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20 फरवरी 2023 · FEB 20 , 2023

कारोबार: अदाणी साम्राज्य का संकट

गौतम अदाणी के कारोबारी साम्राज्य को लगा जोर का झटका, लेकिन असल सवाल ये है कि उनके लपेटे में और कौन-कौन डूबेगा
गौतम अदाणीः ब्लूमबर्ग की दस शीर्ष अमीरों की सूची से 31 जनवरी को बाहर हो गए

लोकसभा चुनाव 2014 के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर बहुत चर्चित हुई थी। उस तस्वीर में वे एक हवाई जहाज की सीढ़ियों के ऊपर खड़े होकर और पीछे मुड़कर हाथ हिलाते नजर आते हैं। फ्रेम में हवाई जहाज का जो हिस्सा दिख रहा था उस पर अंग्रेजी में ‘अदाणी’ लिखा हुआ था। उस समय गौतम अदाणी 7 अरब डॉलर के मालिक हुआ करते थे। आठ साल बाद 120 अरब डॉलर के विशाल कारोबारी साम्राज्य में तब्दील हो गया जिसने उन्हें फोर्ब्स की सूची में दुनिया का तीसरा सबसे अमीर आदमी बना दिया। बीती 24 जनवरी को अदाणी की यह उड़ान अचानक थम गई। गौतम अदाणी 24 जनवरी से 31 जनवरी के बीच हफ्ते भर में निजी संपत्ति में 30 अरब डॉलर और अपने समूचे कारोबार में करीब 70 अरब डॉलर गंवा चुके हैं। कहने का मतलब कि हफ्ते भर में उन्हें निजी रूप से जो नुकसान हुआ है, वह 2014 में उनकी कीमत के चार गुना से भी ज्यादा है। किसी एशियाई उद्योगपति को हाल के इतिहास में लगा यह सबसे बड़ा झटका है जिसने उसे अर्श से फर्श पर नहीं तो हवा में जरूर लटका दिया है। अमीरों की गिनती करने वाली ब्लूमबर्ग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अदाणी दुनिया के सबसे दस अमीरों की सूची से बाहर हो गए हैं।

चमक कुछ फीकी हुईः अदाणी समूह का अहमदाबाद में मुख्यालय

चमक कुछ फीकी हुईः अदाणी समूह का अहमदाबाद में मुख्यालय

अब कुछ हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि सात अरब डॉलर के अदाणी आठ साल में 120 अरब डॉलर के कैसे बन गए, लेकिन महज छह दिन में 66 अरब डॉलर उन्होंने कैसे गंवा दिए इसका जवाब तो सबको पता है। अमेरिका के एक मंदडि़ये और फॉरेन्सिक रिसर्च ग्रुप हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट इसके पीछे है। नेथन एंडर्सन और उनके चार साथियों को मिलाकर कुल पांच लोगों की यह मंदडि़या फर्म अधिक कीमत वाले शेयरों को लेकर बाजार मूल्य पर बेचने का काम करती है और उनके दाम गिर जाने पर खरीद लेती है। इससे इस किस्म के मंदडि़यों को मुनाफा होता है।

बाजार की भाषा में कहें तो हिंडेनबर्ग एक ‘एक्टिविस्ट’ मंदडि़या है जो न सिर्फ शेयरों की मंदी से मुनाफा कमाता है बल्कि अतिमूल्यांकित कंपनियों के फर्जीवाड़े का परदाफाश भी करता है। अदाणी समूह के साथ उसने यही किया है। जैसे ही हिंडेनबर्ग ने अदाणी समूह को ‘कॉरपोरेट इतिहास के सबसे बड़े फर्जीवाड़े’ का दोषी ठहराते हुए रिपोर्ट निकाली, भारत के शेयर बाजार में भगदड़ मच गई। अचानक निवेश का माहौल बिगड़ गया। इस उद्घाटन की टाइमिंग भी गजब की थी। अदाणी समूह की अग्रणी कंपनी अदाणी एंटरप्राइज लिमिटेड के 2.5 अरब डॉलर की कीमत वाले शेयरों की बिक्री एक फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफरिंग (एफपीओ) के माध्यम से होने वाली थी। हिंडेनबर्ग के खड़े किए बवाल के चक्कर में अदाणी का एफपीओ दूसरे दिन भी जोर नहीं पकड़ सका और समूह के निवेशकों को उसकी छह कंपनियों के शेयरों में डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का चूना लग गया।

