सभी नए फोन में फैक्ट्री से ही सरकारी संचार साथी साइबर सुरक्षा ऐप इंस्टॉल करने की सरकार की हिदायत पर बढ़ते विवादों के बीच, केंद्रीय दूरसंचार विभाग ने इसे रद्द कर दिया। दूरसंचार विभाग ने हाल ही में स्मार्टफोन निर्माताओं को निर्देश दिया था कि हर फोन में पहले से ही यह ऐप इंस्टॉल हो, जो अनइंस्टॉल न किया जा सकता हो। इस यू टर्न पर विभाग का कहना है कि इस सेवा को खुद से अपनाने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है इसलिए इसे अनिवार्य करने की आवश्यकता नहीं है। मंत्रालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि यह रियायत ऐप की ‘बढ़ती स्वीकार्यता’ के कारण दी गई है। लगभग छह लाख नए डाउनलोड बताते हैं कि ऐप स्वाभाविक रूप से लोकप्रियता हासिल कर रहा है।
विरोध और सरकार का बचाव
ऐप अनिवार्य बनाने पर विपक्ष का कहना था कि इस आदेश से निजी फोन पर राज्य-संचालित सॉफ्टवेयर को वैधता मिलने का खतरा है और इससे निगरानी के नए रास्ते खुल सकते हैं। फैसले पर प्रमुख स्मार्टफोन निर्माताओं ने भी असंतोष जताया था। ऐप्पल ने प्लेटफॉर्म नीति और गोपनीयता संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए इस आदेश का विरोध किया था।
संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सांसदों को बताया कि सरकार का रवैया, अड़ियल नहीं है और जरूरत पड़ने पर वह निर्देश में संशोधन करेगी। उन्होंने दोहराया कि ऐप का उद्देश्य केवल लोगों को फोन पर होने वाली धोखाधड़ी से बचाना है और कोई भी व्यक्ति कभी भी इसे डीएक्टिवेट या डिलीट कर सकता है। उन्होंने जनता से आग्रह किया कि यह ऐप सिर्फ उपलब्ध है, इसे इंस्टॉल करने की बाध्यता नहीं है।
सिंधिया ने बताया कि “दूरसंचार लोगों को दुनिया से जोड़ने का माध्यम है। इसके कई अच्छे पहलू हैं, लेकिन कुछ लोग इसका उपयोग उपयोग करते हैं। लोगों को ऐसे गलत इरादों वालों से बचाना सरकार की जिम्मेदारी है।’’ संसद के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने इस दावे का खंडन किया कि इस निर्देश से ऐप अनइंस्टॉल करने पर रोक थी। उन्होंने कहा, “अफवाहों पर ध्यान न दें। यह नहीं कहा गया है कि आप ऐप अनइंस्टॉल नहीं कर सकते। फोन में ऐप इंस्टॉल रहेगा ताकि उपयोगकर्ता जब चाहें, इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। किसी भी दूसरे ऐप की तरह, उपयोगकर्ता इसे भी डिलीट कर सकता है।’’ सिंधिया ने आगे कहा कि सरकार का ‘‘केवल एक लक्ष्य है, आम जनता की सुरक्षा।’’
संचार साथी क्या करता है
संचार साथी फोन पर होने वाली धोखाधड़ी से निपटने के लिए सुविधा देता है। यह 2023 में एक पोर्टल के रूप में जनता के लिए लॉन्च किया गया। जनवरी 2025 में इसे मोबाइल ऐप के रूप में शुरू किया गया। संचार साथी भारत के दूरसंचार विभाग द्वारा विकसित नागरिक-केंद्रित सेवा पहल का नाम है।
संचार ऐप और इसके वेब पोर्टल के जरिये खरीदार फोन खरीदने से पहले हैंडसेट का ईएमईआइ जांच सकते हैं। सीईआइआर सिस्टम से गुम हो गए या चोरी हो गए फोन को ब्लॉक करने या उनका पता लगाने की भी इसमें सुविधा है। साथ ही उनकी पहचान की जा सकती है और रजिस्टर्ट मोबाइल कनेक्शन की समीक्षा भी की जा सकती है। इससे संदिग्ध, धोखाधड़ी वाले या स्पैम फोन कॉल की रिपोर्ट की जा सकती है या अंतरराष्ट्रीय स्कैम कॉल को आसानी से पहचाना जा सकता है। इस ऐप के माध्यम से सुरक्षित ढंग से फोन बैंकिंग की जा सकती है और यदि कोई किसी को अपने फोन बैंकिंग की जानकारी देना चाहे, तो वह भी सुरक्षित ढंग से इसके माध्यम से किया जा सकता है।
जनादेश
दूरसंचार विभाग के निर्देशों में निर्माताओं और आयातकों को निश्चित करना है कि भारत में उपयोग के लिए या बनाए गए या आयातित सभी मोबाइल हैंडसेटों में संचार साथी मोबाइल एप्लिकेशन पहले से इंस्टॉल हो। उन्हें यह भी निश्चित करना था कि पहले से इंस्टॉल किया गया संचार साथी एप्लिकेशन उस व्यक्ति को भी दिखाई दे, जो किसी का इस्तेमाल किया गया फोन खरीद रहे हैं। उन्हें भी पहली बार फोन उपयोग से पहले या डिवाइस सेटअप के समय स्पष्ट रूप से यह ऐप दिखाई दे और आसानी से उपलब्ध हो। साथ ही यह अच्छी तरह काम करे और इसे डिसेबल न किया जा सके। साथ ही यह भी कहा गया है, भारत में पहले से बने और मौजूदा बिक्री चैनलों में मौजूद फोन के लिए भी, निर्माताओं और आयातकों को सॉफ्टवेयर अपडेट के माध्यम से एप्लिकेशन को बढ़ावा देने के लिए उचित प्रयास करने होंगे। इन निर्देशों के अनुसार 90 दिनों के भीतर पूर्ण कार्यान्वयन और 120 दिनों के भीतर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करना आवश्यक है।
