Advertisement
6 जनवरी 2025 · JAN 06 , 2025

सीरिया: असद का अंत

बशर-अल-असद के राज की शुरुआत में लोकतांत्रिक सुधारों से लेकर उससे पलटाव और फिर कट्टर ताकतों के कब्जे की कहानी
दमिश्क की सड़कों पर जश्न

सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद की बेदखली के बाद राजधानी दमिश्क पर बागी ताकतों का कब्जा इस क्षेत्र में ऐसे ऐतिहासिक भू-राजनैतिक बदलाव का पड़ाव है, जो जिहादी तत्वों के असर में चले सबसे लंबे गृहयुद्ध को मुकम्मल अंत की ओर ले आया है। विद्रोही बलों ने न सिर्फ असद, बल्कि उस आततायी सत्ता को भी बेदखल कर डाला है जिसे सत्तर के दशक से एक परिवार और एक पार्टी चला रही थी। सीरिया को अकसर अरब की धड़कन कहा जाता है। उसकी रणनीतिक स्थिति ऐसी है, जो अहम भू-राजनैतिक और सांप्रदायिक दरारों से घिरी हुई है। यही बात उसे बाकी अरब देशों से अलग करती है। 2011 में अरब स्प्रिंग नाम से अरब देशों में जनविद्रोह हुए, तब ट्यूनीशिया के बेन अली (1989-2011), मिस्र के हुस्ने मुबारक (1981-11), लीबिया के मुअम्मर गद्दाफी (1969-11) और यमन के अब्दुल्ला सालेह (1978-12) जैसे निरंकुश नेताओं का पतन हो गया था, लेकिन सीरिया में आजादी की मांग को लेकर उठी बगावत के सामने असद अकेले सत्ता में टिके रहे। सीरिया का विपक्ष बहुसंख्यक सुन्नियों के हाथ में था जिनकी हालत असद के राज में कमजोर थी। भय और नफरत के दम पर चलने वाली असद की सत्ता में उन्हें विरोधी माना जाता था।

सीरिया में तख्तापलट

 तख्तापलट की खुशियां मनाते सीरिया के लोग

आजादी के बाद सीरिया का इतिहास असद के परिवार के फौलादी राज का पर्याय रहा है। असद अलावी शिया हैं, जो शियाओं में भी अल्पसंख्यक हैं। ऐतिहासिक रूप से सुन्नी और शिया हमेशा से सीरिया में टकराव की स्थिति में रहे हैं। अलावियों की उत्पत्ति नौवीं सदी में पूरब के पहाड़ी इलाके से मानी जाती है। सदियों तक सीरिया पर सुन्नियों का प्रभुत्व रहा। वे हमेशा से अलावियों से नफरत करते रहे। अलावियों के साथ ऐतिहासिक रूप से भेदभाव बरता गया क्योंकि उन्हें गैर-मुस्लिम माना जाता है। यहां तक कि‌ आज भी कई लोग उन्हें विधर्मी या नसीरिया बुलाते हैं, जिसकी वजह इस पंथ के वे बुनियादी तत्व हैं, जो परंपरागत इस्लाम से उसे अलग करते हैं। इस्लाम में सलाफी पंथ के प्रवर्तक माने जाने वाले दमिश्क के चौदहवीं सदी के विद्वान इब्न-ए-तमैया ने फतवा जारी किया था कि ‘‘अलावी यहूदियों, ईसाइयों और मूर्तिपूजा करने वाले भारतीयों से ज्यादा विधर्मी हैं।’’ उनके खिलाफ उन्होंने जिहाद का आह्वान किया था।

सीरिया को 2011 में सशस्‍त्र संघर्ष छिड़ने से पहले धर्मनिरपेक्षता का आखिरी गढ़ माना जाता था। यहां ईसाई, आर्मेनियाई, ड्रूज और यहां तक कि मुट्ठी भर यहूदी भी सुरक्षित रहा करते थे। इसका श्रेय असद के पिता हाफिज अल असद को जाता है, जिन्होंने 1971 में राष्ट्रपति बनने के बाद ऊपर से थोपी गई धर्मनिरपेक्षता के बल पर किसी तरह बहुजातीय, बहुधार्मिक राष्ट्र को जोड़े रखा था।

पश्चिम एशिया में आम तौर से अल्पसंख्यकों के खिलाफ ऐतिहासिक रूप से ज्यादतियां हुई हैं और उन्हें हमेशा से इस्लाम के राज में मारे जाने का डर सताता रहा है। हा‌फिज असद ने सुन्नी बहुसंख्यकों के कब्जे का डर दिखाकर बड़ी चतुराई के साथ अपनी सत्ता को अल्पसंख्यकों के एक गठजोड़ के आधार पर बनाए रखा और इन घटकों को अपनी सत्ता की जरूरत का एहसास कराते रहे। उन्होंने अल्पसंख्यकों का भरोसा जीतने के लिए उन्हें अहम पद और लाभ दिए। यही वफादारी हाफिज असद की सत्ता के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को विश्वसनीयता प्रदान करती रही। हाफिज असद के राज में सेना, अर्थव्यवस्था और अरब समाजवाद की झंडाबरदार बाथ पार्टी पर अलावियों का ही कब्जा रहा।

बाथ पार्टी को सीरिया की आजादी के तुरंत बाद बनाया गया था, जब संयुक्त अरब के तहत वह मिस्र से अलग हुआ था। यह पार्टी अखिल अरब भावना या अरब राष्ट्रवाद का प्रतिनिधित्व करती थी। ईसाइयों, सुन्नियों और अलावियों से मिलकर बनी बाथ पार्टी आजादी के बाद वाले सीरिया में अहम बनकर उभरी और उसका सैन्य वर्चस्व कायम हुआ। उसने 1963 में सत्ता कब्जा ली और इकलौते मान्यता प्राप्त राजनैतिक दल का तमगा उसे हासिल हुआ। आगामी वर्षों में अंदरूनी सियासी जंग, सैन्य तख्तापलट और क्षेत्रीय संकटों ने छह दिन की जंग में सीरिया को अस्थिर कर डाला। रक्षा मंत्री रहे हाफिज असद ने एक अहिंसक तख्तापलट में सत्ता कब्जा ली।

असद परिवार के सदस्यों और अभिजात्य अलावियों का बैंकिंग, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, तेल, ऊर्जा और राजकीय संस्थाओं में अहम पदों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में ठीकठाक हिस्सा हो गया। अलावी समुदाय या बाथ पार्टी से ताल्लुक रखने वाला एक भी आदमी सरकार से बाहर नहीं रहा। इसीलिए सीरिया के लोग असद परिवार की सरकार को अलावियों के राज के रूप में देखने लगे थे। सीरिया में अलावियों का ऐसा राज देखकर ही इतिहासकार डेनियल पाइप्स ने कहा था कि यह ‘‘भारत में किसी अछूत के राजा बन जाने या रूस में किसी यहूदी के जार बन जाने’’ के बराबर है।  

असद

सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद जिनका तख्तापलट कर दिया गया

इस दौर का राजनैतिक और सामरिक प्रतिष्ठान ऐसे तंत्र में तब्दील हो गया जिसकी जड़ें राज्य में होने के बजाय भाई-भतीजावाद और अपनों के हितलाभ में थीं। ऐसे में हजारों कैदियों, असहमतों, पत्रकारों, राजनैतिक कार्यकर्ताओं और सरकार के आलोचकों को गुप्त काल कोठरियों के हवाले कर दिया गया। उन्हें यातना दी जाती थी या उनकी हत्या कर दी जाती थी। जासूसों, पुलिसिया मुखबिरों, गुमशुदगियों और भूमिगत कैदखानों ने सीरिया को पुलिस राज में बदल डाला था। सीरियाई फौज में करीब 70 फीसदी सिपाही और 80 फीसदी अफसर, साथ ही एलीट रिपब्लिकन गार्ड और चौथी आर्मर्ड डिवीजन, सब की सब अलावी ताकतें थीं जिनका नेतृत्व असद के छोटे बेटे माहिर के हाथ में था। इसी तरह सरकार विरोधी गतिविधियों और शबीहा मिलिशिया की खबर रखने वाली खु‌फिया एजेंसियां तथा वसूली, तस्करी और अन्य आपराधिक गतिविधियों को चलाने वाले अर्धसैन्य बल भी अलावियों के ही थे।

इस अलावी राज को चुनौती दी सीरिया के मुस्लिम ब्रदरहुड ने, जिसकी शुरुआत एक पंथनिरपेक्ष राजनैतिक दल के रूप में हुई थी। यह सीरिया की पहली इस्लामिक पार्टी थी। हा‌फिज असद ने इसे तुरंत प्रतिबंधित कर डाला। सत्तर और अस्सी के दशक में कुछ इस्लामिक ताकतों ने असद के राज को चुनौती दी थी। मस्जिदों, शिक्षा संस्थानों, स्वास्थ्य संस्थानों और धर्मार्थ संगठनों के एक भूमिगत तंत्र के माध्यम से सशस्त्र बगावत भी खड़ी की गई लेकिन इसका बुरी तरह दमन हुआ। इसकी परिणति अरब जगत के सबसे बुरे नरसंहारों में से एक में हुई।     

