Advertisement

मध्य प्रदेश: मुद्दा वही, जमीन नई

कोर्ट के आदेश पर शुरू हुआ एएसआइ का सर्वेक्षण तो चुनावों की बेला में फिर भोजशाला-मस्जिद विवाद को नए सिरे से हवा
धार भोजशाल में प्रवेश करते श्रद्धालु

आम चुनाव सिर पर हों तो ‌ध्रुवीकरण को हवा देने वाले विवाद भी उभर ही आते हैं। बेशक, विवाद नया नहीं है। प्रदेश के छोटे-से शहर धार में भोजशाला बनाम कमाल मौला मस्जिद विवाद बहुत पुराना है। लेकिन 11 मार्च को जबलपुर हाइकोर्ट की इंदौर पीठ के एक फैसले ने इस विवाद को नए सिरे से सुलगा दिया है। हाइकोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस एस. ए. धर्माधिकारी और जस्टिस देवनारायण मिश्र ने अपने आदेश में कहा, ‘‘भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर का जल्द से जल्द सर्वेक्षण और अध्ययन कराना एएसआइ का संवैधानिक और कानूनी दायित्व है।’’ न्यायलय के आदेश के बाद, एएसआइ ने परिसर में अपना सर्वेक्षण का कार्य शुरू कर दिया है। सर्वेक्षण के खिलाफ डाली गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जब 1 अप्रैल को एएसआइ की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

एक अप्रैल को दिए अपने फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा, कि सिर्फ सर्वेक्षण के नतीजे के आधार पर उसकी अनुमति के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि विवादित स्थल पर किसी भी तरह की ऐसी खुदाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे इसका मूल स्वरूप बदले। अदालत ने यह फैसला ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ की याचिका पर सुनाया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होनी है। कोर्ट के इस फैसले पर मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी, सदर के अध्यक्ष अब्दुल समद का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि पुरातत्व विभाग फोटोग्राफी या जो भी काम करेगा उसकी रिपोर्ट पर हाई कोर्ट कोई कार्रवाई नहीं कर सकेगी। पुरातत्व विभाग की यह रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत होगी और सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

इस मुद्दे ने पहले भी कई बार शहर की शांति भंग की है। खासकर तब जब वसंत पंचमी शुक्रवार को आई हो। लेकिन हर बार थोड़े सांप्रदायिक तनाव के बाद यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाता है। हिंदू पक्ष का मानना है कि तत्कालीन दिग्विजय सरकार ने उस वक्त एकतरफा आदेश जारी कर हिंदू पक्ष के साथ नाइंसाफी की थी। 1947 में आजादी के बाद भोजशाला विवाद कानूनी लड़ाई में तब्दील हो गया। 1995 में शुक्रवार को वसंत पंचमी पड़ने से तनाव गहरा गया। मुस्लिम पक्ष नमाज के लिए तो हिंदू पक्ष पूजा के लिए अड़ गया। हिंसक घटना के बीच प्रशासन ने मंगलवार को हिंदुओं को पूजा और शुक्रवार को मुस्लिम समाज को नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी। छुटपुट हिंसक घटनाओं को देखते हुए प्रशासन ने 1997 में आम नागरिकों के भोजशाला में जाने पर रोक लगा दी।

स्थापत्य के प्रमाणः भोजशाला के अंदर के दृश्य

स्थापत्य के प्रमाणः भोजशाला के अंदर के दृश्य

 उसके बाद हिंदुओं को साल में एक बार बसंत पंचमी के दिन और मुसलमानों को हर शुक्रवार दोपहर एक से तीन बजे तक नमाज पढ़ने की इजाजत मिल गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सरकार में आए इस एकतरफा आदेश से विवाद और गहराया। हिंदू पक्ष की ओर से दायर याचिका पर लंबी चली लड़ाई में कोर्ट के जरिए हिंदुओं को 2003 में फिर पूजा करने की अनुमति मिली। साथ ही मामूली शुल्क के साथ भोजशाला को पर्यटकों के लिए भी खोल दिया गया। इसके बाद से संपूर्ण कब्जे के लिए दोनों पक्ष अदालत में आमने सामने हैं। तब से हर साल वसंत पंचमी पर हिंदू समुदाय बड़े स्तर पर यहां कार्यक्रम आयोजित करता है।

2003 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने इसे चुनावी मुद्दा भी बनाया था। उस चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद उमा भारती ने लंदन के म्यूजियम में रखी मां वाग्देवी की प्रतिमा को लाकर फिर से भोजशाला में स्थापित करने और इसे मुस्लिम समाज से मुक्त करने की बात कही थी। अब जबकि न्यायालय ने भोजशाला सर्वे का आदेश दे दिया है, एक बार फिर यह मुद्दा सुर्खियां बटोर रहा है। 

