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कीटनाशक घटे तो कृषि बढ़े

कीटनाशक विधेयक में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है ताकि किसानों को संरक्षण दिया जा सके
हित संतुलनः कंपनियों की नहीं, किसानों की करें चिंता

देश में हरित क्रांति के बाद खाद, बीज के साथ ही कीटनाशक, खरपतवारनाशक, वनस्पतिनाशक वगैरह पर किसानों के खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। दूसरी ओर, अप्रासंगिक और निष्प्रभावी हो चुके कानूनों के चलते बाजार में धड़ल्ले से बिकते नकली खाद, बीज और कीटनाशकों ने किसानों की कमर तोड़ दी है और पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है। 60 के दशक के इन कानूनों में लंबे समय से बदलाव की आवश्यकता महसूस हो रही है। लगभग 12 वर्ष पहले सरकार ने संसद में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2008 पेश किया लेकिन यह अभी भी अटका है। इसे मौजूदा कीटनाशक अधिनियम, 1968 का स्थान लेना है।

कीटनाशक अधिनियम, 1968 के प्रावधान अपर्याप्त हैं, जिसके  परिणामस्वरूप अनेक प्रकार के विवाद और मुकदमेबाजी की समस्याएं होती हैं। बदलते परिवेश को देखते हुए नए विधेयक में वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के विशेष प्रावधानों और अंतरराष्ट्रीय मानकों को जोड़ने की आवश्यकता है। साथ ही राज्यों की अधिक भूमिका, मूल्य निर्धारण के नियम और दंडात्मक प्रावधान को भी कठोर किए जाने की जरूरत है। इन सभी विषयों को ध्यान में रखकर कृषि मंत्रालय ने जून 2017 में कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2017 का मसौदा जारी करते हुए संबंधित मंत्रालयों, राज्यों, अन्य विभागों एवं हितधारकों से सुझाव मांगे थे। देश भर से मिले सुझावों को शामिल करते हुए कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 का मसौदा तैयार किया गया है। 12 फरवरी 2020 को इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी भी मिल चुकी है। नया विधेयक देश की कृषि, पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और कीटनाशी व्यापार जैसे महत्वपूर्ण विषयों को प्रभावित करेगा। इसलिए इससे जुड़े नियम-कायदों में पारदर्शिता के साथ भारतीय दृष्टिकोण “जीवो जीवस्य भोजनम्” यानी प्रकृति के सह-अस्तित्व के सिद्धांत को अपनाने की आवश्यकता है। हमें पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पारंपरिक कृषि प्रणाली में सन्निहित समेकित कीट प्रबंधन और जैविक कीटनाशकों को प्राथमिकता देनी होगी। रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम या अंतिम विकल्प के रूप में किया जाना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए किसानों के लिए अधिक सुरक्षित और प्रभावी कीटनाशक उपलब्ध कराए जाने चाहिए। दुनिया में लगभग 1,175 मॉलिक्यूल्स उपलब्ध हैं, जबकि भारत में मात्र 270 मॉलिक्यूल्स रजिस्टर्ड हैं। आकार में हमसे बहुत छोटे देश वियतनाम और पाकिस्तान में लगभग 500 मॉलिक्यूल्स रजिस्टर्ड हैं। अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और ब्राजील में 600 से 700 मॉलिक्यूल्स रजिस्टर्ड हैं। इसलिए हमें सुरक्षित और ज्यादा प्रभावी मॉलिक्यूल्स पर शोध की आवश्यकता है। ऐसे नए उत्पादों के शोध को प्रोत्साहन दिए जाने की जरूरत है जो किसानों की आय बढ़ाने में मददगार हो सकें।

कीटनाशकों के प्रबंधन से जुड़ी एक बड़ी चिंता कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कड़े प्रावधानों का अभाव भी रहा है। प्रसन्नता की बात है कि सरकार मिलावटखोरी को लेकर अब बहुत गंभीर है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2020 को अपने बजट भाषण में कहा कि पर्यावरण और कृषि से जुड़े अपराधों के लिए कानून सख्त होने चाहिए। कई मामलों में अब तक दीवानी (सिविल) मुकदमे दर्ज किए जाते थे, उनकी जगह आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे। इसके लिए कंपनी कानून के साथ अन्य कानूनों में भी आवश्यक संशोधन किए जाएंगे। भारत दुनिया में रासायनिक कीटनाशकों का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है और देश में कीटनाशकों का बाजार लगभग 18 हजार करोड़ रुपये का है। इसलिए कुछ अदृश्य शक्तियां इतने बड़े बाजार को निहित स्वार्थों के चलते प्रभावित करने का प्रयास करती रही हैं।