आदेश का विरोध
दूरसंचार विभाग के इस आदेश का पालन करने से इनकार करने वाली पहली और सबसे महत्वपूर्ण कंपनी एप्पल थी, जो स्मार्टफोन बनाने वाली दिग्गज कंपनी है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐप्पल सरकार को यह सूचित करने जा रही है कि उनकी कंपनी दुनिया में कहीं भी ऐसे आदेशों का पालन नहीं करती, क्योंकि इससे आईओएस (आइफोन ऑपरेटिंग सिस्टम) इकोसिस्टम की गोपनीयता में सुरक्षा संबंधी जोखिम होते हैं।
ऐप्पल से जुड़े एक सूत्र ने एजेंसी को कहा, “यह दोधारी तलवार जैसा है।’’ ऐप्पल अपने ऐप स्टोर और आईओएस सॉफ्टवेयर को सख्ती से नियंत्रित करता है, जो उसके 100 अरब डॉलर सालाना के सेवा कारोबार का मुख्य आधार हैं। जबकि एंड्रॉइड की ओपन-सोर्स संरचना सैमसंग और शाओमी जैसे निर्माताओं को ज्यादा लचीलापन देता है।
भारत की अग्रणी डिजिटल अधिकार गैर-सरकारी संस्था, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने भी इस पर एक औपचारिक बयान जारी किया है। अपने बयान में उसने डीओटी के निर्देश को ‘‘असंतुलित, कानूनी रूप से कमजोर और उपयोगकर्ता की गोपनीयता और स्वायत्तता के लिए संरचनात्मक रूप से शत्रुतापूर्ण’’ बताया है। इसमें कहा गया है कि कंपनी कोशिश करेगी कि इसे वापस ले लिया जाए।
प्रौद्योगिकी नीति के लिए थिंक टैंक की तरह काम करने वाले एस्या सेंटर की निदेशक मेघना बल का कहना है कि इस आदेश से पारदर्शिता, सुरक्षा और उचित प्रक्रिया से जुड़े बुनियादी सवाल उठते हैं। बल कहती हैं, ‘‘मुख्य चिंता यह है कि ऐप को बिना पारदर्शिता, परीक्षण या उपयोग करने वाले के डेटा की सुरक्षा के बारे में स्पष्टता के बिना अनिवार्य कर दिया गया है। हमें नहीं पता कि इसे किसने बनाया है, यह कैसे काम करता है या सेटिंग में इसे इतनी ज्यादा परमिशन की जरूरत क्यों है।”
बाल तर्क देती हैं कि बताए गए फायदे से कहीं ज्यादा इसके नुकसान हैं। वे कहती हैं, “पायलट प्रोजेक्ट का कोई सबूत नहीं है, डेटा फ्लो के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि धोखाधड़ी से संबंधित जानकारी कैसे जुटाई या सत्यापित की जाएगी। यह ऐप दूरसंचार प्रदाताओं और निजी ऐप्स पहले से ही दी जा रही सुविधाओं की नकल करता है। इससे भी बुरा यह है कि इसे अनिवार्य बनाने से एक ही जगह से हमला होने का खतरा पैदा हो जाता है, जिससे लाखों उपयोगकर्ता संभावित सुरक्षा उल्लंघनों के शिकार हो सकते हैं।’’
विज्ञापन में धोखाधड़ी का पता लगाने और उसे रोकने वाली कंपनी एमफिल्टरइट के सीईओ और सह-संस्थापक अमित रेलन का कहना है कि ‘‘जब सरकार समर्थित ऐप बड़े पैमाने पर फोन में डाला जाता है, तो डेटा एक्सेस को लेकर चिंताएं होना स्वाभाविक है।’’ रेलन कहते हैं, ‘‘पारदर्शिता, स्पष्ट रूप से परिभाषित डेटा सीमाएं और मजबूत सुरक्षा मानकों के माध्यम से इन चिंताओं को पहले से ही दूर करना जरूरी है। सार्वजनिक डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में विश्वास तभी बनता है, जब गोपनीयता सुरक्षा उपाय स्पष्ट और सत्यापित करने योग्य हों।’’
सरकार की प्रतिक्रिया
सिंधिया ने एक बार फिर यह दोहराया कि ऐप का उपयोग पूरी तरह स्वैच्छिक है। उन्होंने कहा, ‘‘यह स्वैच्छिक और लोकतांत्रिक प्रणाली है। उपयोगकर्ता चाहें तो ऐप को एक्टिव कर इसका लाभ उठा सकते हैं। यदि वे ऐसा नहीं चाहते, तो इसे किसी भी समय अपने फोन से आसानी से हटा सकते हैं।’’

सरकार का रवैया, अड़ियल नहीं है और जरूरत पड़ने पर वह निर्देश में संशोधन करेगी। ऐप का उद्देश्य केवल लोगों को फोन पर होने वाली धोखाधड़ी से बचाना है। कोई भी इसे कभी भी डिलीट कर सकता है
ज्योतिरादित्य सिंधिया, संचार मंत्री, भारत सरकार