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11 जुलाई 2022 · JUL 11 , 2022

आवरण कथा/अग्निपथ योजना: तोड़ भर्ती के खौफ से फूटी ज्वाला

सेना की भर्ती की नई योजना को लेकर शक-शुबहे कई, बाद में दी गई रियायतों को भले पूर्व नियोजित कहा जाए मगर अभी भी उसमें पेंच कई, मोर्चे पर अब किसान और विपक्षी पार्टियां भी आ डटीं
पथ पर अग्निः प्रदर्शनकारियों ने पटना में फरक्का एक्सप्रेस में आग लगा दी

“सालों से आर्मी की तैयारी कर रहे हैं। अब पुरानी परीक्षा रद्द की जा रही है। हम लोगों का क्या होगा सर, बताइए ना, मर जाएं! मेरी उम्र 20 साल है। किसी एक चीज की तैयारी कर सकते हैं, बार-बार तैयारी नहीं कर सकते...”

 

“हमारा सपना फौज में जाने का है। पुलिस या सीएपीएफ में जाना हो तो सीधे वहीं क्यों न जाएं। घूम कर क्यों जाएं। तीन-चार साल मेहनत करके बच्चे तैयार होते हैं और उसके बाद उन्हें सिर्फ चार साल की नौकरी मिलेगी...”

 

सरकार की तरफ से 14 जून को घोषित ‘अग्निपथ’ योजना के विरोध में प्रदर्शन कर रहे दो युवकों की ये प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि आने वाले दिनों में इस योजना को वे किस तरह लेंगे। योजनाकारों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि योजना के नाम को सार्थक करते हुए पूरा देश ‘अग्निपथ’ पर चल पड़ेगा। बिहार और उत्तर प्रदेश समेत एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में योजना के खिलाफ प्रदर्शन हुए, कई ट्रेनों और बसों में आग लगा दी गई, अनेक जगहों पर पथराव हुए, सैकड़ों ट्रेनें रद्द की गईं, अनेक गिरफ्तारियां भी हुईं। अकेले बिहार में 16 से 20 जून तक 161 एफआइआर दर्ज हुईं और 922 लोग गिरफ्तार किए गए। वहां बेतिया में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और उपमुख्यमंत्री रेणु देवी के घर पर भी हमला किया गया। विरोध को विपक्षी दलों का भी समर्थन मिल रहा है। किसान नेता राकेश टिकैत ने योजना के खिलाफ 30 जून को देशभर में आंदोलन का ऐलान किया है। इससे पहले 20 जून को भारत बंद का भी आयोजन किया गया। योजना को अवैध बताते हुए एडवोकेट एम.एल. शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की है।

हाल के वर्षों में सेना में 60 फीसदी से अधिक भर्तियां आठ राज्यों से हुई हैं। ये राज्य हैं पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड। शायद यही कारण है कि इन राज्यों में विरोध प्रदर्शन अधिक हुए हैं।

तोड़ वापस लोः धनबाद में धरने पर युवा

तोड़ वापस लोः धनबाद में धरने पर युवा

सरकार ने जिस तरह योजना का ऐलान किया और फिर विरोध बढ़ने पर रोजाना नई-नई घोषणाएं करती रही, वह एक बार फिर उसकी आधी-अधूरी तैयारी को दर्शाता है। सरकार भले कह रही हो कि सशस्‍त्र बलों के साथ दो साल से इस योजना पर चर्चा हो रही थी, लेकिन जानकार मानते हैं कि बाद में जितनी घोषणाएं की गईं, अगर तैयारी के साथ उन सबको एक पैकेज के रूप में बताया जाता तो शायद युवाओं में इतना रोष नहीं होता। विरोध शुरू होने पर पहले तो मंत्रियों को योजना के ‘फायदे’ समझाने में लगाया गया, लेकिन प्रदर्शन तेज होने पर उनकी जगह सेना के अधिकारियों ने ली। इसके पीछे शायद यह सोच रही हो कि सेना का विरोध कुछ कम होगा।

दूसरे देशों के नियम

लेकिन मंत्रियों के बोल भी स्थिति को शांत करने के बजाय भड़काने वाले रहे। पूर्व सेना प्रमुख और केंद्रीय मंत्री जनरल वी.के. सिंह ने कहा, “सेना में जाना ऐच्छिक है, अनिवार्य नहीं। जिन्हें अग्निपथ भर्ती योजना मंजूर नहीं वे सेना में न जाएं।” उन्होंने कहा, “आपको बोल कौन रहा है आने के लिए? आप बस-ट्रेन जला रहे हैं। किसी ने आपसे कहा कि आपको फौज में लेंगे? पहले आप हमारे मापदंड पर खरे उतरें, उसके बाद फौज में लेंगे।” जाहिर है कि ऐसे बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रिया होनी ही थी। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने ट्वीट किया, “जो आदमी अपनी रिटायरमेंट बढ़वाने के लिए सुप्रीम कोर्ट चला गया, वह आपसे 23 साल की उम्र में रिटायर होने को कह रहा है।”

मीडिया से बात करते  ले. जन. अनिल पुरी

मीडिया से बात करते  ले. जन. अनिल पुरी

सेना ने भी सख्ती दिखाई। डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स में अतिरिक्त सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने कहा, “सेना अनुशासन पर आधारित होती है। इसमें आगजनी और तोड़फोड़ का कोई स्थान नहीं है। आवेदकों को हलफनामा देना पड़ेगा कि उन्होंने विरोध प्रदर्शन, आगजनी या तोड़फोड़ में हिस्सा नहीं लिया। पहले की तरह पुलिस वेरिफिकेशन भी होगा। जिनके नाम एफआइआर होंगे वे कभी सेना में नहीं आ सकेंगे।” उन्होंने कोचिंग संस्थानों पर छात्रों को प्रदर्शन के लिए उकसाने का आरोप लगाया। इसे मायने में प्रदर्शनकारियों के लिए चेतावनी भी माना गया, क्योंकि इसी के साथ जून के आखिर से भर्ती-प्रक्रिया शुरू करने का भी ऐलान कर दिया गया।

अग्निपथ योजना

‘टूर ऑफ ड्यूटी’ को नया नाम ‘अग्निपथ’ दिया गया है। अधिकारी स्तर से नीचे की भर्तियां अब इसी माध्यम से होंगी। इन्हें ‘अग्निवीर’ कहा जाएगा, इनकी रैंक भी अलग होगी। नियमित भर्तियां 17 साल के लिए होती थीं जिसके बाद आजीवन पेंशन तथा अन्य सुविधाएं मिलती थीं। नई योजना में पेंशन नहीं है। (योजना की विस्तृत जानकारी के लिए देखें बॉक्स) नियमित सैनिकों के 90 दिनों की तुलना में इन्हें साल में सिर्फ 30 दिनों की छुट्टी मिलेगी। चार साल से पहले सेवा छोड़ने की अनुमति नहीं होगी। चार साल बाद 25 फीसदी तक अग्निवीर नियमित किए जाएंगे, बाकी को रिटायर कर दिया जाएगा। भर्ती की उम्र 17.6 से 21 साल होगी। न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता सेवा के मुताबिक 10वीं या 12वीं पास होगी। आइटीआइ से भी भर्तियां की जाएंगी। सेना में रेजिमेंट व्यवस्था बनी रहेगी। चार साल बाद सेवा से बाहर होने पर उन्हें 11.71 लाख रुपये का सेवा निधि पैकेज मिलेगा जो करमुक्त होगा। हालांकि इसका आधा उनके वेतन से ही कटेगा और बाकी आधा सरकार देगी। नियमित किए जाने वाले अग्निवीरों को सेवा निधि पैकेज में से सिर्फ उनका हिस्सा मिलेगा, सरकार का हिस्सा नहीं। चार साल से पहले सेवा छोड़ने वालों को भी सरकार का हिस्सा नहीं मिलेगा।

