हर साल आम तौर पर अप्रैल-मई में आयोजित होने वाली दुनिया की सबसे लोकप्रिय और समृद्ध 20-20 क्रिकेट प्रतियोगिता 25 अक्टूबर को और अधिक समृद्ध हो गई। दुबई में आयोजित बोली में कारपोरेट घरानों ने दो नई टीमें खरीदने के लिए बड़ी भारी रकम चुकाई। उन्हें ये टीमें 2022 से 10 वर्षों के लिए मिलेंगी। इसमें कोई संदेह नहीं कि 6.8 अरब डॉलर ब्रांड वैल्यू वाला इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) 60 दिनों में खेला जाने वाला सबसे अमीर खेल इवेंट बन गया है। दुनिया के अन्य बड़े खेल इवेंट, जैसे इंग्लिश प्रीमियर लीग, एनएफएल, एनबीए या मेजर लीग बेसबॉल कई महीने तक खेले जाते हैं।
आरपीएसजी समूह के चेयरमैन संजीव गोयनका की आइपीएल टीम खरीदने की छटपटाहट इस बार साफ नजर आ रही थी। कोलकाता के इस औद्योगिक घराने का सालाना राजस्व चार अरब डॉलर का है। भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद जब चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स टीमों को दो साल के लिए प्रतिबंधित किया गया था, तब गोयनका ने दो सीजन (2016 और 2017) के लिए राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स टीम खरीदी थी। आरपीएसजी ग्रुप के पास अभी एटीके-मोहन बागान टीम का स्वामित्व है।
आरपीएसजी वेंचर्स लिमिटेड ने लखनऊ टीम के लिए 7,090 करोड़ रुपये की भारी-भरकम बोली लगाई। इरेलिया कंपनी पीटीई लिमिटेड (चर्चित नाम सीवीसी कैपिटल पार्टनर्स) ने दूसरी टीम 5,625 करोड़ में खरीदी। यह फ्रेंचाइजी अहमदाबाद में होगी। सीवीसी ने बोली लगाने में अडाणी समूह को भी पीछे छोड़ दिया, जो 5,100 करोड़ रुपये की बोली लगाकर तीसरे स्थान पर रहा। अहमदाबाद फ्रेंचाइजी के लिए अडाणी को फेवरेट माना जा रहा था, लेकिन बोली के दौरान सब कुछ नाटकीय तरीके से बदल गया। आरपीएसजी और सीवीसी की बोली के बीच 1,450 करोड़ रुपये के अंतर ने दिखाया कि गोयनका समूह टीम खरीदने के लिए कितने लालायित थे।
बीसीसीआइ को उम्मीद थी कि दो टीमों की फ्रेंचाइजी बेचकर सात से 10 हजार करोड़ मिलेंगे, लेकिन उसे मिले 12,715 करोड़। नई टीमें आइपीएल में 2022 के सीजन से भाग लेंगी, बशर्ते इनके मालिक बोली के बाद की औपचारिकताओं को पूरा करें। सीवीसी को आपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि उसने स्पोर्ट्स बेटिंग और गैंबलिंग में बड़े पैमाने पर पैसा लगा रखा है। आइपीएल टूर्नामेंट में पहले ही बड़े भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। इसलिए अगर बीसीसीआइ और सीवीसी साथ आते हैं तो बहस एक बार फिर गरम हो सकती है। अगर सीवीसी कैपिटल को किसी वजह से स्वामित्व नहीं मिला तो अदाणी समूह स्वतः अहमदाबाद टीम का स्वामी बन जाएगा। इस तरह आइपीएल के 2022 सीजन से 10 टीमें टूर्नामेंट खेलेंगी। उनके बीच 74 मैच होंगे जबकि अभी 60 मैच होते हैं। हर टीम को सात मैच घरेलू मैदान पर खेलने होंगे और सात बाहर।
आइपीएल टीम का मालिक बनने के लिए सिर्फ जुनून नहीं, बल्कि बिजनेस की बारीकियों को समझने की भी जरूरत है। अतीत में कई टीमें या तो प्रतिबंधित कर दी गईं या पैसे को लेकर बीसीसीआइ के साथ उनका मुकदमा चला। ऐसे में आइपीएल की एक टीम खरीदने के लिए 7,000 करोड़ से अधिक की रकम देने का क्या कोई मतलब है?
