आज दलितों की स्थिति को आप कैसा पाते हैं?
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने संविधान के जरिए समाज के वंचितों (दलितों) को शक्ति दी थी। उनका सपना था कि सरकारें आएंगी, दलितों को उनका हक देंगी। लेकिन इन अधिकारों को भाजपा और दूसरे दलों के लोग खत्म कर देना चाहते हैं। इसके उदाहरण आपको भाजपा शासित राज्यों से लेकर राजस्थान और दिल्ली हर जगह मिल जाएंगे। चाहे आरक्षण की बात हो या दलित उत्पीड़न रोकने के लिए बने कानूनों की, कहीं भी उनका सही तरीके से पालन नहीं हो रहा है। सरकार उच्च शिक्षा का बजट कम कर रही है। दलित वर्ग की छात्रवृत्ति मिलनी तो लगभग बंद कर दी गई है।
आपने कहा भाजपा, कांग्रेस सभी सरकारें ऐसा कर रही हैं, इसे थोड़ा विस्तार से बताइए।
उत्तर प्रदेश में दलितों का उत्पीड़न चरम पर है। उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। हाथरस, कानपुर, उन्नाव की घटनाएं सबके सामने हैं। कांग्रेस शासित राजस्थान में बलात्कार के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने चुनावों में वादा किया था कि पहले की भाजपा सरकार ने दलितों पर जो भी झूठे मुकदमे किए थे उसे वापस लेंगे, लेकिन आज तक वापस नहीं लिया गया। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार सीवर में हुई मौतों के मामले में मुआवजा देने में आनाकानी करती है। अब दलित और वंचितों को समझ में आ गया है कि जब तक उनकी सरकार नहीं बनेगी तब तक कोई भी उनका भला करने वाला नहीं है।
जब तक सत्ता नहीं मिलेगी, दलितों का भला नहीं होगा, लेकिन यूपी में तो मायावती कई बार सरकार बना चुकी हैं?
जब तक मान्यवर कांशीराम जी के नेतृत्व में आंदोलन चला, वहां दलितों की स्थिति में बदलाव हुए। कांशीराम जी कहते थे, मैं रिक्शा चलाने वाले को भी नेता बना दूंगा। गरीब आदमी को विधानसभा भेजूंगा और उन्होंने ऐसा करके दिखाया। लेकिन अब बसपा बदल चुकी है। वहां काम का नहीं, पैसे का बोलबाला है। अगर पैसा नहीं है तो आपको टिकट भी नहीं मिल सकता। कांशीराम जी के जाने के बाद नारे भी बदले, विचारधारा भी बदली।
लेकिन मायावती का बड़ा वोट बैंक है, लोग उन पर भरोसा करते हैं।
देखिए यह कहना सही नहीं है कि मायावती का वोट बैंक है। हमारा समाज बहुत बड़ा है। 2014 में उत्तर प्रदेश की 30 फीसदी आबादी दलितों की थी। 2007 में दलितों ने वोट देकर मायावती जी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई। लेकिन 2012 में वे हार गईं। 2014 के लोकसभा चुनावों में तो उन्हें एक भी सीट नहीं मिली। इसी तरह 2017 और 2019 में भी बुरी हार हुई। उनकी कार्यशैली और सिद्धांतों से समझौते को देखते हुए जनता ने उनसे दूरी बना ली है।
आपको लगता है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में दलित वर्ग अब आपके साथ होगा?
मैं मेहनत करूंगा। कांशीराम जी ने जिस समाज को नहीं बिकने वाला बनाया और उसे ताकत दी, उसके लिए लड़ रहा हूं। कांशीराम जी ने नारा दिया था कि वोट की सुरक्षा बहन और बेटी जैसी करनी चाहिए। हमने उसी से प्ररेणा लेकर 4 सिद्धांत दिए हैं। वोट की सुरक्षा, वोट की कीमत, वोट से निर्माण और वोट का परिणाम। राजनीतिक चेतना जगाने के लिए हमारे कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर दलित समाज को समझा रहे हैं कि उनके वोट का क्या महत्व है और अगर वे मिलकर वोट देंगे तो उससे कितना फायदा मिलेगा। हम अपना काम कर रहे हैं बाकी तो जनता के हाथ में है।
आप 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे या गठबंधन करेंगे?
तैयारी तो सभी 403 सीटों पर कर रहे हैं, लेकिन अंतिम फैसला कोर कमेटी करेगी। हमारी कोशिश यही है कि भाजपा को रोकने में अहम भूमिका निभाएं और वह कैसे होगा यह समय बताएगा।
लेकिन अब चुनाव काफी खर्चीला हो गया है, ऐसे में कैसे लड़ेंगे?
भाजपा सरकार तो पूंजीपतियों की सरकार है। पार्टी चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाती है। 100-100 हेलीकॉप्टर लेकर चुनाव लड़ती है। लोकतंत्र इसके लिए नहीं बना था। हम वोट भी लेंगे और नोट भी लेंगे। हमारे पास लड़ने के लिए पैसा नहीं है तो हम जनता से ही पैसा लेंगे।
अब दलित नेतृत्व क्यों नहीं दिख रहा है?
मान्यवर कांशीराम सिद्धांतवादी व्यक्ति थे। उनका अंतिम लक्ष्य वंचित वर्ग के लोगों के जीवन में परिवर्तन करना था। इसकी मुहिम ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज ने चलाई और उसे बाद में बाबासाहेब आंबेडकर ने आगे बढ़ाया और उनके जाने के बाद कांशीराम जी ने आगे बढ़ाया। कांशीराम जी कहते थे कि संघर्षों से लाल पैदा होते हैं और समझौतों से दलाल पैदा होते हैं। अब आंदोलन कम, समझौते ज्यादा दिखते हैं। हमारे प्रयासों का असर अगले 5 साल में जमीन पर दिखेगा।
केंद्र सरकार के प्रति मायावती नरम क्यों हैं?
जो बीता कल है उस पर समय नहीं बर्बाद करना चाहिए। मेरा कहना है कि मायावती जी का समय खत्म हो गया है। मैं तो बुआजी से कह रहा था कि अब आप नौजवानों को काम करने दें और खुद आराम करें। इस जालिम सरकारों से लड़ने के लिए भतीजा होने के नाते मुझे जिम्मेदारी देनी चाहिए।
अगर मायावती आपको कमान सौंप दें तो आप बसपा में शामिल हो जाएंगे?
मैंने आंदोलन की कमान मांगी है। बसपा की कमान नहीं मांगी है। महापुरुषों का सिद्धांत है कि आंदोलन को एक दूसरे को ट्रांसफर करना चाहिए। मायावती जी भले कमान मुझे न दें, लेकिन किसी ऐसे व्यक्ति को दें जो आंदोलन के लिए संघर्ष कर रहा है और उसे सीबीआइ, ईडी का डर दिखाकर रोका न जा सके।
भविष्य की आपकी क्या योजनाएं हैं?
जिस तरह भारतीय जनता पार्टी के लोग सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं, उससे कई चीजें निकलकर सामने आ रही हैं। मैं पूरे मामले पर बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहा हूं। हम वोटो की चोरी रोकेंगे, जिससे लोकतंत्र में जनता का विश्वाश बना रहे और बहुजन समाज के अधिकारों की सुरक्षा करेंगे। । ईवीएम और निजीकरण के खिलाफ लड़ाई के साथ सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम व्यवस्था पर भी आंदोलन शुरू करूंगा। हम भारत मे बहुजनों का राज स्थापित करके बाबा साहेब आंबेडकर व मान्यवर काशीराम जी का सपना पूरा करेंगे। भारत में जो सम्मान से, अधिकारों से, न्याय से वंचित है वो बहुजन है।