है। उन्होंने जोर दिया कि वे पार्टी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री की दोहरी जिम्मेदारियां निभाने को तैयार हैं। लेकिन, नीतीश ने ललन को पार्टी अध्यक्ष बनाकर मानो प्रतिद्वंद्वी खेमों के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया।

पार्टी में अंदरूनी कलह तब खुलकर सामने आई जब अगस्त में ललन राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद दिल्ली से पटना लौटे। उस दौरान किसी भी पोस्टर या बैनर में आरसीपी की तस्वीरें नहीं दिखीं। दस दिन बाद, जब आरसीपी केंद्रीय मंत्री बनने के बाद पहली बार दिल्ली से पटना आए तो उनके समर्थकों ने ललन को पार्टी के पोस्टर और बैनर पर जगह नहीं दी।

अंदरूनी कलह का एक तीसरा कोण भी है। ये हैं उपेंद्र कुशवाहा, जिन्होंने इस साल की शुरुआत में अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जद-यू में विलय कर दिया था और वे संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए थे। उनकाे जद-यू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना लगभग तय माना जा रहा था। लेकिन ललन अध्यक्ष बनाए गए। कुशवाहा उसके बाद से राज्यव्यापी दौरा कर रहे हैं और उनके समर्थकों उन्हें कुछ जगहों पर भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रहे हैं ।

इस बीच नीतीश ने पार्टी में कलह से इनकार किया है। उनका कहना है कि ललन को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आरसीपी ने दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किया था। ललन भी कहते हैं, “जदयू में सिर्फ एक खेमा है-नीतीश खेमा और हम सब पार्टी को बिहार में फिर से नंबर 1 बनाने को प्रतिबद्ध हैं।”   

हालांकि विपक्ष इस बात पर जोर दे रहा है कि जद-यू में सत्ता के लिए घमासान चल रहा है। राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ी उम्मीद के साथ अपनी पार्टी का जदयू में विलय किया था। वे कहते हैं, "वे जद-यू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए हैं, यह ऐसा पद है जो पार्टी संविधान में मौजूद ही नहीं है।"

लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान कहते हैं कि जद-यू विभाजन की ओर बढ़ रहा है, “पार्टी में हर खेमा अपने वर्चस्व में जुटा है। इसकी वजह से नीतीश सरकार अपना पूरा कार्यकाल पूरा नहीं करने वाली है और बिहार में मध्यावधि चुनाव होना तय है।"

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