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‘कोई सबूत नहीं, सब बरी’

28 साल बाद आए फैसले में ढांचा गिराने में किसी साजिश के सबूत नहीं
मौके पर मौजूद महाजन, आडवाणी और जोशी

सबसे लंबे समय तक चलने वाले मामलों में से एक, बाबरी मस्जिद ढांचा गिराए जाने पर आखिरकार 28 साल बाद फैसला आ गया। सीबीआइ की विशेष अदालत ने 30 सितंबर को 2000 पन्नों के फैसले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले से 90 के दशक में मस्जिद तोड़े जाने के वक्त मौजूद रहे   सभी प्रमुख चेहरे लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता मस्जिद गिराने की साजिश के आरोप से मुक्त हो गए हैं। मामले में 48 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें से 16 की मौत हो चुकी है।

लखनऊ में सीबीआइ की विशेष अदालत के न्यायाधीश एस.के. यादव ने अपने फैसले में कहा कि ढांचा गिराए जाने में किसी साजिश के सबूत नहीं मिले हैं। वह अचानक होने वाली घटना थी और ढांचा अज्ञात लोगों ने गिराया था। घटना की जांच करने वाले लिब्राहन आयोग के अध्यक्ष रहे जस्टिस एम.एस. लिब्राहन ने फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, “कोर्ट का यह कहना कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने में कोई षड्यंत्र नहीं दिखता है, आयोग के जुटाए साक्ष्यों से मेल नहीं खाता है। उन साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि भाजपा नेताओं ने साजिश रची थी।” लिब्राहन के अनुसार आयोग की रिपोर्ट में कई साक्ष्य मिल जाएंगे। “मुझे नहीं पता कि ट्रायल कोर्ट ने उन साक्ष्यों को तरजीह दी या फिर सीबीआइ ने उन्हें पेश करने की जहमत ही नहीं उठाई।”

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने के 10 दिनों के बाद तत्कालीन पी.वी. नरसिंह राव सरकार ने लिब्राहन आयोग का गठन किया था। आयोग को तीन महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन जांच पूरी होने में 17 साल लग गए। आयोग ने 100 लोगों की गवाही के आधार पर 68 लोगों पर बाबरी मस्जिद गिराए जाने से पहले सांप्रदायिक हिंसा भड़काने में अहम भूमिका निभाने की बात कही थी। आयोग ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अटल बिहारी वाजपेयी, कल्याण सिंह, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, बाल ठाकरे, लालजी टंडन, अशोक सिंहल को दोषी पाया था। पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने फैसले पर खुशी जताते हुए कहा, “फैसला अयोध्या विवाद पर नवंबर 2019 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार है, जिसने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण प्रशस्त किया है।” भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने कहा, “कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। साबित हो गया कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कोई साजिश नहीं हुई। उस वक्त हमारा कार्यक्रम और रैलियां षड्यंत्र का हिस्सा नहीं थीं।”

बाबरी एेक्शन कमेटी के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा कि वे फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट जाएंगे। उन्होंने सीबीआइ से भी अपील की है कि वह मामले की दोबारा जांच करे। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 9 नवंबर के फैसले में कहा था कि बाबरी मस्जिद गिराना कानून और संविधान के प्रति अपराध है। इस आधार पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कहना है कि सभी आरोपियों को बरी करना सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ है। माकपा ने फैसले को ‘न्याय का मजाक’ कहा। शिवसेना सांसद संजय राउत के अनुसार पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद बाबरी मस्जिद गिराने के मामले का कोई महत्व नहीं रह गया था। अब इस प्रकरण को भुला देने की जरूरत है।

बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 13 दिसंबर 1992 को उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश पर केंद्र सरकार ने जांच की जिम्मेदारी सीबीआइ को सौंपी थी। इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश पर लखनऊ में सीबीआइ की विशेष अदालत बनाई गई। सीबीआइ ने 2003 में चार्जशीट दायर की। इसके बाद 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के भीतर सुनवाई पूरी कर फैसला सुनाने का आदेश दिया। अप्रैल 2019 में डेडलाइन खत्म होने पर विशेष अदालत को और नौ महीने का समय दिया गया। कोरोना संकट में फिर तारीख आगे बढ़ानी पड़ी और सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी कर 30 सितंबर को फैसला सुनाने का आदेश दिया।

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