असद की सत्ता ने सुन्नी ताकतों, बागियों और ब्रदरहुड के लोगों को हिंसक तरीकों से दबाया। इसका अंतिम अध्याय 1982 में हामा शहर में देखने में आया जहां सैन्यबलों ने 27 दिनों तक शहर को कब्जे में लेकर बागियों को खोज-खोज कर बाहर निकाला था, जिस चक्कर में दो-तिहाई शहर पर बम गिराए गए और बीस से चालीस हजार आम लोग मारे गए। हाफिज असद की इस तानाशाही कार्रवाई के लिए अमेरिकी पत्रकार थॉमस फ्रीडमैन ने ‘हामा का राज’ का प्रयोग करते हुए लिखा, ‘‘सीरिया की बाथ सत्ता जब-जब खुद की पीठ दीवार से सटा हुआ पाती है, वह हामा के राज पर उतर आती है। सीरियाई फौज ने 1982 में अपने ही एक शहर हामा के एक हिस्से को सपाट कर दिया, ताकि कट्टर सुन्नी मुसलमानों की बगावत को कुचला जा सके।’’

इस तरह सुन्नी विरोध को खाक में मिला दिया गया और राजनैतिक इस्लाम का अंत हो गया। ब्रदरहुड के सदस्यों को मौत की सजा दी गई, और सीरिया के सैन्यबलों ने राजनैतिक रुझान वाले धार्मिक समूहों का पता लगाकर उन्हें प्रताड़ित किया। यहां तक कि लंबी दाढ़ी रखना भी शक का बायस बन गया।

असद के घर में घुसे लोग

असद के घर में घुसे लोग

कालांतर में इस्लामिक ताकतों का एक नया तंत्र उभरा और मजहबी उग्रवाद ने जगह लेनी शुरू कर दी, जिसकी कमान खुद हाफिज असद के हाथ में थी। दरअसल, असद ने यह दिखाने की कोशिश की कि उनकी सरकार सुन्नियों के खिलाफ नहीं है, केवल कट्टर तत्वों और आतंकियों के खिलाफ है। इस चक्कर में असद ने बहुत सतर्कता के साथ सुन्नी इस्लाम को पाला-पोसा। इस सिलसिले में खुद राज्य ने इस्लामिक शिक्षा के संस्थान खड़े किए। यहां तक कि असद इंस्टिट्यूट फॉर मेमराइजिंग कुरान जैसा संस्थान बनाया गया जिसकी शाखाएं अधिकतर शहरों में खोली गईं। यह रणनीति दरअसल राजनीतिक इस्लाम को नौजवानों के बीच कमजोर करने की कवायद थी ताकि वे जिहाद से दूर रहें।

नब्बे के दशक तक हाफिज की सेहत बिगड़ने लगी और 2000 में 69 वर्ष में दिल का दौरा पड़ने से वे चल बसे। उनकी जगह छोटे बेटे बशर ने ली, जो पेशे से नेत्र चिकित्सक था लेकिन बड़े भाई और स्वाभाविक उत्तराधिकारी बासिल की मौत के चलते जिसका प्रशिक्षण सैन्य सेवा में हुआ था। राष्ट्रपति बनने के पांच माह बाद बशर की सीरियाई ब्रिटिश बैंकर असमा अखरस से हुई शादी ने एक सेकुलर और लिबरल नेता के रूप में उनकी छवि को और मजबूत किया क्योंकि अखरस होम्स के एक अभिजात्य सुन्नी परिवार से आती थीं। इस विवाह को सुन्नी-अलावी एकता का प्रतीक माना गया।

बशर को विरासत में पुराने सैन्य और राजनैतिक अधिकारी मिले थे, जो बाथ पार्टी के वफादार थे। फिर भी बशर ने लोकतांत्रिक सुधारों का वादा किया। उन्होंने नियंत्रित ढंग से कुछ आर्थिक और राजनैतिक सुधार लागू भी किए तथा सैकड़ों राजनैतिक बंदियों को रिहा किया। कई बौद्धिकों, पत्रकारों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के लोगों ने इन सुधारों पर चर्चा की ओर अपनी ओर से नई मांगें रखीं। इस नए राजनैतिक संक्रमण ने सरकार में बैठे कट्टरपंथियों को चिंतित कर दिया।

पुराने फौजी जनरलों और वरिष्ठ सलाहकारों ने बशर को चेताया। फरवरी 2001 से सत्ता ने विरोधियों के प्रति कड़ा रुख अपना लिया और सुधारों को वापस ले लिया। इस तरह लोकतांत्रिक सुधारों का जो पौधा दमिश्क में अंकुरित हुआ था, उसकी भ्रूण हत्या हो गई।

(सीरियन रेवॉल्यूशनः हाउ रोड फ्रॉम डेमोक्रेसी एन्डेड इन कैलिफेट, मानेकशॉ पेपर, सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज से उद्धृत)

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement