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जनादेश 2022/गोवा: भाजपा को वोट बंटने का फायदा

पार्टी को सिर्फ 33 फीसदी मत, लेकिन विपक्षी वोट कांग्रेस, आप, तृणमूल समेत कई दलों में बंटने से बहुमत के करीब पहुंची
पोरियम से जीतने वालीं दिव्या राणे

भारतीय जनता पार्टी गोवा में अपना दूसरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बावजूद बहुमत हासिल नहीं कर सकी। 40 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 21 सीटें चाहिए, पर भाजपा को 20 ही मिले। लेकिन जिस पार्टी ने बहुमत से आठ सीटें कम होने के बावजूद सरकार बना ली हो, उसके लिए एक का समर्थन हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं। नतीजों के ऐलान के बाद ही तीन निर्दलीय और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) के दो विधायकों ने भाजपा को समर्थन देने की घोषणा कर दी। हालांकि सरकार का गठन होली के बाद होगा। पार्टी को 2017 में सिर्फ 13 सीटें मिली थीं, फिर भी नतीजे आने के तत्काल बाद उसने दूसरे दलों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था। लेकिन इस बार नतीजे आने के चार दिन बाद भी उसने दावा पेश नहीं किया था। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सदानंद तनवडे ने मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी लड़ाई से इनकार किया है, लेकिन माना जा रहा है कि प्रमोद सावंत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे विश्वजीत राणे ने भी दावेदारी पेश की है।

तनवडे के अनुसार अनेक भाजपा विधायक एमजीपी से समर्थन लेने का विरोध कर रहे हैं। पांच साल पहले पार्टी ने मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में एमजीपी और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के समर्थन से ही सरकार बनाई थी। पर्रिकर के निधन के बाद प्रमोद सावंत मार्च 2019 में मुख्यमंत्री बने तो एमजीपी के तीन में से दो विधायक भाजपा में शामिल हो गए। उसके बाद सावंत ने एमजीपी के नेता सुदिन धवलिकर को उप मुख्यमंत्री पद से हटा दिया। वैसे इस चुनाव में सावंत मनोहर पर्रिकर की छाया से बाहर निकले और अपना नेतृत्व साबित किया।

आप विधायकों के साथ केजरीवाल

आप विधायकों के साथ केजरीवाल 

इस छोटे से प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस, दो राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा कई क्षेत्रीय दल भी चुनाव मैदान में थे। ऐसे में वोटों का बंटवारा होना ही था, जिसका फायदा भाजपा को मिला। सिर्फ 11 सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने स्वीकार भी किया है कि भाजपा विरोधी वोट उसमें, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, रिवॉल्यूशनरी गोअंस और निर्दलीयों में बंट गए। दस साल सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस को इस बार पूरी उम्मीद थी कि एंटी इनकम्बेंसी के चलते जनता उसे ही चुनेगी। लेकिन वह खुद को बेहतर विकल्प के तौर पर दिखाने में कामयाब नहीं हो सकी। दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच फर्क इस बात से भी पता चलता है कि जिन जगहों पर भाजपा कमजोर होती दिखी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वहां घर-घर जाकर प्रचार अभियान चलाया जिसका उसे फायदा मिला। दूसरी ओर कांग्रेस में सारा दारोमदार स्थानीय नेताओं पर ही था। नतीजे आने के चार दिन बाद तक कांग्रेस ने विधायकों की बैठक तक नहीं बुलाई।

एल्टन डिकोस्टा के साथ प्रियंका

एल्टन डिकोस्टा के साथ प्रियंका

कांग्रेस के विशेष चुनाव पर्यवेक्षक पी. चिदंबरम के अनुसार, “कई विधानसभा क्षेत्रों में हम बहुत कम मार्जिन से हारे। भाजपा को सिर्फ 33 फीसदी वोट मिले हैं यानी ज्यादातर लोगों ने भाजपा के खिलाफ मतदान किया है। लेकिन वोट बंटने के कारण भाजपा को 20 सीटें जीतने में सफलता मिली।” चुनाव के दौरान कांग्रेस की सहयोगी गोवा फॉरवर्ड पार्टी के नेता विजय सरदेसाई और तृणमूल कांग्रेस ने विपक्ष को एकजुट होकर लड़ने की बात कही थी। लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मना कर दिया था। अब चिदंबरम कह रहे हैं कि अगर कोई गैर-बीजेपी मोर्चा बनता तो नतीजे बेहतर होते। कांग्रेस की सहयोगी गोवा फॉरवर्ड पार्टी के सिर्फ अध्यक्ष विजय सरदेसाई जीत सके जबकि 2017 में उसे तीन सीटें मिली थीं।

