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निचले स्तर पर टेलीविजन पत्रकारिता

मेरा मानना है कि सुशांत सिंह राजपूत पर की जा रही टेलीविजन पत्रकारिता काफी तुच्छ, बेसिर-पैर और खतरनाक स्तर पर हो रही है।
नामी पत्रकार बरखा दत्त

मेरा मानना है कि सुशांत सिंह राजपूत पर की जा रही टेलीविजन पत्रकारिता काफी तुच्छ, बेसिर-पैर और खतरनाक स्तर पर हो रही है। ऐसा लगता है जैसे हर रोज भीड़ में उन्माद पैदा करने के लिए, रात में भेड़ियों का झुंड शिकार के लिए टेलीविजन स्टूडियो से बाहर निकलता है। ऐसे समय जब देश में कोविड-19 के बढ़ते मामले, लद्दाख में चीन की वजह से तनाव, बेरोजगारी, बंद स्कूल, जीएसटी संग्रह में कमी जैसे मुद्दे देश के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं, उस वक्त टीवी चैनल लोगों के व्यक्तिगत जीवन पर फैसला सुना रहे हैं, लोगों के निजी वाट्सऐप चैट दिखा रहे हैं, गॉसिप के आधार पर खबरें दिखा रहे हैं और उनके रिपोर्टर कार और डिलीवरी ब्वॉय का पीछा करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

मैं टीवी नहीं देखती हूं, ऐसे में पिछले कुछ समय में मैंने जो ऑनलाइन पोस्ट देखा है, उससे मुझे अपने पुराने माध्यम (टेलीविजन पत्रकारिता) की हालत पर शर्म आ रही है। टेलीविजन पर आज जो परोसा जा रहा है, उसे देखकर मैं कभी टेलीविजन पत्रकार बनने के लिए प्रेरित नहीं होती। निश्चित तौर पर इन परिस्थितियों के लिए कुछ लोग स्वाभाविक रूप से गुनहगार हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोगों में मुझे पाखंड भी दिखता है, जो अलग होने का दावा करते हैं। कुछ ऐसे वरिष्ठ हैं, जो यह दावा करते हैं कि वे नए दौर के लोगों जैसे नहीं है, लेकिन उसी स्टोरी को वे ढंक कर पेश करते हैं, जिसमें वहीं भद्दापन, सेक्सिस्ट और आक्रमणकारी तरह से सवाल पूछने के तरीके शामिल होते हैं। उनके न्यूज चैनल उसी तरह से अपमानजनक कैप्शन, उन्माद फैलाने वाले काउंटडाउन, और अच्छे-बुरे कमेंट भी लेने की कोशिश करते हैं, जिससे दोनों संबंधित पक्षों को संतुष्ट किया जा सके। इस स्टोरी में केवल मैंने थैरेपिस्ट सुशांन वालकर के पक्ष को लाने का काम किया है, जिन्होंने मेरे प्लेटफॉर्म मोजो स्टोरी पर बताया कि उन्होंने 2019 में सुशांत का इलाज किया था। वह सुशांत के बारे में क्या सोचती हैं, इसकी जानकारी साझा की थी। वह सुशांत की जानकारी साझा करते हुए यह जान रही थीं कि वह एक डॉक्टर और मरीज के समझौते को तोड़ रही हैं। लेकिन वह सुशांत को लेकर टेलीविजन और सोशल मीडिया पर चल रही खबरों को देखकर, उसकी हकीकत बताने के लिए सामने आईं। उन्हें यह भय भी लग रहा था कि उनकी बातें सामने आने से रिया चक्रवर्ती और उसके साथ‌ियों के जीवन पर भी खतरा हो सकता है। 

कई लोगों ने मुझे कहा कि ऐसा करना गलत था। लेकिन मेरा मानना है कि जब सब कुछ सार्वजनिक किया जा रहा है तो वह जो सोच रही थीं, उसे भी लोगों तक जाना चाहिए। उस स्टोरी के बाद से मैंने पूरी तरह से सुशांत की स्टोरी से हाथ खींच लिया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि मैं किसी भी पक्ष के तरफ खड़ी दिखूं। हालांकि मैं यह नहीं कह रही कि सुशांत सिंह राजपूत की स्टोरी एक-दो दिनों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं थी। लेकिन जिस तरह हर मिनट, बेअदबी और स्त्री जाति से दुर्भावना के आधार पर कवरेज की जा रही है, वह रिपोर्टिंग को शर्मसार करने वाली है। दर्शकों के लिए भी जरूरी है कि बेहतर मुद्दों वाली स्टोरी का समर्थन करें, नहीं तो जैसा मौजूदा रिपोर्टिंग की तरफदारी करने वाले कहते हैं, हमें वहीं मिलेगा, जिसके हम लायक हैं।

(लेखिका मोजो स्टोरी की फाउंडिंग एडिटर हैं)

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