आंकड़े

सरकार ने सिर्फ इस साल के लिए अधिकतम उम्र की सीमा 21 साल से बढ़ाकर 23 साल की है, लेकिन इसमें एक समस्या है। दो साल भर्ती न होने से आवेदकों की संख्या वैसे ही बढ़ जाएगी, ऊपर से इस साल होने वाली भर्ती 2015 के बाद सबसे कम होगी। थल सेना में 2015-16 में 71804, 2016-17 में 52447, 2017-18 में 50026, 2018-19 में 53431 और 2019-20 में 80572 भर्तियां हुई थीं। इस साल सेना के तीनों अंगों के लिए 46,000 भर्तियां होंगी। इनमें 40 हजार थल सेना, तीन हजार नौसेना और तीन हजार वायु सेना के लिए हैं। चार साल में थलसेना में 1.75 लाख, नौसेना में 12,500 और वायु सेना में 15,400 अग्निवीर भर्ती किए जाएंगे। पांचवें साल में पहले साल भर्ती किए गए अग्निवीरों में से 25 फीसदी तक नियमित किए जाएंगे और बाकी सेवा से बाहर हो जाएंगे। हर साल यही प्रक्रिया जारी रहेगी। पांचवें साल से अग्निवीरों की उतनी भर्तियां ही होंगी जितने नियमित सैनिक रिटायर होंगे। लेफ्टिनेंट जनरल पुरी के अनुसार यह संख्या 90 हजार से 1.2 लाख तक हो जाएगी। उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बी.एस. राजू के मुताबिक 2032 तक सेना के 12 लाख जवानों में से आधे अग्निवीर होंगे।

आंकड़े

सेना में आखिरी बार भर्ती 2019-20 में हुई थी। कोविड-19 के नाम पर 2020-21 और 2021-22 में सेना में तो भर्तियां नहीं हुईं, लेकिन वायु सेना में 13,032 और नौसेना में 8,269 भर्तियां हुईं। सशस्त्र बलों में कुल करीब 14 लाख सैनिक हैं, इनमें थल सेना में 12 लाख हैं। रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने पिछले साल 10 दिसंबर को लोकसभा में बताया कि सेना में अफसरों के 7,476 और निचले स्तर के 97,177 पद खाली थे। वायु सेना में यह संख्या क्रमशः 621 और 4,850 तथा नौसेना में 1,265 तथा 11,166 थी।

विरोध में पूर्व अधिकारी

योजना का कई पूर्व सैन्य अधिकारियों ने विरोध किया है। पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने एक लेख में लिखा, “सशस्त्र बलों में पहले ही मैनपावर की कमी है। जब उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर सुरक्षा हालात ठीक नहीं हैं, ऐसे समय भर्ती प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए था।” मेजर जनरल (रिटायर्ड) जी.डी. बक्शी ने ट्वीट किया, “यह चीन की तरह भारतीय सशस्त्र बलों को शॉर्ट टर्म कासी-कॉन्सक्रिप्ट (अनिवार्य) बल में बदलने का प्रयास है। भगवान के लिए ऐसा मत कीजिए।” बक्शी के अनुसार पहले शॉर्ट सर्विस सपोर्ट काडर के लिए होती थी, अब पूरी सेना शॉर्ट सर्विस काडर की होगी। चीन और पाकिस्तान से खतरे को देखते हुए अभी संगठन में बड़े उलटफेर का समय नहीं है। नया मॉडल करियर के तौर पर फौज की लोकप्रियता कम करेगा।

सेना में प्रवेश के लिए शुरू में कम अवधि की सेवा की व्यवस्था कई देशों में है (देखें बॉक्स)। लेकिन चार साल की अवधि पर भी पूर्व अधिकारी आपत्ति कर रहे हैं। नाम न जाहिर करने की शर्त पर आउटलुक से बातचीत में एक रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, “चार साल में सैनिकों में उतनी परिपक्वता नहीं आएगी। उन्हीं में से लोग नायक, हवलदार आदि बनेंगे। यह सब सिस्टम बिगड़ जाएगा। 75 फीसदी को रिटायर करने के नियम से सैनिकों का फोकस भी कम होगा।” मेजर जनरल बक्शी की राय में अग्निवीरों का सेवाकाल सात साल किया जाना चाहिए, क्योंकि चार साल में जवान अपनी यूनिट में ठीक से घुलमिल भी नहीं सकेंगे। अन्य अधिकारियों का भी मानना है कि चार साल बहुत कम है, युद्ध के लिए सैनिक तैयार करने में सात से आठ साल लगते हैं। सेना में ‘नाम, नमक और निशान’ का बड़ा महत्व होता है, वह खत्म हो जाएगा। पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश के मुताबिक तो नौसेना और वायु सेना में पूरी तरह प्रशिक्षित होने में ही पांच से छह साल लगते हैं।