कृषि मंत्रालय ने कीटनाशक प्रबंधन विधेयक में मुआवजा कोष, सभी पंजीकृत कीटनाशकों की स्वतः समयबद्ध समीक्षा, कीटनाशकों का राष्ट्रीय रजिस्टर बनाना, विज्ञापनों का विनियमन तथा इसके उल्लंघन को अपराध और समुचित दंड के प्रावधान जैसे कुछ नए प्रावधान जोड़े, जो स्वागत योग्य कदम हैं। कई किसान और पर्यावरण संगठन लंबे समय से इनकी मांग कर रहे थे। सरकार विधेयक की प्रस्तावना में मुख्य रूप से इसके जोखिम निवारण पहलू पर जोर दे सकती है, क्योंकि इसी उद्देश्य के लिए ही कीटनाशकों के नियमन की आवश्यकता है। इसलिए प्रस्तावना में स्पष्ट रूप से कहा जाना चाहिए, “प्रस्तावित विधेयक मानव, अन्य जीवों तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के उद्देश्य और उससे जुड़े अन्य कार्यों के लिए कीटनाशकों के अनुसंधान, आयात, निर्यात, निर्माण, पैकेजिंग, लेबलिंग, भंडारण, वितरण, परिवहन, बिक्री, विज्ञापन और निपटान को विनियमित करने सहित जैव सुरक्षा सुनिश्चित करने और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के उद्देश्य से है।” यहां कुछ सुझाव दिए जा रहे हैं, जिनको विधेयक में शामिल करके इसे पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य, किसान हित के साथ-साथ व्यवसाय हितों के बीच एक ऐसा संतुलन स्थापित किया जा सकता है जो सभी हितधारकों का ध्यान रखेगा।

कीटनाशकों की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए, यह भ्रम पैदा करने वाली नहीं होनी चाहिए क्योंकि “वर्मिन” (पीड़क जंतु) भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में सूचीबद्ध है। इसलिए इस शब्द का प्रयोग भ्रम पैदा कर सकता है। वनस्पतिनाशक, खरपतवारनाशक, कीटनाशक, फफूंदनाशक, चूहानाशक, घोंघानाशक, हर्बिसाइड्स, कवकनाशक, रोडेंटिसाइड्स, मोलस्किसाइड्स, एसारिसाइड्स, नेमाटोसाइड्स, एल्गीसाइड्स इत्यादि स्पष्ट तौर पर कीटनाशी के तौर पर परिभाषित किए जाने चाहिए। केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड (सीपीबी) और पंजीकरण समिति (आरसी) में कोई भी ऐसा नामांकित सदस्य नहीं किया जाना चाहिए जिसके हित कीटनाशकों के विनियमन से टकराते हों। इस आशय का स्पष्ट प्रावधान सीपीबी तथा आरसी स्थापित करने संबंधी धाराओं में होना चाहिए। ऐसा करने से इन नियामक निकायों की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

सीपीबी और आरसी, दोनों में गैर रासायनिक कीट प्रबंधन, पारिस्थितिक विज्ञान तथा उपभोक्ता अधिकार के क्षेत्रों से स्वतंत्र विशेषज्ञों (प्रत्येक से कम से कम दो) को शामिल किया जाना चाहिए। सीपीबी को केवल एक सलाहकारी निकाय नहीं होना चाहिए, अपितु इसको अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक शक्तियां दी जानी चाहिए। कीटनाशकों को पंजीकृत करने वाली समिति कीटनाशकों की समीक्षा करने के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। एक स्वतंत्र समीक्षा समिति, जिसमें मुख्य रूप से जैव सुरक्षा विशेषज्ञ शामिल हों, अधिनियम का हिस्सा होना चाहिए। सभी पंजीकृत कीटनाशकों की स्वत: पांच साल बाद समीक्षा होनी चाहिए।

राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली ने कीट प्रबंधन के कई प्रभावी गैर रासायनिक उपाय विकसित किए हैं। इसलिए ऐसे सभी कीटनाशक, जो पहले बिना किसी डाटा या अपूर्ण जैव सुरक्षा/प्रभावशीलता जांच या सभी अवयवों (मॉलिक्यूल्स) के अवशेष की अधिकतम सीमाओं (एमआरएल) के निर्धारण के बिना पंजीकृत किए गए थे, के लिए सभी आवश्यक जानकारी और ‘आवश्यकता एवं विकल्प आकलन रिपोर्ट’ पुन: प्रस्तुत करने को कहा जाए। किसी भी परिस्थिति में कीटनाशकों के लिए ‘पंजीकृत मान लिया जाए’ या अस्थायी पंजीकरण की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। ऐसे किसी भी कीटनाशक के पंजीकरण की अनुमति नहीं होनी चाहिए, जिसे दुनिया के दो या अधिक देशों ने प्रतिबंधित किया हो या उसके प्रयोग को सीमित किया गया हो।

केवल उन कीटनाशकों की बिक्री की अनुमति होनी चाहिए जिनका सुझाव किसी स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय ने दिया है, क्योंकि आमतौर पर निरक्षर किसान विक्रेता की सलाह पर निर्भर होता है। इसलिए इस बात की चिंता करनी होगी कि किसानों को कंपनियों के सेल्समैन गुमराह न कर पाएं। राज्य सरकारों को न केवल कीटनाशकों की बिक्री की अनुमति देने का अधिकार होना चाहिए, बल्कि कीटनाशकों को प्रतिबंधित करने का अधिकार भी होना चाहिए। राज्यों का यह अधिकार एक साल तक की अवधि के लिए सीमित नहीं होना चाहिए।

कीटनाशक प्रबंधन विधेयक के तहत प्रभावित लोगों को अनुग्रह अनुदान देने के लिए नया कोष स्थापित करने का प्रस्ताव स्वागत योग्य है। प्रभावित व्यक्तियों को इस तरह परिभाषित किया जाना चाहिए कि इनमें न केवल वे लोग शामिल हों जो कीटनाशकों के जहर से प्रभावित होते हैं, बल्कि उन किसानों को भी शामिल किया जाना चाहिए जिनकी खेती की जैविकता पड़ोसी खेतों से आने वाले कीटनाशकों के कारण प्रभावित होती है या जिनके पशु कीटनाशक विषाक्तता से प्रभावित होते हैं। इस कोष के लिए कीटनाशक उद्योग की बिक्री पर लगाए गए विशेष उपकर से भी धन संग्रह किया जा सकता है। इसके अलावा, अप्रभावी पाए गए कीटनाशकों की भरपाई के लिए इस अधिनियम के अंतर्गत मुआवजे का भी प्रावधान होना चाहिए।

नियमों का उल्लंघन करने पर मौजूदा कानून में मात्र 500 से 75 हजार रुपये तक जुर्माने और छह महीने से दो साल तक जेल या दोनों का प्रावधान है। नए विधेयक में 25 हजार से 40 लाख रुपये तक का जुर्माना या तीन साल तक जेल या दोनों का प्रावधान है। कीटनाशकों के इस्तेमाल से किसी की मृत्यु होने पर 10 से 50 लाख रुपये तक जुर्माना या पांच साल की सजा अथवा दोनों हो सकते हैं। यह भी स्वागत योग्य है। कीटनाशक उपयोगकर्ताओं के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण देने की जिम्मेदारी निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं की होनी चाहिए। यही व्यवस्था अप्रयुक्त कीटनाशकों, प्रयोग अवधि पार कर चुके या अप्रचलित कीटनाशकों तथा कीटनाशकों के डिब्बे/लिफाफे इत्यादि के सुरक्षित निपटान के लिए भी होनी चाहिए। इस अधिनियम में भारत में कीटनाशकों का हवाई छिड़काव प्रतिबंधित होना चाहिए।

(लेखक भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

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देश में ऐसे कीटनाशकों के विकास के लिए शोध और अनुसंधान को प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है, जिससे किसानों की आय बढ़ाने में सहायता मिल सके

 

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मुआवजे के लिए प्रभावितों लोगों में प्रयोगकर्ता किसानों के अलावा पड़ोस के प्रभावित खेत और पशुओं के स्वामियों को भी शामिल किया जाए

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