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क्रिकेट/स्मृतिः बेमिसाल वार्न

ऑस्ट्रेलिया का यह महान स्पिनर असंभव-सी लगने वाली गेंदों से दुनिया को छकाता रहा
शेन वार्न (1969-2022)

अभी-अभी तो वे हमारे बीच थे और पल भर बाद नहीं रहे। विश्वास नहीं होता। शेन वार्न ने अपनी जिंदगी को सार्वजनिक रूप से मीडिया की चकाचौंध के बीच जिया, लेकिन उनकी मौत थाईलैंड में एकांत में हुई। वार्न का जीवन एक खुली किताब थी, लेकिन उस किताब के पन्ने आपको पूरी कहानी नहीं बताते हैं। ठीक उसी तरह जैसे उनकी गेंदों को देखकर लगता था कि कुछ नया आने वाला है, कुछ ऐसा जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। वार्न कहते थे कि क्रिकेट ने उन्हें तलाशा है, बिल्कुल वैसे ही जैसे पिकासो के बारे में कहा जाता है कि पेंटिंग ने उन्हें तलाशा था।

52 साल दुनिया को छोड़ जाने की उम्र नहीं होती है, भले ही एक सार्वजनिक व्यक्ति जीवन के आठ दशकों में जितनी जिंदगी जीता है उतनी उन्होंने पांच दशकों में जी ली थी। महज 20 साल की उम्र में जब उन्हें ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट अकादमी से बाहर कर दिया गया था, तब से लेकर मृत्यु पर्यंत वार्न कभी खबरों से बाहर नहीं रहे। फिर भी मैदान पर उन्होंने जो हासिल किया, वह मैदान के बाहर उनसे जुड़े विवादों से कहीं ज्यादा भारी था।

क्रिकेट में गेंदबाजी शारीरिक रूप से ज्यादा चुनौती पूर्ण होती है। गेंदबाज विकेट तक दौड़ता हुआ आता है, फिर अचानक अपने कूल्हे, पीठ और कंधों पर दबाव देता हुआ एक तरफ झुकता है और गेंद फेंकता है। गेंदबाजी वैसे ही कठिन है, लेग ब्रेक और भी कठिन। हाथ में गेंद लेकर कलाइयों को घुमाना पड़ता है। जरा सी चूक हुई नहीं कि आपकी गेंद पिट जाने का भय होता है। गुगली डालना और मुश्किल होता है। इसमें बांह को आधा घुमाते हुए कंधों पर अधिक जोर डालना पड़ता है क्योंकि इसमें गेंद हाथों के पीछे से निकलती है। वार्न के 708 टेस्ट विकेट उनकी काबिलियत और शारीरिक क्षमता के गवाह हैं। वार्न की गेंदबाजी के बारे में गिडियन हेग ने बेहतरीन लाइन लिखी है, “जो कुछ सिखाया नहीं जा सकता, वह उनकी गेंदबाजी में दिखता था।”

वार्न कहते थे कि वे पिच पर कोई स्पॉट नहीं ढूंढ़ते, बल्कि यह कोशिश करते थे कि बल्लेबाज वही शॉट खेले जो वे चाहते हैं। उनकी दो बड़ी खासियतें थीं। एक तो वे ऐसी घूमने वाली गेंद डालते थे जिससे बल्लेबाज चकमा खा जाता था, और दूसरा, वे दिखाते तो ऐसा थे कि गेंद स्पिन होने वाली है जबकि वह सीधी निकलती थी। गुगली बहुत कम डालते थे। इसकी बजाय टॉपस्पिन और स्लाइडर ज्यादा पसंद करते थे, जो उन्होंने रिची बेनॉड से सीखी थी।

एक तरफ वार्न में इतनी खूबियां थीं तो दूसरी तरफ मैदान से बाहर उनका रवैया काफी अनुशासनहीन होता था। वे कई विवादों के केंद्र में रहे- मैच फिक्सिंग (श्रीलंका के एक बुकी के साथ जानकारी साझा करने का आरोप), ड्रग्स (जिसके लिए उन पर एक साल का प्रतिबंध लगा), सेक्स (इंग्लैंड में तीन महिलाओं के साथ उनकी तस्वीर सार्वजनिक हुई)।

उनमें तेज गेंदबाज जैसी आक्रामकता और ऐसा आत्मविश्वास था जो पूरी टीम का मनोबल बढ़ा देता था। इस मामले में वे ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज फ्रेड स्पोफोर्थ के समान थे, जो जीत के लिए इंग्लैंड को 85 रनों का लक्ष्य मिलने के बाद भी समझते थे कि उन्हें हराया जा सकता है और वैसा करके दिखाया भी।

वार्न के सोचने का तरीका होता था कि ‘यह किया जा सकता है’। भले ही श्रीलंका के खिलाफ 11 गेंदों में आखिरी तीन विकेट लेना हो, या उसके एक सीजन बाद वेस्टइंडीज के खिलाफ सात। उन्होंने भारत के खिलफ अपने पहले मैच में  150 रन देकर एक विकेट के प्रदर्शन से सीख लेकर अपनी  प्रतिभा के अनुकूल प्रदर्शन करना शुरू किया और वापस मुड़कर नहीं देखा। उस मैच में रवि शास्त्री ने दोहरा शतक लगाया था और सचिन तेंदुलकर ने 148 रनों की नाबाद पारी खेली थी।

इंग्लैंड में उनकी पहली गेंद लेग स्टंप के करीब दो फीट फुट बाहर गिरी और माइक गैटिंग का ऑफ स्टंप ले उड़ी। गेंद इतनी घूमी कि स्पिन गेंदबाजी के खिलाफ बेहतरीन बल्लेबाज गैटिंग हतप्रभ रह गए। बाद के दिनों में वार्न ने पूरी दुनिया के बल्लेबाजों को हतप्रभ किया। क्रिकेट के इतिहास में वह शायद दूसरी सबसे चर्चित गेंद थी। पहली एरिक हॉलीज की वह गुगली थी जिसने डॉन ब्रैडमैन के करियर का औसत 99.94 पर रोक दिया था।

करीब 15 साल बाद वार्न ने एजबेस्टन में बाएं हाथ के बल्लेबाज एंड्रयू स्ट्रॉस को वैसे ही गेंद डाली। बल्लेबाज ने गेंद को छोड़ना उचित समझा लेकिन गेंद उनका लेग स्टंप ले उड़ी। उसे 21वीं सदी की सबसे बेहतरीन गेंद कहा गया।

वार्न खेल का बड़ा आनंद लेते थे। खेल में हर एक को शामिल रखते थे। यहां तक कि गेंदबाजी के लिए जाते समय अंपायर से भी बात करते रहते थे। कभी मिड ऑफ पर खड़े खिलाड़ी से कुछ कहते तो कभी बैट्समैन को गुस्सा दिलाने के लिए कुछ तीखा कह देते थे। ऐसे शख्स थे जो हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहते, असंभव को संभव बनाते रहते थे। उनके इसी असंभव की झलक पाने के लिए लाखों लोग मैदान में आते थे।

जब उन्होंने नामचीन खिलाड़ियों से रहित राजस्थान रॉयल्स को पहले आईपीएल में विजेता बनाया था तब वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट छोड़ चुके थे, लेकिन उनके भीतर की प्रतिस्पर्धा खत्म नहीं हुई थी। अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘नो स्पिन’ में उन्होंने लिखा है, “मैंने हमेशा पलों में जिया है और नतीजों के प्रवाह नहीं की। इससे मुझे खुशी मिली तो तकलीफ भी हुई।” लेकिन वार्न का हर एक ओवर उनके 400 से अधिक पन्नों वाली ऑटोबायोग्राफी से कहीं अधिक कहती है। उन्होंने हमेशा शाही अंदाज में गेंदबाजी की और जीवन भी उसी तरह जिया।

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