आजकल शादी के गहने संस्कृति और कारोबार के बीच पुल की तरह काम करते हैं। सदियों पुरानी परंपराओं को आधुनिक अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ने का काम जेवर कर रहे हैं। दक्षिण भारत के टेंपल आभूषण, राजस्थान की मीनाकारी और पोल्की डिजाइन परंपरा और शिल्प कौशल का बेहतरीन उदाहरण हैं। ये आभूषण दुल्हन के गहनों का हिस्सा होते हैं और अक्सर पारंपरिक धरोहर के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत के रूप में आगे बढ़ते हैं। इस निरंतरता से कारीगरी की परंपराएं भी बनी रहती हैं। ये अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
शादी के आभूषण वैश्विक आभूषण बाजार का अहम हिस्सा हैं। भारत के कुल राजस्व में यह उद्योग 60-70 प्रतिशत का योगदान देता है। हर साल गहलों का अरबों डॉलर का कारोबार होता है। यह शादी के बजट का अहम हिस्सा होते हैं। इसमें पारंपरिक सोने के आभूषण, हीरे से सजे डिजाइन, जड़ाऊ जेवर और नई शैली के हल्के जेवर भी आजकल शामिल होते जा रहे हैं। इसका आर्थिक प्रभाव आभूषण क्षेत्र से कहीं आगे बढ़कर है। सोने, हीरे और रत्नों की मांग वैश्विक खनन के व्यापार को बढ़ावा देती है। आभूषण निर्माण से कुशल कारीगरों को रोजगार मिलता है और यह उन स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को मजबूती देता है जो विशिष्ट शैलियों और तकनीकों में माहिर होते हैं।
शादी के आभूषण खुदरा और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों को भी आगे बढ़ाते हैं। हालांकि पारंपरिक स्टोर आज भी लोकप्रिय हैं, लेकिन ई-कॉमर्स अब लोगों तक व्यक्तिगत विकल्प पहुंचाते हैं। लैब-ग्रोन डायमंड्स और टिकाऊ सामग्री की बढ़ती मांग उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं और नवाचार को दर्शाती है। वैश्विक स्तर पर, हीरे की मांग बढ़ती जा रही है। चाहे वह प्राकृतिक हो या लैब ग्रोन। इसमें हर साल 3-5 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है। शादियां इस मांग को और बढ़ा देती हैं। आजकल की दुल्हनें पारंपरिक भारी आभूषणों की जगह ऐसे जेवर पसंद करती हैं, जो वे रोजमर्रा में पहन सकें। इसका सबसे बड़ा कारण लड़कियों का कामकाजी होना है। इस श्रेणी में लड़कियां स्टेटमेंट नेकलेस, स्टैकबल बैंगल्स और छोटी अंगूठी को तरजीह दे रही हैं। लैब ग्रोन डायमंड अब शादी के आभूषणों में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं क्योंकि ये किफायती होते हैं। किफायती होने से मध्यम वर्ग भी इसे खरीद कर हीरा पहनने का अपना शौक पूरा कर रहा है। 2023 में ‘द नॉट रियल वेडिंग्स स्टडी’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 46 प्रतिशत जोड़ों ने अपनी सगाई की अंगूठियों के लिए लैब ग्रोन डायमंड चुने। 2019 में इसका प्रतिशत सिर्फ 12 था। ये डायमंड दिखने में प्राकृतिक हीरे की तरह ही दिखते हैं।
आम व्यक्ति देख कर पता नहीं लगा सकता कि ये लैब ग्रोन हैं या प्राकृतिक हीरे। इनकी चमक भी बिलकुल प्राकृतिक हीरे की तरह ही होती है। पहले शादी में दुल्हनें सिर्फ सोने के जेवर खरीदती थीं। लेकिन अब सोने के एक सेट के साथ हीरे का सेट खरीदना जैसे अनिवार्य हो गया है। सगाई की अंगूठियों में हीरे का चलन तेजी से बढ़ा है। इसमें भी कई बार डबल लेयर हीरे की अंगूठियां ज्यादा पसंद की जाने लगी हैं।
भारतीय शादी के आभूषणों की डिजाइन वैश्विक पहचान प्राप्त कर चुके हैं। प्रवासी भारतीय भी यहीं से जेवर खरीदना पसंद करते हैं। इसके पीछे स्पष्ट कारण है यहां की कुशल कारीगरी। आजकल अंतर राज्यीय शादियां होने से भी जेवरों की रेंज को बढ़ा दिया है। अलग-अलग राज्यों से आने वाले जोड़े, दूसरे राज्य के जेवर की डिजाइन को तरजीह दे रहे हैं। इस तरह से जेवर के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी हो रहा है।
जैसे पश्चिम बंगाल की कोई लड़की यदि बिहार के किसी लड़के से शादी कर रही है, तो वह चाहती है कि बिहार के पारंपरिक डिजाइन का कोई एक जेवर जरूर उसके संदूक में हो। कोलकाता के जेवरों की डिजाइन वैसे भी पूरे भारत में मशहूर है। यहां के कारीगर पूरे भारत में जेवर बनाने का काम करते हैं।
आजकल एक और ट्रेंड बढ़ रहा है। शादी के जेवर खरीदने के लिए परिवार जयपुर जा रहे हैं। यहां की पोल्की और जड़ाऊ जेवर का कोई तोड़ नहीं है। चूंकि शादी का जेवर एक ही बार बनता है इसलिए परिवार दिल खोल कर इस पर पैसे खर्च कर रहे हैं।
(सह-संस्थापक, हीरा-द जूलरी ट्रंक)