इसलिए पूर्व सैन्य अधिकारी मानते हैं कि अग्निपथ योजना पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की जानी चाहिए थी। एडमिरल प्रकाश के मुताबिक योजना पर चाहे जितनी बहस हुई हो, इसे लागू करने से पहले ट्रायल किया जाना चाहिए था। आदर्श तो यही होता कि फौज की कुछ यूनिट या टेरिटोरियल आर्मी में पहले ऐसा किया जाता। मेजर जनरल बक्शी कहते हैं, “एक ट्रांजिशन अवधि होनी चाहिए और तब तक नई और पुरानी दोनों व्यवस्था बनी रहे।” लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल बी.एस. राजू अग्निपथ को पायलट प्रोजेक्ट ही बता रहे हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “यह पायलट प्रोजेक्ट ही है, जरूरत हुई तो चार-पांच साल बाद इसमें बदलाव किया जाएगा।”

विरोध करने वालों की एक बड़ी शिकायत यह है कि जिन्होंने पहले फिजिकल और मेडिकल टेस्ट पास कर ली थी, उन्हें नए सिरे से आवेदन करने के लिए क्यों कहा जा रहा है। मेजर जनरल बक्शी मानते हैं कि कोविड से पहले जिन्होंने परीक्षा पास कर ली थी, उनकी पुराने नियमों के तहत ही भर्ती की जानी चाहिए। आउटलुक से उक्त लेफ्टिनेंट जनरल ने भी कहा, “युवा दो-तीन साल तैयारी करते हैं। दो साल में जितने लोग पास हो गए थे, अगर उनकी भर्ती कर ली जाती तो युवाओं में इतनी नाराजगी नहीं होती।”

पेंशन बिल घटाने की कवायद

सरकार का कहना है कि इस योजना से सेना अधिक युवा और तकनीकी रूप से दक्ष होगी। अभी सैनिकों की औसत आयु 32 साल है, सात साल बाद यह घटकर 26 साल हो जाएगी। लेकिन माना जा रहा है कि योजना का मूल उद्देश्य वेतन और पेंशन मद में खर्च घटाना है। इस वर्ष 5.2 लाख करोड़ रुपये के रक्षा बजट में 1.19 लाख करोड़ रुपये पेंशन के लिए हैं (देखें टेबल)। उक्त रिटायर्ड ले. जनरल के अनुसार, “शुरुआत इस बात से हुई थी कि रक्षा पेंशन बिल बहुत ज्यादा है। उसमें हर साल डीए भी बढ़ाना पड़ता है।” एडमिरल अरुण प्रकाश ने लिखा, “वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से कह दिया कि वह खुद पेंशन बिल घटाने के उपाय खोजे। माना जा सकता है कि अग्निपथ योजना इसी मांग का नतीजा है।” मेजर जनरल बक्शी ने ट्वीट किया, “यह सब रेवेन्यू (वेतन और पेंशन) बजट घटाकर पूंजीगत (हथियार, उपकरण आदि) बजट बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। पैसे बचाने के लिए कृपया एक सक्षम संगठन को नष्ट मत कीजिए।”

क्या हासिल क्या राहत

खर्च घटाने के लिए अनेक देश सैनिकों की संख्या घटा रहे हैं। चीन ने भी अपने सैनिकों की संख्या 40 लाख से घटाकर करीब 20 लाख कर ली है। एडमिरल अरुण प्रकाश के अनुसार, “आज के समय युद्ध की हाइब्रिड प्रकृति को देखते हुए सेना का आकार घटाना और उसकी जगह स्मार्ट टेक्नोलॉजी और इनोवेशन लाना जरूरी है।” आउटलुक से बातचीत में उक्त रिटायर्ड ले. जनरल कहते हैं, “चीन हो या पाकिस्तान, कोई भी देश सीधी लड़ाई नहीं चाहता। इसलिए इतनी बड़ी फौज रखने की जरूरत नहीं है।” सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह के अनुसार, “हाल में कई देशों ने अपनी सैन्य-शक्ति में कटौती की है। जो धनराशि इस प्रकार बची है उसका सदुपयोग ये देश आधुनिकतम हथियार और उपकरण खरीदने में कर रहे हैं।” (देखें कॉलम)