हिंदू पक्ष ने हाइकोर्ट में आर्कियोलॉजिक्ल सर्वे आॅफ इंडिया की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है। यह रिपोर्ट 1902 की है, जब लॉर्ड कर्जन धार और मांडू के दौरे पर आए थे। तब उन्होंने भोजशाला के रखरखाव के लिए 50 हजार रुपये तक खर्च करने की मंजूरी दी थी। उस वक्त भोजशाला को लेकर एक सर्वेक्षण भी किया गया था। इसके बाद 1951 में भोजशाला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया। उस वक्त के एक नोटिफिकेशन में भोजशाला और कमाल मौला की मस्जिद दोनों का ही जिक्र है। ट्रस्ट की तरफ से अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने पक्ष रखते हुए बताया था कि 1902 में हुए सर्वे में भोजशाला में हिंदू चिन्ह, संस्कृत के शब्द आदि बहुत सी चीजें पाई गई थीं। उनकी अपील है कि वैज्ञानिक तरीके से भोजशाला की जांच हो, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके।

स्थापत्य के प्रमाणः भोजशाला के अंदर के दृश्य

स्थापत्य के प्रमाणः भोजशाला के अंदर के दृश्य

मुस्लिम समुदाय का दावा है कि यह 11वीं सदी की कमाल मौला मस्जिद है। हिंदुओं का कहना है कि यह राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती सदन है। लगभग 1000 साल पहले यह शिक्षा का बड़ा संस्थान हुआ करता था, जहां सुदूर देशों से छात्र पढ़ने आया करते थे। बाद में यह इमारत खंडहर हो गई, जिस वजह से मुस्लिम समाज को यहां नमाज की अनुमति दे दी गई। इस इमारत के पास ही सूफी संत कमाल मौलाना की दरगाह है। लंबे समय से नमाज अदा करने के कारण मुस्लिम समाज इस इमारत पर अपना दावा करता रहा है।

हिंदू समाज का दावा है कि इतिहास में भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि यह दरगाह नहीं बल्कि राजा भोज के काल में स्थापित सरस्वती सदन भोजशाला है। यहां से अंग्रेज मां सरस्वती की प्रतिमा निकाल कर ले गए जो कि वर्तमान में लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित भी है।

कहा जाता है कि 1902 में धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद की फर्श पर संस्कृत के कुछ श्लोक खुदे हुए देखे थे। इसके बाद 1935 में इसे लेकर बड़ा विवाद हो गया, जब धार महाराज ने इमारत के बाहर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखी तख्ती टंगवा दी थी। माना जाता है कि 1456 में महमूद खिलजी ने भोजशाला में मौलाना कमालुद्दीन के मकबरे और दरगाह का निर्माण कराया और प्राचीन सरस्वती मंदिर को ढहाकर इमारत का रूप ही बदल दिया।

एक पक्ष का दावा है कि कुछ दस्तावेजों के मुताबिक अंग्रेजों ने सर्वे के लिए जब यहां खुदाई कराई, तो भोजशाला में स्थापित देवी सरस्वती की प्रतिमा मिली, जिसे वे अपने साथ ब्रिटेन ले गए। इस विवाद की कहानी शुरू होने के पीछे राजा आनंद राव पवार की तबीयत को माना जाता है। धार के तत्कालीन राजा आनंद राव पवार चतुर्थ की तबीयत में सुधार न होने पर मुस्लिम समाज ने उनके जल्द स्वास्थ्य लाभ की दुआ करने की खातिर नमाज पढ़ने के लिए किसी जगह की मांग की। उस वक्त भोजशाला वीरान पड़ी थी और यहां राजपरिवार के घोड़ों के लिए घास और चारा रखा जाता था। तब तत्कालीन दीवान खंडेराव नाडकर ने 1933 में मुस्लिम समाज को भोजशाला में नमाज पढ़ने की अनुमति दे दी।

इसके बाद से ही जगह के स्वामित्व को लेकर दोनों पक्ष आमने-सामने रहते आए हैं। कोर्ट ने सर्वे की पूरी रिपोर्ट देने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है। इस बीच धार के शहर क़ाज़ी वक़ार सादिक़ का कहना है कि बार-बार इस मामले को उठाकर सांप्रदायिक स्थितियां पैदा करने की कोशिश हो रही है लेकिन मुस्लिम समुदाय ऐसा होने नहीं देगा। लेकिन चुनाव नजदीक हों तो ऐसे विवाद का उभरना सियासी गोलबंदी को हवा दे सकता है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement