इजरायल पर हमास का आतंकी हमला अब युद्ध में बदल चुका है। दुनिया दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। यही नहीं, युद्ध वैश्विक कूटनीति का ऐसा सच होता जा रहा है जिससे आंखें फेरना अब किसी भी देश के लिए मुश्किल हो चुका है। रूस-यूक्रेन का युद्ध पिछले 20 महीने से जारी है और अब इजरायल-हमास के बीच की इस जंग ने अब तक दस हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। पचास हजार से ज्यादा घायल हैं और तकरीबन 20 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं। इस युद्ध की वजह अपनी संप्रभुता की रक्षा भर है या फिर यह सियासी वर्चस्व की लड़ाई है? या बदलती भू-राजनैतिक परिस्थितियां?
जिस तरह शांति संगीत का जश्न मनाते इजरायलियों पर हमास के आतंकियों ने हमला किया उसे देख पहली नजर में कोई भी शांतिप्रिय सदमे में आ जाएगा। इजरायल के दौरे पर पहुंचे ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा कि अपनी रक्षा के लिए की गई कार्रवाई पर ब्रिटेन इजरायल के साथ खड़ा है, लेकिन ब्रिटेन की नजर से देखें तो इस मामले में उसके पुराने जख्म हरे हो गए हैं जब वह फलस्तीन पर अपनी जीत के बावजूद इजरायल को संप्रभु राष्ट्र के तौर पर अरब देशों के बीच स्थापित नहीं कर पाया था।
इजरायल और फलस्तीन के बीच संघर्ष की शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के समय हुई थी। फलस्तीन में यहूदी अल्पसंख्यक थे, जबकि अरब बहुसंख्यक। ओटोमन या उस्मानिया साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फलस्तीन पर कब्जा कर लिया था और फलस्तीन में यहूदियों के लिए सुरक्षित राज्य बनाने की ओर बढ़ रहा था। ब्रिटिश शासन ने बाल्फोर घोषणा की जिसमें कहा गया कि फलस्तीन में ‘यहूदियों के लिए अलग राज्य’ बनाने में ऐसा कुछ भी नहीं किया जाएगा जो यहां मौजूद गैर-यहूदी समुदायों और उनके धार्मिक अधिकारों के खिलाफ हो।
पूर्वी और मध्य यूरोप से 1922 से 1947 तक यहूदी पलायन कर रहे थे और फलस्तीन के लोग शुरू से ही यहूदियों को बसाने के खिलाफ थे। 1929 में हेब्रोन नरसंहार में बहुत सारे यहूदी मारे गए। यह यहूदियों के बसने के खिलाफ हुए फलस्तीन में दंगों का एक हिस्सा था। फलस्तीन में जैसे-जैसे यहूदी बढ़ते गए, फलस्तीनी विस्थापित होते गए और दोनों के बीच हिंसा और संघर्ष अलग दिशा में बढ़ता गया। ताजा हालात यह हैं कि पहले जर्मन चांसलर, फिर अमेरिकी राष्ट्रपति और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने एक-एक कर इजरायल का दौरा किया। यानी नाटो संगठन के देश उसके पक्ष में खड़े हैं।
हमास की नृशंसता का पक्ष तो कोई नहीं ले सकता, लेकिन इस बीच गाजा के अस्पताल पर हुए इजरायली हवाई हमले और उसमें 500 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर आई तो इजरायल पर हमले के बाद उसे मिली सहानुभूति मिनटों में खत्म हो गई। सब जानते हैं कि 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फलस्तीन को यहूदी और अरबों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्र में बांटने का प्रस्ताव पास किया था। यहूदी नेतृत्व ने इस पर हामी भरी थी, लेकिन अरब पक्ष ने इसे अस्वीकार कर दिया। ब्रिटिश शासन दोनों के बीच संघर्ष खत्म करने में नाकाम रहा और पीछे हट गया। जाहिर है यह टीस ब्रिटेन के मन में आज भी कायम होगी। 14 मई 1948 यहूदी नेतृत्व ने इजरायल की स्थापना की घोषणा कर दी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तत्कालीन फलस्तीन को ‘स्वतंत्र अरब और यहूदी राज्यों’ में विभाजित करने का प्रस्ताव भी पारित किया लेकिन उसे अरब नेताओं ने खारिज कर दिया था। उसी साल कई अरब देशों ने इजरायल पर हमला बोल दिया। जंग हुई लेकिन यूरोप-अमेरिका की मदद से इजरायल भारी पड़ा और तकरीबन सात लाख फलस्तीनियों को भागकर पड़ोसी मुल्कों में शरण लेनी पड़ी।
वैश्विक कूटनीति की बात करें तो फलस्तीन की संप्रभुता की रक्षा करना भी उतना ही अहम है जितना यहूदियों की। अब जब इजरायल गाजा पट्टी में खुले युद्ध में मुब्तिला है, तो इजरायल पर लेबनान और ईरान की ओर से भी किए जा रहे रॉकेट हमले इस युद्ध के लंबा खिंचने के संकेत दे रहे हैं। हमास के साथ हिजबुल्ला ने भी इजरायल पर हमलों में तेजी ला दी है। इधर ब्रिटेन और अमेरिका ने इशारों-इशारों में यह भी चेता दिया है कि ईरान अगर सीधे तौर पर इस युद्ध में कूदा तो वे भी सामने आ सकते हैं। साथ ही अमेरिका ने ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन कार्यक्रमों के इस्तेमाल को लेकर नए प्रतिबंधों का ऐलान किया तो यूरोप ने इसका समर्थन कर दिया। प्रतिबंध का ऐलान ऐसे वक्त में किया गया है जब यूएन का लगाया गया प्रतिबंध समाप्त होने वाला था। रूस और चीन फलस्तीन के पक्ष में हैं।
दरअसल इजरायल-हमास युद्ध में हर कोई केवल अपना फायदा ढूंढने की कोशिश कर रहा है। ब्रिटेन के एक राज्य स्कॉटलैंड जिसके प्रमुख पाकिस्तानी मूल के हमजा युसूफ हैं, ने इच्छा जाहिर की कि वह गाजा के घायलों को यहां पनाह देकर इलाज करना चाहते हैं। जाहिर है इसके लिए उन्हें ऋषि सुनक पर निर्भर होना होगा। स्कॉटलैंड भले ही घायलों को पनाह देने की बात कर रहा है लेकिन फलस्तीन के पड़ोसी मुल्क मिस्र और जॉर्डन ऐसी किसी भी मदद से दूर हैं। भले ही दोनों देश दुनिया को यह दिखाने में व्यस्त हैं कि इजरायली सरकार गाजा के बेकसूर लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, लेकिन उन बेकसूर नागरिकों को अपने देश में शरण देने की बात उन्होंने अब तक नहीं की है। अपने क्षेत्र की शांति खराब होने का हवाला देते हुए गाजा के शरणार्थियों को वे दूर ही रखना चाहते हैं।
लंबे खिंच रहे इस युद्ध के बीच हमास दोहरा रहा है कि 7 अक्टूबर जैसा हमला वह बार-बार करेगा। वह अमेरिका को भी चेता रहा है। दूसरी तरफ इजरायली सेना ने गाजा पट्टी को दो हिस्सों में बांट दिया है और यूरोप में इस बात पर चर्चा जारी है कि अगली रणनीति क्या होगी।
(लेखक ब्रिटिश चैरिटी संस्था गांधियन पीस सोसायटी के अध्यक्ष हैं और भारत-यूरोप संबंधों पर शोधरत हैं।)