घोषित तौर पर सरकार और सेना की दलील यही है कि सैनिकों की औसत उम्र घटाने के लिए यह योजना लाई गई है। लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी के अनुसार कारगिल रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि अनेक जवान 30 साल से अधिक उम्र के हैं, उम्र चिंता का विषय बनता जा रहा है। हाल के वर्षों में कमांडिंग अफसरों की औसत उम्र कम हुई है, अब सैनिकों की कम होगी। पुरी के अनुसार दूसरे देशों में औसत उम्र 26 से 28 साल है। युवा अधिक जोखिम ले सकते हैं, उनमें जुनून और जज्बा अधिक होता है।

यह सच है कि सेना में जाने वालों में जुनून और जज्बा सर्वोपरि होता है। नौसेना प्रमुख एडमिरल आर. हरि कुमार ने कहा भी है कि “फौज रोजगार सृजन की स्कीम नहीं है, यहां लोग देशभक्ति और देश सेवा के लिए लोग आते हैं।” लेकिन क्या सिर्फ इसी भावना के कारण हर साल लाखों युवा सेना की भर्ती की परीक्षा देते हैं? इसके जवाब में जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे डॉ. संतोष मेहरोत्रा आउटलुक से कहते हैं, “सरकारी नौकरी आखिर सरकारी होती है। वहां सेवा की शर्तें बेहतर होती हैं। उदाहरण के लिए निजी क्षेत्र में काम करने वाले किसी ड्राइवर का वेतन सरकारी ड्राइवर से बहुत कम होता है। सरकारी ड्राइवर को सामाजिक सुरक्षा भी मिलती है। इसलिए सरकारी नौकिरयों की चाह लोगों में अधिक रहती है। हिंदी पट्टी में यह चाह अधिक है क्योंकि यहां निजी क्षेत्र में नई नौकरियां बहुत कम निकलती हैं।” (देखें इंटरव्यू)

लेफ्टिनेंट जनरल पुरी का यह भी कहना है कि सीएपीएफ, कोस्ट गार्ड, रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक इकाइयों या अन्य विभागों की नियुक्तियों में अग्निवीरों को प्राथमिकता या आरक्षण देने की जो घोषणा की गई है, उस पर पहले से ही विचार हो रहा था। विरोध प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया है। प्रदर्शन को देखते हुए एकमात्र बदलाव उम्र में ढील देना है। संभव है कि जैसा लेफ्टिनेट जनरल पुरी कह रहे हैं, इस पर पहले से विचार हो रहा था, लेकिन पूर्व सैनिकों के लिए अन्य विभागों या बलों में भर्तियां कभी आसान नहीं रही हैं।

नौकरी नहीं, डंडाः हलद्वानी में प्रदर्शन करने वालों को खदेड़ती पुलिस

नौकरी नहीं, डंडाः हलद्वानी में प्रदर्शन करने वालों को खदेड़ती पुलिस

सीएपीएफ, रक्षा मंत्रालय और इससे जुड़ी सार्वजनिक कंपनियों में पहले से पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण है, लेकिन आरक्षण की तुलना में उनकी भर्तियां बहुत कम होती हैं। रक्षा मंत्रालय के पूर्व सैनिक कल्याण विभाग के अधीन डायरेक्टरेट जनरल रिसेटेलमेंट के अनुसार केंद्र सरकार के विभागों में ग्रुप सी में 10 फीसदी नौकरियां पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षित हैं। लेकिन 30 जून 2021 को उनकी संख्या सिर्फ 1.29 फीसदी थी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम समेत कई भाजपा शासित राज्यों ने पुलिस भर्ती में अग्निवीरों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा की है। लेकिन मध्य प्रदेश में रिटायर्ड फौजी इस बात को लेकर आंदोलन कर रहे हैं कि राज्य पुलिस भर्ती में 10 फीसदी आरक्षण का नियम है जबकि इस बार ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा, ये सब घोषणा मात्र हैं। नियम बनने में अभी वक्त लगेगा। एडमिरल अरुण प्रकाश तो लिखते हैं, “जहां तक अर्धसैनिक बलों में पूर्व सैनिकों को लेने की बात है तो गृह मंत्रालय खुद यह कह कर इसका विरोध कर चुका है कि इससे उसके अपने कैडर का करियर प्रभावित होगा। राज्य सरकारों ने भी पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण के नियम का पालन नहीं किया है।”

एक बात और है। फौज में हमेशा दो अलग दर्जे के सैनिक होंगे, नियमित और अस्थायी (अग्निवीर)। क्या इसका अग्निवीरों के मनोबल पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? उनके साथ दोयम दर्जे के बर्ताव की आशंका नहीं रहेगी? संविदा शिक्षकों की स्थिति देखकर अग्निवीरों के भविष्य का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। (देखें प्रेम सिंह का लेख)