आम आदमी पार्टी 2017 में भी यहां चुनाव लड़ी थी, लेकिन तब उसे कोई कामयाबी नहीं मिली। पांच वर्षों के दौरान वह लगातार प्रयास करती रही। उसने यहां स्थानीय निकाय चुनाव भी लड़े। नतीजा यह हुआ कि इस बार उसने विधानसभा की दो सीटें जीत लीं। दो ही सीटें जीतने वाली राज्य की सबसे पुरानी पार्टी एमजीपी ने चुनाव से पहले तो तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, लेकिन चुनाव के बाद भाजपा के साथ खड़ी हो गई। तृणमूल 5.2 फीसदी वोट हासिल करने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत सकी। उसके साथ बड़े चुनाव रणनीतिकार माने जाने वाले प्रशांत किशोर की टीम भी थी। पार्टी के नेता दबी जुबान से कह भी रहे हैं कि इतना खराब प्रदर्शन प्रशांत किशोर की वजह से हुआ है। हालांकि बाद में प्रशांत किशोर ने खुद को अलग करते हुए कहा था कि मैं गोवा में शामिल नहीं हूं।

एमजीपी के आरोलकर

एमजीपी के आरोलकर

तृणमूल ने पिछले साल सितंबर में बड़े तामझाम के साथ चुनाव अभियान शुरू किया था। चुनाव से पहले पार्टी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यहां दो बार आई थीं, लेकिन जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि खास सफलता नहीं मिलने वाली है। इसलिए चुनाव की घोषणा के बाद वे एक बार भी नहीं आईं। पार्टी ने पूरे प्रदेश में ममता की तस्वीर वाले होर्डिंग लगाए थे, लेकिन उन होर्डिंग में पार्टी की गोवा इकाई के नेता गायब थे। इससे उस पर बाहरी होने का ठप्पा लग गया। दिसंबर में जब तृणमूल ने एमजीपी के साथ चुनावी गठजोड़ किया तो भाजपा ने उसे ‘अपवित्र बंधन’ बताया था, जो नतीजों के बाद सही भी साबित हुआ। अब तृणमूल ने अपने प्रदर्शन की समीक्षा के लिए समिति बनाई है।

चुनाव में कुछ बड़े उलटफेर भी देखने को मिले। दोनों उप मुख्यमंत्री मनोहर अजगांवकर और चंद्रकांत कवलेकर हार गए। पणजी में मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे, उन्हें भाजपा के अतांसियो मोन्सेरेटे ने पराजित कर दिया। उत्पल को सभी विपक्षी दलों का समर्थन हासिल था। यानी विपक्षी वोट न बंटने के बावजूद वे हारे। पोरियम सीट 45 वर्षों से वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह राणे के पास थी। इस बार वे चुनाव नहीं लड़े और उनकी बहू दिव्या राणे भाजपा के टिकट पर सबसे अधिक 13,943 मतों के अंतर से जीत गईं। ए.आर. लोरेन्को कर्टरिम से निर्दलीय लड़कर चौथी बार चुनाव जीते। चुनाव से पहले कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया था, लेकिनव वे तृणमूल कांग्रेस में चले गए। जल्दी ही तृणमूल कांग्रेस छोड़ दी लेकिन तब कांग्रेस ने टिकट देने से मना कर दिया।

इस चुनाव में रिवॉल्यूशनरी गोअंस नाम की नई पार्टी का भी उदय हुआ। इसका रजिस्ट्रेशन चुनाव से ठीक पहले हुआ था और यह 38 सीटों पर लड़ी। पहले मुकाबले में ही एक सीट जीतने में सफल रही। इसके विरेश बोरकर ने सेंट आंद्रे सीट सबसे कम, सिर्फ 76 वोटों के अंतर से जीती। रिवॉल्यूशनरी गोअंस युवाओं की पार्टी है, जिसके ज्यादातर सदस्य 25 से 35 साल के हैं। कई जगहों पर इसे तीन हजार से अधिक वोट मिले। यानी इसने भी दूसरे दलों के वोट काटे हैं।

गोवा की सीटें

प्रदेश के मतदाताओं ने दलबदलुओं को जिस तरह सबक सिखाया है, उससे दूसरे राज्यों के मतदाताओं को सीख लेनी चाहिए। पिछले चुनाव के बाद जो 12 विधायक भाजपा में चले गए थे, उनमें से नौ हार गए। उन 12 विधायकों में से 10 कांग्रेस के थे, उनमें से सिर्फ तीन जीत दर्ज कर सके। तीन साल पहले एमजीपी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले उपमुख्यमंत्री मनोहर अजगांवकर को भी मतदाताओं ने हार का मुंह दिखाया।

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