डीएंडपी एडवाइजरी के मैनेजिंग पार्टनर संतोष एन कहते हैं, “प्रॉपर्टी के तौर पर आइपीएल लगातार बढ़ रहा है। ऐसा लगता है कि आरपीएसजी वेंचर्स कुछ समय के लिए राइजिंग पुणे सुपरजायंट्स का स्वामित्व हासिल करने के बाद नई टीम के लिए प्रतिबद्ध थी। उन्होंने अहमदाबाद और लखनऊ दोनों टीमों के लिए समान रकम की बोली लगाई। इससे पता चलता है कि वे आइपीएल का बिजनेस मॉडल समझते हैं और शुरुआती आठ टीमों से पहले अपनी टीम को मुनाफे में लाने की उम्मीद रखते हैं।”
संतोष कहते हैं, “इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बोली लगाने वाली 10 कंपनियों में से आरपीएसजी अकेली थी जिसे आइपीएल बिजनेस का पुराना अनुभव था। पुरानी आठ टीमों की तुलना में दोनों नई टीमों को अपने ब्रांड की पहचान बनाने के लिए मार्केटिंग पर अधिक खर्च करना पड़ेगा। उन्हें मर्चेंडाइज रेवेन्यू जैसे कमाई के नए साधन भी तलाशने पड़ेंगे ताकि लंबे समय में उनका बिजनेस मॉडल सफल हो सके।”
आइपीएल के लिए वैश्विक प्रसारण अधिकारों से भी पैसे की अच्छी बारिश हुई है। पिछले पांच वर्षों के लिए (2018 से 2022) स्टार इंडिया ने बीसीसीआइ को रिकॉर्ड 16347.5 करोड़ रुपये प्रसारण अधिकार के लिए दिए। इन्हीं पांच वर्षों के लिए वीवो ने टाइटल स्पॉन्सरशिप का अधिकार 2200 करोड़ में खरीदा। इसके बाद एसोसिएट स्पॉन्सर और पार्टनर होते हैं। बीसीसीआइ अपने रेवेन्यू का आधा आइपीएल टीमों के साथ साझा करती है। कम करके भी आंका जाए तो आइपीएल टीमों को बीसीसीआइ के सेंट्रल पूल से 350 से 400 करोड़ रुपये मिलते हैं।
2022 में आरपीएसजी और सीवीसी (या अदाणी समूह) के लिए चुनौतीपूर्ण यात्रा शुरू होगी। गोयनका ने कहा है, “उम्मीद है कि तीन से चार वर्षों में फ्रेंचाइजी की वैल्यू 10 हजार करोड़ रुपये हो जाएगी। मुझे नहीं लगता कि यह (7,090 करोड़) ज्यादा है। ऑपरेटिंग घाटा तो होना ही है।”
आइपीएल वैश्विक प्रॉपर्टी बन गई है। प्रीमियर लीग की प्रमुख टीम, मैनचेस्टर यूनाइटेड के मालिक ग्लेजर परिवार ने भी एक आइपीएल फ्रेंचाइजी खरीदने में रुचि दिखाई। ग्लेजर परिवार ने मेजर लीग बेसबॉल की टीम न्यूयॉर्क यांकीस तथा सिंगापुर की प्राइवेट इक्विटी फर्मों में पैसा लगा रखा है।
ब्रांड विशेषज्ञ हर्ष तलिकोटि कहते हैं, “ग्लेजर परिवार के पास मैनचेस्टर यूनाइटेड और एनएफएल टीम टांपा बे जैसे मशहूर स्पोर्ट्स नाम हैं। आइपीएल में उनकी रुचि बताती है कि आइपीएल ब्रांड की स्वीकार्यता विश्व स्तर पर बढ़ रही है। ग्लेजर के बोली लगाने का कारण ढूंढ़ना आसान है। भारत खेल का बड़ा बाजार है। यहां मैनचेस्टर यूनाइटेड के भी प्रशंसक बड़ी संख्या में हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि वे भारत, अमेरिका और इंग्लैंड में खेल के प्रशंसकों को जोड़ सकेंगे। अलग-अलग खेलों के प्रशंसक होने के कारण वे मौजूदा आइपीएल फ्रेंचाइजी की तुलना में मर्चेंडाइजिंग का बेहतर फायदा उठा सकते हैं।”
क्रिकेट में बीसीसीआइ की ताकत दिनों-दिन बढ़ रही है। आयोजकों को बनाए रखने के लिए इसने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) पर काफी दबाव भी बनाया है। आइपीएल निश्चित रूप से बीसीसीआइ के ताज का सबसे चमकता हीरा बन गया है। आने वाले दिनों में 2023 से 2028 के लिए आइपीएल के प्रसारण अधिकारों की बिक्री होगी। अनुमान है कि यह पांच अरब डॉलर (लगभग 37,000 करोड़ रुपये) के आंकड़े को भी पार कर जाएगी। और यह सब हर साल गर्मियों में दो महीने की क्रिकेट के लिए होगा।