अदाणी समूह की हिस्सेदारी

पहले तो अदाणी समूह ने हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट को निराधार, गलत और बिना किसी शोध का करार दिया। उसके बाद एक विस्तृत जवाब में रविवार 29 जनवरी को अदाणी समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को बगल में लगाकर एक वीडियो जारी किया और चार सौ से ज्यादा पन्ने का जवाब सार्वजनिक किया। उनके मुताबिक इन पन्नों में हिंडेनबर्ग के लगाये 88 आरोपों का बिंदुवार खंडन था। संक्षेप में इस जवाब का लब्बोलुआब यह था कि अदाणी पर हमला भारत पर हमला है। इसका जवाब भी हिंडेनबर्ग ने तत्काल यह कहते हुए दिया कि फर्जीवाड़े का बचाव राष्ट्रवादी मुहावरे से नहीं किया जा सकता और अदाणी समूह खुद को तिरंगे में लपेट कर भारत को व्यवस्थित तरीके से लूट रहा है। हिंडेनबर्ग ने अदाणी को अमेरिकी अदालत में अपने ऊपर मुकदमा करने की चुनौती भी दी है।

सामान्यत: ऐसे मामलों में मुकदमा करने वाले के खिलाफ ही पूरा प्रसंग चला जाता है क्योंकि अदालत के समक्ष उसे वे सारे दस्तावेज अपने बचाव में पेश करने पड़ते हैं जो अब तक सार्वजनिक नहीं हुए थे। इसलिए हिंडेनबर्ग का मुकदमा करने के लिए अदाणी को कहना एक उकसावे के तौर पर ही लिया जा रहा है।

ठेके और परियोजनाएं

अदाणी का यह कहना कि उनके ऊपर हमला भारत के ऊपर हमला है, इसकी कई हलकों में आलोचना हो रही है लेकिन कुछ जानकार इस शब्दावली को तथ्यों के आधार पर आंकते हैं। दरअसल, अदाणी समूह को हुए नुकसान का सबसे बड़ा असर भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआइसी) और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) पर पड़ा है जिनका बहुत सारा पैसा इस कॉरपोरेट समूह की निजी कंपनियों में लगा हुआ है। कहते हैं, अदाणी समूह डूबेगा तो भारत के आम लोगों का बीमा और बचत का पैसा भी डूब जाएगा, हालांकि एलआइसी ने 30 जनवरी को एक औपचारिक बयान जारी करके बताया है कि उसके कुल आस्ति प्रबंधन (एयूएम) 41.66 लाख करोड़ (30 सितंबर, 2022 को) का एक प्रतिशत से भी कम अदाणी समूह के अंतर्गत है और अब भी वह मुनाफे की स्थिति में है। 

कोलकाता स्थित वित्तीय विश्लेषक हिमांशु शेखर झा कहते हैं, “आप देखिएगा, ये सिस्टम ही अदाणी को बचाएगा, डूबने नहीं देगा। अदाणी गया तो समझिए पूरी इकोनॉमी गई। इतना ज्यादा स्टेक है सरकारी कंपनियों और बैंकों का अदाणी में, कि सरकार अदाणी को डूबने ही नहीं दे सकती।” यह बात तथ्यों से समझ में ज्यादा आएगी। हिंडेनबर्ग के उद्घाटन के बाद तीन दिनों के भीतर बैंक ऑफ बड़ौदा के शेयरों में 13 प्रतिशत, एसबीआइ के शेयरों में 10.77 प्रतिशत और एलआइसी में 8.90 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इन आंकड़ों की विशालता को और देश की आम जनता पर इसके प्रभाव को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि एलआइसी को अपने निवेशकों से जो पैसा मिलता है उसे वह शेयर जैसी परिसंपत्तियों में निवेश करती है। इसका मतलब कि लोग जो बीमा करवाते हैं और उसका प्रीमियम चुकाते हैं, उसका एक हिस्सा शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है।

नेथन एंडर्सन की मंदड़िया फर्म हिंडेनबर्ग ओवरप्राइस शेयरों को बाजार मूल्य पर बेचकर दाम गिर जाने पर खरीदने का काम करती है

नेथन एंडर्सन की मंदड़िया फर्म हिंडेनबर्ग ओवरप्राइस शेयरों को बाजार मूल्य पर बेचकर दाम गिर जाने पर खरीदने का काम करती है

एलआइसी का आकार कितना बड़ा है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इसके निवेशकों की संख्या 25 करोड़ से ज्यादा है। यह मोटे तौर पर देश के मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग की आबादी है, जो जीवन बीमा से लेकर पेंशन और बचत तक के लिए एलआइसी पर निर्भर रहता है। एलआइसी जितने फंड चलाती है, उनका आकार समूचे म्यूचुअल फंड उद्योग के बराबर माना जा सकता है। अदाणी की कंपनियों में एलआइसी की भारी हिस्सेदारी है। भारत में समूचे बीमा उद्योग का अदाणी समूह में जितना निवेश है, उसका 98 प्रतिशत से ज्यादा एलआइसी का हिस्सा है। यह 80,000 करोड़ रुपये के आसपास है। 

यही कारण था कि हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद महज दो दिन के भीतर अदाणी समूह को हुए नुकसान में एलआइसी के हिस्से का करीब 17,000 करोड़ रुपया एक झटके में डूब गया। यह सारा पैसा देश की जनता की गाढ़ी कमाई का था। इसके बावजूद एलआइसी ने सबक नहीं सीखा और अदाणी में पैसे लगाता रहा। जनवरी के आखिरी सप्ताह में उसने अदाणी एंटरप्राइजेज के एफपीओ में 300 करोड़ रुपये का निवेश किया।

अदाणी के कारोबारी तरीकों के ऊपर हिंडेनबर्ग के आरोप पहले नहीं हैं। अगस्त 2022 में न्यूयॉर्क स्थित वित्तीय और बीमा कंपनी फिच ग्रुप की क्रेडिटसाइट्स यूनिट ने चेताया था कि अदाणी समूह बहुत ज्यादा कर्जे में डूबा है और बहुत बुरी स्थिति में वह दिवालिया भी हो जा सकता है। इसी रिपोर्ट में हालांकि यह भी कहा गया था कि अदाणी समूह इसलिए राहत में है क्योंकि बैंकों और सरकार के साथ उसके रिश्ते मजबूत हैं।

इससे पहले जुलाई 2021 में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने संसद में कहा था कि देश के प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) और राजस्व गुप्तचर निदेशालय (डीआरआइ) नियमों के उल्लंघन के मामले में अदाणी समूह की कुछ कंपनियों की जांच कर रहे हैं। इसी के आसपास ब्लूमबर्ग ने लिखा था कि अदाणी की कपनियों में अपना 90 प्रतिशत पैसा लगाने वाली चार कंपनियां ऐसी हैं जिनकी जांच चल रही है और इन कंपनियों का फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों में निवेश का इतिहास रहा है।

अदाणी समूह के ऊपर केवल वित्तीय फर्जीवाड़े के आरोप नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों से यह कॉरपोरेट समूह लगातार परियोजनाओं के लिए पर्यावरण नियमों के उल्लंघन, विस्थापन और अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंधों के लिए चर्चा में रहा है। इन मामलों में सबसे हालिया विवाद टीवी चैनल एनडीटीवी की खरीद का रहा है। छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य में अदाणी की खनन परियोजना के कारण विस्थापित लोगों के प्रतिरोध से लेकर केरल के विजिंझम पोर्ट के खिलाफ आंदोलन तक देश भर में कम से कम दर्जन भर जगहों पर अदाणी के खिलाफ पिछले कुछ वर्षों से लगातार आंदोलन चल रहे हैं। इन मामलों पर लिखने वालों के खिलाफ अदाणी ने मुकदमे किए हैं। इनमें सबसे चर्चित मामला इकनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली के संपादक रहे परंजय गुहा ठाकुरता का रहा जिनके खिलाफ अदाणी के मानहानि के मुकदमे में कच्छ की एक अदालत ने गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया था।

जैसे ही हिंडेनबर्ग ने अदाणी समूह को कॉरपोरेट फर्जीवाड़े का दोषी ठहराते हुए रिपोर्ट निकाली, शेयर बाजार में भगदड़ मच गई

अदाणी के कारोबार और मानवाधिकार उल्लंघनों पर नजर रखने वाले अदाणीवॉच वेबसाइट के कोऑर्डिनेटर ज्यॉफ लॉ हिंडेनबर्ग खुलासों पर लिखते हैं, “आरोप सही हुए, तो यह केवल इस बात का उदाहरण होगा कि कैसे क्रोनी पूंजीवाद और सत्ता का किया पक्षपात धारणा के स्तर पर दंडहीनता की एक संस्कृति विकसित करता है।”

बहरहाल, लंबी दूरी तय करके अदाणी तक पहुंचा कॉरपोरेट गोरखधंधे का भारतीय अध्याय इस बात का सबक जरूर है कि तरक्की और समृद्धि की जो सीढ़ी ऊपर जाती है वही नीचे भी ले आती है।

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