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कांग्रेस: सुधारो और बिगाड़ो

कन्हैया और जिग्नेश मेवाणी को लाकर मजबूती की कोशिश अमरिंदर और सिद्धू प्रकरण से हुई धूमिल
राहुल गांधी के साथ कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल

कहावत है, हकीकत फसाने से ज्यादा चौंकाऊ होती है। मगर यह भी सही है कि सियासत में हकीकत और फसाने के बीच परदा बड़ा झीना-सा होता है। फिर, मौजूदा दौर की हकीकत यह भी है कि चुनाव ही सियासत की धुरी हैं, बाकी विचारधारा, नीति, कार्यक्रम बस हाशिए की डोर भर रह जाते हैं, जो डूबते वक्त तिनके का सहारा बनने के लिए होते हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि चुनाव सिर पर हों तो नेताओं के पांव के चक्र तेज हो उठते हैं। कुछ के ललाट पर नई रेखाएं चमकने लगती हैं तो कुछ सिर धुनते पाए जाते हैं। लगभग यही दशा पार्टी  के अगुआ लोगों की होती है। इसकी बेहतर मिसाल कांग्रेस से और कुछ हो नहीं सकती। पार्टी में नया युवा जोश भरने के लिए जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के साथ युवा दलित चेहरे तथा गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को जोड़ा गया। लेकिन उसी दिन पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा ट्विटर पर डोलने लगा। जाहिर है, कांग्रेस आलाकमान पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनावों में कुछ करिश्मे या एजेंडा तय करने की कोशिश में जुटा था, मगर उसके पाले में चमक के साथ धुंधले साए ही आए।

लिहाजा, कांग्रेस आलाकमान की पार्टी में ‘नया खून’ भरने की कवायद मिले-जुले इशारे कर रही है। दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष भले सोनिया गांधी हों पर कमान राहुल गांधी और कुछ हद तक प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथ ही है, इसलिए सिद्धू ‘विस्फोट’ के लावे उन्हीं की काबिलियत पर सवाल उठा रहे हैं। 28 सितंबर को इस प्रकरण के वक्त दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में डेरा डाले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बुजुर्गवार 79 वर्षीय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, “मैंने कहा था न...वह अस्थिर किस्म का है।” जैसा कयास लगाया जा रहा था, मुख्यमंत्री पद से अपना इस्तीफा देने के 10 दिन बाद 29 सितंबर को कैप्टन केंद्रीय गृह मंत्री तथा भाजपा की शीर्ष जोड़ी में एक अमित शाह से मिलने उनके घर पहुंच गए। शाह से मिलने के बाद कैप्टन ने ट्वीट किया, “केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जी से मिला। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन पर चर्चा की और इन कानूनों को खत्म कर तथा एमएसपी की गारंटी देकर समस्या का तत्काल हल निकालने का आग्रह किया।” सियासी गलियारों में यह कयास लगाया जा रहा है कि केंद्र कृषि कानूनों पर संसद के शीत सत्र में कोई संशोधन करके और अमरिंदर को अपने पाले में लाकर नई पहल कर सकता है। इस तरह भाजपा उत्तर प्रदेश और पंजाब को साध सकती है।

अगर ऐसा होता है तो भाजपा को कांग्रेस का तोहफा ही कहा जाएगा। सो, यह निष्कर्ष निकालना बेजा नहीं कहला सकता कि कांग्रेस नेतृत्व में अपनी मजबूती में भी बंटाधार कर बैठने की गजब की कूवत है। कैप्टन का कद पंजाब ही नहीं, पूरे देश में मायने रखता है, मगर कांग्रेस के कमानधारियों को उनका स्वतंत्र रवैया शायद नागवार गुजरता रहा है। शायद कैप्टन की नाफरमानी से निजात पाने में सिद्धू को बढ़िया औजार माना गया।

स्वर्ण मंदिर में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ सिद्धू

स्वर्ण मंदिर में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ सिद्धू

असल में 72 दिन पहले ही कैप्टन की रजामंदी के बगैर सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उनके कहे के मुताबिक आखिरकार कैप्टन अमरिंदर सिंह को साढ़े चार साल की कमोवेश कामयाब पारी को यूं खत्म किया गया, जो सिर्फ चकित ही नहीं कर गया, बल्कि बकौल अमरिंदर, “यह अपमान और जलालत है।” लेकिन सत्ता के पत्ते फेंटने के दौरान अचानक कैप्टन की जगह कुर्सी के नए हकदार बनकर उभरे चरणजीत सिंह चन्नी से भी कुछ मंत्री पद और नियुक्तियों को लेकर ठन गई तो सिद्धू फट पड़े। उन्होंने इस्तीफा फेंक दिया। उनके बाद कुछ और इस्तीफों के कयास थे मगर मंत्रिमंडल से सिर्फ रजिया सुल्तान के ही इस्तीफे की बात गंभीर खबर बनी।

कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू का मामला राज्य का बताकर हाथ झाड़ लिया तो मुख्यमंत्री चन्नी ने कहा, “मैंने नवजोत से कहा, आइए बात करें। अगर किसी नियुक्ति पर आपत्ति है तो मेरा रवैया अड़ियल नहीं है।” कहते हैं, सिद्धू को खासकर प्रियंका गांधी की ओर से बात करने के संदेश भेजे गए, लेकिन सिद्धू ने दरकिनार कर दिया। 29 सितंबर को जरूर उनका एक वीडियो वायरल हुआ कि “मैं सिद्धांतों के लिए कोई भी कुर्बानी दे सकता हूं...अब दागी मंत्रियों और अफसरों की नियुक्ति नहीं की जा सकती। मैं ऐसी नियुक्तियों के खिलाफ हूं।” सिद्धू का इशारा राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बनाए जाने से है, जिन्हें 2018 में एक खनन घोटाले के आरोप में अमरिंदर सरकार से हटा दिया गया था। हालांकि बाद में जांच में वे बरी हो गए थे।

सिद्धू, विरोधी खेमे के उप-मुख्यमंत्री एस.एस. रंधावा को गृह विभाग दिए जाने से भी खफा हैं। उन्हें वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी इकबाल प्रीत सिंह सहोटा को प्रदेश के पुलिस मुखिया की अतिरिक्त जिम्मेदारी दिए जाने पर आपत्ति है। सहोटा 2015 में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं की जांच के लिए बनी विशेष जांच टीम के मुखिया थे। विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा एपीएस देवल को एडवोकेट जनरल बनाया जाना है। देवल पूर्व पुलिस प्रमुख के वकील रहे हैं, जो 2015 की बेअदबी के एक मामले और प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग के आरोपी हैं। अब सिद्धू का रुख क्या होता है, यह देखना होगा लेकिन कपिल शर्मा टीवी शो से अर्चना पूरन सिंह ने उनके लिए सीट खाली करने की ख्वाहिश जता दी है।

हालांकि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का बड़ा गणित उनका दलित होना है, जिस समुदाय की आबादी पूरे देश में सबसे ज्यादा पंजाब में लगभग 32 फीसदी है। खबरें ये भी हैं कि हिंदू, मजहबी सिख, रामदसिया दलितों की सभी बिरादरियों में किसी दलित के पहली दफा मुख्यमंत्री बनने से काफी उत्साह का माहौल है। मोटे तौर पर पंजाब में दलितों का वोट कांग्रेस को मिलता रहा है, लेकिन पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी में भी जाने के संकेत मिले थे। दलित वोट अकाली दल के हिस्से में भी कुछ हद तक आते रहे हैं और इस बार उसने बसपा से गठजोड़ करके उसे मजबूत करने की कोशिश की है। पंजाब में बसपा का तो कुछ खास असर नहीं है, फिर भी चन्नी की ताजपोशी पर मायावती ने उसे “कांग्रेस का चुनावी शोशा” बताया। यही नहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उनकी ताजपोशी के दिन ट्विटर पर ज्यादा सक्रिय रहे और कांग्रेस के दलित-प्रेम पर सवाल उठाते रहे। इससे साफ है कि कांग्रेस के इस दांव से उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल होने की संभावना देखी जा रही है। अमरिंदर की शाह से मुलाकात पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, शाह का घर दलित विरोधी अड्डा बन गया है।

गृहमंत्री अमित शाह से मिलते अमरिंदर

गृहमंत्री अमित शाह से मिलते अमरिंदर 

तो, दलित मुद्दे पर जोर है। शायद इसे ही मजबूती देने के लिए राहुल गांधी ने कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी को पार्टी में धूमधाम से शामिल करवाया। ये दोनों न सिर्फ उत्तर प्रदेश में, बल्कि आगे गुजरात सहित बाकी राज्यों के चुनावों में भी युवाओं और दलितों पर पकड़ बनाने में कारगर हो सकते हैं। इस मौके पर दोनों नेताओं ने कहा कि कांग्रेस को मजबूत करना आज देश और संविधान बचाने का पर्याय बन गया है। कन्हैया ने कहा, “यह हर जागरूक देशवासी आपद धर्म है।”

हालांकि कांग्रेस आलाकमान की मामला बिगाड़ लेने के रवैए से कई सवाल उभर आए हैं। संदेह यह भी है कि अब छत्तीसगढ़ और राजस्‍थान में भी कहीं कांग्रेस ऐसा ही गड़बड़झाला न कर बैठे। गोवा में दिग्गज नेता लुइजिन्हो फलेरो तृणमूल कांग्रेस में चले गए हैं, जहां चुनाव होने वाले हैं। केरल में श्रीधरन जैसे बड़े नेता इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के तमाम प्रयासों पर संदेह घटने के बजाए बढ़ रहे हैं।

साथ में चंडीगढ़ से हरीश मानव

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