अगले दिन सारा मामला अहमदाबाद हवाई अड्डे से पास के मेघानीनगर के सिविल अस्पताल में स्थानांतरित हो गया। विमान के क्षतिग्रस्त मलबे से निकाले गए सभी शवों को सिविल अस्पताल के पोस्टमार्टम घर में लाया गया। परिसर के अंदर एक डीएनए नमूना कनेक्शन इकाई भी स्थापित की गई। पीड़ितों के परिवार सुबह से ही परिसर में आने लगे थे। नमूनों को डीएनए पहचान के लिए भेजा गया। अधिकारियों ने लोगों को बताया कि नतीजे आने में 72 घटे लगेंगे। दुर्घटना में मारे गए लोगों के माता, पिता, बहन, भाई, पति, पत्नी के पास इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
अधिकांश लोग गुजरात के विभिन्न शहरों और कस्बों से आए थे; कुछ राजस्थान जैसे दूसरे राज्यों से आए थे। बेशक, उनके ठहरने की व्यवस्था की गई है लेकिन कुछ परिवार दूर जाना नहीं चाहते थे क्योंकि वे किसी भी जानकारी से चूकना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने वहीं रहना सही समझा।
डीएनए सैंपल रूम और पोस्टमार्टम यूनिट में सभी लोग काम में लगे हुए थे। डॉक्टर और कर्मचारी बिना किसी ब्रेक के काम कर रहे थे। लेकिन प्रक्रिया में काफी समय लग रहा था और परिवार बेचैन हो रहे थे।
पोस्टमार्टम रूम के सामने एक बेंच पर जुनैद बैठे थे। वहां एंबुलेंस से शव लाए जा रहे थे और नमूनों को इधर से उधर ले जाया जा रहा था। जुनैद अपने अंकल के साथ थे। उनके अंकल के भाई और डेढ़ साल की बेटी उस अभागी उड़ान में थे। भाई लंदन में काम करते था। वे बेटी के साथ उसकी मां के पास लौट रहे थे। पहले ही यह घोषणा की जा चुकी थी कि कोई जीवित नहीं बचा है, लेकिन मां को फिर भी किसी चमत्कार की उम्मीद है।
अस्पताल के बाहर विलाप
जुनैद ने कहा, ‘‘हमने उन्हें सच्चाई बता दी है, लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं। हम शव मिलने पर ही भरोसा कर पाएंगे। यह इंतजार बहुत लंबा और दर्दनाक है। हमारा मन बुझता जा रहा है। यहां आकर हर दिन बैठकर बस इंतजार करना आसान नहीं है। हमने पहले ही अपने डीएनए नमूने दे दिए हैं। हमारी अपील है कि शव जल्दी सौंप दिया जाए, ताकि हम शोक मना सकें।’’
पेड़ के नीचे चंपा और दूसरी महिलाएं बैठी हैं। लोगों का यह समूह हर जानकारी और मीडिया से दूर बैठा था। दोपहर में गर्मी और उमस असहनीय थी। चंपा और उनका परिवार दुर्घटनास्थल के बगल में एक चाय की दुकान चलाते हैं। उस अभागी दोपहर विमान बगल की इमारतों से टकराया, तो उनकी साधारण-सी जिंदगी एक झटके में बदल गई।
उस दिन के वीडियो में लोग आग के गोले से भागते हुए दिखाई दे रहे हैं। चंपा ने दुर्घटना में अपने छोटे भतीजे को खो दिया। उसकी मां 50 प्रतिशत जल गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पिता दुखी हैं। परिवारों ने अपने डीएनए नमूने दिए हैं। अब वे दूसरों की तरह इंतजार कर रहे हैं। चंपा कहती हैं, ‘‘इस दर्दनाक इंतजार को जल्दी खत्म करें। वे अब शवों दे दें, ताकि हम अपने प्रियजनों को सम्मान से अंतिम संस्कार कर सकें। अब यह बर्दाश्त के बाहर है।’’
मदद को पहले पहुंचे ऑटो चालक, दुकानदार और झुग्गी वाले विमान गिरा और आग का गोला उठा, तो आस-पास रहने वाले आम लोग दौड़े आए और बचाव में साहस और एकजुटता का परिचय दिया। घायलों को पानी पिलाया और भीड़ को नियंत्रित किया।
मेघानीनगर की झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले ऑटो चालक प्रवीण पटेल दोपहर के भोजन के लिए घर आए थे। उन्होंने खाना खत्म किया ही था कि जोरदार धमाका सुनाई दिया। उन्हें लगा कि कोई बम फटा या भूकंप आया है। लोग घरों से बाहर निकल आए। पटेल और कुछ दूसरे लोग भागे-भागे घटनास्थल पर पहुंचे। चारों ओर घना काला धुआं फैला था।
पटेल ने बताया, ‘‘धुंआ इतना ज्यादा था कि बगल में कोई दिखाई नहीं दे रहा था। आंखें जल रही थीं, दम घुट रहा था। जब फायर ब्रिगेड की कुछ गाड़ियां आईं और आग बुझाना शुरू किया, तब हमें विमान का मलबा दिखाई दिया। हम मलबे की ओर दौड़े, हमें लगा कि अंदर लोग दबे हो सकते हैं। मैंने कई जले हुए शव देखे। हमने लोगों की निकालने की कोशिश की। सरकारी मदद बाद में पहुंची।’’
दुर्घटना के कुछ घंटों बाद, जब फायर ब्रिगेड और एंबुलेंस घटनास्थल पर पहुंचने लगीं, तो कुछ लोगों ने यातायात को डायवर्ट करने का काम अपने ऊपर ले लिया, ताकि बचावकर्मी जल्द से जल्द घटनास्थल तक पहुंच सकें।
दुर्घटनास्थल के पास कुछ लोग मास्क बांटते देखे गए, क्योंकि धुएं के कारण सांस लेना बेहद मुश्किल हो रहा था। यह घनी आबादी वाला रिहाइशी इलाका है, इसलिए हजारों लोग घटनास्थल पर जुट आए थे। कुछ लोगों ने मानव शृंखला बनाकर अधिकारियों की आवाजाही में मदद की।
अगले कुछ घंटों में, जब जले हुए शवों को बाहर निकाला जा रहा था, कुछ लोगों ने शवों को स्ट्रेचर पर एंबुलेंस तक ले जाने में मदद की। कुछ लोग जले हुए शवों को लपेटने के लिए सफेद चादर ले आए। चादरें खत्म हो गईं, तो पास की झुग्गियों में रहने वाले लोगों ने अपनी चादरें और साड़ियां दीं।
43 डिग्री तापमान में 4 बजे तक दमकल कर्मियों के पहले जत्थे ने बिना रुके आग बुझाने का काम किया था। दूसरा जत्था आने के बाद ही वे थोड़ी देर आराम करने के लिए परिसर की दीवार के पास टिककर बैठ पाए थे। कुछ लोगों ने उन्हें पानी, केले, बिस्कुट वगैरह दिए। सूरज ढल रहा था, तब बचाव कार्य में मदद के लिए कुछ लोगों ने जनरेटर और टॉर्च की व्यवस्था की।
विमान एक छात्रावास के मेस और चार रिहाइशी इमारतों से टकराया था। असरावा क्षेत्र की काउंसलर मीनाबेन पट्टानी के बेटे प्रिंस पटेल दुर्घटना के समय इमारतों के पास से गुजर रहे थे। वे तुरंत मेस में कूद गए। पटेल ने कहा, ‘‘मैंने देखा कि कुछ छात्र एक दीवार के नीचे दबे हुए थे। इमारत में आग लग गई थी। चारों ओर सूटकेस पड़े थे। कुछ लोग कुर्सियों पर बैठे थे, दोपहर का खाना खाने के लिए तैयार थे। मैंने एक शव को बाहर निकाला। वह लड़का अपने हाथ में चम्मच पकड़े हुए था, लेकिन वह मर चुका था।’’
ऑटो चलाने वाले बलदेव पटेल ने कुछ शवों को बाहर निकाला। उनके कुछ दोस्त भी घटनास्थल पर पहुंचे और पटेल कीमदद की। उन लोगों ने मिलकर कुछ शवों को बाहर निकालने में मदद की। उन्होंने बताया, ‘‘चारों ओर झुग्गियां हैं। कल्पना कीजिए कि अगर विमान झुग्गियों पर गिर कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता तो क्या होता। हताहतों की संख्या इससे कहीं ज्यादा होती। यह संख्या इसलिए भी बढ़ जाती क्योंकि जैसे हम तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे इन इमारतों में रहने वाले लोग हमें बचाने के लिए झुग्गियों में नहीं आते। किसी भी त्रासदी की यही विडंबना है। बचाव अभियान इस बात पर निर्भर करता है कि मरने वाले कौन हैं।’’
इस त्रासदी से उबरने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन मानवीयता का पहलू हमेशा याद रखा जाएगा।