सेना की वर्दी पहनना गर्व का अहसास दिलाता है, आम लोग उनकी इज्जत करते हैं। लेकिन चार साल बाद जब युवा रिटायर कर दिए जाएंगे और नौकरी के लिए दर-दर भटकेंगे तो उनमें गर्व का अहसास कितना होगा? मेजर जनरल बक्शी तो थोड़ा आगे जाकर कहते हैं, “अगर प्रशिक्षित युवाओं को नौकरी नहीं मिली तो वे आतंकी और उग्रवादी संगठनों में जा सकते हैं।” डॉ. मेहरोत्रा भी यह आशंका जताते हैं। कुछ लोग यह दलील दे रहे हैं कि हर साल हजारों सैनिक रिटायर होते हैं, वे तो कभी हिंसा के रास्ते पर नहीं जाते। लेकिन उन्हें यह भी समझना चाहिए कि ये वे पूर्व सैनिक हैं जिन्हें पेंशन मिलती है, कैंटीन और परिवार के लिए मेडिकल बेनिफिट मिलता है। उन्हें यह डर भी होता है कि अगर किसी अपराध में लिप्त पाए गए तो उनकी सुविधाएं छिन सकती हैं। यहां तो गंवाने के लिए कुछ होगा ही नहीं।

डेढ़ साल में 10 लाख नौकरियां !

प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से 14 जून को एक बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया कि अगले डेढ़ वर्षो में विभिन्न सरकारी विभागों में ‘मिशन मोड में 10 लाख नियुक्तियां की जाएंगी’। इसकी विस्तृत जानकारी अभी नहीं आई है, लेकिन जानकारों के अनुसार इनमें ज्यादातर पद कॉन्ट्रैक्ट पर भरे जा सकते हैं और अग्निपथ के विरोध को देखते हुए सरकार फिलहाल इसकी घोषणा करने से बच रही है।

हाल के वर्षों में केंद्र सरकार ने नियमित पदों पर भर्तियां कम की हैं। सरकार के मंत्री रोजगार के नाम पर प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना, मनरेगा, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, गरीब कल्याण रोजगार अभियान, आत्मनिर्भर भारत, मुद्रा लोन, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाओं को गिनाते रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की दो रैलियों में युवाओं ने ‘सेना भर्ती चालू करो’ के नारे भी लगाए थे।

इंदौर में धरने पर बैठे युवा

इंदौर में धरने पर बैठे युवा

कार्मिक जन शिकायत और पेंशन मंत्रालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने इसी साल 3 फरवरी और 30 मार्च को संसद ने बताया कि केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में 1 मार्च 2020 को 8.72 लाख पद खाली थे। इनमें 7.56 लाख ग्रुप सी के, 94842 ग्रुप बी के और 21255 ग्रुप ए के हैं। रेलवे में 2.37 लाख और गृह मंत्रालय में 1.28 लाख पद खाली हैं। जितेंद्र सिंह के अनुसार 2017-18 से 2021-22 के दौरान कर्मचारी चयन आयोग ने 1,74,744 और यूपीएससी ने 24,836 भर्तियां कीं।

2022-23 के बजट के अनुसार 1 मार्च 2022 को केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या 34.65 लाख थी, जबकि मंजूर पद 40 लाख से अधिक हैं। पिछले दो वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में ठेके पर अनेक भर्तियां हुई हैं। केंद्रीय श्रम राज्यमंत्री रामेश्वर तेली ने इस वर्ष 21 मार्च को लोकसभा में बताया कि 2021 में केंद्र में 24.30 लाख कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी थे। 2019 में इनकी संख्या 13.64 लाख और 2020 में 13.24 लाख थी। यहां तक कि आइएएस स्तर पर भी 6746 मंजूर पदों की तुलना में सिर्फ 5231 अधिकारी ही हैं।

लब्बोलुआव यह कि दावे और यथार्थ में कई मामले में असंतुलन है, जिसे दुरुस्त करना और लोगों को भरोसे में लेने से ही लोगों का गुस्सा भी शांत होगा और अर्थव्यवस्‍था भी पटरी पर आएगी। वरना हालात और बुरे हो सकते हैं।

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